निर्बाध हो कोलांस तो भरे बड़ी झील

भोपाल। मानसून की शानदार दस्तक और लगातार हो रही अच्छी बारिश से राजधानीवासियों को ये आस बंधी है कि इस बार बड़ी झील लबालब हो जाएगी। ये उम्मीद इसलिए भी लाजमी है क्योंकि पिछले दस सालों में महज दो बार ही बड़ी झील का जलस्तर अपने फुल टैंक लेवल (एफटीएल) 1666.80 फीट तक पहुंचा है। यही नहीं पिछले तीन सालों से झील हर बार डेड स्टोरेज लेवल तक पहुंच रही है। यदि विशेषज्ञों की मानें तो भले ही औसत बारिश हो जाए, लेकिन झील के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण और सही प्रबंधन न होने की वजह से जलस्तर के एफटीएल तक पहुंचने की उम्मीद कम ही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि भले ही राजधानी में अच्छी बारिश हो जाए लेकिन बड़ी झील को लबालब करने में अहम योगदान देने वाली कोलांस व इसकी सहायक नदियों में अतिक्रमण व कई अवरोध हैं। इस वजह से झील में बारिश का जितना पानी पहुंचना चाहिए, वह नहीं पहुंच पाता है।

दैनिक भास्कर ने भी इसकी पड़ताल की तो नदी में कई जगह अतिक्रमण मिले। कहीं पर ईंट भट्टों के नाम पर नदी के आसपास खुदाई कर पानी को रोका गया है, तो कहीं पर मकान तान कर नदी की चौड़ाई को कम कर दिया है। इतना ही नहीं दो साल पहले नदी संरक्षण के लिए हुए काम की हकीकत भी उजागर हो चुकी है। कोलांस नदी के उद्गम स्थल बमूरिया गांव में नदी के चौड़ीकरण के लिए की गई खुदाई अब नजर नहीं आती। गांववासियों ने बताया कि नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने एक कार्यक्रम में यहां नदी के आसपास बांस के पौधा रोपे थे, लेकिन अब वे भी नदारद हो चुके हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति नदी के किनारों पर बसे अन्य गाँवों की भी है।

 

 

.. फिर भी नहीं भरी झील


यह माना जाता है कि बड़ी झील को लबालब होने के लिए सीहोर में होने वाली बारिश का अहम योगदान है, लेकिन आंकडे बताते हैं कि पिछले दस साल में सीहोर में अच्छी बारिश होने के बाद भी बड़ी झील एफटीएल को नहीं छू पाई। इसके पीछे कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण होना मुख्य वजह है। आंकड़े ये भी बताते हैं कि भोपाल में जब-जब 109 सेमी औसत बारिश हुई तब-तब झील का जलस्तर सबसे ज्यादा रहा है।

 

 

 

 

दो साल बाद ये है स्थिति


कोलांस नदी के उद्गम स्थल बमूरिया में कोलांस नदी संकरी हो गई है, जिससे गांव में बाढ़ आ जाती है। पौधे गायब। उलझावन गांव में नदी के आसपास ईंट के अवैध भट्टे हैं। टीलाखेड़ी में पुल के पास अतिक्रमण। रसूड़िया में आकर नदी का पाट चौड़ा हो जाता है, लेकिन कई जगह नदी बिल्कुल संकरी है। यहां मिलने वाले नाले भी उथले और संकरे हो गए हैं। कमलाखेड़ी में सहायक नाले अतिक्रमण के कारण गायब। ईंटखेड़ी छाप के पास कोलांस बड़े तालाब में मिल जाती है। यहां सहायक नालों पर बेजा कब्जे कर लिए गए हैं।

 

 

 

 

अब तक सवा करोड़ खर्च


दो साल पहले मनरेगा और जिला पंचायत की अन्य योजनाओं के तहत भोपाल में करीब 50 लाख रुपए से और सीहोर जिले में 75 लाख रुपए से कहीं- कहीं नदी का चौड़ीकरण और पौधरोपण किया गया। अब दोनों ही जिलों में जिला पंचायत के माध्यम से अलग-अलग नदी पुनर्जीवन कार्ययोजना बनाई जा रही है। इनकी लागत भोपाल में 12 करोड़ और सीहोर में 15 करोड़ है। इसके लिए डीपीआर बनाने की कवायद चल रही है।

 

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading