मड वल्केनो जो लावा नहीं कीचड़ उगलते हैं (Mud volcano)

मड वल्केनो
मड वल्केनो


वल्केनो या ज्वालामुखी का नाम आते ही आग और लावा उगलती पहाड़ियों का दृश्य मन में उभरता है। मगर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारी धरती पर अनेक ज्वालामुखी ऐसे भी पाये जाते हैं जो आग और लावा की जगह कीचड़नुमा गाद उगलते हैं। इनसे कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी निकलती हैं। प्रकृति की इस अनोखी रचना को पंक ज्वालामुखी या लोकप्रिय तौर पर मड वल्केनो (mud volcano) कहते हैं।

मड वल्केनोमड वल्केनोमड वल्केनो भी एक प्राकृतिक संरचना है जो दुनिया में अनेक स्थानों पर पाई जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ताइवान, इटली, ईरान, भारत, पाकिस्तान, रोमानिया, म्यांमार, चीन, जापान, इंडोनेशिया, कोलम्बिया सहित यह विश्व के अनेक देशों में पाये गए हैं परन्तु ये भारत में सिर्फ अंडमान में पाये जाते हैं। ग्रेट अंडमान समूह के बाराटांग नामक द्वीप में ये मड वल्केनो मिलते हैं।

 

 

क्या होते हैं मड वल्केनो?


मड वल्केनो ऐसी प्राकृतिक रचना है जिनमें से भू-उत्सर्जित गैसों और कीचड़ जैसे तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है। पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों (सबडक्शन जोन) में या इसके आस-पास ज्यादातर ये मड वल्केनो पाये जाते हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि मड वल्केनो मंगल ग्रह पर भी मौजूद हैं।

मड वल्केनों प्रायः वहाँ पाये जाते हैं जहाँ गाद या चिकनी मिट्टी के तरल संस्तरों जैसी उपसतह टेक्टोनिक गतिविधि का दबाव झेलते हैं और इनमें हाइड्रोकार्बन गैसों का जमाव होता है। टेक्टोनिक गतिविधियों का यह दाब इस सतह को ऊपर की ओर धक्का लगाता है जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह पर ये शंक्वाकार पंक स्तूप के समान फूटकर निकलते हैं। इनसे कीचड़ या पतले तरल गारे जैसा द्रव और गैसें उत्सर्जित होती हैं। मड वल्केनो से निकलने वाला कीचड़नुमा तरल पदार्थ क्ले और लवणीय तरल का सम्मिश्रण होता है जो भूगर्भीय क्षेत्र में उत्पन्न मीथेन गैस के मंथन और उबाल के फलस्वरूप एक गाढ़े घोल या गारे की तरह बन जाता है।

कीचड़नुमा तरल पदार्थ के साथ मड वल्केनो में से कुछ ठोस पदार्थ भी इसके बहिस्राव के समय निकलते हैं जिन्हें मड ब्रेसीआ (mud braccia) कहते हैं। ये वास्तव में चट्टान या लवण के खंडित टुकड़े होते हैं। इस मड ब्रेसीआ की संरचना बहुत जटिल होती है क्योंकि इसके निर्माण में भूगर्भ के सभी पदार्थ और प्रक्रिया अपनी भूमिका निभाते हैं। मड वल्केनों में से तरल का उत्सर्जन इसमें निहित गैसों के फैलाव और ऊपर की ओर निकास के कारण होता है। यहाँ पर गुरुत्वाकर्षण बल और ज्वारीय प्रवाह अहम भूमिका निभाते हैं।

रचना में ये वास्तविक ज्वालामुखी के समान होते हैं, मगर इनके भीतर से लावा नहीं निकलते हैं। सामान्य तौर पर ये मड वल्केनो 1 से 2 मीटर ऊँचे और इतने ही चौड़े होते हैं। हालांकि 700 मीटर ऊँचे और 10 किमी तक चौड़े मड वल्केनो भी पाये जाते हैं। विश्व का सबसे बड़ा मड वल्केनो (लूसी) इंडोनेशिया में है जिसका व्यास 10 किलोमीटर है। इनकी गहराई 2 से 15 किलोमीटर तक होती है इसलिये पृथ्वी के भीतरी हिस्सों की हलचल का ये संकेत प्रकट करते हैं।

ये वास्तविक ज्वालामुखी नहीं होते क्योंकि पृथ्वी के भीतरी परत की मैग्मा गतिविधि से इनका कोई सम्बन्ध नहीं होता है। इसलिये मड वल्केनो से निकलने वाला गाढ़ा तरल पदार्थ पृथ्वी के अन्दरूनी मेंटल में पाये जाने वाला मैग्मा नहीं होता। चूँकि ज्यादातर मड वल्केनो के निर्माण की प्रकृति बहुत कुछ वास्तविक ज्वालामुखी से मेल खाती है (कभी-कभार गैसों की परस्पर क्रिया से इनमें आग लगने की घटना दर्ज की गई है) इसलिये इन्हें ज्वालामुखी नाम दिया गया है। इनसे मुख्यतः कीचड़ उत्सर्जित होता है, इस कारण इन्हें मड वल्केनो या पंक ज्वालामुखी कहते हैं।

इन मड वल्केनो के शीर्ष पर अक्सर क्रेटर बनता है जहाँ से बाहर की ओर कीचड़ और गैस निकलते हैं। इनकी परस्पर क्रिया से ये कभी-कभी जल उठते हैं और इनमें से आग की लपटें उठने लगती हैं। मड वल्केनो की इस ठंडी और गर्म प्रवृत्ति के कारण इन्हें दो श्रेणियों में बाँटा गया है पहला गर्म और दूसरा ठंडे। गर्म मड वल्केनो ज्वलनशील ज्वालामुखियों से सम्बद्ध होते हैं और इन मड वल्केनो से निकले तरल पदार्थों का तापमान 70 से 900C तक होता है। वहीं ठंडे मड वल्केनो ज्वलनशील नहीं होते।

मड वल्केनो से सर्वाधिक निकलने वाली गैस मीथेन (86 प्रतिशत) होती है। मीथेन की ज्वलनशीलता के कारण इनमें कभी-कभी विस्फोट की घटनाएँ भी सामने आती हैं। 27-30 दिसम्बर 2004 में बाराटांग (अंडमान) के एक मड वल्केनो में आग की लपटें भी देखी गई थीं। एक बार भूगर्भीय दाब के फलस्वरूप उत्सर्जन की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद मड वल्केनो दशकों या सदियों तक विस्फोट की स्थिति में नहीं आते और निष्क्रिय बने रहते हैं। इन मड वल्केनो से तरल और गैस आमतौर पर 4 से 6 दिनों तक लगातार निकलते हैं और इस अवधि के बाद यह रिसाव ठहर जाता है। रिसाव के कारण इनके ऊपर एक शंक्वाकार शीर्ष बन जाता है।

मड वल्केनो मुख्य रूप से चार आकृतियों के होते हैं शंक्वाकार, ढालाकृति, कुंड (बेसिन) आकृति और तालाब आकृति। वैज्ञानिक समुदाय ने आकार के आधार पर भी इनके कई नामकरण किये हैं। आमतौर पर बड़े आकार वाली इनकी रचना को मड वल्केनो और छोटे आकार वाली रचना को मड कोन (पंक शंकु) कहते हैं। इनकी और भी छोटी रचना को मिनी वल्केनो, मिनी ग्रिफान या गैस छिद्र (गैस वेंट) कहते हैं।

 

 

 

 

पृथ्वी पर मड वल्केनो की स्थिति


मड वल्केनो भूसतह, समुद्र के भीतर और द्वीपों पर पाये जाते हैं। अधिकांशतः विश्व के प्रमुख तेल और गैस क्षेत्रों में इनकी मौजूदगी पाई गई है। इन प्राकृतिक रचनाओं के साथ एक बात सामान्य तौर पर देखी जाती है कि ये मड वल्केनो समूह में मिलते हैं और अक्सर एक क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में मौजूद होते हैं। वैज्ञानिकों ने अभी तक पूरे विश्व के 27 समुद्री इलाकों में मड वल्केनो का पता लगाया है और एक अनुमान के अनुसार समुद्र में 1000 और भूसतह पर 900 मड वल्केनो मौजूद हैं।

लूसी मड वल्केनो इंडोनेशियागहरे सात समुद्र में कितने सुप्त मड वल्केनो हैं, उनकी गणना करना मुश्किल है। शायद यही वजह है कि वैज्ञानिक मड वल्केनो की वास्तविक संख्या बताने में असमर्थ होते हैं। एक सम्भावना के अनुसार महाद्वीपीय ढलानों और गहरे समुद्रों में 5000 से लेकर 10000 तक मड वल्केनो पाये जा सकते हैं। विश्व के प्रमुख मड वल्केनो में आते हैं येलोस्टोन पार्क (अमेरिका), लूसी (इंडोनेशिया), ईरान मकरान (पाकिस्तान और ईरान), बाकू (अजेरबज्जन) और बाराटांग द्वीप (अंडमान, भारत)। चीन के ताइवान इलाके में दर्जनों मड वल्केनो अनेक आकार में मौजूद हैं। कैस्पियन समुद्र, ब्लैक समुद्र, नार्वेजियन समुद्र, मेडिटेरियन समुद्र तट नाइजीरिया और मेक्सिको की खाड़ी में पानी के भीतर मड वल्केनो पाये जाते हैं।

मड वल्केनो पूरी दुनिया के विभिन्न भूगर्भीय पर्यावरण में उपस्थित हैं। जहाँ एक तरफ ये सक्रिय महाद्वीपीय सीमाओं पर पाये जाते हैं तो वहीं दूसरी ओर ये निष्क्रिय महाद्वीपीय इलाकों और खुले समुद्र में भी पाये जाते हैं।

 

 

 

 

मड वल्केनो के निर्माण की प्रक्रिया


प्रकृति में मड वल्केनो के निर्माण के पीछे अनेक कारण होते हैं। इसके भूगर्भीय कारणों में पृथ्वी के भीतरी संस्तरों में गैस का इकट्ठा होना, संस्तर की उपसतह में कीचड़ का उपस्थित होना और उच्च दबाव की स्थिति मुख्य होती है। मड वल्केनो के भूगर्भीय संस्तर की गहराई में तेल निर्माण की प्रक्रिया और कीचड़ का निर्जलीकरण आवश्यक होते हैं। निष्क्रिय महाद्वीप के किनारों और गहरे पानी में मड वल्केनो पदार्थों के जमाव की दर तीव्र होनी चाहिए। इसके अलावा, सक्रिय महाद्वीप के किनारों पर भूगर्भ के टेक्टोनिक दबाव की भी अहम भूमिका होती है।

समुद्र तल के भूगर्भ में मौजूद मड वल्केनो के आधारभूत निर्माणकारी पदार्थ वैसे प्रकृति में निष्क्रिय रहते हैं, मगर भूगर्भीय हलचल होने पर ये सक्रिय हो जाते हैं और जिसके फलस्वरूप इनमें मौजूद कीचड़ या गाद ऊपर उठकर समुद्र की सतह पर अपना मुँह खोलते हैं तथा समुद्र में इस तरह मड वल्केनो का निर्माण सम्पन्न होता है। मड वल्केनो के निर्माण में टेक्टोनिक प्लेटों में हलचल (सिस्मिक) जैसे प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मनुष्य के द्वारा समुद्र की तली में ड्रिलिंग जैसी मानवीय गतिविधि भी जिम्मेदार होती है।

 

 

 

 

भूकम्प और सुनामी से रिश्ता है मड वल्केनो का


ये मड वल्केनो भूगर्भीय घटनाओं के नतीजे होते हैं और वैज्ञानिकों को अध्ययन के बाद भूकम्प व सुनामी से इनके सम्बन्ध जुड़े होने के प्रमाण भी मिले हैं। ग्रेट सुमात्रा-अंडमान द्वीपों में वर्ष 2004 में रिक्टर स्केल पर 9 की तीव्रता से आये भूकम्प के कुछ ही मिनटों बाद यहाँ के बाराटांग में एक मड वल्केनो से सामान्य वृक्ष की ऊँचाई तक तरल पदार्थ उछलकर निकलने लगा था।

एक दूसरी प्रमुख घटना 24 सितम्बर, 2013 को पाकिस्तान में आये भूकम्प के दौरान देखने को मिली थी। 7.7 की तीव्रता से अपरान्ह 4:30 बजे पश्चिमी पाकिस्तानी हिस्से (बलूचिस्तान प्रान्त का अरावां जिला) में आये इस भूकम्प में करीब 350 लोगों की मौत हुई थी। इस भूकम्प के कुछ समय बाद पाकिस्तान के दक्षिणी तट पर नया द्वीप बन गया और यहाँ एक छोटा मड वल्केनो अपने अन्दर से तरल पदार्थ उत्सर्जित करने लगा।

पश्चिमी पाकिस्तान वही क्षेत्र है जहाँ इण्डियन प्लेट यूरेशियन प्लेट पर रगड़ खाता है। यहाँ पर हमेशा चलने वाली इस रगड़ की मार यहाँ की चट्टानें झेलती रहती हैं। इसी क्षेत्र में वर्ष 2013 से पहले 1935 में भी 7.5 तीव्रता वाला भूकम्प आया था जिसमें करीब दस हजार लोग मारे गए थे। पाकिस्तान के मकरान सबडक्शन जोन में वर्ष 1945 में 8.1 तीव्रता वाला भूकम्प आया था जिसके फलस्वरूप ओमान की खाड़ी में सुनामी आई थी और नए द्वीपों का भी निर्माण हुआ था। इन द्वीपों पर अनेक मड वल्केनो बनते हुए देखे गए जिनमें से कीचड़ और गैसें उत्सर्जित हो रही थीं।

उक्त उदाहरण इस बात को प्रमाणित करते हैं कि भूकम्प या सुनामी जैसी भूगर्भीय प्राकृतिक घटनाएँ नए मड वल्केनो का निर्माण करती हैं या सुषुप्त मड वल्केनो को दोबारा से सक्रिय कर देती हैं। इनका अस्तित्व प्रायः भूकम्प-सुनामी के सक्रिय क्षेत्रों के आस-पास होता है। विभिन्न गहराई वाले क्षेत्रों से मड वल्केनो के प्रस्फुटन के लिये टेक्टोनिक गतिविधि प्राथमिक प्रेरक बल के रूप में होती हैं।

वैज्ञानिकों ने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि अगर भूकम्प की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6 के करीब होती है तो उस स्थान से 100 किलोमीटर के व्यास में स्थित मड वल्केनो में तरल पदार्थ और गैसों के उत्सर्जन में तीव्रता दिखाई देती है। अक्सर भूकम्प की घटना के कुछ पलों या घंटों के बाद मड वल्केनो से तरल पदार्थ का उत्सर्जन होने लगता है मगर कई बार यह भी देखा गया है कि भूकम्प आने के महीनों या बरसों बाद जाकर मड वल्केनो से तरल का उत्सर्जन होता है। उदाहरण के लिये बाकू में वर्ष 2000 में भूकम्प आया था और वहाँ के मड वल्केनो में तरल पदार्थों का उत्सर्जन वर्ष 2001 में हुआ। भूकम्प आने के काफी समय बाद मड वल्केनो में होने वाली इस विलम्बित प्रतिक्रिया की विज्ञान सम्मत व्याख्या करने में वैज्ञानिक जुटे हुए हैं।

 

 

 

 

पर्यावरण पर मड वल्केनो के असर


जैसा कि हमने जाना कि मड वल्केनो में से कीचड़ के अतिरिक्त मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं। इनमें नाइट्रोजन और हाइड्रोजन सल्फाइड गैसें भी पाई जा सकती हैं इसलिये यह स्वाभाविक है कि इन गैसों का आस-पास के पर्यावरण पर दुष्प्रभाव होता है। मड वल्केनो से निकलने वाली गैसों के प्रभाव से इनके दायरे में आने वाले पौधे और जलीय पारितंत्र नष्ट हो जाते हैं। इसलिये ये स्थान प्रायः सुनसान रहते हैं।

इस पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की उच्च मात्रा की वजह से समीपवर्ती पारितंत्र के जीवों की खाद्य शृंखला पर नकारात्मक असर होता है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से स्थानीय स्तर के वातावरण पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से स्थानीय स्तर के वातावरण पर ग्रीनहाउस प्रभाव भी देखने को मिलता है। मड वल्केनो वाले इलाके की मिट्टी लवणीय हो जाती है इसलिये यहाँ पौधों के पनपने की सम्भवना न के बराबर रहती है।

कई बार ज्वलनशील मड वल्केनो से आग की लपटें निकलने लगती हैं और इनके विकराल रूप लेने पर आस-पास की वनस्पतियाँ जलकर राख हो जाती हैं। चूँकि मड वल्केनो अक्सर मानव आबादी से दूर पाये जाते हैं इसलिये इनसे आमतौर पर मनुष्यों को नुकसान नहीं पहुँचता है। वहीं समुद्र में पाये जाने वाले मड वल्केनो से जलीय पर्यावरण और उसके जीवों को होने वाला नुकसान व्यापक होता है।

 

 

 

 

बाराटांग (अंडमान) के मड वल्केनो


बाराटांग मड वल्केनो अंडमान (भारत)अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह वैज्ञानिकों के लिये हमेशा से प्राकृतिक खोजबीन का एक अनोखा केन्द्र रहा है। भारतीय मुख्य भूमि से 1400 किलोमीटर दूर स्थित छोटे-बड़े लगभग 572 द्वीपों के इस भूमि गुच्छे अंडमान व निकोबार में अनेक प्राकृतिक संरचनाएँ विद्यमान हैं जो देश-दुनिया से लोगों को आकर्षित करती हैं। यहाँ मौजूद अनोखे पेड़-पौधे और जीव-जन्तुओं के अलावा यहाँ की पुरामानव जातियाँ तथा भूवैज्ञानिक संसाधन भी समान रूप से महत्त्व रखते हैं।

पोर्ट ब्लेअर से 80 किमी उत्तर में स्थित बाराटांग द्वीप का क्षेत्रफल लगभग 297 वर्ग किलोमीटर है और यह बंगाल की खाड़ी तथा अंडमान के समुद्र में स्थित है। दक्षिण अंडमान से बाराटांग की ओर जब लगभग 50 किलोमीटर लम्बे घने जंगल से होकर गुजरते हैं तो रास्ते में हमें जारवा जनजाति के सदस्य देखने को मिल जाते हैं। इस जंगल से बाहर निकलकर नाव से होकर बाराटांग द्वीप जाना होता है, जहाँ हमें भारत के अनोखे मड वल्केनो के दर्शन होते हैं। यहाँ पहुँचने से पहले जो पथरीला रास्ता है, उसमें भी अनेक पेड़-पौधे पाये जाते हैं। यहाँ पर अनेक छोटे-बड़े मड वल्केनो मौजूद हैं और हर समय इनमें से एक से ज्यादा सक्रिय रहते हैं। अंडमान वन विभाग ने इस क्षेत्र को संरक्षित करके रखा है।

चन्द्रमा जैसे अनोखे भूदृश्य और वैज्ञानिक रुचि वाली इस प्राकृतिक रचना मड वल्केनो में समय के साथ लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। मड वल्केनो वैज्ञानिक अध्ययन के अलावा अब तेजी के साथ पर्यटन के केन्द्र भी बनते जा रहे हैं। लोगों के आवागमन से इस प्राकृतिक रचना और इसके वातावरण को नुकसान पहुँचने की सम्भावना भी बढ़ रही है। जन सामान्य को इसके महत्त्व के प्रति जागरूक बनाकर सरकार और पर्यावरण से जुड़ी एजेंसियों के द्वारा इनका संरक्षण किया जाना आवश्यक है।

 

 

 

 

लेखक परिचय


डॉ. मनीष मोहन गोरे
विज्ञान प्रसार, ए-50 इंस्टीट्यूशनल एरिया सेक्टर-62, नोएडा-201 309 (उत्तर प्रदेश),
मो. : 09999275292,
(ई-मेल : mmgore@vigyanprasar.gov.in)

 

 

 

 

 

TAGS

mud volcano in india, mud volcano island in hindi, mud volcano azerbaijan in hindi, mud volcano definition in hindi, mud volcano romania in hindi, mud volcano indonesia, mud volcano pakistan in hindi, mud volcano eruption in hindi, how to make a mud volcano in hindi, how to make a volcano with clay in hindi, how to make a volcano model step by step in hindi, how to make a volcano model for school in hindi, how to make a volcano erupt in hindi, mud volcano essay in hindi, what is a mud volcano in hindi, list of mud volcano in india, Is there any active volcano in India?, What is a volcano Wikipedia?, Is there a volcano in Japan?, Where Are there volcanoes?, is there any active volcano in india, volcanoes in world in hindi, narcondam volcano in hindi, barren island volcano in hindi, volcano in india video in hindi, deccan traps volcano in hindi, volcanic eruption in mumbai in hindi, active volcano in the world in hindi, list of mud volcano in indonesia, mud volcano indonesia in hindi, what is a mud volcano in hindi, mud volcano island in hindi, mud volcano in india, mud volcano azerbaijan in hindi, mud volcano definition in hindi, list of mud volcano in world, mud volcano facts, mud volcano azerbaijan, mud volcano romania in hindi, mud volcanoes in venezuela, mud volcano island pakistan in hindi, mud volcano new zealand in hindi, list of mud volcano in world's biggest, list of mud volcano in world's highest in hindi, list of mud volcano in world worms in hindi.

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading