पैदल होने के कगार पर कोसीवासी

18 Jul 2012
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जब से कुसहा कटाव हुआ है, तब से कोसी की प्रकृति में विचित्र बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कोसी महासेतु के कारण भी इसके प्रवाह डिस्टर्ब हुए हैं, क्योंकि इस पुल के कारण लिंक बांध बनाये गये हैं। कोसी महासेतु के बाद भी दो और पुल कोसी में बन रहे हैं। इसलिए यह कहना अब असंभव हो गया है कि कोसी की मौजूदा प्रकृति क्या है और उसकी मुख्य धारा कहां है। ऐसी परिस्थिति में आम लोगों के अलावा विशेषज्ञ भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं।

डुमरी पुल के बेकाम होने के बाद से सहरसा, खगड़िया, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया जिलों के करीब 30-35 लाख लोगों को बाहर ले जाने का एक मात्र रास्ता सहरसा-मानसी रेल-लाइन है। यह एक लूप लाइन है, जिसकी उपेक्षा की अपनी अलग कहानी है। एक बार फिर इस लाइन पर कोसी मैया का कोप टूटा है। कोई छह गाड़ियां रद्द की जा चुकी हैं और अगर मैया नहीं मानी तो एक-दो दिनों में ही पटरी पर गाड़ी नहीं नदी की धारा चलेगी। मिली जानकारी के अनुसार, कोपरिया और धमारा स्टेशन के बीच फनगो हॉल्ट के समीप नदी की एक धारा राह भटक गयी है। वह अपने निर्धारित रास्ते से बहने से कतरा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिल्ट के कारण निर्धारित चैनल में शायद कोई बड़ा डेल्टा बन गया है, जो धारा को पार्श्व की ओर जाने के लिए मजबूर कर रही है। लेकिन पार्श्व में रेलवे लाइन अवरोधक बन रही है। इसलिए नदी इसे जोर-जोर से खुरच रही है।

आलम यह है कि करीब 50 मीटर की लंबाई में नदी और पटरी के बीच मीटर-दो मीटर का फासला ही बचा है। रेलवे के इंजीनियर बोल्डर और क्रेटर के जरिये इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए भारी संख्या में मजदूर लगाये गये हैं। बावजूद इसके इंजीनियर साहब लोग यह कहने में असक्षम हैं कि वे पटरी को बचा पायेंगे या नहीं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, छह सवारी गाड़ियों का परिचालन रद्द किया जा चुका है। इनमें सहरसा-मधेपुरा (55555/56), सहरसा-मानसी (55569/70) और सहरसा-समस्तीपुर सवारी गाड़ियां शामिल हैं। जनसेवा एक्सप्रेस, हाटे बजारे एक्सप्रेस, कोसी एक्सप्रेस तथा राज्यरानी एक्सप्रेस का परिचालन तो हो रहा है, लेकिन ये गाड़ियां तय समय से कई घंटे विलंब से चल रही हैं। अब जबकि रेलवे और राज्य सरकार के विशेषज्ञ इंजीनियर आगामी स्थिति को लेकर अनिश्चित हैं, तो मैंने अपने कोसी विशेषज्ञों से जानना चाहा कि आगे क्या संभावना बन सकती है।

लगभग सभी ने कहा कि अगर चार-पांच दिनों तक पानी के स्तर में तेजी से बढ़ोतरी या घटोतरी नहीं हुई तो संभव है कि पटरी बच जाये। पानी अगर तेजी से कम या ज्यादा हुआ, तो बोल्डर और क्रेटर के पहाड़ भी रेल लाइन को नहीं बचा पायेंगे। पानी का लेवल गिरेगा तो नदी को मुख्य धारा में बने डेल्टा को पार करने में भारी दिक्कत होगी, लेकिन उसकी बहाव-शक्ति में इजाफा होगा। परिणामस्वरूप पटरी की ओर बहने का प्रयास कर रही धारा और जोर से कटाव करने लगेगी। अगर लंबे समय तक स्तर बरकरार रहा, तो संभव है कि नदी डेल्टा को तोड़कर मुख्य धारा में बहने लगे और पटरी को बख्श दे। समस्तीपुर मंडल कार्यालय के अनुसार, कटाव रोकने के लिए 109 बैगन बोल्डर उझला जा चुका है। 500 मजदूर दिन-रात कटाव निरोधक काम में लगे हैं। अभियंताओं की 15 टोली लगातार स्थिति का मुआयना कर रहे हैं।

फनगो हॉल्ट के पास कोसीफनगो हॉल्ट के पास कोसीगौरतलब है कि कुछ साल पहले ही सहरसा-मानसी के बीच पटरी का अपग्रेडेशन हुआ था। पुरानी छोटी लाइन से अलग हटकर बड़ी लाइन के लिए पुल बनाये गये थे। उस समय भी गैर-सरकारी नदी विशेषज्ञों ने पटरी और नदी के अलाइनमेंट को लेकर सवाल खड़े किये थे। लेकिन उनकी बातें नहीं सुनी गयीं। यही कारण है कि हर साल बरसात के मौसम में मानसी से लेकर सिमरी बख्तियारपुर तक भारी जल-जमाव होता है। कोसी और बागमती की विभिन्न धाराएं पटरी और पुलों की इस 'रामसेतु' के बीच अटक सी जाती हैं। लेकिन ऐसी नौबत पिछले कुछ वर्षों में नहीं आयी थी। जब से कुसहा कटाव हुआ है, तब से कोसी की प्रकृति में विचित्र बदलाव देखने को मिल रहे हैं।

कोसी महासेतु के कारण भी इसके प्रवाह डिस्टर्ब हुए हैं, क्योंकि इस पुल के कारण लिंक बांध बनाये गये हैं। कोसी महासेतु के बाद भी दो और पुल कोसी में बन रहे हैं। इसलिए यह कहना अब असंभव हो गया है कि कोसी की मौजूदा प्रकृति क्या है और उसकी मुख्य धारा कहां है। ऐसी परिस्थिति में आम लोगों के अलावा विशेषज्ञ भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं। शब्द भले भिन्न हों, लेकिन वे भी घोर अंधविश्वासी की तरह कहते हैं- 'सब कुछ कोसी पर है। हम कुछ नहीं कह सकते।' कोई संदेह नहीं कि कोसी और अभियंताओं का यह द्वंद्व आगे नये-नये गुल खिलाते रहेंगे। पटरी टूटे या तटबंध, अभियंता मालामाल होंगे। कहर तो हमेशा आम लोगों पर ही बरपेगा।

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