नहर निर्माण में नेपाल की रजामन्दी जरूरी

लेकिन यह लोग पूर्वी कोसी मुख्य नहर के कमान में बसने वाले लोगों जैसे खुशनसीब नहीं थे। जो पश्चिमी नहर का प्रस्ताव था उसके अनुसार हेड-वर्क्स समेत नहर की पहली 35.13 किलोमीटर की लम्बाई नेपाल में पड़ती थी। इसलिए संसाधन और नीयत दोनों के बावजूद भारत सरकार यह नहर तब तक नहीं बना सकती थी जब तक कि नेपाल सरकार इस बात की इजाजत न दे दे। अंतर्राष्ट्रीय मसला होने के कारण यह काम केन्द्रीय सरकार को करना था। यहीं से नहर के काम में राजनीति ने प्रवेश किया और उसका चुनावी इस्तेमाल शुरू हो गया। यही कारण था कि पफरवरी 1957 में आम चुनाव से ठीक पहले, जबकि कोसी पर बराज के काम में भी हाथ नहीं लगा था, नहर या हेड-वर्क्स की तो बात ही अलग थी, तभी जगजीवन राम ने पश्चिमी कोसी नहर का शिलान्यास कर दिया। बराज और पूर्वी कोसी मुख्य नहर के हेड-वर्क्स के काम में हाथ 1959 में लगा।

अब जब नदी के उस पार, पूरब में, कोसी मुख्य नहर पर काम में हाथ लगा तब पश्चिमी कोसी नहर के क्षेत्र के लोगों में निराशा बढ़ने लगी। उन्हें लगा कि उनकी नहर छलावा है और सरकार ने इसे छोड़ दिया है। राधानन्दन झा के एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने बिहार विधान सभा को बताया (1960) कि, ‘‘यह रेगुलेटर ...कोसी बैराज का एक अंग है और बैराज के साथ ही बनेगा। यह रेगुलेटर प्रस्तावित पश्चिमी कोसी नहर में पानी ले जाने के लिए है।’’ बिहार सरकार की तरफ से बोलते हुये अम्बिका सिंह ने सबको आश्वस्त किया कि पश्चिमी कोसी नहर के बारे में भ्रान्तियाँ फैल रही हैं कि इस योजना का परित्याग कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि हेड रेगुलेटर बन रहा है और आगे के काम की योजना बनाने के लिए एक डिवीजन भी खोल दिया गया है और दुहराया कि सरकार ने योजना को छोड़ा नहीं है। ऐसा ही एक आश्वासन राज्य के उप-मंत्री देव नारायण यादव ने भी दिया। राज्य के भूतपूर्व सिंचाई मंत्री राम चरित्तर सिंह का कहना था कि पश्चिमी कोसी नहर मूल कोसी योजना का अंग थी और राज्य की ढुलमुल नीतियों के कारण उस पर काम नहीं हो रहा है जबकि ललित नारायण मिश्र का मानना था कि सर्वेक्षण और अनुसंधान के पूरा न हो पाने के कारण काम शुरू नहीं हो पा रहा है। इस तरह जितने मुंह थे उतनी तरह की बातें नहर के बारे में कही जाती थीं। 18 जून 1961 को सकरी में नहर का एक बार फिर शिलान्यास डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने कर दिया और अपने आश्वासन को दुहराया कि नहर जरूर बनेगी।

1962 आते-आते चीन-भारत युद्ध के कारण आपातस्थिति लगी हुई थी मगर इसी बीच पफरवरी 1962 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पंबिनोदानन्द झा ने बरदेपुर (मधुबनी) में पश्चिमी कोसी नहर का एक और चुनावी शिलान्यास ठोंक दिया। तसल्ली की बात यही थी कि तब तक सरकारी फाइलों में योजना अपना स्वरूप अख्तियार करने लगी थी। इसी साल आधिकारिक तौर पर यह घोषणा की गई कि 13.49 करोड़ रुपयों की लागत से यह नहर बनाई जायेगी जिससे नेपाल में 9,300 हेक्टेयर (23,000 एकड़) और भारत में 2,63,000 हेक्टेयर (6 लाख 50 हजार एकड़) जमीन पर सिंचाई की जा सकेगी। बहु-मौसमी खेती करने पर यह क्षेत्र क्रमशः नेपाल में 10,500 हेक्टेयर और भारत में 3,25,000 हेक्टेयर (8 लाख 3 हजार एकड़) बैठता था। इस घोषणा के बाद अभी तक सरकार को सिर्फ नेपाल की सहमति की जरूरत थी मगर अब नहर बनाने के लिए साढ़े तेरह करोड़ रुपयों का इंतजाम भी उसे करना था। युद्ध के कारण देश की अर्थ-व्यवस्था चौपट हो चुकी थी और केन्द्र सरकार चाहती थी कि फिलहाल योजना के क्रियान्वयन के लिए उस पर दबाव न डाला जाय। इस तरह बिहार सरकार को कुछ राहत जरूर मिल गई मगर यह स्थिति ज्यादा दिनों तक बनी नहीं रही।

इधर लोगों का इन्तजार अब आक्रोश की शक्ल लेने लगा था। जनवरी 1965 में दरभंगा में 1,000 लोग सामूहिक भूख हड़ताल पर बैठे और 8 मार्च 1965 को एक बहुत बड़ा जलूस पश्चिमी कोसी नहर की मांग को लेकर निकाला गया। राज कुमार पूर्वे ने बिहार विधान सभा में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में कहा कि, ‘‘इसी सदन में महामहिम राज्यपाल के भाषण का जवाब देते हुये मंत्री जी ने कहा था कि पश्चिमी कोसी नहर के सम्बन्ध में नेपाल से ऐग्रिमेन्ट हो गया है। उसके बाद सिंचाई मंत्री ने कहा कि अभी ऐग्रिमेन्ट नहीं हुआ है, बात चल रही है, जल्दी होने वाला है। इसके लिए 1956 से आश्वासन दिया जा रहा है लेकिन काम नहीं हुआ है। यह सारे दरभंगा जिले की जनता का सवाल है। 1957 में केन्द्रीय मंत्री जगजीवन राम ने इसका उद्घाटन किया था, फिर श्रीकृष्ण सिंह ने सकरी में 1961 में इसका उद्घाटन किया ...1962 में चुनाव के दस दिन पहले ...बिनोदानन्द झा ने इसका शिलान्यास किया ...अब मालूम हुआ है कि इसका शिलान्यास (एक बार फिर) श्री लाल बहादुर शास्त्री करेंगे। ...आप वहाँ की जनता को बारबार गलतफहमी में नहीं रख सकते। हम जानते हैं कि इस आन्दोलन को रोकने के लिए 9-BMP (9-बिहार सैन्य वाहिनी-ले.) की सहायता लेंगे मगर इससे यह मसला हल नहीं होगा।”

नेपाल द्वारा कुछ शर्तों के साथ योजना की डिजाइन तैयार करने के लिए जरूरी स्वीकृति 1965 में मिल गई और सचमुच एक बार फिर 24 अप्रैल 1965 को पश्चिमी कोसी नहर का शिलान्यास भारदह के पास तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने किया। नेपाल के साथ भारत सरकार का एक संशोधित समझौता 19 दिसम्बर 1966 को हुआ और नेपाल सरकार की मांग पर पश्चिमी कोसी नहर की एक संशोधित परियोजना रिपोर्ट 1 जुलाई 1968 को काठमांडू भेजी गई।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading