नर्मदा बचाओ आन्दोलन के पक्ष में एक फैसला

narmada bachao movement
narmada bachao movement

समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के जीवन को संकट में डालकर किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है? वैसे यह सारा मामला पुनर्वास और विस्थापितों को हुए नुकसान से जुड़ा है इसलिये न्यायालय की चिन्ता भी नुकसान की भरपाई पर है लेकिन पर्यावरण का जो नुकसान हुआ। विकास और बाँध के नाम पर जो पाया उसका सारा लेखा-जोखा अखबार छापता रहता है, लेकिन जो खोया है, उस पर ना मीडिया बात करता है और ना ही न्यायालय में यह चर्चा का विषय है। 08 फरवरी का दिन नर्मदा आन्दोलन के लिये सर्वोच्च न्यायालय में महत्त्वपूर्ण रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अटार्नी जनरल मुकुल रोहतागी तथा नर्मदा बचाओ आन्दोलन के याचिकाकर्ता संजय पारेक पुनर्वास के मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिये कुछ विशेषज्ञों के नाम आपसी राय से सौंपेगे। जिन्हें न्यायालय द्वारा गठित समिति के सदस्य होंगे।

नर्मदा बचाओ आन्दोलन का एक लम्बा संघर्ष। इतना लम्बा कि इस आन्दोलन से न्याय की आस लगाकर बैठे बहुत से विस्थापितों ने भी इससे आस लगाए रखना बन्द कर दिया। अब इससे जुड़ी खबरें ना मीडिया का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर पाती हैं और ना ही इससे प्रभावित पक्षों का। कहते हैं कि देर से मिला न्याय, न्याय नहीं होता। नर्मदा नदी के चारों तरफ बड़ी संख्या में बनने वाले बाँधों से प्रारम्भ हुआ यह संघर्ष जिन्हें अपनी जमीन से हटा दिया गया, बाँध के नाम पर उनके पुनर्वास का संघर्ष बन गया। यह संघर्ष भी मानों इससे जुड़े साथियों की परीक्षा ले रहा है।

इस सघर्ष का चेहरा चाहे मेधा पाटकर रहीं हों लेकिन यह लड़ाई उन हजारों लोगों की थी जो उजड़ गए और उन लाखों लोगों की भी जो नहीं चाहते थे कि बाँध के नाम पर इस तरह नर्मदा की गोद में पले और बढ़े लोगों को उखाड़ कर फेंक दिया जाये। लेकिन इन सबका हासिल क्या हुआ? संघर्ष दिन-महीने और साल चला। सालों और अब दशकों का संघर्ष बन गया।

अब खबर आई है कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन के याचिका पर सुप्रीम कोर्ट उच्च स्तरीय समिति गठित करने वाली है। जिसके माध्यम से सरदार सरोवर के विस्थापितों के पुनर्वास के लिये मार्केट रेट पर, जमीन खरीदी, आदि तय होगी।

इस मामले में सर्वोच्च अदालत में सरदार सरोवर से विस्थापितों के पुनर्वास पर याचिका में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केहर, तथा न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के खण्डपीठ में 31 दिसम्बर को एक विशेष निर्णय दिया है। इस निर्णय के अनुसार अदालत इस मुद्दे पर देश के मान्यवर विशेषज्ञों की उच्च स्तरीय समिति गठित करना चाहता है। न्यायालय के अनुसार इस महाकाय योजना को आगे बढ़ाना है, विकास के लाभ लेने हैं तो विस्थापितों का पुनर्वास, उनकी नुकसान की भरपाई भी होनी चाहिए।

वास्तव में समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के जीवन को संकट में डालकर किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है? वैसे यह सारा मामला पुनर्वास और विस्थापितों को हुए नुकसान से जुड़ा है इसलिये न्यायालय की चिन्ता भी नुकसान की भरपाई पर है लेकिन पर्यावरण का जो नुकसान हुआ। विकास और बाँध के नाम पर जो पाया उसका सारा लेखा-जोखा अखबार छापता रहता है, लेकिन जो खोया है, उस पर ना मीडिया बात करता है और ना ही न्यायालय में यह चर्चा का विषय है।

वैसे पुनर्वास के सवाल पर भी संघर्ष आसान नहीं रहा। माननीय केहर की खण्डपीठ के समक्ष इस मुद्दे पर बहस हुई और केन्द्र शासन एवं मध्य प्रदेश के अधिवक्ताओं द्वारा प्रस्तुत किये आँकड़ों को आन्दोलन और विस्थापितों के अधिवक्ता संजय पारेक ने चुनौती दी। यह सरदार सरोवर बाँध से हुए विस्थापितों से जुड़ा एक बड़ा सच है कि उनमें से बड़ी संख्या में आज भी विस्थापित परिवार जमीन नहीं खरीद पाये, पुनर्वास बस्तियाँ भी नहीं बनी, अन्य लाभ कानूनी तौर भी नहीं मिला पाया है, ऐसा न्यायालय में अधिवक्ता संजय पारेक द्वारा कहा गया।

न्यायमूर्तियों के खण्डपीठ के सवाल किये जाने पर कि जमीन की कीमत क्या है, तो आन्दोलन की तरफ से बताया गया की लाखों रुपए प्रति हेक्टेयर है जबकि शासन ने 5 एकड़ के बदले 5.5 लाख रुपए का विशेष पुनर्वास अनुदान 2005 से देकर विस्थापितों को दलालों और भ्रष्टाचारियों के चंगुल में फँसाया है।

यदि आन्दोलन का दावा सही है तो एक तरह से विस्थापितों से जमीन कौड़ियों के भाव पर खरीद ली गई। आन्दोलन की दलील सुनने के बाद खण्डपीठ की ओर से यह आदेश किया गया कि शासन की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतागी और अन्य तथा याचिकाकर्ता आपस में बैठकर संयुक्त सहमति से देश के नामी विशेषज्ञों के नाम अदालत के सामने पेश करें जो कि न्यायालय के द्वारा गठित समिति के सदस्य होंगे। यह समिति आज के रोज मार्केट रेट, नुकसान की भरपाई, जमीन के खरीदी, पुनर्वास के प्रावधान एवं अन्य लाभ सम्बन्धी निर्णय लेगी।

दोनो पक्षकारों ने यह मंजूर किया । 8 फरवरी को इस पर प्रस्तुति और सुझाव दिया जाएगा। आन्दोलन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारेक ने पैरवी की और अधिवक्ता क्लिफ्टोन रोजारियो, निन्नी टामस एवं आन्दोलन के कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने सहयोग दिया। केन्द्र सरकार के ओर से अधिवक्ता पटवालिया जी एवं अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पैरवी की।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading