पानी की जंग

26 Jun 2014
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संसार इस समय जहां अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में व्यस्त है, वहीं पानी, खाद्य और ऊर्जा की पारस्परिक निर्भरता की चुनौतियां का सामना हमें करना पड़ रहा है। जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुद्ध पानी तक पहुंच और साफ-सफाई, संबंधी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं। नतीजा सामने आ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का संकट गहराने लगा है। पेयजल संकट से दुनिया का एक बड़ा हिस्सा जूझ रहा है। औद्योगीकरण की राह पर चलती दुनिया में साफ पानी का संकट कोने-कोने में पसर चुका है, जिससे पूरी दुनिया में पानी का संकट विकराल रूप ले चुका है। भले दुनिया विकास कर रही है, लेकिन साफ पानी मिलना कठिन हो रहा है। एशिया में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लेकर अफ्रीका में केन्या, इथियोपिया और सूडान जैसे देश साफ पानी की कमी से जूझ रहे हैं।

तीसरी दुनिया के देशों की खराब हालत के पीछे एक बड़ी वजह साफ पानी की कमी भी है। जब से जल संकट के बारे में विश्व में चर्चा शुरू हुई, एक जुमला चल निकला कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। सचमुच, अब पानी संबंधी चुनौतियां गंभीर हो गई हैं।

मतलब साफ है कि जिस तरह दुनिया लोगों और उनकी जरूरतों से भरती जा रही है, पानी के स्रोत खाली होते जा रहे हैं।इसलिए जरूरी है कि अपनी जरूरतों का हिसाब रखना। पानी का संचयन करना, संरक्षण करना, वरना वह दिन दूर नहीं जब यह जीवनदायिनी पानी तबाही का कारण बन जाएगा।

आज भारत समेत विश्व के अधिकांश देशों के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। चिंता की वजह साफ है। दरअसल, धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। उस पानी का इंसान ने अंधाधुंध दोहन किया है।

नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम रासायनिक तत्वों की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा हुआ है, उसे अब हम अपनी अमानत समझ कर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं। लेकिन भारत में अभी भी कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां आज भी कितने ही लोग साफ पानी के अभाव में या फिर रोगजनित गंदे पानी पीकर दम तोड़ रहे हैं।

राजस्थान, जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में बेशकीमती है पीने का पानी, इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई-कई किलोमीटर चलकर इन प्रदेशों की महिलाएं पीने का पानी लाती हैं। इनकी जिंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है।

भले नदियों की सफाई और उन्हें प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकारी और गैरसरकारी कई संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन यह सब कसरत ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है। संसार इस समय जहां अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में व्यस्त है, वहीं पानी, खाद्य और ऊर्जा की पारस्परिक निर्भरता की चुनौतियां का सामना हमें करना पड़ रहा है।

जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुद्ध पानी तक पहुंच और साफ-सफाई, संबंधी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं। नतीजा सामने आ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का संकट गहराने लगा है। पेयजल संकट से दुनिया का एक बड़ा हिस्सा जूझ रहा है।

दरअसल, जल के घटते स्तर का प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग को बताया जाता है, वनों का सफाया, वर्षा का अभाव या आवश्यकता से कम होना या फिर अतिवृष्टि के कारण विनाश, बढ़ती आबादी, उपलब्ध संसाधनों का अनियोजित दोहन या उपलब्ध साधनों का प्रयोग ही न होना।

यह ठीक है कि जल जैसे दुर्लभ और अमूल्य पदार्थ के प्रति आम लोगों को जागरूक बनाने के नाम पर अरबों खर्च किए जाते हैं, लेकिन जल संकट को हल करने की बात दो दूर रही, हर साल इस संकट की गहनता बढ़ती जा रही है।

सरकार जल के समुचित प्रयोग, संरक्षण पर योजनाएं बनाती हैं, योजनाओं के निर्माण में पानी की तरह धन बहाया जाता है, लेकिन सब खोखले सिद्ध हुए हैं। भारत में समस्या पानी की उपलब्धता की उतनी नहीं है जितनी कि उसके ठीक से प्रबंधन की है।

पानी के बारे में एक नहीं, कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। विश्व में और विशेष रूप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं उस पर जागरूकता से ध्यान देकर पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। साथ ही, अनेक तथ्य ऐसे हैं जो हमें आने वाले खतरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और पानी के महत्व और इसके अनजान स्रोतों की जानकारी भी देते हैं।

विश्व के डेढ़ अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। एशिया और अफ्रीका के कई हिस्सों में आज भी महिलाएं पानी लेने के लिए रोज औसतन छह किलोमीटर पैदल चलती हैं। पानी की कठिनाइयां झेल रही कुल आबादी का सत्रह फीसद भारत में है। भारत में तेजी से घटते जलस्रोतों से मानव के समक्ष पेयजल की समस्या पैदा हो गई है।

अंधाधुंध दोहन से बढ़ता जल संकटआज भी एक-तिहाई लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। विश्व का सिर्फ चार फीसद साफ पानी ही देश में है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि जल संपदा का दोहन मौजूदा रफ्तार से ही होता रहा तो 2027 तक दुनिया में 270 करोड़ लोगों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा। इनके अलावा 250 करोड़ लोगों को कठिनाई से पेयजल उपलब्ध हो सकेगा। भावी संकट के लिए जल संसाधन के कुप्रबंधन, बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार माना गया है।

समय आ गया है कि अब हम वर्षा का पानी अधिक-से-अधिक बचाने की कोशिश करें, क्योंकि जल का कोई विकल्प नहीं है, इसकी एक-एक बूंद अमृत है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। अगर अभी पानी नहीं सहेजा गया तो आगे चल कर स्थिति भयावह हो सकती है।

कहा जाता था कि भारत की गोदी में हजारों नदियां खेलती थीं। आज वे नदियां हजारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहां गईं वे नदियां, कोई नहीं बता सकता। गांव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है। यही वजह है कि नदियां सूख रही हैं। जमीनी जल तेजी से नीचे सरक रहा है।

वैश्विक तपन और जलवायु परिवर्तन की वजह से तेजी से पिघलते ग्लेशियर भी आने वाले खतरे का संकेत दे रहे हैं। काफी हद तक जल के दुरुपयोग ने भी समस्या को बढ़ाया है। यही नहीं, पेयजल की गुणवत्ता भी यथेष्ठ नहीं है। पानी हमारे आने वाले कल के लिए भी उतना ही अहम होगा जितना कि हमारे आज के लिए है। इसलिए हमें पानी का मोल समझना होगा।

ईमेल : ravishankar.5107@gmail.com

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