मेड़बंदी तकनीक से भूजल स्तर में सुधार 

2 Oct 2020
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सोर्स - दैनिक जागरण
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देश के कई इलाकों में गिरता भूजल स्तर चिंता का विषय बना हुआ है। भारत भूजल का सबसे अधिक उपयोग करने वाला देश है, अमेरिका और चीन जैसे देश भी भारत से कम भूजल का उपयोग करते हैं। भारत में प्रति व्यक्ति पानी की खपत भी अन्य देशों के मुकाबले भी अधिक है देश की राजधानी दिल्ली में ही पानी की प्रति दिन खपत 272 लीटर प्रति व्यक्ति है। अगर इसी तरह से भूजल का दोहन होता रहा और हमने भूजल के संचयन के उपायों की तरफ ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में हमारे सामने चुनौतियां खड़ी हो सकतीं हैं। 

पुराने जमाने में भूजल संचयन की तमाम तकनीकों का उपयोग किया जाता था आज हम इन सभी तकनीकों से दूर होते जा रहे हैं। शहरीकण इतना बढ़ गया है की पुराने तालाब और कुओं  के ऊपर निर्माण कर दिया गया है, तमाम तरह के विकास कार्यों के चलते कंक्रीट की सड़के या अन्य निर्माण कार्य किए जा रहे हैं जिनकी वजह से बरसात का जल संचयित नहीं हो पा रहा है। 

पहले सिचाई खेती के तौर त्रिकोण में भी भूजल संचयन का विशेष ध्यान दिया जाता था आजकल खेती किसानी फायदे का सौदा नहीं रह गया इस वजह से किसान भी इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। 

मेढ़ पर पेड़ से भूजल में सुधार 

पहले परम्परागत खेती की जाती थी उसमे खेतों में मेढ़  बनाकर उसके ऊपर पेड़ लगाने का प्रचलन था इससे वर्षा जल रुकता था और पेड़ लगे होने वजहों से मिट्टी का कटाव भी नहीं होता था, यही रुका हुआ पानी बाद में जमीन में जाकर भूजल के स्तर में सुधार करता था। बारिश का पानी एक जगह पर इकट्ठा हो जाने की वजह से सिंचाई में भी उसका लाभ मिलता था। 

जनसत्ता की खबर के मुताबिक यूपी के बाँदा जिले के जखनी गांव के लोगों ने इसी पुरानी तकनीक का उपयोग करके केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार सूखाग्रस्त बाँदा जिले के जल स्तर में १ मीटर 38 सेंटीमीटर बढ़ोतरी देखने को मिली है। 

जहां सरकारें जलस्तर को बढ़ावा देने के लिए अरबों रुपए खर्च कर रहीं हैं वहीँ बाँदा जिले के लोगों ने अपने ही प्रयासों के दम पर बिना किसी सरकारी आर्थिक मदद के ये कर दिखाया है। 

इस कार्य में मुख्य भूमिका निभाने वाले जलग्राम जखनी के संयोजक उमा शंकर पांडेय बताते हैं की पुरखों के समय से चली आ रही तरकीबों को अगर पूरे देश ने अपनाया होता तो भारत में जल संकट जैसी स्थिति कभी नहीं आती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मेड़बंदी तकनीक को काफी सराहा है, उन्होंने ग्राम प्रधानों को लिखे पात्र में मेड़बंदी तकनीक का काफी जिक्र किया है। 

 

केंद्रीय भूजल बोर्ड, निति आयोग भारत सरकार और जलशक्ति मंत्रालय ने भी जखनी मॉडल को स्वीकारा है, खुद नीति आयोग ने कहा है की जलग्राम जखनि जैसे परंपरागत सामूहिक जल संरक्षण के प्रयास की पूरे देश को जरूरत है। 

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