मोबाइल की बैटरी पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

11 Feb 2020
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मोबाइल की बैटरी पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक
मोबाइल की बैटरी पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

बीते कुछ वर्षों में मोबाइल सेक्टर का काफी तेजी से विस्तार हुआ है। मोबाइल के गिरते दाम और बढ़ती सुविधाओं ने इसे देश दुनिया के लगभग हर व्यक्ति के हाथों में पहुंचा दिया है। इससे इंसानों के जीवन में काफी तेजी आई है। एक स्थान पर ही मोबाइल में इंटरनेट के माध्यम से दुनिया की सभी खबरे मिलने लगी हैं, लेकिन मोबाइल में लगने वाली लिथियम लायन बैटरी के पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। जागरुकता के अभाव के कारण दुनिया भर में ये बैटरियां उत्तम मानी जाती हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने भी लिथियम बैटरियों को पर्यावरण के लिए खतरा माना है।

वर्ष 1792 में पहली बार इटली के अलेसांड्रो वोल्टा ने बैटरी का निर्माण किया था। इसी वर्ष उन्होंने 50 वोल्ट वाली इलेक्ट्रोकैमिकल सीरीज को भी पेश किया, लेकिन फादर ऑफ लिथियम बैटरी जाॅन गूडेनफ को कहा जाता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के लिए जाॅन गूडेनफ और कोईची मिजुशीमा ने वर्ष 1980 में रिचार्जेबल लिथियम बैटरी को दिखाया। इससे पूर्व लिथियम बैटरी बनाने की पहली कोशिश एमएस विटिंघम कर चुके थे, लेकिन फिर भी ये बिजली उत्पन्न करने में उतनी कारगर नहीं हो रही थी। इससे बिजली उत्पन्न करने के लिए लिथियम को विभिन्न प्रकार के रसायनोें के साथ उपयोग किया गया। इसके बाद वर्ष 1991 में सोनी और असाही कासई ने पहली लिथियम बैटरी को पेश किया, जबकि लिथियम पाॅलिमर बैटरी 1997 में पेश की गई। लिथियम आयन और लिथियम पाॅलिमर इन दोनों बैटरियों का ही उपयोग मोबाइल फोन में होता है। लेकिन चीन के सिंघुआ विश्वविद्यालय और अमेरिका के इंस्टीट्यूट ऑफ एनबीस डिफेंस के शोधकर्ताओं ने एक शोध में इन बैटरियों के नुकसान का ज़िक्र किया है। 

शोध के लिए 20 हजार लिथियम आयन बैटरियों (Lithium-ion Battery) का उपयोग किया गया। इन्हें आग लगने तक के तापमान में गर्म किया गया तो बैटरियां फट गईं। फटने के बाद कुछ ऐसा हुआ कि सभी चौंक गए। दरअसल फटने के बाद बैटरी से ज़हरीली गैसें निकलने लगी। शोधकर्ताओं ने पाया कि स्मार्टफोन की बैटरी से कार्बन मोनोऑक्साइड सहित सौ से अधिक खतरनाक गैसें निकलती हैं। जिनसे त्वचा, आंख और नासिका मार्ग में जलन जैसे रोग होने के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। इससे ये बात भी स्पष्ट हो गई कि चार्ज करने के दौरान ज्यादा गर्म होने पर बैटरियां फट सकती हैं, ऐसे कई मामले दुनियाभर में सामने भी आ चुके हैं। बैटरी फटने के मामले जब सामने आए तो डेल कंपनी ने वर्ष 2006 में अपने लाखों लैपटाॅप को बाजार से बाहर ही कर दिया, जबकि सैमसंग के नोट-7 में आग लगने के मामले सामने आए थे। सैमसंग ने भी मोबाइलों को बाजार से वापस मंगवा लिया था। इसलिए चार्ज करते समय मोबाइल का उपयोग करने के लिए मना किया जाता है। 

शोधकर्ताओं का कहना है कि भले ही बैटरियों से गैस कम मात्रा में निकलती है, लेकिन आप यदि कार में या किसी भी बंद कमरे या स्थान पर हैं और बैटरियों से कार्बन मोनोऑक्साइड निकल रही है, तो यह घातक साबित हो सकती है। हालांकि स्वास्थ्य और पर्यावरण पर लिथियम बैटरी से पड़ने वाले प्रभाव से बचने के लिए बैटरी गर्म होने पर मोबाइल का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है। साथ ही बैटरी को कभी भी फुल चार्ज न करें। बार बार मोबाइल को चार्जिंग पर न लगाए तथा यूएसबी केबल या डाटा बैंक से मोबाइल चार्ज करने से बचें और कंपनी के चार्जर से ही मोबाइल चार्ज करें। हालांकि ऐसा बहुत ही कम लोग करते हैं और इन बैटरियों का उपयोग तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसे लोगों में जागरुकता का अभाव और नासमझी दोनों ही कहा जा सकता है, लेकिन सबसे गंभीर बात ये है कि दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण की लोगों से अपील करने वाली सरकार ही इसके प्रति सचेत नहीं है। सरकार के इस रवैया का ही नतीजा है कि एक तरफ तो पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं में अरबों रुपयो खर्च किया जा रहा है, लेकिन जीवनशैली में बदलाव का प्रयास शायद कोई नहीं कर रहा है। जिसके भीषण परिणाम हमें भविष्य में भुगतने पर सकते हैं। 

लेखक - हिमांशु भट्ट

 

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