मानव निर्मित बाढ़ की विनाशलीला


विगत 21 अगस्त 2016 की सुबह गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ते हुए, पटना में 50.43 मीटर पर पहुँच गया। यानी वह पहले के उच्चतम बाढ़ स्तर 50.27 मीटर से 16 सेंटीमीटर ऊपर बह रही थी।

22 अगस्त 2016 तक पानी का जलस्तर गंगा नदी के किनारे तीन अन्य स्थानों बलिया (उत्तर प्रदेश), हाथी दाह एवं भागलपुर (बिहार) में उच्चतम बाढ़ का रिकार्ड तोड़ने के बाद अब यह बाढ़ गंगा नदी के किनारे बसे बिहार और उत्तर प्रदेश के अन्य इलाकों तक पहुँच गई। उल्लेखनीय है कि बिहार में तब तक वर्षा औसत से 14 प्रतिशत कम हुई थी। तो फिर गंगा में रिकार्ड तोड़ने वाली बाढ़ क्यों आई।

इस दौरान बिहार के अनेक जिले बाढ़ की चपेट में आये और कम-से-कम 10 लाख लोग प्रभावित हुए और 2 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा। कई लोग जान गँवा चुके हैं। सिर्फ इस सबसे ऐसा प्रतीत होता है कि यह बाढ़ सालाना तौर पर आने वाली बाढ़ों जैसी ही प्राकृतिक आपदा है। परन्तु यह बात नहीं है।

बिहार और उत्तर प्रदेश में इस दौरान आई अभूतपूर्व बाढ़ में दो बाँधों की मुख्य भूमिका है। पहला बाँध है, मध्य प्रदेश में सोन नदी पर बना बाणसागर बाँध और दूसरा पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर बना फरक्का बाँध जिसे गलती से बैराज का दर्जा दिया गया है। अगर बाणसागर बाँध का समुचित प्रबन्धन किया जाता तो इससे 10 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ने की नौबत ही नहीं आती। जैसा कि बिहार सरकार ने भी इंगित किया।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया कि बिहार में बाढ़ की दूसरी वजह फरक्का बाँध है। बिहार सरकार के सुझाव पर 21 अगस्त 2016 की शाम को फरक्का बाँध के कुछ गेट खोल दिये गए। (किन्तु अभी इसकी पुष्टि की जानी हैं) उन्होंने एक बार फिर कहा कि फरक्का बाँध के कारण इससे ऊपरी इलाकों में जलनिकासी प्रणाली अवरुद्ध हुई है, बाँध की वजह से गंगा नदी तल में गाद जमा होने से तल ऊपर उठा है और साथ ही इसके जल-बहाव क्षमता में कमी आई है।

नीतीश कुमार लम्बे अरसे से फरक्का बाँध की उपयोगिता का स्वतंत्र मूल्यांकन करने और इसे हटाने की बात भी उठा रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन नीति बनाने की माँग भी उठाई जो कि अभी तक भारत में नहीं बनी है। उनकी ये सभी माँगें जायज हैं। हालिया समय में उन्होंने प्रधानमंत्री को भी इस मुद्दे से अवगत कराया है। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि केन्द्र सरकार इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है।

मध्य प्रदेश जल संसाधन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार शहडोल जिले में सोन नदी पर बने बाणसागर बाँध के जलाशय का अधिकतम स्तर 341.64 मीटर और कुल जलाशय क्षमता 5429.6 मिलियन (1 मि लि. 10 लाख) क्यूबिक मीटर है।

मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी पर बने इन्दिरासागर और चम्बल नदी पर बने गाँधीसागर के बाद बाणसागर तीसरा बड़ा जलाशय है। इन बाँधों को केवल मानसून के अन्तिम चरण में पूरा भरा जा सकता है। साथ में मानसून के दौरान जब इन बाँधों के निचले इलाकों में तेज बारिश व अन्य कारणों से पहले ही बाढ़ आई हो तो ऐसे समय में इन बाँधों से पानी की निकासी नियंत्रित तरीके से की जाती है ताकि बाढ़ की स्थिति त्रासदी में ना बदले।

फिर भी, 19 अगस्त 2016 की सुबह 8 बजे तक बाणसागर बाँध का जलस्तर 341.33 मीटर पहुँच गया। इस स्तर पर जलाशय में 5169.2 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी था, जोकि इसकी कुल जलाशय क्षमता का 95.22 प्रतिशत है। इसके बाद इस बाँध में बहुत कम मात्रा में पानी भरा जा सकता है। इसके बावजूद 18 अगस्त 2016 की शाम 5.30 बजे तक इस बाँध से छोड़ा गया पानी आवक से बहुत कम था।

19 अगस्त की सुबह 7 बजे ही बाँध के 18 में से 16 गेटों को खोलकर, अचानक 15798 क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया। पहले से ही भारी बारिश से प्रभावित पटना समेत बिहार और उत्तर प्रदेश के अनेक इलाकों में इतनी बड़ी मात्रा में पानी छोड़ने के कारण अप्रत्याशित बाढ़ आई। यदि बाणसागर बाँध के जलाशय को इतना ना भरा तो बाढ़ग्रस्त निचले इलाकों में इतना ज्यादा पानी छोड़ने की नौबत ही ना आती और लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली गंगा की अभूतपूर्व बाढ़ को टाला जा सकता था।

जब भी हम, बाँधों द्वारा निचले इलाकों में कृत्रिम बाढ़ की स्थिति से बचने के लिये बाँध से समय रहते पानी छोड़े जाने की बात कहते हैं तो कहा जाता है कि बाद में बारिश ना होने की दशा में अग्रिम तौर पर छोड़े गए पानी की बर्बादी की भरपाई कैसे होगी। परन्तु इस साल ऐसी अवस्था नहीं है। पूर्वी मध्य प्रदेश में दक्षिण पश्चिमी मानसून आधारित वर्षा पहले ही सामान्य से अधिक है।

बाँध से नीचे ही जलागम क्षेत्र का दायरा 50 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक है। इसके अतिरिक्त भारतीय मौसम विभाग द्वारा पूर्वी मध्य प्रदेश में भारी बरसात की चेतावनी पहले ही जारी की जा चुकी थी। जिसे 19 अगस्त की सुबह तक गम्भीरता से नहीं लिया गया।

जून 2016 में जब बाणसागर बाँध भरना शुरू हुआ तो इसमें पहले से ही 1808.58 मिलियन क्यूबिक मीटर की मात्रा में पानी मौजूद था। गौरतलब है कि सन 2015-16 सूखा वर्ष था, बावजूद इसके वर्षांत तक बाणसागर बाँध में कुल जलाशय क्षमता का 33.3 प्रतिशत से अधिक जल अनुपयोगी रहा।


19 अगस्त की सुबह 7 बजे ही बाँध के 18 में से 16 गेटों को खोलकर, अचानक 15798 क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया। पहले से ही भारी बारिश से प्रभावित पटना समेत बिहार और उत्तर प्रदेश के अनेक इलाकों में इतनी बड़ी मात्रा में पानी छोड़ने के कारण अप्रत्याशित बाढ़ आई। यदि बाणसागर बाँध के जलाशय को इतना ना भरा तो बाढ़ग्रस्त निचले इलाकों में इतना ज्यादा पानी छोड़ने की नौबत ही ना आती और लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली गंगा की अभूतपूर्व बाढ़ को टाला जा सकता था। यदि इतने पानी का सूखे के दौरान उपयोग किया जाता तो इसके दोहरे लाभ होते एक तो बाणसागर बाँध में 1800 मिलियन क्यूबिक मीटर वर्षाजल भरने की जगह होती और दूसरे, निचले इलाकों में छोड़े गए पानी की मात्रा को कम किया जा सकता था। जिससे बाढ़ की मारक क्षमता में निश्चित तौर पर कमी होती।

यहाँ तक कि वर्ष 2015-16 के दौरान इस बाँध पर तीन चरणों में बने 405 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना से मात्र 721.84 मिलियन यूनिट बिजली बनी। जो कि वर्ष 2014-15 में उत्पादित 1388.5 मिलियन यूनिट बिजली का लगभग आधी थी।

केन्द्रीय ऊर्जा प्राधिकरण के अनुसार 2014-15 में हुआ 1388.5 मिलियन यूनिट बिजली उत्पादन भी पिछले दो वर्षों की तुलना में 30 फीसदी कम था। इस आर्थिक वर्ष के पहले चार माह भी बाणसागर बाँध से जलविद्युत उत्पादन केवल 161.13 मिलियन यूनिट था जो कि पिछले वर्ष 2015-16 की उसी की अवधि के दौरान उत्पादित 299.05 मिलियन यूनिट से बहुत कम है। अतएव बिजली का कम उत्पादन अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा नुकसान है परन्तु ऐसा क्यों हुआ?

सक्रिय मानसून के 6 सप्ताह पहले ही बाणसागर बाँध की जलाशय क्षमता को 19 अगस्त 2016 में सुबह 7 बजे 96 प्रतिशत तक क्यों भर दिया गया। सवाल उठते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में आई इस अनावश्यक मानव निर्मित बाढ़ से हुए नुकसान का जिम्मेदार कौन है। इस दिशा में अब तक क्या कार्यवाही की गई है।

क्या बाणसागर जलाशय को भरने के लिये कोई नियम बने हैं। इन नियमों का पालन ना होने के लिये कौन दोषी है।

सूखे के वर्ष में भी 1800 मिलियन क्यूबिक मीटर उपलब्ध जल का उपयोग क्यों नहीं हुआ।

2015-16 में वर्ष के अन्त तक भी पर्याप्त पानी होने के बावजूद बाँध से इतनी कम मात्रा बिजली उत्पादन क्यों हुआ।

मध्य प्रदेश सरकार ने इस विफलता की जाँच के लिये और दोषियों को जवाबदेह बनाने के लिये क्या कदम उठाए हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश को मिलाकर बनाई गई विशिष्ट अन्तरराज्यीय बाणसागर बाँध समिति ने इस मसले में अब तक क्या कार्यवाही की है।

बाणसागर संचालन समिति के अध्यक्ष के तौर पर मनोनीत, केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री ने क्या कदम उठाए हैं। केन्द्रीय जल आयोग ने इस दिशा में क्या प्रयास किये हैं। केन्द्रीय जल आयोग के अध्यक्ष सन 1973 में गठित बाणसागर संचालन समिति के क्रियान्वयन समूह के अध्यक्ष होते हैं।

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि बाणसागर बाँध संचालन में लापरवाही और फरक्का बाँध द्वारा गंगा नदी की जल निकासी में कमी एवं गाद जमा होने से नदी तल में वृद्धि होने से इस वक्त बिहार और उत्तर प्रदेश ने अनावश्यक बाढ़ की त्रासदी झेली। बाणसागर बाँध के संचालन में बरती लापरवाहियाँ केवल निष्पक्ष जाँच से ही उजागर हो सकती है।

दुर्भाग्य से हमारे यहाँ ना तो ऐसी जाँच होती है ना ही ऐसी लापरवाहियों के लिये जवाबदेही निर्धारित की जाती है। जिसकी वजह से भविष्य में ऐसी मानव निर्मित बाढ़ त्रासदियों का बढ़ना जारी रहेगा। फरक्का बाँध की उपयोगिता, कीमत, लाभ और ऊपरी एवं निचले क्षेत्रों में इसके प्रभाव को लेकर हमें जल्द एक स्वतंत्र और निष्पक्ष मूल्यांकन करने की सख्त आवश्यकता है। इसके संचालन ढाँचे को हटाने के विकल्पों को भी इस मूल्यांकन के दायरे में रखना चाहिए।

आज भी हम हमारी नदियों और नदीतंत्र की कार्यप्रणाली में गाद के महत्त्व को समझते नहीं हैं। जिसकी अनदेखी करने से हमारी नदियों एवं नदीतंत्र पर बहुत बुरा असर हो रहा है। गाद का हमारी नदियों और नदीतंत्र के माध्यम से डेल्टा में ना पहुँचने की वजह से डेल्टा क्षेत्र संकुचित एवं जलविलीन हो रहे हैं। इससे एक तरह जहाँ डेल्टा क्षेत्र गाद की आपूर्ति से वंचित है, दूसरी ओर यही गाद नदी तल और बाँधों में जमा होकर भारी नुकसान कर रही है।

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