नहरों के भरोसे नदियों को जीवनदान

22 Sep 2008
0 mins read
नदियों को बचाने के लिए नहरों से पानी छोड़ा जा रहा है
नदियों को बचाने के लिए नहरों से पानी छोड़ा जा रहा है

अंबरीश कुमार/ लखनऊ के बगल में सई नदी सूखी तो उसे बचाने के लिए पानी भरा गया। लेकिन नदियों को बहाने के ऐसे औपचारिक प्रयास रारी नदी पर सफल नहीं हुए। नहर से छोड़ा गया पानी कुछ ही घंटों में सूख गया। सिचाईं विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि नदियों से नहरों को पानी मिलता है लेकिन अब सरकारी आदेश है इसलिए काश्तकारों के हिस्से का पानी नदियों में छोड़ा जा रहा है।

फिर भी नदियों के भरोसे कितनी नदियों को जीवित किया जा सकता है? अयोध्या में सरयू का ज्यादातर हिस्सा रेत के टीले में बदलता जा रहा है। राम के जन्मभूमि में ही यह नदी अब अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। उत्तर प्रदेश में कोई दर्जनभर नदियां इतिहास बनने के मुहाने पर हैं। कुछ का पानी खत्म हो रहा है तो कुछ में पानी के नाम पर औद्योगिक कचरा बह रहा है। बुंदेलखण्ड में बिषाहिल और बाणगंगा सूख गयी है। बागेन और केन की धार टूट रही है। बेतवा हमीरपुर तक आते-आते लड़खड़ाने लगती है।

चित्रकूट में बाणगंगा के बारे में कहा जाता है कि खुद भगवान श्रीराम ने इसे पाताल से निकाला था। जैसे आज बुंदेलखण्ड पानी के संकट से जूझ रहा है उस समय भी लोगों को पानी का संकट था। लोगों ने रामजी से प्रार्थना की और रामजी ने धरती को बाण से चीरकर जो जलधारा निकाली थी वह बाणगंगा बन गयी।

बड़ी नदियों में गंगा, यमुना और गोमती की भी हालत बुरी है। कानपुर में तो गंगा छूने लायक भी नहीं बचीं। हमीरपुर में यमुना का हाल बेहाल है। राजधानी लखनऊ में गोमती कचरे के ढेर में बदल गयी है। चंद्रावल, धसान, घाघरा, राप्ती नदियों में भी पानी कम होता जा रहा है और प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। चंबल की थोड़ी चर्चा एक बार फिर हुई है लेकिन चर्चा का कारण पानी नहीं बल्कि घड़ियालों की मौत है।

गोमती और उसकी सहायक नदियों को बचाने के लिए गोमती अभियान की शुरूआत की गयी है। गोमती नदी गंगा से भी पुरानी मानी जाती है। मान्यता है कि मनु-सतरूपा ने इसी नदी के किनारे यज्ञ किया था और इसी नदी के किनारे नैमिषारण्य में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने तपस्या की थी। लेकिन अब गोमती का पानी विषैला बन चुका है। लखनऊ में ही गोमती नदी का पानी काला पड़ चुका है। गोमती की सहायक नदियां दिन-रात इसमें कथिना चीनी मिलों का कचरा लाकर इसमें उड़ेल रही हैं। पीलीभीत के गोमथ तालाब से निकलनेवाली गोमती उत्तर प्रदेश में करीब 900 किलोमीटर की यात्रा करके बनारस के कैथी में गंगा में समाहित हो जाती है।

आईटीआरसी के शोधपत्र के मुताबिक चीनी मिलों और शराब के कारखानों के औद्योगिक कचरे के कारण यह नदी बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। सहायक नदियों का पानी सूख गया है और गोमती में जो कुछ पहुंचता है वह पानी नहीं बल्कि औद्योगिक कचरा होता है। अकेले लखनऊ शहर से ही इस नदी में 27 नालों से कचरा उड़ेला जाता है। जानकार बताते हैं कि गोमती की इस दुर्दशा के लिए वे मिले ज्यादा जिम्मेदार हैं जो अपना कचरा इस नदीं में उड़ेलती हैं। इन चीनी मिलों में हालांकि शोधन यंत्र लगे हुए हैं लेकिन उन्हें चलाया नहीं जाता और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी ऐसी मिलों के साथ मिलीभगत के चलते कभी कोई कार्रवाई भी नहीं करते।
 

साभार - विस्फोट
Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading