नाभिकीय प्रदूषण : चुनौतियाँ और चिन्ताएँ

Radioactive contamination
Radioactive contamination

रेडियोधर्मी कचरा वह कचरा है जिसमें रेडियोधर्मी पदार्थ मौजूद हो। परमाणु ऊर्जा उत्पादन के विभिन्न चरणों के दौरान उत्पादित अपशिष्ट पदार्थ को सामूहिक रूप से परमाणु कचरे के रूप में जाना जाता है। आम तौर पर रेडियोधर्मी कचरे, परमाणु बिजली उत्पादन और परमाणु विखंडन या परमाणु प्रौद्योगिकी के अन्य अनुप्रयोगों जैसे अनुसंधान और दवा के उत्पाद होते हैं। विज्ञान तथा तकनीकी के इस युग में मानव को जहाँ कुछ वरदान मिले है वहीं कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण उसी में से एक अभिशाप है जिसका जन्म विज्ञान की तरक्की के साथ हुआ है। आज हवा, पानी, मिट्टी से लेकर खानपान की विविध वस्तुएँ तक प्रदूषण की चपेट में आ चुकी हैं। नाभिकीय प्रदूषण उच्च ऊर्जा कणों या रेडियोधर्मी पदार्थों का उत्सर्जन है जिससे हवा, पानी या भूमि पर मानव या प्राकृतिक जीव-जन्तु प्रभावित हो सकते हैं। रेडियोधर्मी कचरा आमतौर पर नाभिकीय प्रक्रियाओं जैसे नाभिकीय विखंडन से पैदा होता है। इसमें रेडियोधर्मी कणों का लगभग 15 से 20% हमारे वायुमंडल के स्ट्रैटोस्फीयर में प्रवेश कर जाता है।

परमाणु कचरे की रेडियोधर्मिता समय के साथ कम होती जाती है। इसका मतलब है कि कचरे को जीवधारियों की पहुँच से दूर रखा जाए जब तक कि वह सुरक्षित न हो जाएं। यह समयावधि कुछ दिनों से लेकर चंद महीनों तक, या फिर कुछ मामलों में बरसों तक हो सकती है। यह कचरे के रेडियोधर्मी प्रकृति पर निर्भर करता है। विस्फोट के कण या विस्फोट के प्रभाव का पेड़-पौधों की पत्तियों और ऊतकों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। ये पत्तियाँ चरने वाले पशुओं और इन पर निर्भर रहने वाले जीवों के लिये खतरनाक होती हैं। इनमें रेडियोधर्मी आयोडीन खाद्य-शृंखला के जरिये मानव शरीर में प्रवेश कर जाती है। इससे इंसान में थायराइड का कैंसर हो सकता है। “नाभिकीय अवपात” का लंबी अवधि तक वातावरण में रह जाना जीव-जन्तुओं के लिये खतरनाक होता है। नाभिकीय विस्फोट एक अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया का नतीजा होता है। इसके फलस्वरूप काफी मात्रा में न्यूट्रॉन अभिवाह उत्पन्न होता है। इस तरह के विस्फोट में रेडियोधर्मी उत्पाद शामिल हैं मसलन अप्रयुक्त विस्फोटक U-235, एवं Pu-239, तथा विस्फोट से प्राप्त विखंडित उपोत्पाद जैसे स्ट्रॉशियम-90, आयोडीन-131 और सीजियम-137 हैं।

विस्फोट बल और तापमान में अचानक वृद्धि इन रेडियोधर्मी पदार्थों को गैसों में परिवर्तित कर देता है और अधिक या कम कणों के रूप में वातावरण में बहुत ऊँचाई तक चले जाते हैं। विखंडन बम की तुलना में संलयन बम के मामले में ये कण कहीं ज्यादा ऊँचाई तक चले जाते हैं। इसका तात्कालिक परिणाम विस्फोट-स्थल पर एक प्राथमिक वातावरणीय प्रदूषण के रूप में होता है। तथा इसका द्वितीयक प्रभाव “नाभिकीय अवपात” के रूप में होता है। इन रेडियोधर्मी पदार्थों का प्रभाव वर्षों तक वायुमंडल में बना रहता है।

यूरेनियम खनन (Uranium Mining)


यूरेनियम अयस्क के साथ जुड़े रेडियोधर्मिता के कारण किसी सामान्य अयस्क की तुलना में यूरेनियम के खनन के लिये विशेष प्रबंधन की आवश्यकता होती है। खुली कटौती खनन पद्धति से काफी मात्रा में क्षीणन शैल और उपरिभार अपशिष्ट प्राप्त होते है। ऐसा झारखंड के सिंहभूम जिले के नरवा पहाड़ नामक खदान में देखने को मिलता है। ये अपशिष्ट प्राय: गड्ढे के पास रख दिये जाते हैं। उसी जगह से थोड़ा हटकर जादुगुडा की यूरेनियम खाने हैं जहाँ खनन की अलग प्रक्रिया अपनायी जाती है। यहाँ यूरेनियम के अयस्क गहराई में मिलते हैं। अत: वहाँ कुएँ का तरह से खुदायी की जाती है तथा अलग-अलग गहराइयों में क्षितिज दिशा में खुदाई करते हैं। इस खदान में चट्टानों में अयस्क निकलने के बाद उन्हें उपचारित करके वापस सुरंगों में भर दिया जाता है। हालांकि यूरेनियम खनिज हमेशा रेडियम तथा रोडॉन जैसे रेडियोधर्मी तत्वों के खनिजों से संयुक्त होते है। ये वास्तव में लाखों वर्षों तक यूरेनियम की रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न होते हैं। अवशेष मिलिंग आपरेशन से प्राप्त अपशिष्ट उत्पाद हैं। इसमें सबसे ज्यादा मूल अयस्क शामिल होते है और रेडियोधर्मिता सबसे अधिक होते हैं। ये विशेष रूप से रेडियम होते है जो मूल अयस्क में मौजूद होते हैं।

रेडियोधर्मिता का मानव जीवन पर प्रभाव


एक सीमा के बाद रेडियोधर्मिता के उदभासन से जीवों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव विकिरण की भेदन क्षमता व परमाणु स्रोत की अवस्थित पर निर्भर करता है। अधिक भेदन क्षमता वाली गामा विकिरण अन्य के मुकाबले बहुत नुकसानदायी होती हैं। बीटा विकिरण शरीर के अंदरूनी अंगों पर अधिक प्रभाव डालते हैं जबकि अल्फा विकिरण त्वचा द्वारा रोक लिये जाते हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण पृथ्वी की सतह तथा उसके समस्त परिवेश को प्रभावित करता है जो इस प्रकार हैं।

1. परमाणु विस्फोटों एवं दुर्घटनाओं से जल, वायु एवं भूमि का प्रदूषण।

2. रेडियोधर्मी प्रभाव से प्राणियों के जीन एवं गुणसूत्रों पर प्रभाव, जिनके आनुवांशिक प्रभाव से विकलांगता एवं अपंगता हो जाती है।

3. इसके प्रभाव क्षेत्र में आने पर कैंसर जैसी घातक बीमारी हो सकती है। इससे त्वचा, खून की गुणवत्ता, हड्डियों में मौजूद मज्जा, सिर के बालों का झड़ना, शरीर में रक्त की कमी जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।

4. रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण गर्भ में पल रहे शिशु का मौत तक हो सकती है।

5. रेडियोधर्मी प्रदूषण पेड़ पौधों, जीव जन्तुओं, खाद्य सामग्री आदि को प्रभावित करते हैं।

6. रेडियोधर्मी पदार्थ रेडियोधर्मी-स्रोतों के खनन के दौरान पर्यावरण में प्रवेश करते हैं। रेडियोधर्मिता पेड़ पौधों एवं भोजन के द्वारा अन्य जीवों तक पहुँच कर खाद्य-शृंखला का हिस्सा बनती है। ये जल के स्रोतों तथा वायुमंडल में भी आसानी से प्रवेश कर जाते हैं।

रेडियोधर्मिता का जलीय जीवन पर प्रभाव


पानी की गुणवत्ता में जैविक, रासायनिक या प्राकृतिक परिवर्तन जो कि सजीवों पर हानिकारक प्रभाव डालता है ये पानी को वांछित उपयोग के अनुपयुक्त बनाता है, जल प्रदूषण कहलाता है। रासायनिक जल प्रदूषण का एक प्रकार रेडियोसक्रिय कचरा है। इसमें उदाहरण के तौर पर आयोडीन के रेडियोसक्रिय समस्थानिक, रेडॉन, यूरेनियम, सीजियम और थोरियम शामिल हैं। इन रसायनों का परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से यूरेनियम और अन्य अयस्कों के प्रक्रम, परमाणु हथियारों के उत्पादन, और प्राकृतिक स्रोतों के माध्यम से जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में प्रवेश होता है। पीने के पानी जैसे माध्यमों के द्वारा मानव शरीर पर आनुवांशिक परिवर्तन, गर्भपात, जन्म-दोष, और कुछ तरह के कैंसर के रूप में रेडियोधर्मी कचरे के हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं।

परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में शीतलक के रूप में पानी का उपयोग तापीय प्रदूषण एक आम कारण है। जब शीतलक के रूप इस्तेमाल पानी उच्च तापमान पर प्राकृतिक वातावरण में उत्सर्जित किया जाता है जो तापमान में परिवर्तन आॅक्सीजन की आपूर्ति कम कर देता है जो पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना को प्रभावित करता है। जब मरम्मत या अन्य कारणों से बिजली संयंत्र को खोला या बंद किया जाता है तो पानी के तापमान में अचानक परिवर्तन से मछलियां तथा दूसरे जलीय जीव मर जाते हैं। इसे ‘तापीय आघात’ कहा जाता है।

रेडियोधर्मिता का मिट्टी पर प्रभाव


जब मिट्टी रेडियोधर्मी पदार्थ से दूषित होती है तो यह प्रदूषण उस पर उगने वाले पौधों में स्थानांतरित हो जाता है। यह पौधों के डीएनए के आनुवांशिक उत्परिवर्तन तथा उनके सामान्य कामकाज को प्रभावित करता है। इससे कुछ पौधे मर जाते हैं जबकि दूसरे अविकसित बीज उत्पन्न कर सकते हैं। जब इस दूषित पौधे का कोई भी भाग जैसे कि फल इत्यादि कोई मनुष्य ग्रहण करता है तो यह गंभीर स्वास्थ्य संबंधी जोखिम का कारण बनता है। परमाणु हथियारों से उत्सर्जित रेडियोधर्मिता पर्यावरण के लिए सबसे अधिक हानिकारक मानी जाती है। यह वातावरण में वर्षों तक मौजूद रहती है। इस प्रकार यह कई पीढ़ियों को प्रभावित करती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि रेडियोधर्मी प्रदूषण का पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर एक विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

रेडियोधर्मिता का वायुमंडलीय प्रभाव


वायुमंडल पर रेडियोधर्मिता का प्रभाव परमाणु ईंधन चक्र और परमाणु दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप होता है। दुनिया को परमाणु आपदा का एहसास पहली बार वर्ष 1945 में ही हो गया था जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागाशाकी जैसे जापान के दो बड़े शहरों पर क्रमश: 6 तथा 9 अगस्त को द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान परमाणु बम गिराये थे। इस तबाही में तकरीबन 2 लाख लोग तुरंत मारे गये थे तथा पूरा शहर नष्ट हो गया। इससे झुलसे तथा घायल लोग जीवन पर्यन्त इस पीड़ा को झेलने के लिये विवश थे। उनके बाद की पीढ़ियों को भी इसका दुष्प्रभाव झेलना पड़ रहा है।

वर्ष 1979 में अमेरिका के थ्री-माइल आइलैंड में स्थित नाभिकीय संयंत्र में हुई दुर्घटना तथा चेरनोबिल (यूक्रेन), जो उस समय सोवियत रूस का हिस्सा था, के परमाणु विद्युत संयंत्र में वर्ष 1986 में हुई दुर्घटनाओं में वायुमंडल में रेडियोधर्मी विकिरण का अत्याधिक प्रभाव देखा गया था, जिसके प्रभाव अभी भी शेष हैं। परमाणु दुर्घटनाओं में सजीवों के अलावा निर्जीव पदार्थों को भी विपरीत प्रभाव देखने में आया है। चेरनोबिल दुर्घटना के बाद कम्प्यूटरों में वायरस फैल गये थे। भारत में भी लगभग 10 हजार कम्प्यूटर प्रभावित हुए थे जबकि दक्षिणी कोरिया एवं तुर्की जैसे देशों ने लगभग 3 लाख कम्प्यूटरों के खराब होने की जानकारी दी थी। विगत 1 मार्च 2011 को जापान के सुनामी एवं भूकंप प्रभावित फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र के रिएक्टर में लगी आग एवं उससे हो रहे विकिरण के खतरे के बाद परमाणु दुर्घटनाओं का स्तर 7 तक पहुँच गया है जो परमाणु दुर्घटनाओं का सबसे ज्यादा खतरनाक स्तर है। यह पूरे विश्व के लिये खतरा बना हुआ है। इससे दुनिया भर में परमाणु संयंत्रों को लेकर चिंता हो गयी है। भारत में भी कई संस्थाओं ने परमाणु बिजलीघरों की सुरक्षा पर प्रश्न उठाने शुरु कर दिये हैं।

परमाणु कचरे का निपटान


रेडियोधर्मी कचरा वह कचरा है जिसमें रेडियोधर्मी पदार्थ मौजूद हो। परमाणु ऊर्जा उत्पादन के विभिन्न चरणों के दौरान उत्पादित अपशिष्ट पदार्थ को सामूहिक रूप से परमाणु कचरे के रूप में जाना जाता है। आम तौर पर रेडियोधर्मी कचरे, परमाणु बिजली उत्पादन और परमाणु विखंडन या परमाणु प्रौद्योगिकी के अन्य अनुप्रयोगों जैसे अनुसंधान और दवा के उत्पाद होते हैं। रेडियोधर्मी कचरे, जीवन और पर्यावरण के लिये खतरनाक हैं। यदि इन रेडियोधर्मी कचरों को कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है तो ये परमाणु विकिरण उत्पन्न कर सकते हैं जो मनुष्यों और पशुओं के जीवन के लिये खतरा होगा। यदि ये नदियों या समुद्रों में फेंक दिया जाता है तो इससे पानी प्रदूषित हो सकता है और जलीय जीवों को क्षति पहुँच सकती है। रेडियोधर्मिता के प्रकार और मात्रा के अनुसार परमाणु अपशिष्ट को आम तौर पर दो श्रेणियों में विभक्त किया जाता है। (अ)- निम्न-स्तर परमाणु कचरा, और (ब)- उच्च-स्तर परमाणु कचरा।

(अ) निम्न-स्तर परमाणु कचरा


परमाणु उद्योग, दूषित वस्तुओं के रूप में निम्न-स्तरीय रेडियोधर्मी कचरे का भी भारी मात्रा में उत्पादन करता है, जैसे कपड़ा, हस्त-उपकरण, जल शुद्ध रेजिन, और (चालू होने पर) वे सामग्रियाँ जिनसे रिएक्टर खुद बना है। निम्न-स्तर परमाणु कचरा आमतौर पर अत्यधिक रेडियोधर्मी परमाणु रिएक्टरों के लिये प्रयुक्त सामग्री (अथार्त ठंडा पानी के पाइप और विकिरण सूट) और चिकित्सा प्रक्रियाओं से जुड़े रेडियोधर्मी उपचार या एक्स-रे से प्राप्त अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। अपेक्षाकृत निम्न स्तर कचरे निपटान के लिये आसान हैं।

(ब) उच्च-स्तर परमाणु कचरा


यह आम तौर पर एक परमाणु रिएक्टर या परमाणु हथियार के कोर से प्राप्त सामग्री होते हैं। इस कचरे में यूरेनियम, प्लूटोनियम और अन्य अत्यधिक रेडियोधर्मी तत्व जो विखंडन के दौरान प्राप्त होते हैं, शामिल होते हैं। इन उच्च-स्तर अपशिष्ट पदार्थों में अधिकांश रेडियो समस्थानिक बड़ी मात्रा में विकिरण उत्सर्जित करते हैं और इनकी अर्धायु बहुत लंबी (कुछ की 1 लाख साल से भी ज्यादा) होती है और इन्हें रेडियोधर्मिता के सुरक्षित स्तर पर पहुँचने के लिये लंबी समयावधि की आवश्यकता होती है। इन्हें विशेष स्टील के कंटेनरों में रखकर गहरे समुद्र में डाल देते हैं। इन कंटेनरों का जीवन 1000 वर्ष होता है। चूँकि उच्च-स्तर परमाणु कचरे में अत्यधिक रेडियोधर्मी विखंडन उत्पाद और दीर्घजीवी भारी तत्व है इसलिये यह काफी मात्रा में ऊष्मा पैदा करता है जिससे निपटने के लिये परिवहन के दौरान इसे ठंडा रखने और विशेष परिरक्षण की आवश्यकता होती है। इस तरह देखा जाए तो नाभिकीय प्रदूषण की वाजिब चिंताएँ हैं तथा इसका प्रबंधन किसी देश के लिये बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।

पता: होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केंद्र, टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान, मानखुर्द, मुम्बई-400088


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