मगर सत्ताधीशों को शर्म नहीं आती

मध्य प्रदेश सरकार कहती है हमने शिकायत निवारण केंद्र बना रखा है। उसमें आइए और अपनी शिकायत करिए। आंदोलन करने की कोई जरूरत नहीं है। किसी के बहकावे में मत आइए। कितनी भोली और कितनी महान सरकार है। लोगों को मरने के लिए मजबूर करेंगे और जब वे जीवन की भीख मांगेंगे और कहेंगे कि हमें और हमारे बच्चों को बचाइए तो कहेंगे कि ये किसी के बहकावे में आंदोलन कर रहे हैं। कुछ दिन बाद कहेंगे कि कुछ राष्ट्र विरोधी तत्वों के इशारे पर जल सत्याग्रह किया जा रहा है लेकिन उनकी समस्याएं नहीं सुलझाएंगे।

जिस देश में कभी महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह किया था और जिस सत्याग्रह का बड़ा गुणगान किया जाता है, उसी देश में जल सत्याग्रह करने वालों पर लाठियां बरसाई जाती हैं। तब लोग क्या करेंगे? अपनी बात सरकार तक कैसे पहुंचाएंगे? इस देश में लोगों की जिंदगी को किस तरिके से देखा जा रहा है और उनके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है, इसे मध्य प्रदेश में चलाए जा रहे जल सत्याग्रह के माध्यम से समझा जा सकता है। यह वह प्रदेश है जहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तीर्थ दर्शन योजना लागू कर रहे हैं। उनकी यह विनम्र पहल हो सकती है पर वह राज्य के हजारों बुजुर्गों को अपना जीवन चलाने के लिए बांध के पानी में गले तक डूबकर खड़े रहने को मजबूर कर रहे हैं। सरकार इस पर भी नहीं मान रही है। जबरा मारै, रोवै न दे वाली कहावत चरितार्थ करते हुए निरीह ग्रामीणों को गिरफ्तार भी कर ले रही है।

कई गांवों के सैकड़ों की संख्या में बुजुर्ग महिला-पुरुष बांध के पानी में खड़े होकर सरकार को अपने दुख सुनाना और महसूस करवाना चाहते हैं लेकिन सरकार है कि सुनती ही नहीं। एक पखवाड़े तक सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती और किसानों के पैर सड़ते रहते हैं। कोई सुनने वाला नहीं होता, समस्याएं हल करने की बात तो बहुत दूर की है। एक पखवाड़े बाद सरकार की नींद तब टूटी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने आंदोलन को समर्थन दिया और केंद्रीय टीम आंदोलनकारियों की बातें सुनने के लिए आने वाली थी। तब जाकर सरकार ने अपने नुमाइंदों को जल सत्याग्रहियों से बात करने के लिए भेजा। बाद में खंडवा में आंदोलन कर रहे जल सत्याग्रहियों को कुछ आश्वासन देकर उनका आंदोलन खत्म कराया, लेकिन हरदा में जल सत्याग्रह कर रहे किसानों की तब भी नहीं सुनी गई। यह आंदोलनकारी बांध का जलस्तर कम करने जमीन के बदले जमीन देने और समुचित मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं।

यहां यह भी जान लेना बहुत जरूरी है कि बांध का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है और इससे किसानों की फसल पूरी तरह तबाह हो गई है। इस कारण उनके सामने जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा हो गया है। मध्य प्रदेश सरकार कहती है हमने शिकायत निवारण केंद्र बना रखा है। उसमें आइए और अपनी शिकायत करिए। आंदोलन करने की कोई जरूरत नहीं है। किसी के बहकावे में मत आइए। कितनी भोली और कितनी महान सरकार है। लोगों को मरने के लिए मजबूर करेंगे और जब वे जीवन की भीख मांगेंगे और कहेंगे कि हमें और हमारे बच्चों को बचाइए तो कहेंगे कि ये किसी के बहकावे में आंदोलन कर रहे हैं। कुछ दिन बाद कहेंगे कि कुछ राष्ट्र विरोधी तत्वों के इशारे पर जल सत्याग्रह किया जा रहा है लेकिन उनकी समस्याएं नहीं सुलझाएंगे। सुलझाने के नाम आश्वासन दे देंगे और कमेटी बैठा देंगे। कमेटी कई महीने बाद रिपोर्ट देगी फिर उस पर सरकार विचार करेगी। विचार के नाम पर भी वर्षों लगा देंगे। आदमी जाए तो कहां जाए।

अब जरा देखिए, मध्य प्रदेश में दो जगहों पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत जल सत्याग्रह चलाया रहा था। एक ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों द्वारा खंडवा में और दूसरा इंदिरा सागर बांध प्रभावितों द्वारा हरदा में कुछ दिन पहले ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनकारियों को सरकार ने आश्वासन दे दिया कि बांध का जलस्तर कम किया जाएगा और समुचित मुआवजा दिया जाएगा लेकिन हरदा के आंदोलनकारियों से कोई बात तक नहीं कि गई। इसी बीच एक दिन उन्हें जबरन गिरफ्तार कर लिया गया। अगर सरकार लोगों के इतना कष्ट झेलने के बाद उनकी मांगे मानने का आश्वासन दे सकती है तो वह आंदोलन के शुरू में भी यह काम कर सकती है लेकिन सरकारें इतनी असंवेदनशील होती हैं कि उन्हें लोगों का दर्द केवल चुनाव के समय महसूस होता है। चुनाव बीतने के बाद उनकी चिंता में वे पूंजीपति आ जाते हैं जिनके बल पर सरकारें चला करती हैं और जो सत्ताधारी पार्टियों को करोड़ों में चंदा दिया करते हैं।

लोग सरकारों की चिंता से न केवल बाहर हो जाते हैं बल्कि उनका हर तरह से दमन-उत्पीड़न किया जाता है। सरकार को यह तो पता होना ही चाहिए था कि बांध का जलस्तर बढ़ेगा और जलस्तर बढ़ेगा तो उस इलाके के लोगों की फसल बर्बाद हो जाएगी, फसल बर्बाद हो जाएगी तो उन्हें अपना जीवन चलाना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन सरकार है कि मानती ही नहीं। वह तो जब भी कोई अपनी आजीविका के लिए आवाज उठाएगा, उसकी आवाज बंद करने की पूरी कोशिश करेगी और तब भी वे नेहीं माने तो उन पर अनर्गल आरोप लगाना शुरू कर देगी ताकि उन्हें बदनाम कर दिया जाए फिर आंदोलन को कुचल दिया जाए। कुडनकुलम में जल सत्याग्रह के साथ यही किया जा रहा है। वहां की सरकार परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे लोगों को क्या-क्या नहीं कह रही है। सरकार का कहना है कि वहां आंदोलन विदेशी फंड द्वारा संचालित किया जा रहा है जबकि बताया यह जाता है कि वहां मछुआरे, छोटे व्यापारी और बीड़ी बनाकर जीवनयापन करने वाली महिलाएं उस आंदोलन की रीढ़ हैं।

वहां के लोगों का कहना है कि पहले यहां मीठे पानी का बंदोबस्त किया जाना चाहिए क्योंकि यहां ताजे और मीठे पानी का कोई स्रोत नहीं है। पूरी दुनिया में इस तरह का संयंत्र नहीं लगाया गया है। जहां भी इसे लगाया गया है वहां उससे होने वाले नुकसान से बचाव के पहले पुख्त इंतजाम किए गए हैं। यहां के लोगों का यह भी मानना है कि संयंत्र से गर्मी फैलेगी, गर्मी को समुद्र में फैलाया जाएगा जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, मछलियां मर जाएंगी, बीमारियां बढ़ेगी और मछुआरों के सामने जीवनयापन का संकट खड़ा हो जाएगा। इसके विपरीत यहां के लोगों के जीवन की परवाह किए बगैर और आवश्यक इंतजाम के बिना ही संयंत्र लगाने की कोशिश की जा रही है जिसका यहां के लोग विरोध कर रहे हैं। लोगों की बातें सुनने के बजाय सरकार इस आंदोलन को कुचलने की हर संभव कोशिश कर रही है। आंदोलनकारियों पर जुल्म ढाए जा रहे हैं।

हाल ही में कुडनकुलम में परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज किया गया जिसमें एक मछुआरे की मौत हो गई और करीब 50 आंदोलनकारी घायल हो गए। हो सकता है कि परियोजना और सरकार की दलील हों पर आंदोलनकारियों की बात सुनने और उनकी जायज मांगें मानने में क्या बुराई है। सरकार को इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा राय तक ने कुडनकुलम के आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज की निंदा की है और उनकी मांगों पर ध्यान दिए जाने की वकालत की है। नर्मदा बचाओं आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने जल सत्याग्रहियों के गिरफ्तारी की निंदा करते हुए उनकी मांगे मानने की सरकार से अपील की है। सरकारों को भी चाहिए कि वे आंदोलन करने पर मजबूर लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनें, न कि उनका दमन करें।

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