पानी के आगोश में समा रहा है एक आबाद टापू

sinking island of sunderban
sinking island of sunderban

सुंदरवन में जलवायु परिवर्तन का असर - भाग 2

 धीरे-धीरे पानी में समाता टापू का किनारा। धीरे-धीरे पानी में समाता टापू का किनारा।

अपनी जैव विविधता के लिए दुनियाभर में मशहूर सुंदरवन के घोड़ामारा द्वीप में जब आप दाखिल होंगे, तो लोगों के मायूस और बुझे हुए चेहरे आपको बताएंगे कि जिस जलवायु परिवर्तन को हुक्मरान और दुनिया के बड़े देश स्वीकार करने तक को राजी नहीं हैं, वो यहां क्या कहर लेकर आ रहा है। देश की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता से करीब 150 किलोमीटर दूर दक्षिण 24 परगना जिले के सुंदरवन में आबाद ये द्वीप हर रोज तिल-तिल अपना वजूद खो रहा है। यह द्वीप सूबे के शेष भूखंड से कटा हुआ है और चारों तरफ से अथाह पानी से घिरा हुआ है। विडम्बना ये है कि पानी ही इस द्वीप को शेष भूखंड से संपर्क कराता है और यही पानी इसका अस्तित्व भी मिटा रहा है। धीरे-धीरे, लेकिन लगातार।

वो अप्रैल की एक गर्म शाम थी, जब मैं कोलकाता से लोकल ट्रेन और फिर ई-रिक्शा लेकर लॉट नंबर आठ पर पहुंचा था। शाम करीब पांच बज रहे थे। जेटी तक जानेवाली लकड़ी और लोहे की पुलिया खाली थी। मगर लॉट नंबर आठ की तरफ गिरनेवाले इसके हिस्से के आसपास लोगों की भीड़ थी। ये सभी लोग घोड़ामारा द्वीप पर जानेवाले थे। ये लोग शाम 5 बजकर 30 मिनट पर को लॉट नंबर आठ से द्वीप के लिए खुलनेवाले आखिरी लांच का इंतजार कर रहे थे। सूरज जिस तरफ डूब रहा था, उसी तरफ घोड़ामारा द्वीप है। सुंदरवन क्षेत्र में एक अलिखित नियम चलता है, जिसे हर किसी को मानना पड़ता है। ये नियम ऐसा नहीं है कि जिसकी सरकार या पुलिस निगरानी करती है। ये नियम प्रकृति ने बनाया है कि अंधेरा पसरने से पहले लोगों को अपने टापुओं पर पहुंच जाना है, अन्यथा उन्हें अपने ही घरों में दाखिल होने के लिए सुबह का इंतजार करना होगा। इसलिए शाम को घोड़ामारा तक जाने के लिए आखिरी लांच के खुलने का समय 5 बजकर 30 मिनट मुकर्रर है ताकि सूरज के पूरी तरह डूब जाने से पहले नावें नदी किनारे बांध दी जाएं। 

घोड़ामारा द्वीप पर रहनेवाले लोगों की जिंदगी बिल्कुल मशीन की तरह हो गई है। उनके घर से निकलने और वापस घर लौटने का समय एकदिन पहले ही तय हो जाता है, जब द्वीप के मुख्य इलाकों में एक बोर्ड चस्पा कर दिया जाता है। इस बोर्ड में दर्ज होता है कि कल लॉट नंबर आठ से घोड़ामारा के लिए और घोड़ामारा से लॉट नंबर आठ के लिए कब-कब लांच खुलेगा। सुंदरवन के टापुओं पर जाने-आने का समय ज्वार-भाटा से तय होता है। अगर ये कहूं कि यहां के लोगों का समय ज्वार-भाटा की कैद में है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ज्वार-भाटा और पानी की कैद में रह रहे इन लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन तीसरा संकट है, जो न केवल इन्हें इनकी पुरखों की जमीन से बेदखल कर रहा है बल्कि इनके वजूद को भी मटियामेट करने पर आमादा है। 

लांच का इंतजार कर रहे लोगों के चेहरे पर दिनभर की भागदौड़ की थकावट है, मगर  फिर भी लोग छोटी-छोटी बातों पर हंसने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच काठ से बना एक लांच जेटी पर आ लगा है। मोटर से चलनेवाला ये लांच यहां के लोगों की लाइफलाइन है। लोग किसी यंत्र की तरह पुलिया पार कर लांच पर सवार हो गए हैं। लांच के किनारों पर उभरी लकड़ी पर लोग लाइन से बैठे हैं। मैं भी इन्हीं लोगों के बीच में बैठ गया हूं। मेरे पास 36 वर्षीय निमाई हालदार बैठे हैं। दुबली-पतली काया वाले निमाई ने शर्ट और लुंगी पहन रखा है। वह घोड़ामारा द्वीप में रहते हैं। थोड़ा-बहुत खेत है, जिस पर पान लगा रखा है। वह पान का पत्ता बेचने के लिए कोलकाता गए थे। उन्होंने बातचीत का सिलसिला यही कहकर शुरू किया कि घोड़ामारा डूबता जा रहा है। घोड़ामारा में उनकी पांच एकड़ जमीन थी, अब कुछ कट्ठा ही बचा है। बाकी पानी में समा गई। कोई रोजगार नहीं है। खेती करके ही किसी तरह जिंदगी गुजार रहे हैं। लांच अभी बीच नदी में है। समुद्री पक्षी पानी के साथ खेल रहे हैं। पक्षी कभी लांच से रेस लगा रहे हैं, तो कभी पानी की लहरों में चोंच डुबा कर कुछ ढूंढने लगते हैं। ये प्रवासी पक्षी हैं, जो मौसम बदलते ही यहां से चले जाएंगे। लेकिन घोड़ामारा टापू के लोगों के लिए ये सहूलियत नहीं है कि जब मर्जी करे, अपने अनुकूल ठिकाने पर आशियाना डाल लें। निमाई हालदार द्वीप में आनेवाली दुश्वारियों पर लगातार बोल रहे हैं। उनकी आवाज निराशा में डूबी हुई है। वह बताते हैं कि किस तरह नदी धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ रही है। वह कहते हैं कि पहले नदी का किनारा काफी दूर था, लेकिन अब तो बिल्कुल पास आ गया है। कब वह घर को लील जाएगा, कोई कह नहीं सकता।

इस टापू पर कभी 7000 से ज्यादा लोग रहते थे, लेकिन अभी यहां की आबादी करीब 5 हजार है। इनमें से वोटरों की संख्या करीब 3700 है सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक तकरीबन 200 परिवारों को घोड़ामारा से दूर सागरद्वीप में स्थानांतरित किया जा चुका है। घोड़ामारा ग्राम पंचायत के प्रधान संदीप सागर ने कहा कि 30 और परिवारों को पश्चिम बंगाल सरकार जल्द ही दूसरे द्वीप में बसने लायक जमीन देगी। घोड़ामारा ग्राम पंचायत के प्रधान संदीप सागर ने कहा कि 30 और परिवारों को पश्चिम बंगाल सरकार जल्द ही दूसरे द्वीप में बसने लायक जमीन देगी।

सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैले सुंदरवन के पश्चिम बंगाल के हिस्से में करीब 100 द्वीप हैं। इनमें से 54 द्वीप ऐसे हैं, जहां बसाहट है। घोड़ामारा इन्हीं में से एक है। घोड़ामारा पहले करीब 8 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था, मगर अब इसका क्षेत्रफल 5 वर्ग किलोमीटर से भी कम हो गया है। जानकार बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता जलस्तर इस द्वीप की मुश्किलें बढ़ा रहा है और अगर सूरत-ए-हाल यही रहा, तो अगले एक दशक में शायद यह द्वीप मानचित्र से ही मिट जाए। सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क की ओर से ‘इंचिंग क्लोजर: लाइफ ऑन द सिंकिंग आइलैंड ऑफ घोड़ामारा’ नाम से छपी एक रिपोर्ट में जादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर व समुद्र विज्ञानी सुगत हाजरा कहते हैं, ‘बंगाल की खाड़ी में समुद्र का जलस्तर वर्ष 2000 तक तीन मिलीमीटर सलाना की रफ्तार से बढ़ रहा था, लेकिन पिछले एक दशक से यह पांच मिलीमीटर सालाना की दर से बढ़ रहा है।’ तीन साल पहले इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) की तरफ से एक रिपोर्ट जारी की गई थी। इस रिपोर्ट में भी बताया गया था कि किसी तरह सुंदरवन के द्वीपों पर खतरा मंडरा रहा है। इस रिपोर्ट पिछले 10 साल के सैटेलाइट डेटा का संग्रह कर उनका गहन विश्लेषण किया गया, जिसमें पता चला कि सुंदरबन का 9990 हेक्टेयर भूखंड कटाव के कारण पानी में डूब गया।  जानकार बताते हैं कि विश्वभर में कार्बन का उत्सर्जन बढ़ा है। इससे तापमान में इजाफा हो रहा है, जो ग्लेशियर को पिघला रहा है। इस वजह से समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी हो रही है और द्वीप डूब रहे हैं।
मिट्टी कटाव के कारण नदी में बह गया घर का पीछे का हिस्सा। मिट्टी कटाव के कारण नदी में बह गया घर का पीछे का हिस्सा। करीब 45 मिनट का सफर कर लांच घोड़ामारा द्वीप के किनारे पहुंच गया। सूरज पूरी तरह डूब चुका है और पूरे द्वीप में नीम अंधेरा पसरा हुआ है। जिस व्यक्ति के घर मुझे रात में ठहरना है, वह किनारे ही मेरा इंतजार कर रहे थे। हम दोनों ने एक दूसरे कि शिनाख्त की और वो मुझे सबसे पहले अपने घर ले गए। वहां से हम लोग पास के ही एक चैक पहुंचे, जहां शाम को बाजार लगता है। इस बाजार में सब्जियां और दैनिक जरूरतों का सामान मिलता है। दवा, परचून, चप्पल और खाने-पीने की छोटी-छोटी दुकानें यहां आबाद हैं। इन दुकानों में मध्यम रोशनी वाले बल्ब टिमटिमा रहे हैं। चूंकि यहां तक बिजली नहीं पहुंची है, इसलिए रियायती दर से सरकार ने सभी घरों में सोलर प्लेट लगवाया है। इसी से यहां उजाला होता है। इसी बाजार में पोस्ट ऑफिस भी है। अंग्रेजों ने सुंदरवन में सबसे पहले घोड़ामारा में ही पोस्ट ऑफिस खोला था। ये पोस्ट ऑफिस एक दशक पहले तक अपने मूल ठिकाने पर ही था, लेकिन जलस्तर बढ़ने से मिट्टी का कटाव हुआ, जिससे पोस्ट ऑफिस का पुराना मकान भी पानी में बह गया, तो उसे इस बाजार में शिफ्ट कर दिया गया है। इस टापू पर कभी 7000 से ज्यादा लोग रहते थे, लेकिन अभी यहां की आबादी करीब 5 हजार है। इनमें से वोटरों की संख्या करीब 3700 है। 

कुछ देर बाजार में घूमने के बाद हमलोग वापस कमरे पर लौट आए। रात का खाना खाकर मैं कमरे में सोने आ गया। कमरा सड़क से बिल्कुल सटा हुआ था। रात बहुत गहरी नहीं हुई थी, मगर पूरे टापू में मुर्दहिया सन्नाटा पसरा हुआ था। कल सुबह कहां जाना है, ये सब सोचते हुए नींद आ गई। तड़के सड़क से जल्दबाजी में गुजर रहे लोगों की आपसी बातचीत से नींद खुली। ये लोग सुबह पहली लांच पकड़ कर लॉट नंबर आठ जा रहे थे। इस छोटे से द्वीप में जगह-जगह पोखर, पेड़ पौधे थे और फूस की झोपड़ियां हैं। मैं सबसे पहले द्वीप के पूर्वी किनारे पर गया। वहां नदी के किनारे बनी फूस की झोपड़ी से दो महिलाएं अपना सामान निकाल रही थीं। शायद वह कहीं और घर बनाने जा रही थीं। थोड़ा आगे बढ़ने पर 25 वर्ष का एक नौजवान मिला, जो फूस से नया घर तैयार कर रहा था। थोड़ा और आगे बढ़े, तो अपनी झोपड़ी के पास बैठकर जाल बुनते 50 वर्षीय दीपंकर कयाल से मेरी मुठभेड़ हुई। चिलचिलाती धूप में नंगे बदन वो तांत के धागे को सुलझा रहे थे। उन्होंने बताया, ‘मेरे पूर्वजों के पास 500 बीघा जमीन थी घोड़ामारा में। धीरे-धीरे सारी जमीन कटकर नदी में चली गई। अभी मेरे पास इतनी भी जमीन नहीं है कि खेती कर दो जून की रोटी का इंतजाम कर सकूं।’ दीपंकर को दो जून की रोटी के लिए खेत में भी काम करना पड़ता है और जाल भी बुनना पड़ता है। वह कहते हैं, ‘एक लंबा जाल बुनने में हफ्ताभर लग जाता है और मिलते हैं महज 700 रुपए। काम बहुत महीनी है, मगर पैसा कम।

दीपंकर कयाल अकेले नहीं हैं, जिनकी जमीन नदी ने हजम कर ली है। 5 हजार की आबादी वाले इस द्वीप के हर परिवार की यही कहानी है। मसलन निताई घड़ाई को ही ले लीजिए। उनके पास भी काफी जमीन थी, लेकिन अभी परचून की दुकान चलाकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं। वह नदी द्वारा मिट्टी के कटाव का सबूत देने के लिए थोड़ा आगे बढ़ने का इशारा करते हैं। हम थोड़ा आगे बढ़ कर नदी के किनारे पहुंचते हैं, तो वहां का नजारा देखकर लगता है कि अभी अभी एक सुनामी आकर लौटी है। मिट्टी की एक बड़ी चट्टान बेतरतीबी से उखड़कर नदी में समा गई थी। पास के मंदिर का आधा हिस्सा भी टूट गया था और पास ही एक पेड़ था, जो जड़ से उखड़ चुका था। स्थानीय लोगों ने बताया कि पानी के कटाव से ये नुकसान हुआ है।
शेष भूखंड से कटे इस द्वीप के लोगों के लिए रोजगार के अवसर सिमटे हुए हैं। मनरेगा व खेती का काम मिला तो मिला, वरना खाने के लाले पड़ जाते हैं। यही वजह है कि यहां से पलायन भी खूब होता है।  घर-बार नदी में समा जाने की आशंका के चलते कई परिवार स्थायी तौर पर ये द्वीप छोड़ चुके हैं, वहीं कई परिवारों को सरकार ने अन्य द्वीपों में बसाया क्योंकि उनके घर नदी में समा चुके थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक तकरीबन 200 परिवारों को घोड़ामारा से दूर सागरद्वीप में स्थानांतरित किया जा चुका है। घोड़ामारा ग्राम पंचायत के प्रधान संदीप सागर ने कहा कि 30 और परिवारों को पश्चिम बंगाल सरकार जल्द ही दूसरे द्वीप में बसने लायक जमीन देगी। घोड़ामारा का बाशिंदा 80 वर्षीय मो. आफताबुद्दीन के बाप-दादा के पास 700 बीघा जमीन थी, लेकिन उनके पास अभी बमुश्किल 2-3 बीघा जमीन बची है। वे कहते हैं, ‘अभी मेरा जो मकान है, वह सातवां मकान है। अभी तक छह बार मेरा घर पानी में समा चुका है। जब भी पानी घर को आगोश में लेता है, मैं थोड़ी दूर अपनी झोपड़ी डाल लेता हूं, लेकिन कुछ साल बाद वो भी पानी में चला जाता है।’ 

यहां रहनेवाले लोग भले ही एक छोटे से टापू में कैद हैं, लेकिन उन्हें बखूबी पता है कि इस टापू के साथ प्रकृति जो सुलूक कर रही है, उसके लिए वे लोग जिम्मेवार नहीं हैं। मगर, सिवाय अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाने के, वे कर भी क्या सकते हैं! बहरहाल, बातचीत में लोगों ने बताया कि यहां रहनेवाला हर परिवार चाहता है कि उसे सरकार कहीं और थोड़ी बहुत जमीन दे दे, तो वहां चला जाए। हालांकि, जब वे ये कहते हैं तो इस बात पर अफसोस भी जताते हैं कि इसी मिट्टी में उनके पुरखे दफ्न हैं, इसलिए उन्हें ये जमीन छोड़ना अच्छा नहीं लगता। लेकिन, रोज मौत को करीब आते देखने की उनमें हिम्मत भी तो नहीं है। लोगों से बातचीत करते और घूमते दोपहर हो चुकी थी। मैं अब लौटना चाहता था। 15 मिनट पैदल चल कर मैं नदी किनारे पहुंचा, तो एक लांच लगा हुआ था। लांच में मैं सवार हो गया। कुछ और लोग भी उसमें सवार हो हुए। फिर लांच की रस्सी खोल दी गई। भुट-भुट की आवाज करता लांच घोड़ामारा से दूर हो रहा था। कुछ मिनट में वो टापू आंखों से ओझल हो गया। अगर कुछ नहीं किया गया, तो एक दिन ये टापू सुंदरवन के मानचित्र से ही ओझल हो जाएगा।  

(लेखक नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया के फेलो हैं। ये स्टोरी एनएफआई फेलोशिप के तहत लिखी गई है)

 

TAGS

where is sundarbans, climate change in sundarbans, what is sundarban, history of sundarban, story of sundarband, life in sundarban, delta in sundarbans, how to reach sundarban, crisis in sundarban, biggest island in india, island in india for honeymoon, lakshadweep, islands of india upsc, island of india, andaman and nicobar islands map,andaman and nicobar islands images, largest island in indian ocean, water in english, water information, water p, water wikipedia, essay on water, importance of water, water in hindi, uses of water, global warming essay, global warming project, global warming speech, global warming in english, what is global warming answer, global warming paragraph, sundarban nadi, sundarban national park, causes of global warming essay, causes of global warming in points, causes of global warming wikipedia, what is global warming, greenhouse effect, causes of greenhouse effect in points, effects of greenhouse effect, effects of global warming, ghodasara island, sinking island, sinking island of india, why islands are sinking.

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading