महेश्वरा नदी की कहानी

भौगोलिक परिचय


‘महेश्वरा नदी’ का जलागम क्षेत्र 102 वर्ग किलोमीटर है तथा उद्गम में राहर के पास इस की सर्वोच्च ऊंचाई समुद्र तल से 423 मीटर ऊपर तथा संगम-स्थल पर इसकी ऊंचाई समुद्र-तल से 157 मीटर ऊपर है। इसके जलागम क्षेत्र में तरुण भारत संघ द्वारा प्रारम्भ से मार्च 2013 तक जन-सहभागिता से कुल 107 जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण हुआ है। महेश्वरा नदी की घुमाव सहित कुल लंबाई 27 किलोमीटर है। महेश्वरा नदी का उद्गम राजस्थान के करौली जिले की सपोटरा तहसील के गांव खिजूरा तथा खिजूरा से लगभग 5 किलोमीटर दक्षिण में बसे गांव बंधन का पुरा से प्रारम्भ होता है। खिजूरा गांव ‘कैला देवी’ से 18 किलोमीटर दक्षिण में कैला देवी से करणपुर जाने वाले रोड पर स्थित है।

उद्गम-स्थल बंधन का पुरा से खिजूरा तक महेश्वरा नदी की प्रारंभिक धारा को ‘धोबी वाली सोत’ के नाम से भी जाना जाता है। आगे खिजूरा गांव से चार किलोमीटर पूर्व में ‘महेश्वरा बाबा’ का एक प्राचीन पंच-शिवलिंग है। यहां पर नदी की धारा एकदम 25-30 हाथ नीचे गिरती है। ‘महेश्वरा बाबा’ का स्थान होने के कारण ही यहां से इस नदी का नाम ‘महेश्वरा नदी’ पड़ जाता है।

महेश्वरा बाबा से आधा-एक किलोमीटर उत्तर-पूर्व चलने पर इसमें एक धारा रायबेली की तरफ से आकर मिल जाती है। यहां से थोड़ा ही आगे जाने पर इस नदी में राहर गांव के उत्तर-पश्चिम की पहाड़ियों का पानी भी आकर मिल जाता है। इस संगम से डेढ़ दो किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में एक और धारा इसमें आकर मिलती है; जो एक तरफ आमरेकी, गसिंहपुरा, बनीजरा, बरोदे का पुरा (बीच का पुरा) और राहर आदि गाँवों के पानी को लेकर आती है, दूसरी तरफ पाटोर घाटिया के पश्चिमोत्तर भाग के पानी को तथा दयारामपुर के पानी को लाती है। फिर इस संगम से ढाई किलोमीटर दक्षिण में चलने के बाद महेश्वरा नदी की मुख्य धारा में एक और उपधारा; जो डागरिया, आसा की गुवाड़ी व बीरम की गुवाड़ी की तरफ से आती है, आकर मिल जाती है।

इससे थोड़ी ही दूरी पर ‘मंदिर त्रिलोग सिंह’ के उत्तरी भाग का पानी भी आकर मुख्य धारा में मिल जाता है। यहां से एक-डेढ़ किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में एक धारा मंदिर त्रिलोग सिंह के पूर्वी भाग से आकर मिलती है। इस जगह से दो किलोमीटर आगे एक धारा उत्तर की तरफ से आकर मिलती है। यहां पर महेश्वरा नदी को ‘मेरवाली सोत’ के नाम से भी जानते हैं।

गदरेठा और बमुर खेरा के पास इस धारा को ‘धनिया सोत’ भी कहते हैं। बमुर खेरा के दक्षिण में इस धारा में निभैरा की तरफ से आने वाली ‘निभैरा-खो’ नाम की धारा भी आकर मिल जाती है; लेकिन मुख्य रूप से ये सभी धाराएं ‘महेश्वरा नदी’ के नाम से ही जानी जाती हैं। आगे टोडा के पास जाकर ‘महेश्वरा नदी’ ‘चम्बल नदी’ में जाकर मिल जाती है। चम्बल नदी यमुना में, यमुना गंगा में तथा गंगा नदी अंत में गंगा-सागर में मिल कर सागर स्वरूप हो जाती है। ‘चंबल नदी’ का नाम पुराणों में ‘चर्मण्यवती’ मिलता है।

माना जाता है कि राजा रंति देव द्वारा इस नदी के किनारे पर पशु-यज्ञ में दी गई पशु-बलि से प्राप्त चर्म का ढेर लग गया था, इसीलिए इसका नाम चर्मण्यवती पड़ा। कालांतर में इसी का नाम चम्बल हो गया।

विश्व-भू-मानचित्र में ‘महेश्वरा नदी’ क्षेत्र 26 डिग्री 10’ 34’’ उत्तरी अक्षांश से 26 डिग्री 18’ 34” उत्तरी अक्षांश तथा 76 डिग्री 54’ 05” पूर्वी देशांतर से 77 डिग्री 02’ 00” पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है।

‘महेश्वरा नदी’ का जलागम क्षेत्र 102 वर्ग किलोमीटर है तथा उद्गम में राहर के पास इस की सर्वोच्च ऊंचाई समुद्र तल से 423 मीटर ऊपर तथा संगम-स्थल पर इसकी ऊंचाई समुद्र-तल से 157 मीटर ऊपर है। इसके जलागम क्षेत्र में तरुण भारत संघ द्वारा प्रारम्भ से मार्च 2013 तक जन-सहभागिता से कुल 107 जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण हुआ है। महेश्वरा नदी की घुमाव सहित कुल लंबाई 27 किलोमीटर है।

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