पानी बनाम पैसा


आईपीएल का ब्रांड आज करीब तीन अरब रुपए तक पहुँच गया है। इसके आयोजन से राज्यों को जब कई सौ करोड़ का मुनाफा हो रहा है तो आयोजक बीसीसीआई को कितने करोड़ का मुनाफा हो रहा होगा। जब बीसीसीआई की तिजोरी से पैसा बह रहा है तो वह आईपीएल के लिये जरूरी जल ‘खरीद’ क्यों नहीं लेती है? कोई कुछ भी कहे परन्तु पानी बनाम पैसे के इस खेल में निश्चित रूप से महत्व तो पानी का ही है। सूखा सिर्फ अकेले महाराष्ट्र में नहीं है, सूखा देश के कई राज्यों को निगल रहा है। इन दिनों सूखे को लेकर सूखी चर्चा जोरों पर है। सूखे के कारण आईपीएल का खेल खतरे में पड़ गया है। इसीलिये पानी जरूरी है या खेल इस तरह की बहस अदालत तक जा पहुँची है और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस को यह ऐलान करना पड़ा कि सूखे के कारण हम आईपीएल को पानी नहीं दे सकते हैं, भले ही आईपीएल का खेल राज्य के बाहर ही क्यों न चला जाये।

मुख्यमंत्री की भूमिका निश्चित ही सराहनीय है, काश इसी तरह की दृढ़ भूमिका मुख्यमंत्री अन्य विषयों के प्रति जताते तो आज ‘भारत माता की जय’ जैसे मुद्दों पर बेवजह बहस छिड़ती है। खैर, इन दिनों आईपीएल के खिलाफ सूखा इस तरह का एक नया संघर्ष शुरू है। वैसे देखा जाये तो यह कोई बहस का मुद्दा नहीं हो सकता क्योंकि हर कोई यही कहेगा कि खेल की बजाय पानी ही जरूरी है। फिर भी इसको लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। सूखे के खिलाफ लड़ने की बजाय सूखा और आईपीएल की लड़ाई शुरू हो गई है।

इस लड़ाई को हर एक की अपनी भूमिका कहें या फिर हर एक का अपना नजरिया। पर इतना तो तय है कि आज सूखे के खिलाफ सबको राजनीतिक मतभेद को भूलकर एक साथ मिलकर लड़ना होगा। समय के साथ विचार बदल सकते हैं, लेकिन समय नहीं बदलता है। कल इंसान को रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए था और आज भी उसे इन्हीं चीजों की जरूरत है। इन जरूरतों को हर कोई पैसे से खरीद सकता है या फिर बना सकता है। लेकिन पानी ऐसी जरूरत है जिसका निर्माण मनुष्य के लिये सम्भव नहीं है।

इस प्राकृतिक चीज को हम आज जितना बचाएँगे कल उतना यह हमारे काम में आएगा। इसीलिये जल को बचाना जिस तरह सामूहिक जिम्मेदारी है उसी तरह सूखे के खिलाफ लड़ने की भी जिम्मेदारी हम सबकी है। यह सच है कि हमने आज तक पानी का जतन गम्भीरता से नहीं किया लेकिन उसके लिये एक दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय अब तो पानी बचाने की कोशिश शुरू होनी चाहिए। जबकि ऐसा कुछ होता नहीं दिखाई दे रहा है।

सूखे की समस्या सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं है बल्कि पूरे हिन्दुस्तान में आज यही स्थिति है। इसके बावजूद आईपीएल का आयोजन करने वाली बीसीसीआई का अदालत में यह बयान देना कि हम आईपीएल मैच दूसरे राज्य में ले जाकर खेलेंगे, उनकी देश व देशवासियों के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैए को ही स्पष्ट करती है। बीसीसीआई यह कहती है कि हम सूखा प्रभावित लोगों के साथ खड़े हैं तो इससे उनकी तिजोरी खाली नहीं हो जाती लेकिन बीसीसीआई की मानसिकता पैसे कमाने से अधिक कुछ सोचने की है ही नहीं।

क्या बीसीसीआई यह बता सकती है कि उसने आज तक खेल के लिये लगने वाले जल की कोई वैकल्पिक व्यवस्था की है? उसके पास तो ढेर सारे पैसे हैं फिर जनता की जरूरत का जल लेकर उसे खेल पर क्यों बहा रही है? आईपीएल का ब्रांड आज करीब तीन अरब रुपए तक पहुँच गया है। इसके आयोजन से राज्यों को जब कई सौ करोड़ का मुनाफा हो रहा है तो आयोजक बीसीसीआई को कितने करोड़ का मुनाफा हो रहा होगा। जब बीसीसीआई की तिजोरी से पैसा बह रहा है तो वह आईपीएल के लिये जरूरी जल ‘खरीद’ क्यों नहीं लेती है? कोई कुछ भी कहे परन्तु पानी बनाम पैसे के इस खेल में निश्चित रूप से महत्व तो पानी का ही है।

सूखा सिर्फ अकेले महाराष्ट्र में नहीं है, सूखा देश के कई राज्यों को निगल रहा है। यही स्थिति रही तो आईपीएल व बीसीसीआई को भी यह एक दिन निगल जाएगा। फिर भी सूखे से सकारात्मक लड़ने की बजाय बीसीसीआई के सचिव अनुराग ठाकुर कहते हैं कि आईपीएल राज्य से बाहर गया तो इससे महाराष्ट्र को 100 करोड़ रुपए का नुकसान होगा। सौ करोड़ रुपए में कितने शून्य लगते हैं, यह बात सूखा प्रभावित जनता को नहीं पता है और वह जानना भी नहीं चाहती है। उसे तो आज सिर्फ एक गिलास पानी की जरूरत है।

शरीर का कोई हिस्सा जब छिल जाता है या कट जाता है तब हमें वेदना होती है। शरीर पर होने वाला जो घाव दिखाई देता है, जिसका इलाज किया जा सकता है उससे उठने वाली दर्द हमें ‘वेदना’ देती है। लेकिन ठाकुरजी कुछ घाव शरीर के अन्दर होते हैं वह दिखाई नहीं देता, वह लाइलाज होता है लेकिन उससे जो पीड़ा होती है उसे ‘संवेदना’ कहते हैं। हमारे सीएम ने संवेदना जताई और आप वेदना भी नहीं जता रहे हो।

सौ करोड़ की कमाई बीसीसीआई अपने पास रख ले और किसी एक राज्य के पाँच गाँवों को उस पैसे से जिन्दगी भर के लिये जल का प्रबन्ध कर दें। पाँच गाँव की जनता और आने वाली पीढ़ी भी बीसीसीआई का एहसान कभी नहीं भूलेगी। सौ करोड़ रुपए का लालच दिखाया जा रहा है या फिर बीसीसीआई सचिव ललकार रहे हैं। आईपीएल का जारी आयोजन कोई विश्वकप प्रतियोगिता नहीं बल्कि बीसीसीआई की अपनी धन कमाने की योजना है।

जिस तरह गोरा रंग भी एक दिन ढल जाता है उसी तरह पैसा भी आज है तो कल नहीं रहेगा। पैसे का घमंड ठीक नहीं है लेकिन यह पैसा पानी नहीं खरीद सकता है। प्राकृतिक पानी के आगे पैसे का घमंड राक्षसी प्रवृत्ति है। खेल तभी खेल पाओगे जब उसे देखने के लिये जनता रहेगी जनता तभी रहेगी जब उसे पर्याप्त पानी उपलब्ध होगा। पानी को चुनौती देने की मानसिकता से हर किसी को बचना होगा। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब सारा गरूर न केवल पानी-पानी हो जाएगा बल्कि पानी में मिल जाएगा।

यदि आप जनता की वेदना को समझते हुए संवेदना भी नहीं जता सकते हो तो कम-से-कम उसकी वेदना का इस तरह से मजाक तो मत उड़ाओ। हम पानी बना नहीं सकते हैं लेकिन बचा जरूर सकते हैं। हमारी पीढ़ी ‘पानी-पानी’ हो जाये उसके पहले चलो पानी को बचा लें ताकि आने वाली पीढ़ी को दर-दर प्यासा न भटकना पड़े। सबको खुश रखना हमारे हाथ में नहीं है लेकिन किसी को दुख नहीं हो इसका ख्याल रखना निश्चित हमारे हाथ में ही है।

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