मौत देती खेती

21 Dec 2017
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कपास के खेत विदर्भ के किसानों के लिये मौत का कारण बन रहे हैं
कपास के खेत विदर्भ के किसानों के लिये मौत का कारण बन रहे हैं


कीटनाशकों के जहर से विदर्भ क्षेत्र में किसानों की मौत इससे सम्बन्धित नियमों में सरकारी अनदेखी पर सवाल उठाती है।

कपास के खेत विदर्भ के किसानों के लिये मौत का कारण बन रहे हैंकिसानों की आत्महत्या के लिये कुख्यात महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में एक और मुसीबत सिर उठा रही है। क्षेत्र में पिछले चार महीने के भीतर करीब 35 किसानों की कीटनाशकों के जहर से मौत हो चुकी है। उनमें से अधिकांश कपास और सोयाबीन के खेतों में काम कर रहे थे। उन्होंने खेतों में कीटनाशकों के छिड़काव के दौरान अनजाने में कीटनाशक निगल लिया। मरने वालों की संख्या यवतमाल जिले में सबसे अधिक है। यहाँ जुलाई से नवम्बर के पहले सप्ताह के बीच 18 किसानों की मौत हो गई। इस तरह की घटनाएँ नागपुर, अकोला और अमरावती जिलों में भी हुई हैं। यवतमाल में श्री वसंतराव नाइक गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के प्रमुख बीएस येलके बताते हैं, “जुलाई से करीब 479 विष के मामले अस्पताल में आए हैं। ज्यादातर लोगों को चक्कर आने, उल्टियाँ करने, दस्त और आँखों में धुंधलापन की शिकायत थी।” येलके ने दो नवम्बर को डाउन टू अर्थ को बताया कि अभी 10 मरीजों का इलाज चल रहा है। इनमें तीन की हालत गम्भीर है और एक वेंटीलेटर पर है।

इन घटनाओं से इलाके में कीटनाशकों के इस्तेमाल को लेकर डर का माहौल बना दिया है। यवतमाल जिले के कलंब खंड के सवरगांव निवासी बीस साल की प्रतीक्षा जी. फुलमाली बताती हैं, “कीटनाशकों ने एक अक्टूबर को मेरे पिता की जान ले ली। इसके बाद से गाँव के लोग कीटनाशकों के इस्तेमाल से डर रहे हैं।” वह सवाल उठाते हुए कहती हैं, “सरकार ऐसे कीटनाशकों के इस्तेमाल की इजाजत ही क्यों देती है जो लोगों के लिये इतने घातक हैं।”

कीटनाशकों से किसानों की मौत को देखते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने विशेष जाँच दल (एसआईटी) को जाँच का आदेश दिया। 12 अक्टूबर तक एसआईटी ने रिपोर्ट जमा नहीं की। देश भर के किसानों से जुड़े संगठन ‘द अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा)’ ने तथ्य जाँच रिपोर्ट जारी की और मौतों के लिये मोनोक्रोटोफोस, ऑक्सीडेमेटोन-मिथाइल, ऐसफिट, प्रोफेनोफोस, फिपरोनिल, इमिडेक्लोप्रिड और साइपरमेथरिन कीटनाशकों और इनके विभिन्न मिश्रणों को दोषी पाया। आशा के सदस्यों ने यह रिपोर्ट 9 व 10 अक्टूबर को कलम्ब और करनी खंड का दौरा करना के बाद बनाई थी। सरकार ने एक नवम्बर को कार्रवाई करते हुए यवतमाल, अकोला, अमरावती और पड़ोसी जिले बुलढाना और वाशिम में पाँच कीटनाशकों- ऐसफिट के मिश्रण, मोनोक्रोटोफोस, डायफेंथरीन, प्रोफेनोफोस और साइपरमेथरिन व फिपरोनिल और इमीडेक्लोरिड पर 60 दिनों के लिये प्रतिबंध लगा दिया।

ऐसा पहली बार नहीं है जब लोग कीटनाशकों के जहर से दुर्घटना दुर्घटना का शिकार होकर मारे गए हों या अस्पताल में भर्ती किए गए हों। आशा के अनुसार, पिछले साल भी यवतमाल जिले में छह किसान मर गए थे जबकि 176 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आँकड़े बताते हैं कि 2015 में देशभर में कीटनाशकों की दुर्घटना के कारण करीब 7060 लोगों की मौत हो गई थी। 2013 में मोनोक्रोटोफोस से दूषित मिड डे मील खाने से बिहार के सारन जिले के धर्माशमी गंडामन गाँव में करीब 23 बच्चों की मौत हो गई।

जनवरी 2002 में चार संगठनों- टॉक्सिक लिंक, सर्वोदय यूथ ऑर्गनाइजेशन, द सेंटर फॉर रिसोर्स एजुकेशन और कम्युनिटी हेल्थ सेल ने तेलंगाना के वारंगल जिले में कीटनाशकों के छिड़काव के बाद किसानों की मौत के मुद्दे पर रोशनी डाली। किसानों की मौत की ये तमाम घटनाएँ जहरीले कीटनाशकों के निगमन के प्रति सरकार के चलताऊ रवैये पर सवालिया निशान लगाती हैं।

जुलाई से नवंबर के बीचकीटनाशकों के जहर से करीब 35 किसानों की जान जा चुकी है

कीटनाशकों के लिये ढीले नियम


हाल में हुई मौतों के लिये दो कीटनाशक जिम्मेदार हैं- मोनोक्रोटोफोस और ऑक्सीडेमेटोन-मिथाइल। इनकी विषाक्तता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इन्हें श्रेणी-1 के कीटनाशकों में शामिल किया है। श्रेणी-1 के कीटनाशकों में शामिल किया है। श्रेणी-1 के कीटनाशकों में बेहद खतरनाक श्रेणी-1ए और बहुत खतरनाक श्रेणी-1बी के तत्व होते हैं। इन कीटनाशकों की थोड़ी सी मात्रा भी औसत वयस्क के लिये भी खतरनाक हो सकती है। सेंट्रल इंसेक्टीसाइड्स बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमिटी (सीआईबीआरसी) के तहत 18 श्रेणी-1 के कीटनाशक पंजीकृत हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय एवं किसान कल्याण के अधीन डायरेक्टोरेट ऑफ प्लांट प्रोटेक्शन, क्वारेंटाइन एंड स्टोरेज के पास उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, 2015-16 भारत में कुल उपभोग किए गए कीटनाशकों में श्रेणी-1 के कीटनाशक करीब 30 प्रतिशत थे।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 2013 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर अनुपम वर्मा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी। इस समिति को उन 66 कीटनाशकों की जाँच करनी थी जो कई देशों में प्रतिबन्धित हैं और भारत में जिनका इस्तेमाल हो रहा है। समिति की सिफारिशों के आधार पर मंत्रालय में 2018 में श्रेणी-1 के तीन कीटनाशकों अन्य चार कीटनाशकों को 2021 में प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव दिया था। प्रतिबन्धित किए जाने वाले कीटनाशकों की सूची में न तो मोनोक्रोटोफोस शामिल था और न ही ऑक्सीडेमेटोन मिथाइल।

 

 

जागरुकता कितनी जरूरी


भारत में हर साल करीब 10,000 कीटनाशक विषाक्तता के मामले सामने आते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के उपमहानिदेशक चंद्र भूषण बताते हैं, “कृषि मंत्रालय और राज्य के कृषि विभाग इन असुरक्षित कीटनाशकों के लिये पूरी तरह जिम्मेदार हैं।” वह बताते हैं कि नियमों में खामियों को तत्काल दूर करके कीटनाशकों से होने वाली मौतों और बीमारियों से बचा जा सकता है। 2005 में सीएसई ने पंजाब के किसानों पर एक अध्ययन किया था। इसमें किसानों के रक्त में विभिन्न कीटनाशकों के अंश पाए गए थे।

महाराष्ट्र में किसानों के हित में काम कर रहे शेतकारी न्याय हक्क आन्दोलन समिति के संयोजक देवानंद पवार समझाते हैं कि विदर्भ में कीटनाशकों की विषाक्तता के लिये सरकार कैसे जिम्मेदार है। वह बताते हैं कि क्षेत्र के किसान कपास की खेती को बॉलवार्म के संक्रमण से बचाने के लिये बड़े पैमाने पर कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि कृषि विभाग कीटनाशकों का सुरक्षित इस्तेमाल के तरीके बताने के लिये किसानों को प्रशिक्षित नहीं करता। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छिड़काव के दौरान कौन-कौन से सुरक्षा के उपाय किए जाएँ।

आशा की राष्ट्रीय संयोजक कविता कुरूगंती कहती हैं, “यवतमाल में जाँच के दौरान हमने पाया था कि किसानों को कीटनाशकों के वैज्ञानिक प्रबन्धन के लिये कोई जानकारी नहीं देता। कीटनाशक निर्माता और सरकार कोई समाधान नहीं पेश करते। किसान अपनी फसल को किसी भी तरह से बचाना चाहते हैं और खेत के मजदूर छिड़काव के मौसम में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं। हमने पाया कि फसलों से सम्बन्धित तमाम समस्याओं के बचने के लिये और पैसा व समय बचाने के लिये अधिकांश किसान कीटनाशकों के मिश्रण का इस्तेमाल करते हैं।”

.इसके अलावा अक्सर किसानों के निर्णय कीटनाशकों के बिचौलियों से प्रभावित होते हैं। अन्तरराष्ट्रीय संघ पेस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क (पीएन) के निदेशक सी. जयकुमार बताते हैं, “किसानों को जमीन और फसलों के प्रबन्धन की तो गहरी जानकारी होती है लेकिन वे कीटनाशकों से अनजान होते हैं।” वह बताते हैं कि कीटनाशकों का गलत प्रबंधन भारत में एक जटिल मामला है। फिर भी सरकार मूकदर्शक बनी हुई हैं और कम्पनियाँ मनमर्जी कर रही हैं।

 

 

 

 

नियमों की अवहेलना


विश्व स्वास्थ्य संगठन और खाद्य एवं कृषि संगठन की ओर से 2014 में संयुक्त रूप से जारी इंटरनेशनल कोड ऑफ कंडक्ट ऑन पेस्टीसाइड मैनेजमेंट के अनुसार, जो लोग कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं उन्हें सुरक्षा के लिये उपकरणों की जरूरत है। ये उपकरण आरामदायक नहीं होते और महँगे भी होते हैं। ये आसानी से उपलब्ध भी नहीं होते। गर्म परिस्थितियों में काम कर रहे किसानों के लिये ये जरूरी होते हैं। जयकुमार बताते हैं कि महाराष्ट्र के मामले इन कोड के उल्लंघन को रेखांकित करते हैं।

भारत में कई फसलों पर वे कीटनाशक भी इस्तेमाल किए जाते हैं जो प्रमाणित नहीं हैं। यह समस्या काफी समय से बनी हुई है। 2013 में सीएसई ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें रिसर्चरों ने गेहूँ, चावल, सेब, आम, आलू, फूलगोभी, काली मिर्च, इलायची, चाय, गन्ने और कपास की खेती में कीटनाशकों के दिशा-निर्देशों की समीक्षा की थी। रिपोर्ट बताती है कि कुछ मामलों में कृषि विश्वविद्यालयों और राज्य कृषि विभाग ने उन कीटनाशकों की सिफारिश की जो किसी खास फसल के लिये सीआईबीआरसी में पंजीकृत नहीं हैं। उदाहरण के लिये गेहूँ के मामले में पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश ने क्रमशः 11, 5 और 9 कीटनाशकों की सिफारिश की जो सीआईबीआरसी में पंजीकृत नहीं थे। देश भर में दूसरी फसलों के लिये भी इस तरह के चलन देखे गए।

अध्ययन में बताया गया कि 10 कीटनाशकों की प्रतीक्षा अवधि पूरी नहीं की गई। इसके अलावा भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कई कीटनाशकों में अधिकतम अंश की सीमा (एमआरएल) तय नहीं की। 2013 में 234 कीटनाशक भारत में पंजीकृत थे। इनमें से 59 में एफएसएसएआई ने एमआरएल तय नहीं किए। सीएसई में खाद्य सुरक्षा एवं विषैले तत्व पर काम करने वाले वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक अमित खुराना का कहना है “भारत में कीटनाशकों के गलत प्रबंधन से जुड़े कई पहलुओं पर काम करने की जरूरत है। सबसे जरूरी है कि श्रेणी-1 के कीटनाशकों को तत्काल प्रतिबंधित किया जाए। वर्मा समिति की सिफारिशें पर्याप्त नहीं हैं और सरकार ने समस्या की व्यापकता के अनुरूप जरूरी कार्रवाई नहीं की है।”

भूषण के अनुसार, कीटनाशकों के असुरक्षित इस्तेमाल के मद्देनजर भारत को एक नए कीटनाशक प्रबंधन कानून की जरूरत है। यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उसका सख्ती से पालन हो। ऐसा इसलिये भी जरूरी है ताकि किसानों को खतरनाक जहर और भोजन को कीटनाशकों से बचाया जा सके।

 

 

 

 

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