पानी की बर्बादी के लिए केवल किसान दोषी नहीं

31 Oct 2019
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पानी की बर्बादी के लिए केवल किसान ही दोषी नहीं
पानी की बर्बादी के लिए केवल किसान ही दोषी नहीं

जल संकट इस समय वैश्विक समस्या बना हुआ है। हर देश जल संरक्षण की दिशा में काफी प्रयास भी कर रहे हैं। भारत में प्रयास तो हो रहे हैं, लेकिन धरातल पर उतने कारगर साबित होते नहीं दिख रहे हैं। जिस कारण भारत पानी की भीषण समस्या से जूझ रहा है और राजधानी सहित महानगरों में 2020 तक भूजल समाप्त होने की चेतावनी नीति आयोग दे चुका है। भारत के संदर्भ में यदि बात करें तो देश में सबसे अधिक पानी खेती में बर्बाद में किया जाता है, लेकिन पानी की बर्बाद के लिए केवल किसान ही नहीं सभी लोग जिम्मेदार हैं। इस बारे में कृषि विज्ञान केंद्र सहारनपुर के निदेशक डाॅ. आईके कुशवाहा से इंडिया वाॅटर पोर्टल ने वार्ता की। पेश है उनसे वार्ता का कुछ अंश। वार्ता को विस्तृत रूप से देखने के लिए नीचे दिए गए वीडिया को भी सुना जा सकता है।

कृषि विज्ञान केंद्र सहारनुपर का परिचय

कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय मेरठ द्वारा संचालित है। इसकी स्थापना वर्ष 1992 में हुई थी। केवीके किसानों की आय बढ़ाने और स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए कार्य कर रहा है। फसल संबंधित समस्याओं के निवारण, पशुओं की नस्ल सुधार और महिलाओं के रोजगार संबंधी कार्यक्रम भी समय समय पर आयोजित किए जाते हैं। ये कार्यक्रम प्रशिक्षण का होता है, जिसमे दो प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है। एक प्रशिक्षण तो कृषि विज्ञान केंद्र के परिसर में ही दिया जाता है और दूसरा बाहर किसी अन्य स्थान पर। प्रशिक्षण के अंतर्गत खेती से परोक्ष और अपरोक्ष रूप से जुड़े विभागों और एनजीओ को प्रशिक्षित किया जाता है। इसके बाद सभी का फीडबैक लिया जाता है और कमियों में सुधार तथा समस्याओं का त्वरित निराकरण किया जाता है। 

कृषि विज्ञान केंद्र की गतिविधियां

सहारनुपर का क्षेत्र देवभूमि है। यहां आप जितना सोचेंगे खेती उससे ज्यादा उत्पादन देती है। साथ ही ऐसी कोई भी फसल नहीं है जिसे लगाने के बाद यहां उत्पादन न मिले, लेकिन फसल की उत्पादकता मिट्टी की उर्वरता शक्ति पर भी निर्भर करती है। इसलिए कृषि विज्ञान केंद्र में मृदा की जांच के लिए प्रयोगशाला है, जहां किसान मिट्टी की जांच करा सकते हैं। किसानों को एक बात और समझनी होगी कि जिस जमीन में उपजाऊपन व नमी होती है, वहां कीट और बीमारियों भी अधिक होती हैं। इन कीट और बीमारियों को रोकने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र वृहद स्तर पर कार्य कर रहा है। वृहद स्तर पर अभियान चलाकर किसानों को पुराली जलाने के दुष्परिणामों के प्रति जागरुक किया गया। इसका नतीजा ये रहा कि किसानों ने पुराली जलाना बंद कर दिया है। फसलों के वेस्ट की खाद बनाने के लिए डीकंपोज़र किसानों को दिया जाता है। इसे किसान घर में भी बना सकते हैं, जिसके लिए 200 लीटर पानी में दो किलो गुड़ डालें और इसमे 100 मिलिलीटर डीकंपोज़र मिला लें। जिसके बाद ये घर में ही दस दिन में तैयार हो जाता है। इसे खेत में सिंचाई के पानी के साथ डालने के अलावा इसका छिड़काव भी डाला जा सकता है। इसका फायदा ये हुआ कि जो फसल अवशेष 60 दिन में गलते थे, वो अब छह दिन में ही गलने लगे हैं। 

केवीके द्वारा जलशक्ति अभियान के अंतर्गत किए जा रहे कार्य

गांव का पानी तालाब में, खेत का पानी खेत में और घर का पानी घर में उपयोग करने की तकनीक किसानों को दी जा रही है। इसके लिए खेत की मेढ़ यदि थोड़ी ऊंची की जाए तो ऊपर से आने वाला पानी खेत में ही रहेगा। खेत पानी को सोख लेगा, जिससे जलस्तर में इजाफा होगा। गांव का पानी तालाब में भेजने के लिए पुराने तालाबों को पुनर्जीवित किया जा रहा है और नए तालाब भी बनवाए जा रहे हैं। घर से निकलने वाले पानी को एक गड्ढा बनाकर उसमे संग्रहित किया जा सकता है। इससे पानी सीधे जमीन के अंदर जाएगा। यदि जगह जगह ऐसे गड्ढे बनाए जाएंगे तो जलस्तर बढ़ने में सहायता मिलेगी। 

उन्न्त फसल के लिए खेती के किन माध्यमों को अपनाया जाए

जल दोहन में केवल किसान ही नहीं बल्कि शहर के लोग और उद्योग भी दोषी हैं। जल बचाने के लिए जागरुता फैलानी जरूरी है, ताकि लोग जल की एक एक बूंद की कीमत समझे। खेती में जल को बचाने के लिए ड्रिस इरीगेशन किया जाए, इसके लिए सरकार द्वारा योजना भी चलाई जा रही है, जिसमें किसानों को अनुदान भी दिया जाता है। साथ ही गर्मी के मौसम में खेतों में ज्यादा जुताई की जाए और कम से कम कीटनाशकों को उपयोग किया जाना चाहिए। उद्योगों में पानी बचाने के लिए भी बड़े गड्ढे बनाए जाएं, ताकि उद्योगों से उपयोग के बाद नालों में व्यर्थ बहने वाला पानी सीधे जमीन में जा सके।

 

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