‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ योजना की शुरुआत

21 Feb 2015
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धरती हमारी माँ हमने ऐसे वैसे नहीं कहा है। हमने उस माँ की चिन्ता करना छोड़ दिया। क्योंकि हमें लगा-माँ है, बेचारी क्या बोलेगी, जितना निकाल सकते हैं, निकालो! पानी निकालना है, निकालते चलो! यूरिया डाल करके फसल ज्यादा मिलती है, लेते रहो! माँ का क्या होता है! कौन रोता है! हमने माँ की परवाह नहीं की। आज समय की माँग है कि हम धरती माँ की चिन्ता करें। अगर हम धरती माँ की चिन्ता करेंगे तो मैं आपको वादा करता हूँ, ये धरती माँ हमारी चिन्ता करेगी। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ योजना की शुरुआत की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत सरकार एक नवीन योजना का आरम्भ कर रही है। इस योजना का इस धरती से आरम्भ हो रहा है, वह योजना हिन्दुस्तान के सभी किसानों के लिए है।

उन्होंने कहा कि आमतौर पर भारत सरकार ज्यादा से ज्यादा दिल्ली के विज्ञान भवन में कुछ लोगों को बुला करके कार्यक्रमों को करने की आदत रखती है। लेकिन मैं पुरानी आदतों को बदलने में लगा हूँ। कुछ समय पहले भारत सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ इस अभियान का प्रारम्भ किया। कई योजनाओं का प्रारम्भ किया। लेकिन हमने तय किया कि योजनाएँ हरियाणा में लागू की जाएँ, शुरुआत वहाँ से की जाए क्योंकि हरियाणा में बेटों की तुलना में बेटियों की संख्या बहुत कम है और हरियाणा के लोगों को बुला करके बात बताई।

पीएम ने कहा कि ये कार्यक्रम राजस्थान की धरती पर हो रहा है। अभी मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे बता रही थीं कि हमारे पास केवल एक प्रतिशत पानी है। अब एक प्रतिशत पानी है तो हमने कुछ रास्ते भी तो खोजने पड़ेंगे। राजस्थान को प्यासा तो नहीं रखा जा सकता। और यही तो राजस्थान है जहाँ कोई लाखा वंजारा हुआ करता था। जो जहाँ पानी नहीं होता था। वहाँ पहुँच जाता था, बावड़ी बनवाता था और प्यासे को पानी पहुँचाता था।

जब मैं गुजरात मुख्यमन्त्री के नाते से काम करता था, मेरा ये सौभाग्य था कि दक्षिण राजस्थान में नर्मदा का पानी गुजरात से राजस्थान पहुँचाने का मुझे सौभाग्य मिला और उस समय हमारे भैरो सिंह मुझे कहा करते थे कि नरेन्द्र भाई राजस्थान को कोई रुपया दे दे, हीरा दे दे, उसके लिए इतनी पूजा नहीं होती है, जितनी पूजा कोई पानी दे दे तो होती है। पानी ये परमात्मा का प्रसाद है। जैसे मन्दिर में प्रसाद मिलता है, गुरुद्वारे में प्रसाद मिलता है और एक दाना भी हम जमीन पर नहीं गिरने देते। अगर गिर जाए तो लगता है, पाप कर दिया है। ये पानी के सम्बन्ध में हमारे मन में यही भाव होना चाहिए कि अगर एक बूँद भी पानी बर्बाद हुआ, गलत उपयोग हुआ तो हमने कोई-न-कोई पाप किया है, परमात्मा से क्षमा माँगनी पड़ेगी।

पानी का इतना महात्म्य और हम राजस्थान और गुजरात के लोग तो ज्यादा जानते हैं, क्योंकि बिना पानी जिन्दगी कितनी कठिन होती है, ये हम लोगों ने अनुभव किया है और इसलिए किसानों के लिए ये कार्यक्रम का आरम्भ हमने उस धरती से शुरू किया है, जहाँ मरूभूमि है, जहाँ पानी की किल्लत है, जहाँ का किसान दिन रात पसीना बहाता है, उसके बाद भी पेट भरने के लिए तकलीफ होती है, उस राजस्थान की धरती से देश के किसानों को सन्देश देने का प्रयास और इसलिए मैं राजस्थान के किसानों के चरणों में आ करके बैठा हूँ।

प्रधानमन्त्री ने कहा कि हमारे कृषि विकास को, परम्परागत कृषि पद्धतियों से बदलना पड़ेगा और इसके लिए वैज्ञानिक तौर तरीकों को अपनाना पड़ेगा। एक समय था, हमारे देश में बीमारू राज्य जैसा एक शब्द प्रयोग हुआ करता था..बीमारू! जिसमें कि पिछले 20 साल से ये शब्द प्रयोग चल रहा है। बीमारू राज्य का मतलब होता था-बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ये बीमारू राज्य हैं। लेकिन मुझे विश्वास है कि राजस्थान के लोगों ने ऐसी सरकार चुनी है, आपको ऐसे मुख्यमन्त्री मिले हैं, देखते-ही-देखते ये राजस्थान बीमारू श्रेणी से बाहर निकल जाएगा।

उन्होंने कहा कि मैं ये इसलिए कह रहा हूँ कि मध्य प्रदेश की गिनती भी बीमारू राज्य में होती थी। लेकिन मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में आर्थिक विकास का एक अभियान चला और उसका परिणाम ये आया कि आज मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ बीमारू राज्य में गिने नहीं जाते। उन्होंने जो विशेषता की, क्या की? मध्य प्रदेश ने जो सबसे बड़ा काम किया है, उनके लिए प्रथम नम्बर का अवार्ड प्राप्त हुआ, तो सबसे ज्यादा कृषि उत्पादन के लिए हुआ। कृषि क्षेत्र में उन्होंने क्रान्ति की। उन्होंने सिंचाई की योजनाओं को आधुनिक बनाया, उन्होंने फसल को किसान के साथ आधुनिक शिक्षा पद्धति से जोड़कर विकास किया और कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि गंगा-यमुना के प्रदेशी क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं, मध्य प्रदेश ने गंगा और यमुना के प्रदेशों को पीछे छोड़ दिया और आज देश में नम्बर एक पर आकर बड़ा हो गया। वहीं एक ताकत थी जिसके कारण मध्य प्रदेश आज बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर आ गया।

राजस्थान में भी हम कृषि को, किसान को, गाँव को, गरीब को, एक के बाद एक जो कदम ले रहे हैं, राजस्थान सरकार और भारत सरकार मिल करके जो परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं, उससे मुझे विश्वास है कि वसुन्धरा के नेतृत्व में भी इसी सरकार के कार्यकाल में राजस्थान अब बीमारू नहीं रहेगा, ये मेरा पूरा विश्वास है।

प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ पूरे देश के लिए इस योजना का आरम्भ हो रहा है। और ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ के लिए उसका घोष वाक्य है- “स्वस्थ धरा, खेत हरा”। अगर धरा स्वस्थ नहीं होती तो खेत हरा नहीं हो सकता है। खाद कितना ही डाल दें, बीज कितना ही उत्तम से उत्तम ला दें, पानी में धरती को डूबो करके रखें, लेकिन अगर धरती ठीक नहीं है, तो फसल पैदा नहीं होगी। कम फसल पैदा होती है। हल्की क्वालिटी की फसल पैदा होती है। इसलिए किसान को पता होना चाहिए कि जिस मिट्टी पर वो मेहनत कर रहा है, उस माँ की तबीयत कैसी है? ये धरा मेरी माँ है। जैसे शरीर बीमार होता है और उसमें कभी डाक्टर कहते हैं- ये खाओ, ये न खाओ। कभी डॉक्टर कहते हैं- ये दवाई लो, ये दवाई मत लो। कभी डॉक्टर कहते हैं- थोड़े दिन आराम करो। जैसा शरीर के लिए नियम होते हैं न, वैसे ही सारे नियम ये माँ के लिए भी होते हैं, ये मिट्टी के लिए भी होते हैं। ये हमारी माँ हमने ऐसे वैसे नहीं कहा है। हमने उस माँ की चिन्ता करना छोड़ दिया। क्योंकि हमें लगा-माँ है, बेचारी क्या बोलेगी, जितना निकाल सकते हैं, निकालो! पानी निकालना है, निकालते चलो! यूरिया डाल करके फसल ज्यादा मिलती है, लेते रहो! माँ का क्या होता है! कौन रोता है! हमने माँ की परवाह नहीं की। आज समय की माँग है कि हम धरती माँ की चिन्ता करें। अगर हम धरती माँ की चिन्ता करेंगे तो मैं आपको वादा करता हूँ, ये धरती माँ हमारी चिन्ता करेगी।

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