महासागरों पर मंडराता खतरा

30 Jun 2010
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जलवायु में व्यापक बदलाव के खतरों से जूझने के साथ ही हमें हमारे महासागरों को भी प्रदूषण से बचाने की ज़रूरत है। अमेरिका के नेशनल ओसिएनिक एंड एटमस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रिेशन के विशेषज्ञ रिचर्ड फ़ीली और इंटरनेशनल मैरीन कंजर्वेशन ऑर्गेनाइज़ेशन ओसिएनिया के जेफ़ शॉर्ट ने अमेरिकी विदेश विभाग के अंतरराष्ट्रीय सूचना कार्यक्रम ब्यूरो द्वारा आयोजित एक वेबचैट में महासागरों के बढ़ते अम्लीयकरण के खतरों से आगाह किया।

महासागरों के बढ़ते अम्लीयकरण को रोकने के लिए व्यक्तिगत तौर पर क्या किया जा सकता है?
कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता उत्सर्जन इसके लिए दोषी है और इसका एकमात्र हल यही है कि इसका उत्सर्जन कम हो। सबसे बड़ी बात यह है कि इस समस्या की गंभीरता के प्रति सभी लोगों को पूरी दुनिया में जागरूक किया जाए। इसलिए अपने मित्रों और परिवार के लोगों के बीच इस मसले पर बातचीत से भी अंतर पड़ता है।

महासागरों के अम्लीयकरण से समुद्री जीवों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
इस बारे में अभी तक सीमित शोध ही किया गया है। हम यह जानते हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा ज़्यादा होने पर फाइटोप्लैंकटॉन जैसे जीवों की कुछ प्रजातियां अच्छा प्रदर्शन करती हैं जबकि कुछ अन्य की हालत पहले जैसी रहती है या उनमें गिरावट आती है। इसलिए अम्लीयकरण के बढ़ने पर हमें प्रजातियों में बदलाव देखने को मिल सकता है।

अम्लीयकरण के चलते कौनसे समुद्री जीवों की हालत बेहतर होगी जबकि किन जीवों को नुकसान होगा?
अब तक हमने देखा है कि काबर्न डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने पर कॉरल रीफ की बहुत सी प्रजातियों का कैल्सीकरण यानी उनकी अस्थियों के मजबूत होने की प्रक्रिया कम हो जाती है अर्थात इस प्रक्रिया में उन्हें नुकसान झेलना पड़ेगा। दूसरी ओर कुछ समुद्री वनस्पतियां जैसे समुद्री घास ऐसे वातावरण में खूब पनपती हैं। ऐसे में हमें कॉरल रीफ में कमी और समुद्री घास में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। बहुत सी मछलियों आदि को नई पारिस्थितिकी के मुताबिक ढलने के लिए खुद को तैयार करना पड़ सकता है।

यह कैसे संभव है कि कुछ जीव अम्लीयकरण के माहौल में खुद को और भी बेहतर तरीके से रख पाते हैं?
यह बहुत ही बढ़िया सवाल है। जस्टिन रीस द्वारा हाल ही में किए गए शोध से पता चला है कि कुछ जीव जैसे लॉब्स्टर्स और अन्य प्रजातियां बेहतर तरीके से अपनी अस्थियों को मजबूत बनाने की प्रक्रिया जारी रख पाती हैं। वैज्ञानिक समुदाय को उम्मीद है कि ऐसा उनके द्वारा अन्य स्रोतों से ली गई ऊर्जा के कारण संभव हो पाता है।

समुद्री अम्लीयकरण के चलते समुद्री जीवों के कैल्सीकरण में कमी और समुद्र में कैल्सियम कार्बोनेट के घुलने में बढ़ोतरी से क्या कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा पर रोक नहीं लगेगी?
ऐसा होगा लेकिन यह इतने धीमे होगा कि महासागरों के अम्लीयकरण के प्रभाव हमें कई सदियों तक झेलने होंगे।

यदि मौजूदा मानवीय गतिविधियां जारी रहें तो पृथ्वी कितने दिनों बाद रहने लायक नहीं बचेगी?
इस बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है क्योंकि महासागरों के अम्लीयकरण के प्रभावों पर अभी और शोध करने की ज़रूरत है।

विश्व के राष्ट्रों को कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कितनी कमी लाने की ज़रूरत है जिससे कि महासागरों का अम्लीयकरण उस हद से ज़्यादा न बढ़े जबकि समुद्री जीवों के लिए खतरा ज़्यादा बढ़ने लगे?
इसके लिए आदर्श स्थिति यही है कि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दस लाख हिस्सों में सिर्फ 350 हिस्सों तक सीमित रहे। इसके लिए ज़रूरी है कि अगले 50 साल तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में पूर्ण कमी हो और उसके बाद और भी कटौती हो।

क्या हम कृत्रिम तरीकों से महासागरों के अम्लीयकरण को रोक नहीं सकते? क्या ऐसा करना आर्थिक दृष्टि से लाभकरी है और क्या उनका भी पर्यावरण पर प्रभाव पड़ेगा?ऐसे उपाय मौजूद हैं लेकिन उनका स्थानीय स्तर पर प्रयोग आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद नहीं है। उदाहरण के तौर पर समुद्री जल के पानी की क्षारकता बढ़ाने के लिए उसमें कॉरल रीफ के पास चूना मिलाया जा सकता है। अन्य उपायों में भी इसी तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

क्या अम्लीयकरण का प्रभाव झीलों और नदियों पर भी पड़ेगा?
दुनिया की सारी झीलों और नदियां भी इससे प्रभावित होंगी। हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के असर से वे भी नहीं बच पाएंगीं।

पहली बार यह कब पता चला कि महासागरों पर अम्लीयकरण का खतरा मंडरा रहा है?
पहली बार 1970 के दशक में वैज्ञानिकों ने इस बारे में मूल सिद्धांतों पर चर्चा की। लेकिन वास्तविक परीक्षण 1980 के दशक में किए गए।

हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदा मात्रा दस लाख हिस्सों में से 390 हिस्से है। सुरक्षित स्तर 350 का है। तो सुरक्षित स्तर तक तो हजारों सालों में पहुंच पाएंगे?
हम जानते हैं कि 350 का आंकड़ा सुरक्षित है। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हम जल्द वहां नहीं पहुंच सकते। हम यह भी जानते हैं कि 400 का आंकड़ा खतरनाक स्थिति में ले जाएगा। निष्कर्ष यही है कि हमें तुरंत कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी के लिए सभी कुछ किए जाने की जरूरत है।

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