अब खतरा मात्र नदी नही, नदी घाटियों पर सामने दिखता है। नदी घाटियों का व्यवसायीकरण हो रहा है। बांधों की बात तो पीछे छोड़े, पूरी नदी घाटी, नदी जोड़ परियोजना से प्रभावित होने की बात है; जिसका न केवल मानव बल्कि पूरी प्रकृति पर स्थानीय देसी और वैश्विक प्रभाव भी हो रहा है। विकास और लोकहित की आङ में नदी पर बन रहे बांधों के वास्तविक उद्देश्यों से तो पर्दा पूरी तरह हट चुका है। सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और विद्युत उत्पादन के जिन लक्ष्यों को प्रचारित किया जाता है, वह काफी हद तक दिवास्वप्न साबित हए हैं। बांधों पर बनी विश्व बांध आयोग की रिर्पाेट में भी सुझाई गई प्रक्रिया या पूर्व शर्तो पर भारत के शासनकर्ता और समाज में भी जरुरी है गंभीर और गहरी बहस और अमल!
नर्मदा व टिहरी बांध के अनुभव व खुलासे सामने हैं। नर्मदा का पानी पीने और सिंचाई के बदले उद्योगपतियों को बेचा जा रहा है।
खासकर हिमालयी राज्यों सहित सब नदियों को बांधो में बांधा जा रहा है। दूसरी तरफ बांधों के कारण बाढ़ आ रही है। सभी बांधो की पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्टो में आंखों में धूल झोकने जैसी कमियों के बावजूद पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ दी जा रही हैं।
दूसरी तरफ सिक्किम, आसाम से लेकर केरल तक बांधो के जुड़े सवालों पर आंदोलन चल रहे है, पर स्थिति यह भी है कि आज दूरस्थ इलाको में जहां रिलायंस-लैंको-लार्सन टुब्रो जैसी कहानियां बांध बना रही है वहाँ लोग बांध से भविष्य में होने वाले सांस्कृतिक, मानवीय, जानवरों, पारिस्थितिकी, पर्यावरण आदि पर पड़ने वाले दूरगामी प्रभावों से अनभिज्ञ है और संघर्ष के तरीको, अपने अधिकारों, नियम-कानूनो आदि से संबंधी जनजागरण जरुरी है। यह भी सच्चाई है कि सरकारें अपने ही बनाये कानूनो व नीतियों का पालन नही कर रही हैं। पुनर्वास पर हो या पर्यावरण संरक्षण किसी के लिए भी दिये गये अदालती आदेशो का पालन नही हो रहा है।
विकास की जो अभी तक अवधारणा रही है उसका आंकलन करना समय-समय पर बहुत जरूरी है हमने इतने सालों तक नदियों को मात्र मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन माना है, इसके परिणाम हमारे सामने हैं। प्रायः सभी नदियां गंदगी को ढोने से प्रदूषित हो गई हैं। बांध जैसी परियोजनाओं से भी क्या लाभ हुआ है ? किसको लाभ पहुंचा है ? उसकी भी निष्पक्ष जांच जरूरी है। इन सभी परीक्षाओं के घेरे में आज की स्थिति में भी पूरी नदी घाटी का नियोजन कैसा हो ? इसी पर आयोजित है नदी घाटी विचार मंच!
इस कार्यक्रम में हर नदी घाटी से 2 या 5 प्रतिनिधि जो नदी घाटी की जिंदगी, अस्मिता, अधिकार और प्रकृति संस्कृति के रिश्तों पर बात रख सकेंगे, अपेक्षित हैं। देश के कई विशेषज्ञ, अध्ययनकर्ता और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता भी सम्मिलित होंगे। कार्यक्रम में हर नदी घाटी से दो या पांच प्रतिनिधि जो नदी घाटी की जिंदगी अस्मिता अधिकार और प्रकृति संस्कृति की रिश्तों पर बात रख सकेंगे अपेक्षित हैं। देश के कई विशेषज्ञ, अध्ययनकर्ता और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता भी सम्मलित होंगे। कार्यक्रम में नर्मदा की घाटी के ज्यादा लोग पहुंचेंगे और नर्मदा आंदोलन के संघर्ष व निर्माण के अनुभवों का आदान प्रदान करेंगे। इस मंच से न केवल एक संकल्प होगा बल्कि ठोस रणनीतिक कार्यक्रम आका जाएगा।
पृथ्वी पर हमारा जीवन बचाने का जबकि बहुत ही कम समय बचा है। समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो भारत के किसान एवं वंचित लोगों की जिंदगी तबाह एवं बर्बाद होने से रोका नहीं जा सकता है। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि हम सब साथ आये, संघर्ष और निर्माण की रणनीति बनायें। आप अपने साथ अपने बांधो के अनुभवों/प्रभावों पर एक प्रदर्शनियां/सघंर्षो से संबंधित साहित्य, बैनर आदि जरुर लेकर आये। कृपया आपके आने की खबर, सफरनामा, सहभागी व्यक्तियों के नाम, उम्र, संबंधित विशेष कार्य/अनुभव इत्यादि के साथ त्वरित भेजें। 30 जनवरी से पहले भेजने से नियोजन में सहूलियत होगी।
आप सादर आमंत्रित हैं।
मेधा पाटकर, राजकुमार सिन्हा राकेश दिवान महेन्द्र यादव विमल भाई
9423965153, 9424385139 9424467604 9973936658 9718479517
जन आंदोलनो का राष्ट्रीय समन्वय एवं भोपाल प्रगतिशील नागरिक समूह, नर्मदा बचाओं आदोलन, माटू जन संगठन, कोसी नव निमार्णमंच, बरगी बांध विस्थापित संघ, चुटका परमाणु परियोजना विरोधी संघर्ष समिति एवं भोपाल के साथी संगठन।
1 मार्च, 2020
2 मार्च, 2020
दूसरे दिनः- कार्यशाला (प्रत्येक संघर्ष से दो-तीन साथी व अन्य कोई)