मृदा प्रदूषण से निजात दिलाने में मददगार हो सकती है फफूंद की नई प्रजाति (New species of fungus can be helpful in reducing pollution)


बरसात के मौसम में लकड़ियों के ढेर या फिर पेड़ के तनों पर पाए जाने वाले फफूंद अक्सर दिख जाते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने एपीसी5 नाम के ऐसे ही एक नए फफूंद की पहचान की है, जो मिट्टी में पाए जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों को अपघटित करके मृदा प्रदूषण को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है।

एपीसी5 नामक यह नया फफूंद आमतौर पर पेड़ों के तने पर उगने वाली कोरोलोप्सिस बिरसिना फफूंद का एक रूप है। इसे व्हाइट रॉट फंजाई भी कहते हैं। अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि एपीसी5 मिट्टी में पाए जाने वाले हानिकारक पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) जैसे कार्बनिक अवशिष्ट पदार्थों को अपघटित कर सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार चना और मूंग जैसी फसलों का उत्पादन बढ़ाने में भी यह मददगार साबित हो सकता है।

फफूंदशोध के दौरान व्हाइट रॉट फंजाई के 19 नमूनों को इकट्ठा किया गया था। पीएएच जैसे हाइड्रोकार्बन्स के अपघटक के रूप में फफूंद के गुणों की पहचान करने के लिये एपीसी5 को उसके लिग्निनोलायटिक गुणों के कारण अध्ययन में शामिल किया गया है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले से एपीसी5 के नमूने प्राप्त किए गए थे और फिर अपघटक के तौर पर इसके गुणों का परीक्षण प्रयोगशाला में किया गया है।

बिलासपुर स्थित गुरू घासीदास विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के शोधकर्ता डॉ. एस.के. शाही और शोध छात्रा निक्की अग्रवाल द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका बायोडीटीरीओसन ऐंड बायोडीग्रीडेशन में प्रकाशित किया गया है।

गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के शोधकर्ता डॉ. एस.के. शाही (बाएं) और निक्की अग्रवाल (दाएं) डॉ. शाही के मुताबिक “एपीसी5 लिग्निनोलायटिक नामक एक खास एंजाइम का उत्पादन करता है, जिसका उपयोग फूड इंडस्ट्री, वस्त्र उद्योग, कागज उद्योग, प्रदूषित जल के निस्तारण और नैनो-टेक्नोलॉजी में हो सकता है। एपीसी5 फफूंद पीएएच जैसे हानिकारक हाइड्रोकार्बन्स को 96 प्रतिशत तक अपघटित कर सकता है। इस खोज से हाइड्रोकार्बन को अपघटित करने में कई प्रकार के उद्योगों को मदद मिल सकती है और कार्बनिक प्रदूषण कम किया जा सकता है।”

इस फफूंद को प्रयोगशाला में संवर्धित कर इसका फॉर्मूला तैयार किया गया है, जिसका उपयोग प्रदूषण वाले स्थानों पर छिड़काव करके किया जा सकता है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार इसके उपयोग से एक माह के भीतर प्रदूषण फैलाने वाले अवशिष्टों को अपघटित किया जा सकता है। डॉ. शाही ने बताया कि “वनस्पति विभाग इस फॉर्मूले के पेटेंट कराने तथा इसका उत्पादन विश्वविद्यालय स्तर पर करने का विचार कर रहा है। इससे छात्रों के रोजगार के साथ-साथ विश्वविद्यालय को राजस्व भी मिल सकेगा।”

कोरोलोप्सिस बिरसिना फफूंद खुले वातावरण में अधिक पीएच मान वाली मिट्टी, 15-55 डिग्री सेल्सियस तापमान और लवणता जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी वृद्धि कर सकता और लिग्निनोलायटिक एंजाइम उत्पन्न कर सकता है। अपघटन की प्रक्रिया के दौरान कोई हानिकारक तत्व उत्सर्जित नहीं होने से वैज्ञानिकों का कहना है कि अपघटक के रूप में कोरोलोप्सिस बिरसिना का उपयोग पूरी तरह सुरक्षित है और फील्ड ट्रायल के बाद इसका उपयोग प्रदूषित क्षेत्रों में अवशिष्ट पदार्थों के अपघटन के लिये किया जा सकता है।

मानवीय गतिविधियों के कारण कई जहरीले रसायन विभिन्न रूपों में वातावरण में घुल जाते हैं। इनके समूह को पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन्स (पीएएच) कहा जाता है। पीएएच एक प्रकार के हाइड्रोकार्बन हैं, जो विशिष्ट कार्बनिक प्रदूषक माने जाते हैं। ये हाइड्रोकार्बन आमतौर पर पेट्रो रसायन उत्पादों, रबड़, प्लास्टिक, ल्यूब्रिकेशन ऑयल, यौगिकों और अन्य पदार्थों में पाए जाते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार पीएएच बेहद जहरीले होते हैं। मिट्टी में जमा होकर ये उसे प्रदूषित कर देते हैं और आसानी से अपघटित नहीं होते। विभिन्न प्रकार के रासायनिक कीटनाशक तथा अनेक फंगीसाइट्स के प्रयोग से भी मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है। इस तरह प्रदूषित होने वाली मिट्टी में विभिन्न प्रकार के जहरीले कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जो भयावह बीमारियों जैसे- कैंसर, डायरिया, तनाव आदि का कारण बनते हैं। इसका असर हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी पड़ रहा है।

Twitter handle : @agrrajesh

TAGS

Coiolopis byrsina in hindi, APC5 in hindi, Guru Ghasidas University in hindi, Pyrene degradation in hindi, Ligninolytic enzyme in hindi, Hydrocarbon in hindi


Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading