मुक्त व्यापार शुरू करने का लक्ष्य

SAARC
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दक्षेस (सार्क) शिखर सम्मेलन

 

मालदीव की राजधानी माले में मई के दूसरे सप्ताह में सम्पन्न दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) के नौवें शिखर सम्मेलन में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए। दक्षेस के सभी सदस्य देशों ने इस क्षेत्र की ज्वलन्त समस्याओं पर खुलकर चर्चा की और इस बात पर आम सहमति प्रकट की कि परस्पर सहयोग और एकजुटता से ही लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। इस लेख में इस सम्मेलन के निष्कर्षों की चर्चा की गई है।

 

दक्षेस की स्थापना बारह साल पहले की गई थी और इसके सदस्य देश हैं- भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और मालदीव।

माले शिखर सम्मेलन के निष्कर्षों पर विचार करने से पहले यह जान लेना उचित होगा कि दक्षेस के उद्देश्य क्या हैं और इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अब तक क्या प्रयास किए गए हैं। 8 दिसम्बर, 1985 को ढाका में दक्षेस का चार्टर उक्त सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों द्वारा स्वीकृत किया गया। इसके अनुसार दक्षेस के उद्देश्य हैं- (1) दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण के लिए कार्य करना और उनके जीवन-स्तर में सुधार करना; (2) आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक उन्नति को गति देना और सभी लोगों को सम्मानपूर्वक रहने तथा अपनी पूरी क्षमता को विकसित करने का अवसर प्रदान करना; (3) दक्षिण एशिया के देशों में सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाना और सुदृढ़ करना; (4) परस्पर विश्वास, सद्भावना और एक-दूसरे की समस्याओं के प्रति सहानुभूति का माहौल तैयार करना; (5) आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग और परस्पर सहायता को बढ़ावा देना; (6) अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग को सुदृढ़ करना; (7) सामान्य हितों के मामलों में अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर आपसी सहयोग को मजबूत करना; (8) इसी प्रकार के उद्देश्यों और लक्ष्यों के लिए कार्यरत अन्तरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

दक्षेस के चार्टर में यह भी व्यवस्था की गई है कि सभी निर्णय सर्वानुमति से किए जाएँगे और इसके मंच पर द्विपक्षीय और विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा नहीं की जाएगी। किन्तु अफसोस है कि पाकिस्तान इस व्यवस्था की उपेक्षा कर दक्षेस शिखर सम्मेलन में कश्मीर का मुद्दा कई बार उठा चुका है।

दक्षेस की गतिविधियों में तालमेल स्थापित करने और कार्यक्रमों तथा निर्णयों को क्रियान्वित करने के लिए दक्षेस सचिवालय कायम किया गया है। इस सचिवालय का मुख्यालय काठमांडू में है और यह एक महासचिव की देखरेख में कार्यरत है। साल में एक बार शिखर सम्मेलन होता है और दो बार विदेश मन्त्रियों की बैठकें होती हैं। परस्पर सहयोग के विभिन्न कार्यक्रमों पर निगरानी रखने के लिए एक स्थाई समिति भी है जिसके सदस्य विदेश सचिव और तकनीकी विशेषज्ञ हैं।

दक्षिण एशिया के विकास के लिए जिन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का निश्चय किया गया है वे हैं- कृषि (वानिकी सहित), संचार, शिक्षा एवं संस्कृति, पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं जनसंख्या नियंत्रण, मौसम विज्ञान, नशीले पदार्थों क सेवन और व्यापार की रोकथाम, ग्रामीण विकास, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यटन, परिवहन और महिलाएँ। दक्षेस के सदस्य देशों में व्यापार के विकास के लिए अध्ययन दल गठित किया गया और इस दल की सिफारिश को स्वीकार कर ‘साप्टा’ समझौता (सार्क प्रेफरन्शियल ट्रेडिंग अरेन्जमेंट) लागू किया गया। कोलम्बो में सम्पन्न छठे शिखर सम्मेलन में दक्षेस देशों में व्याप्त गरीबी के उन्मूलन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। यह निश्चय किया गया कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सन 2000 तक 14 से 16 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने का प्रबन्ध किया जाए।

काठमांडू में हुए तीसरे शिखर सम्मेलन में प्राकृतिक आपदाओं के कारणों और परिणामों तथा पर्यावरण की रक्षा का अध्ययन करने के लिए एक दल गठित किया गया। पर्यावरण की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए 1992 को ‘सार्क पर्यावरण वर्ष’ के रूप में मनाया गया। बच्चों के पालन-पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य के बारे में शिखर सम्मेलनों में कई बार विचार किया गया। लड़कियों के विकास के लिए एक योजना स्वीकृत कर प्रत्येक सदस्य देश से इस बारे में कार्यक्रम बनाने के लिए कहा गया। विकलांग लोगों के कष्ट निवारण करने और उनकी दशा सुधारने के लिए भी योजना बनाई गई। सार्क खाद्य सुरक्षा भंडार कायम किया गया ताकि संकट के समय किसी भी सदस्य देश की सहायता की जा सके।

1995 में भारत में सम्पन्न शिखर सम्मेलन में स्वीकृत दिल्ली घोषणापत्र के अनुसार दक्षिण एशिया वरीयता व्यापार समझौते ‘साप्टा’ को लागू करने पर सहमति प्रकट की गई। इसके अलावा सन 2002 तक क्षेत्र से गरीबी दूर करने और आतंकवाद को समाप्त करने का निश्चय किया गया।

माले का नौवां शिखर सम्मेलन दक्षेस के इतिहास में निश्चय ही महत्त्वपूर्ण माना जाएगा। इस सम्मेलन में मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम के अलावा भारत के प्रधानमन्त्री इन्द्रकुमार गुजराल, पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ, बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना, नेपाल के प्रधानमन्त्री लोकेन्द्र बहादुर चन्द्र, श्रीलंका की राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमार तुंगा और भूटान नरेश जिग्मे सिंगे वांगचुक उपस्थित थे। भारत के प्रधानमन्त्री ने सम्मेलन को सफल बनाने में उल्लेखनीय योगदान किया। उन्होंने भारत के दो वर्ष के नेतृत्व के दौरान दक्षेस की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि इस अवधि में क्षेत्रीय सहयोग और आर्थिक तालमेल में तेजी आई।

तीन दिवसीय विचार-विमर्श के बाद स्वीकृत माले घोषणा पत्र में दक्षेस देशों के बीच 2001 तक आपसी व्यापार को पूर्णतः मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। वास्तव में यह इस सम्मेलन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। इस प्रकार दक्षिण एशिया वरीयता व्यापार समझौते (साफ्टा) का स्थान अब दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) ने ले लिया है। दक्षेस देश यह अनुभव करने लगे हैं कि आर्थिक सहयोग की धीमी गति उनके चहुँमुखी विकास में बाधक है। सब जानते हैं कि यूरोपीय आर्थिक समुदाय, उत्तर अमेरिका मुक्त व्यापार क्षेत्र और आसियान देशों को क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग से काफी लाभ हुआ है। अन्तरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के इस युग में आर्थिक-व्यापारिक एकजुटता से ही दक्षिण एशिया के देश टिक सकते हैं। मुक्त व्यापार तभी सम्भव है जब व्यापारिक प्रतिबंध और सीमा शुल्क सम्बन्धी अवरोध समाप्त हो। दक्षेस देशों को इस दिशा में पहल करनी होगी। भारत ने दक्षेस की पिछली बैठकों में संकेत दिया है कि वह सौ से अधिक वस्तुओं के आयात में रियायतें देने के लिए तैयार है। भारत चाहता है कि अन्य देश भी उसे इसी प्रकार की सुविधा प्रदान करें।

दक्षिण एशिया के देशों की समस्याएँ एक जैसी हैं। इतिहास, भूगोल और संस्कृति से जुड़े ये देश गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक रणनीति बनाना आवश्यक है। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर ही माले शिखर सम्मेलन ने सन 2000 तक दक्षिण एशिया से गरीबी उन्मूलन का संकल्प किया है। दुनिया की कुल जनसंख्या का पाँचवा भाग इस क्षेत्र में रहता है और यहाँ गरीबों की संख्या विश्व के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक है। इससे पहले भी शिखर सम्मेलनों में गरीबी समाप्त करने के प्रस्ताव पारित किए गए हैं। लेकिन केवल प्रस्तावों से गरीबी समाप्त नहीं होगी, इसके लिए ठोस कार्यक्रम बनाना होगा।

शिखर सम्मेलन में आर्थिक सहयोग बढ़ाने के कई उपायों पर विचार किया गया। इस बात पर आम सहमति थी कि निवेश को बढ़ाने और संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए निजी क्षेत्र का योगदान आवश्यक है। दक्षेस देशों के व्यापार मन्त्रियों और व्यापारिक संगठनों का सम्मेलन और व्यापार मेला आयोजित करने का भी निर्णय लिया गया। दक्षेस देशों में संचार सुविधाओं के विकास पर भी सम्मेलन में जोर दिया गया।

दक्षेस देशों के लोगों में परस्पर सम्पर्क बढ़ाने के लिए पर्यटन के महत्व को रेखांकित किया गया। इस क्षेत्र में पर्यटन के विकास की अच्छी सम्भावनाएँ हैं। आशा की जानी चाहिए कि अधिकाधिक सुविधाएँ प्रदान कर दक्षेस देश पर्यटकों को आकर्षित करेंगे।

दक्षेस को सक्रिय, सार्थक और प्रभावी बनाने के लिए भारत और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्रियों ने उपयोगी सुझाव दिए। पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री ने कहा कि देक्षस की व्यापक समीक्षा करने और उसे अधिक गतिशील बनाने सम्बन्धी उपाय सुझाने के लिए ख्याति प्राप्त व्यक्तियों का एक दल गठित किया जाना चाहिए। भारत के प्रधानमन्त्री ने प्रस्ताव रखा कि 2020 तक के लिए दक्षेस के लक्ष्यों को निश्चित किया जाना चाहिए। ये दोनों प्रस्ताव स्वीकार कर लिए गए।

माले घोषणापत्र में इस बात पर बल दिया गया है कि महिलाओं को क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास की मुख्यधारा में लाने के प्रयत्न किए जाने चाहिए। महिलाओं और बच्चों के अनैतिक व्यापार पर चिन्ता प्रकट करते हुए शिखर सम्मेलन ने निश्चय किया कि इस पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएँ। घोषणा-पत्र में दक्षेस ने बच्चों की दशा सुधारने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया गया और 2001 से 2010 तक की अवधि को बच्चों के अधिकार दशक के रूप में मनाने का निश्चय किया गया।

पर्यावरण की समस्या पर भी शिखर सम्मेलन में गम्भीरता से विचार किया गया। इस समस्या के समाधान के लिए कार्ययोजना तैयार करने हेतु दक्षेस देशों के पर्यावरण मन्त्रियों का सम्मेलन निकट भविष्य में आयोजित करने का निश्चय किया गया। मन्त्रियों के इस सम्मेलन में अन्तराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलनों के निष्कर्षों को ध्यान में रखकर क्षेत्रीय सन्धि का प्रारूप तैयार किया जाएगा। यह भी तय हुआ कि पर्यावरण मन्त्रियों का सम्मेलन हर साल हुआ करेगा।

शिखर सम्मेलन में यह मत भी प्रकट किया गया कि आतंकवाद और नशीले पदार्थों की तस्करी से सदस्य देशों की सुरक्षा और स्थिरता को खतरा बना हुआ है। इन पर अंकुश लगाने का संकल्प फिर दोहराया गया। कुछ समय पूर्व यह निर्णय किया गया था कि आतंकवाद को समाप्त करने के लिए प्रत्येक सदस्य देश में कानून बनाए जाएँ। अफसोस है कि कुछ देशों ने अभी तक ये कानून नहीं बनाए हैं।

यह स्वागत योग्य है कि दक्षेस में प्राकृतिक संसाधनों के आदान-प्रदान के बारे में समझौता हो गया। इस समझौते के अनुसार भारत पाकिस्तान से 3000 मेगावाट बिजली खरीदेगा। बताया जाता है कि विश्व बैंक ने पाकिस्तान से कहा है कि वह सिन्धु नदी से तैयार होने वाली अतिरिक्त बिजली भारत को देने की व्यवस्था करे। भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में बिजली के आदान-प्रदान के लिए दक्षेस बिजली ग्रिड कायम करने के बारे में भी विचार किया जा रहा है। त्रिपुरा और मेघालय के लिए बांग्लादेश से बिजली प्राप्त करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। बांग्लादेश के साथ गंगा जल बँटवारे के समझौते से परस्पर सहयोग की सम्भावना बढ़ गई है।

माले शिखर सम्मेलन की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि भारत के प्रधानमन्त्री और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री में इस अवसर पर महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय बातचीत हुई। इस बातचीत से दोनों देशों के सम्बन्धों में निश्चित रूप से सुधार हुआ है। दोनों देश द्विपक्षीय समस्याओं के समाधान के लिए कार्यदल गठित करने पर राजी हो गए हैं। हाट लाइन कायम करने के निर्णय का भी स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे समस्याओं के शीघ्र समाधान में मदद मिलेगी।

मालदीव के राष्ट्रपति ने सम्मेलन के समापन पर दिए गए अपने भाषण में यह ठीक ही कहा है कि यद्यपि पिछले दशक में हुई प्रगति अधिक संतोषजनक नहीं रही है किन्तु दक्षेस का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है क्योंकि सदस्य देश पूर्वाग्रहों और संशयों को त्याग कर मैत्री और सहयोग की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यह शुभ लक्षण है कि दक्षेस ने राजनीतिक विवादों में उलझने के बजाय आर्थिक और सामाजिक विकास की ओर ध्यान दिया है। यदि दक्षेस के सभी सदस्य देश शिखर सम्मेलन क निर्णयों पर ईमानदारी से अमल करें तो दक्षिण एशिया का कायाकल्प हो सकता है।

(लेखक एक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)
 

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