पानी के नाम पर ज़हर पी रहा उत्तर प्रदेश

1 Jan 2020
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पानी के नाम पर ज़हर पी रहा उत्तर प्रदेश
पानी के नाम पर ज़हर पी रहा उत्तर प्रदेश

देखते ही देखते एक वर्ष और बीत गया। इस वर्ष विभिन्न मुद्दों को लेकर काफी प्रदर्शन व आंदोलन हुए। सबसे बड़ा आंदोलन जलवायु परिवर्तन के लिए हुआ, जो स्वीडन की जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने खड़ा किया। जलवायु परिवर्तन में स्वच्छ हवा पर मुख्य रूप से जोर दिया गया, लेकिन स्वच्छ जल की भी निरंतर चर्चा होती रही। भारत सरकार ने जल संरक्षण के लिए जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया और हर घर को नल से जल देने की घोषणा की। इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है। नल से जल पहुंचाने की इस घोषणा के बीच, जब भारत भीषण जल संकट के दौर से गुजर रहा है, नदियां सूख रही हैं, तालाब, कुएं, पोखर, नौले-धारे आदि भी वेंटिलेटर पर अंतिम सांस ले रहे हैं, जो जल बचा है वो दूषित है, हर चार घंटे में दूषित जल के कारण एक व्यक्ति की मौत हो रही है, तो ऐसे में हर नल में जल कहां से आएगा ? और यदि आएगा भी तो, कितना स्वच्छ होगा ? शायद ये सोचना सरकार ने वाजिब नहीं समझा। जिस कारण देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में लोग पानी के नाम पर ज़हर पी रहे हैं। यहां भूमिगत जल में फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा मानक से कईं गुना पाई गई है, लेकिन न सरकार जाग रही है और न ही प्रशासन। खामियाजा विभिन्न बीमारियों के रूप में जनता को भुगतना पड़ रहा है।

भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि मान्य सीमा 1.0 पीपीएम है। तो वहीं आर्सेनिक की मान्य सीमा 0.01 पीपीएम और अधिकतम मान्य सीमा 0.05 पीपीएम है। पानी में बढ़ते आर्सेनिक और फ्लोराइड के मामलों एवं दुष्प्रभावों के सामने आने पर, पानी की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2015-16 में उत्तर प्रदेश के वाॅटर एंड सेनिटेशन मिशन को केंद्र सरकार ने 150 करोड़ रुपए की धनराशि दी थी। मिशन को इस धनराशि से राज्य के हर गांव, कस्बे और शहर में पेयजल के स्त्रोतों का जियोग्राफिकल क्वालिटी टेस्टिंग सर्वे करवाकर रिपोर्ट पोर्टल से सार्वजनिक करनी थी। दोनों एजेंसियों नेे सर्वे किया। सर्वे में सामने आया कि राज्य के 63 जनपदों में फ्लोराइड की मात्रा 3 पीपीएम और 25 जनपदों में आर्सेनिक की मात्रा 1 पीपीएम पाई गई, जबकि 18 जिले तो ऐसे हैं, जहां भूजल में फ्लोराइड और आर्सेनिक दोनों ही मानक से अधिक पाए गए हैं। इस बात का खुलासा उत्तर प्रदेश के वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन द्वारा दी गई एक आरटीआइ के जवाब में दिया गया है, जिसे डाउन टू अर्थ ने भी प्रकाशित किया है।

एजेंसियों ने सर्वे कर जनपदों के सभी मुख्य विकास अधिकारियों को रिपोर्ट की एक एक हार्ड काॅपी और उत्तर प्रदेश वाॅटर एंड सेनिटेशन मिशन को साॅफ्ट काॅपी दी। सरकार के आदेशानुसार मुख्य विकास अधिकारियों को अपने अपने स्तर पर रिपोर्ट का सत्यापन करवाना था। साथ ही राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन को साॅफ्ट काॅपी का उपयोग कर पोर्टल तैयार करना था। इसी पोेर्टल पर रिपोर्ट की जानकारी भी अपलोड करनी थी, लेकिन अभी तक न तो अधिकांश मुख्य विकास अधिकारियों ने रिपोर्ट का सत्यापन किया और न ही मिशन द्वारा पोर्टल तैयार किया गया। 

फ्लोराइड प्रभावित जिले

आगरा, अलीगढ़, ज्योतिबाफुलेनगर, कन्नौज, कानपुर देहात, कानपुर नगर, कासगंज, कौशाम्बी, लखीमपुर खीरी, ललितपुर, लखनऊ, महामायानगरअम्बेडकर नगर, अमेठी, औरैया, बागपत, बहराइच, बलरामपुर, बाँदा, बाराबंकी, बिजनौर, बदायूं, बुलंद शहर, चन्दौली, चित्रकूट, एटा, इटावा, फैज़ाबाद, फर्रुखाबाद, फतेहपुर, फ़िरोज़ाबाद, गौतम बुद्ध नगर, गाज़ियाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, हमीरपुर, हापुड़, हरदोई, जालौन, जौनपुर, झाँसी, महाराजगंज, महोबा, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ,  मिर्ज़ापुर, मुज़फ्फरनगर, प्रतापगढ़, रायबरेली, रामपुर, सहारनपुर, संभल, संतकबीर नगर, संतरविदास नगर, शाहजहाँपुर, शामली, श्राबस्ती, सीतापुर, सोनभद्र, सुल्तानपुर, उन्नाव तथा  वाराणसी। दरअसल पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड पाए जाने का मुख्य कारण भूजल का अधिक दोहन है। इन सभी के बाजवजूद भारत में जल संकट गंभीर स्थिति में पहुंच गया है और भूजल का उपयोग कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इस बात को नीति आयोग की रिपोर्ट में भी बताया गया है। इसके बाद बाद भी सरकार हर घर को नल से जल देने की बात कह रही है, लेकिन ये नहीं बता रही है कि पानी आखिर आएगा कहां से ? खैर पानी सभी की जरूरत है। जीवन का आधार है, इसलिए सभी को मिलना चाहिए, लेकिन सरकार को पानी की स्वच्छता को सुनिश्चित करने के साथ ही गिरते जलस्तर, सूखती नदियों और अन्य जल स्त्रोतों के संरक्षण को भी सुनिश्चित करना होगा। वरना हर घर जल पहुंचाते पहुंचाते, कहीं हर घर गंभीर बीमारियों न पहुंच जाए।  

फ्लोराइड का प्रभाव

फ्लोराइड की अधिकता के कारण फ्लोरोसिस नाम बीमारी होती हेै। ये बीमारी मख्यतः दो प्रकार दंत फ्लोरोसिस और अस्थि फ्लोरोसिस होती है, लेकिन कई प्रकार की अन्य फ्लोरोसिस बीमारियां भी होती हैं। 

दंत फ्लोरोसिस में दांतों की एनेमल, यानी ऊपरी सतह की चमक कम होने लगती है। दांतों पर पीले धब्बे पड़ने लगते हैं और दांतों का रंग काला व भूरा होने लगता है। तो वहीं अस्ति फ्लोरोसिस में हड्डियां बढ़ने लगती है, जोड़ों मे जड़ता आती है, जोड़ों में दर्द होता और लचीलापन खत्म हो जाता है। वहीं सवाईकल भी हो जाता है। फ्लोरोसिस से हड्डियों का आकार भी बदलने लगता है। हड्डियां मुढ़ने लगती हे, जिसे प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। फ्लोरोसिस के कारणर कुबड़ापन, रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन, शरीर के निचले हिस्से और दोनों हाथों में पाक्षाघात हो जाता है। इसके अलावा हिस्से से मांसपेशियों, लाल रक्त कणिकाओं, पाचन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, शुक्राणु पर भी प्रभाव पड़ता है। 

आर्सेनिक से मुख्य रूप से त्वजा संबंधी बीमारी और कैंसर होता है। आर्सेनिक पानी में मौजूद ऐसे जहरीले तत्व होते हैं जो हमारे शरीर पहुंच जाते हैं और कई बीमारियों को जन्म देते हैं- जैसे त्वचा फटना, केराटोइस और त्वचा कैंसर, फेफड़े और मूत्राशय का कैंसर, नाड़ी से सम्बन्धित रोग, मधुमेह, दूसरे अंगों का कैंसर, संतानोत्पत्ति से सम्बन्धित गड़बड़ियाँ आदि।

आर्सेनिक प्रभावित जिले

अलीगढ़, महाराजगंज, मथुरा, मिर्ज़ापुर, पीलीभीत,  संतकबीर नगर, शाहजहाँपुर, सिद्धार्थ नगर, सीतापुर तथा उन्नाव, आजमगढ़, बहराइच, बलिया, जौनपुर, झांसी, ज्योतिबाफुले नगर, कुशीनगर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, बाराबंकी, देवरिया, फैज़ाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, गोरखपुर।

आर्सेनिक तथा फ्लोराइड दोनों से प्रभावित जिले

अलीगढ़, बहराइच,  बाराबंकी, फैज़ाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, जौनपुर, झाँसी, ज्योतिबाफुलेनगर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, महाराजगंज, मथुरा, मिर्ज़ापुर,  संतकबीर नगर, शाहजहाँपुर,  सीतापुर तथा  उन्नाव।

लेखक - हिमांशु भट्ट

 

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