नदी नाले के बीच प्यासा गांव बघौदा

29 Jul 2011
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लंबे समय से डबरी की सफाई नहीं होने के चलते यहां गंदगी का आलम है और पानी से बदबू आ रही है। साथ ही इसका जलस्तर घट गया है। अन्य कोई विकल्प नहीं होने के चलते ग्रामीण इसी पानी से निस्तार करने को मजबूर हैं।

जांजगीर-चांपा। नदी और नाले से घिरे ग्राम बघौदा में गर्मी शुरू होते ही पानी की किल्लत शुरू हो गई है। बरसात में यह गांव टापू बन जाता है और ग्रामीण चारों ओर पानी से घिर जाते हैं। जबकि गर्मी में नदी, नाले सूखने से यहां निस्तार व पेयजल के लिए लोगों को भटकना पड़ता है। बम्हनीडीह ब्लाक अंतर्गत ग्राम पंचायत बघौदा के बीच से सोन नदी गुजरी है। इसी तरह यह गांव चारों ओर नाले से घिरा है। नदी के इस पार की आबादी एक हजार से अधिक है, जबकि नदी के उस पार भी इतने ही लोग रहते हैं। ग्रामीणों के लिए गर्मी व बरसात अभिशाप से कम नहीं है। गांव का समुचित विकास नहीं होने के चलते नदी के इस पार एक प्राइमरी व उस पार दर्राभांठा मोहल्ला में मिडिल व प्राइमरी स्कूल है। नदी में रपटा या पुल नहीं होने से बरसात में इस पार के बच्चे मिडिल स्कूल नहीं जा पाते।

ग्रामीण नारायणप्रसाद सिहारे ने बताया कि बरसात में जब नदी लबालब रहती है, तो इसे पार कर स्कूल जाना बच्चों के लिए मुश्किल हो जाता है। यहां कई बच्चे मिडिल स्कूल में पढ़ते हैं, जो बरसात में स्कूल नहीं जा पाते। इसी तरह नदी के उस पार आंगनबाड़ी केन्द्र हैं, जहां लगभग 50 बच्चे हैं। बरसात में इस पार के बच्चे आंगनबाड़ी नहीं जा पाते। नदी के एक ओर 3 सौ एकड़ भूमि में खेती की जाती है, लेकिन यहां सिंचाई के लिए नहर की व्यवस्था नहीं है। जिसके चलते किसान बारिश के पानी पर निर्भर हैं। अनियमित वर्षा के चलते हर साल किसानों की फसल चौपट हो जाती है।

ग्रामीणों ने बताया कि आसपास में अस्पताल की कोई व्यवस्था नहीं है। किसी की हालत बिगड़ने पर उसे 10 किमी दूर चांपा का सफर तय करना पड़ता है। गांव चारों ओर से नदी व नाले से घिरे होने के चलते बारिश में लोगों की परेशानी बढ़ जाती है। रथराम सूर्यवंशी कहते हैं कि लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। यहां पक्की सड़क की व्यवस्था नहीं है। सड़क की हालत पहले से ही जर्जर है और बरसात में धूल के गुबार से लोग परेशान रहते हैं, वहीं बारिश में कीचड़ से लोगों का जीना मुहाल हो जाता है। उसने बताया कि नदी के इस पार निस्तार के लिए बड़ा तालाब है, लेकिन गर्मी में यह सूख जाता है। यहां की आबादी एक हजार से अधिक है और यहां छह हैंडपंप है, लेकिन गर्मी शुरू होते ही इनका जलस्तर घटने लगा है और लोगों को पानी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है।

श्रीमती मोतिन बाई कहती हैं कि नदी के उस पार पानी की प्रमुख समस्या है। एक हजार से अधिक लोगों का गुजारा तीन हैंडपंप से हो रहा है। कुछ साल पहले इंदिरा गांव गंगा योजना के तहत गांव में बोर कराया गया था। उस समय लोगों को पर्याप्त पानी मिलता था लेकिन दो साल से यह बोर बंद है और लोगों को पानी के लिए मशक्कत करना पड़ रहा है। यहां निस्तार के लिए एक डबरी है, जहां ग्रामीणों का गुजारा होता है। लंबे समय से डबरी की सफाई नहीं होने के चलते यहां गंदगी का आलम है और पानी से बदबू आ रही है। साथ ही इसका जलस्तर घट गया है। अन्य कोई विकल्प नहीं होने के चलते ग्रामीण इसी पानी से निस्तार करने को मजबूर हैं।
 

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