मंगल टरबाईन से कृषि एवं पर्यावरण की रक्षा

7 Apr 2015
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मंगल सिंह उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के एक किसान हैं और साथ में ग्रामीण वैज्ञानिक भी हैं। उन्होंने बचपन में देखा कि नदी-नालों से पानी लिफ्ट करने में किसानों को कितनी कठिनाई होती है। समाधान के लिये उन्होंने ऐसा संयन्त्र मंगल टरबाइन बनाया जो बिना डीजल व बिजली के पानी लिफ्ट कर सकता है।

इससे जहाँ किसान का खर्च बचता है वहाँ ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में भी महत्त्वपूर्ण कमी प्राप्त हो सकती है। अपने इस पेटेंट प्राप्त आविष्कार के बारे में मंगल सिंह स्वयं बताते हैं, “मंगल टरबाईन गाँव में ही बनने वाली ऐसी मशीन है, ग्रामीण तकनीकी है जो बहती हुई जल धारा से चलती है। एक आवश्यकता के अनुरूप छोटा बड़ा व्हील बनाते हैं जिसे एक चक्कर बढ़ाने वाले गियर बाक्स से जोड़ते हैं जिससे इंजन मोटर की भाँति तेज स्पीड चक्कर बनते हैं। गियर बाक्स की आउटपुट शाफ्ट दोनों तरफ निकली होती है जिससे क्लोकवाइज या एंटी-क्लोकवाईज कोई एक या दोनों भी एक साथ पंप चला सकते हैं। गियर बाॅक्स की शाफ्ट के दूसरे सिरे पर पुल्ली लगाकर कुट्टी मशीन, आटा चक्की, गन्ना पिराई या कोई भी अन्य कार्य कर सकते हैं या जनरेटर जोड़ कर बिजली बना सकते हैं। आम तौर पर ग्रामीण इलाकों में जहाँ किसान नदी नालों से डीजल या बिजली पम्पों से सिंचाई करते हैं वहाँ मंगल टरबाईन द्वारा बिना इंजन, बिना मोटर, बिना डीजल, बिना बिजली के सिंचाई करते हैं। पाइपों के द्वारा पानी कहीं भी ले जा सकते हैं। पीने के लिये भी पानी पम्प कर सकते हैं।”

मंगल टरबाईन का उपयोग यदि उन सभी स्थानों पर किया जाए जो इसके अनुकूल हैं तो इससे करोड़ों लीटर डीजल की बचत प्रतिवर्ष हो सकती है, व किसान का खर्च भी बहुत कम हो सकता है। साथ ही प्रदूषण विशेषकर ग्रीनहाऊस गैसों का उत्सर्जन बहुत कम होगा।

मंगल टरबाईन को सिंचाई व कुटीर उद्योगों के लिये वरदान बताते हुए आई.आई.टी. दिल्ली व विज्ञान शिक्षा केन्द्र के एक अध्ययन ने बताया है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के एक जिले में 1000 मंगल टरबाईन लग सकती है व एक लाख हेक्टेयर के आवास भूमि इससे सिंचित हो सकती है।

यदि राष्ट्रीय स्तर पर अनुमान कुछ कम भी लगाया जाए व प्रति मंगल टरबाईन 100 एकड़ के आसपास की भूमि की सिंचाई की सम्भावना को ही माना जाए तो भी स्पष्ट है कि पूरे देश में एक करोड़ एकड़ से अधिक भूमि की सिंचाई में मंगल टरबाईन का योगदान मिल सकता है।

इस तरह डीजल की खपत में बहुत कमी लाकर किसान का खर्च कम किया जा सकता है व देश की विदेशी मुद्रा भी बचाई जा सकती है। यदि एक मंगल टरबाईन दिन में 11 घंटे चले तो (25 एच.पी. डीजल पम्प की 4 लीटर प्रति घंटे की खपत के आधार पर) दिन में 44 लीटर डीजल की बचत हो सकती है।

यदि वर्ष में 190 दिन सिंचाई हो तो एक मंगल टरबाईन से वर्ष में 8360 लीटर (44 गुणा 190) डीजल की बचत होती है। यदि एक मंगल टरबाईन 15 वर्ष तक कार्य करे तो अपने जीवनकाल में एक मंगल टरबाईन से 125400 लीटर डीजल (8360 गुणा 15) की बचत होती है। डा. जय शंकर सिंह के अनुमान के अनुसार यह लगभग 335 टन ग्रीनहाऊस गैस उत्सर्जन में कमी के बराबर है।

ग्रीनहाऊस गैस के उत्सर्जन में कमी विश्व का पर्यावरण बचाने के लिये तो जरूरी है ही, साथ ही इसमें उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करने पर देश अधिक अन्तरराष्ट्रीय सहायता का हकदार भी बनता है।

इस तरह मंगल टरबाईन के सभी उचित व अनुकूल स्थानों पर विभिन्न सावधानियों के साथ उपयोग होने से किसानों, सरकार, पर्यावरण सभी का लाभ है।

इसके लिये विभिन्न स्थानों पर प्रायः मामूली से निर्माण कार्य का चेकडैम बनवाना पड़ता है जो सरकार वैसे भी विभिन्न परियोजनाओं के अन्तर्गत बनवा रही है अतः इसका विशेष अतिरिक्त भार नहीं पड़ेगा।

पूरी तकनीक ऐसी है जो गाँव स्तर पर अपनाई जा सकती है व इससे गाँवों में बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन भी होगा।

देश के अनेक जाने-माने विशेषज्ञों व अधिकारियों ने मौके पर जाकर मंगल टरबाईन का अध्ययन किया है और इस आविष्कार की बहुत प्रशंसा करते हुए इसकी व्यापक सम्भावनाओं की ओर ध्यान दिलाया है।

मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व प्रमुख सचिव बी के साहा ने लिखा है कि स्टाप डैम के खर्च को जोड़ लिया जाए तो भी मंगल टरबाईन की व्यवस्था छोटी नदियों से जल उठाने की अन्य व्यवस्थाओं से कहीं अधिक सस्ती है। मंगल टरबाईन से डीजल व बिजली की बचत होती है व यह पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है।

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के पूर्व उप महानिदेशक डॉ. टी.पी. ओझा ने लिखा है कि मंगल टरबाईन में बड़ी सम्भावनाएँ निहित हैं। भारतीय सरकार में ग्रामीण विकास विभाग के पूर्व सचिव (विभाग के उच्चतम अधिकारी) बी.के. सिन्हा ने कई बार मंगल टरबाईन व इसके आविष्कारक की प्रशंसा की है व राष्ट्रीय हित में इन्हें प्रोत्साहित करने के लिये कहा है।

राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक जाने-माने विद्वानों व संस्थानों ने मंगल टरबाईन की उपयोगिता व सम्भावनाओं को कई बार स्वीकार किया।

अनेक कठिनाइयों से घिरे रहकर भी मंगल सिंह मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर जैसे अनेक स्थानों में लम्बी यात्राएँ कर जहाँ अवसर मिला मंगल टरबाईन लगाते रहे हैं। अब समय आ गया है कि उनकी महान उपलब्धियों को मान्यता देकर भारतीय सरकार उन्हें व उनके आविष्कार को भली-भाँति प्रतिष्ठित करे।

मंगल सिंह जैसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक को भविष्य में अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये भी प्रोत्साहित करना चाहिए व उन्हें अनुकूल अवसर देना चाहिए। साथ ही अनुकूल स्थानों पर मंगल टरबाईन की स्थापना व उपयोग के लिये भी जरूरी कदम उठाने चाहिए।

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