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मारने नहीं, मरने पर उतारू.
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संजय तिवारी
दिल्ली के पंचकुईयां रोड पर हिन्दू महासभा का भवन कोई ७५ साल पुराना है. लगभग इतने ही साल का एक आदमी आजकल यहां आकर रूका हुआ है. वह हिन्दुओं की पवित्र नदी गंगा को मरते हुए नहीं देख सकता इसलिए फैसला करके दिल्ली आया है कि उसका पार्थिव शरीर ही अब इस भवन से बाहर जाएगा.

उनका नाम है गुरूदास अग्रवाल. जिन्हें लोग जीडी अग्रवाल या फिर केवल जीडी के नाम से जानते हैं. यह नाम अब देश के अनजाना नहीं है. थोड़े दिनों पहले ही गंगा को बचाने के लिए चित्रकूट में रहनेवाले जीडी ने ऐलान किया था कि वे गंगा बचाने के लिए उत्तरकाशी जा रहे हैं और वहां आमरण अनशन करेंगे. खबर ही नहीं, हल्ला मचा था. राज्य की भाजपा सरकार पर विहिप के लोगों ने दबाव बनाया जिसका असर यह हुआ कि जीडी को मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खण्डूरी ने आश्वासन दिया कि पाला मनेरी और भैरों घाटी का काम रोक दिया जाएगा. काम तो रूक गया लेकिन राजनीति शुरू हो गयी. पर्यावरण समूहों ने इसे भारी जीत माना और मुख्यमंत्री ने जीडी को संदेश दिया कि उन्होंने अपने हिस्से का काम कर दिया है, बाकी काम केन्द्र सरकार के हिस्से का काम है. इसलिए उन्हें दिल्ली में अनशन करना चाहिए. वे दिल्ली आ गये. अनशन किया. अनशन का असर हुआ और केन्द्र सरकार ने भी आश्वासन दिया वे जल्द ही उर्जा मंत्रालय के तहत एक समिति का गठन करेंगे. उर्जा मंत्रालय ने आश्वासन दिया कि समिति जो सिफारिश करेगी वे उसे मानेंगे. जीडी ने यहां भी अपना अनशन तोड़ दिया.

लेकिन उस तीस जून की तपती दोपहरी और इस २० जनवरी की कड़कड़ाती सर्दी के बीच जो कुछ हुआ उससे न केवल गंगा के लिए चल रहा आंदोलन कमजोर हुआ बल्कि जीडी को दोबारा प्राण त्यागने का प्रण करना पड़ा. जो लोग जीडी के बारे में जानते हैं वे उन्हें एक जिद्दी वैज्ञानिक मानते हैं. सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ऐसे लोगों में हैं जो जीडी के प्रण को पूरा करने के लिए सक्रिय हैं. जीडी सुनीता नारायण के भी गुरू और सीएसई के संस्थापक अनिल अग्रवाल के प्रेरणास्रोत रहे हैं. जीडी को और भी ऐसे ही कई नामी पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों का समर्थन प्राप्त है. जब हमने उनसे पूछा कि आपको किसका सरकार और जनता दोनों आपके साथ खड़ी दिखाई देती है? उन्होंने सपाट शब्दों में कहा कि मुझे इन दोनों से कोई उम्मीद नहीं है. यह जिद्दी जीडी का तल्ख जवाब था. लेकिन ऐसा कहते हुए उनका चेहरा बिल्कुल सपाट और निर्विकार था. मानों लंबे अनुभव के बाद उनके मुंह से ये शब्द निकल रहे हों. उनके इस साहस से कोई भी दंग रह सकता है.

जीडी अग्रवाल के इस गंगा रक्षा अभियान को देशभर में कुछ लोगों ने संदेह की नजर से देखा था. कुछ तो यहां तक कह रहे थे कि उनके जीवन का यह आखिरी प्रयास किसी खास पुरस्कार के प्रति समर्पित है. मैं जब उनसे मिलने पहुंचा तो हमारे और उनके बीच की कड़ी हरपाल सिंह ने कहा गुरूजी आपसे पांच मिनट बात करना चाहते हैं. उस समय वे किसी काम में व्यस्त थे. उन्होंने तुरंत पांच मिनट का समय निकाल लिया. पांच मिनट में उन्होंने वे सारी बातें बता दीं जो वे कहना चाहते थे. मुझे लगा था कि बातचीत थोड़ी लंबी होगी ही जैसा कि आमतौर पर किसी से भी बात करते समय हो जाता है. लेकिन बातचीत के दौरान ही अचानक उन्होंने कहा कि बस हो गया. अब कुछ नहीं बोलूंगा. मैंने कहा मेरा आखिरी सवाल है. उन्होंने सख्त आवाज में कहा कि तुम्हारा पांच मिनट पूरा हो गया है. मैंने रिकार्डर में टाईम देखा ५ मिनट २५ सेकेण्ड हुए थे. मैंने तुरंत कहा कि हां, मेरा पांच मिनट हो गया. पांच मिनट की इस बातचीत में जीडी ने मुझे पूरी तरह से प्रभावित किया था. उठते हुए उन्होंने एक बात कही कि अगर मैं आज जीवित नहीं होता तो तुम्हारे पास पूछने के लिए कोई सवाल नहीं होता. उन्होंने कहा कि 'मेरी मौत ही अब एकमात्र समाधान होगा. जब तक मैं आहुति नहीं दे देता सवाल-जवाब का यह सिलसिला चलता रहेगा लेकिन गंगा मैया के बारे में कोई कुछ नहीं करेगा.'

साभार – विस्फोट

कृपया अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें - अनिल गौतम : 9412176896, पवित्र सिंह : 011.32088803, 9410706109

दिनांक: जनवरी 22, 2009

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