नर्मदा को प्रदूषित करते बांध

नर्मदा नदी पर बन रहे एवं बन चुके बांधों के कारण प्रदूषण रहित यह नदी अब दिनों-दिन प्रदूषित होती जा रही है। अवैध रेत खनन से इस इलाके का दलदलीकरण भी बढ़ेगा जो कि स्थानीय पर्यावरण के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। इन्हीं खदानों के माध्यम से नर्मदा नदी का पानी धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा और जमीन का दलदलीकरण प्रारम्भ हो जायेगा। इसका असर जल्दी दिखाई नहीं देगा लेकिन जब परिणाम सामने आएगें तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। विकास की अवधारणा विनाश को आमत्रंण दे चुकी है। संभलने का वक्त अभी गुजरा नहीं है।

देश में विकास की अवधारणा को लेकर सालों से बहस जारी है। नदियों के प्रवाह को बांधों से रोकने, नहरों से सिंचाई करने और बिजली उत्पादन की छोटी-बड़ी सैकड़ों-हजारों परियोजनाओं के निर्माण से होने वाले असरों को आम आदमी समझ रहा है लेकिन देश के नीति निर्माताओं को अभी लगता है इसकी कोई परवाह नहीं है। देश भर में नदियों पर बनने वाले बांध और नहर परियोजनाओं के परिणाम आम लोगों के लिए कभी भी सुखद नहीं रहे हैं। इन परियोजनाओं से लाभ से अधिक नुकसान हुआ है। इसका ताजा उदाहरण सरदार सरोवर परियोजना में देखने को मिल रहा है। यह परियोजना नर्मदा नदी पर बनी हुई देश की विशालतम बांध परियोजनाओं में से एक है। विगत 10 सालों में इस परियोजना के कारण सैकड़ों किलोमीटर के इलाके में नर्मदा नदी का प्रवाह थम गया है। पानी रुकने के दुष्परिणाम सामने दिखाई देने लगे हैं। मानसून के अलावा भी लगभग पूरे साल नर्मदा का पानी कुछ स्थानों पर प्रदूषित दिखाई पड़ता है।

म.प्र. के निमाड़ क्षेत्र के बड़वानी जिले में लगभग 100 कि.मी. का प्रवाह करती हुई नर्मदा नदी आगे बढ़ती है और इस बीच कई स्थान ऐसे हैं जहां पर नदी का पानी प्रदूषित दिखाई पड़ता है। वहीं कई स्थानों पर श्रद्धा और आस्था रखने वाले श्रद्धालु अब नर्मदा नदी के जल से आचमन करने से भी घबराते हैं। साथ ही नर्मदा किनारे के कई गांवों के बाशिंदे प्रतिदिन जो पानी पीते हैं वातानुकुलित कक्षों में बैठकर विकास की योजना बनाने वाले शायद उससे हाथ धोना भी पसन्द नहीं करेंगे। यदि नर्मदा किनारे के बड़े नगरों को छोड़ दिया जाये तो किसी भी गांव में पानी को साफ करने के लिये कोई सरकारी फिल्टर प्लान्ट नहीं है। वाटर फिल्टरों का शगल भी शहरों तक ही सीमित है, जिससे फिल्टर पानी को पुनः फिल्टर किया जाता है। जहाँ सचमुच पानी को साफ करने की जरूरत होती है वहाँ न तो सरकारी सुविधा है और न ही निजी। नर्मदा सामान्यतः प्रदूषणविहीन नदी मानी जाती है लेकिन बाँध से पानी रुक जाने से अब यह धारणा बदल गई है। नर्मदा किनारे की सभ्यता बहुत पुरानी है लेकिन नर्मदा के पानी से बीमारी फैलने की खबरें पहली बार आ रही हैं।

दूसरी ओर मानसून के दौरान जब अन्य बांधों का पानी छोड़ा जाता है तब नर्मदा नदी अपने पूरे उफान पर रहती है और इसका जलस्तर कई गुना बढ़ जाता है। ऐसे में नर्मदा किनारे के कई किसानों के खेत और फसलें प्रभावित होती हैं। इस मानसून के दौरान भी इसका उदाहरण देखने को मिला जब कई किसानों की फसलें खेत में पानी भर जाने के कारण प्रभावित हुई और किसानों को नुकसान उठाना पड़ा। सरदार सरोवर बांध की डूब से मध्यप्रदेश के नर्मदा किनारे के कोई 193 गांव प्रभावित हैं, जिनमें आज भी ग्रामवासी निवासरत हैं। मुआवजा राशि अथवा उचित और वैध कृषि भूमि नहीं मिलने के कारण प्रभावितों ने अपना गांव नहीं छोड़ा है और आज भी अपने मूल गांव में खेती कर रहे हैं। इन प्रभावितों की समस्या है कि एक ओर इन्हें अपना हक नहीं मिल पाया तथा दूसरी ओर बरसात में बाँध का पानी घुसने से इन्हें लगातार आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है।

नर्मदा नदी को प्रदूषित करते बांधनर्मदा नदी को प्रदूषित करते बांध
इसके अलावा जो सबसे बड़ा प्रत्यक्ष खतरा सामने आने लगा है वह है विगत कई सालों से नर्मदा नदी के किनारे वाले गांवों में बालू रेत खनन का वैध और अवैध कारोबार जारी है। नर्मदा नदी के किनारे वाले कई ग्रामो में इन रेत खदानों की गहराई कई फुट गहरी है। इन रेत खदानों में बरसात के पहले भी नर्मदा नदी का पानी आ जाता है और मोटर पम्पों द्वारा इन गड्ढों को खाली कर रेत खनन जारी रहता है। वहीं इस मानसून में रेत खदानें तालाब में परिवर्तित होती दिखाई देने लगी हैं जो कि आने वाले समय के लिये सुखद संकेत नहीं है। अकेले बड़वानी जिले में इस तरह की कई रेत खदाने देखी जा सकती हैं। इन रेत खदानों में चलने वाली आधुनिक मशीनों को देखकर आप अंदाज लगा सकते हैं कि रेत की कीमत क्या होगी। रेत परिवहन से होने वाले स्वास्थ्य परिणामों को लेकर अभी कोई चिंतित दिखाई नहीं दे रहा है।

जब बालू रेत से भरे वाहन किसी गांव और नगरों से गुजरते हैं, तो अपने पीछे हवा के साथ रेत और मिटटी उड़ाते जाते हैं जो कि सड़क पर चलने वालों और सड़क किनारे रहने वाले निवासियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालती है। रेत के ये बारीक कण आंखों और शरीर के अन्दरूनी तंत्र को भी प्रभावित कर सकते हैं। इन्हीं खदानों के माध्यम से नर्मदा नदी का पानी धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा और जमीन का दलदलीकरण प्रारम्भ हो जायेगा। इसका असर जल्दी दिखाई नहीं देगा लेकिन जब परिणाम सामने आएगें तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। विकास की अवधारणा विनाश को आमत्रंण दे चुकी है। संभलने का वक्त अभी गुजरा नहीं है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्र लेखन करते हैं।

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