पानी की उपलब्धता बढ़ाए बिना वादों पर अमल मुश्किल

12 Jan 2014
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अभी चुनौती पानी के लिए दिल्ली की दूसरे राज्यों पर पानी की निर्भरता कम करने की है। मुश्किल से सवा सौ एमजीडी पानी ही दिल्ली में अपने माध्यम से जुट पाता है। बड़ी चुनौती तो पुराने पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित करने की है। बरसाती पानी का संरक्षण बड़े संस्थानों, होटल, स्कूल व कॉलेज आदि में सही मायने में करवाया जा रहा है, इसमें ज्यादा कड़ाई की जाए। दिल्ली के नीचे जा रहे जल स्तर को रोकने के लिए केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने पुराने नौ जिलों में से सात जिलों में भूजल के दोहन रोकने के आदेश जारी कर दिए। आम आदमी पार्टी (आप के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पहल पर टैंकर माफिया पर अंकुश लगाने के लिए बने स्पेशल टास्क फोर्स ने काम करना शुरू कर दिया है। बुधवार को दिल्ली जल बोर्ड ने दक्षिणी दिल्ली में कार्रवाई भी की। इससे पूरी दिल्ली में एक संदेश तो चला ही गया। जल बोर्ड के पास एक हजार से ज्यादा पानी के टैंकर हैं जिनसे झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों और उन कालोनियों और गाँवों में पानी दी जाती है। जहां पानी की लाइन नहीं डली है। दिल्ली में एक तो पानी की उपलब्धता कम है, दूसरे करीब 35 फीसद पानी लीकेज और चोरी में चला जाता है।

दो तिहाई दिल्ली में हर रोज दो घंटे भी पानी नहीं आ पाता है, ऐसे में केवल टैंकर माफिया पर लगाम लगा कर हर घर को हर रोज 700 लीटर पानी मुफ्त देने का मुख्यमंत्री का वादा आसानी से पूरा नहीं हो पाएगा। इसके साथ-साथ पानी की उपलब्धता बढ़ाना पानी की चोरी और लीकेज कम करने के साथ-साथ पानी का वितरण सही तरीके से करना होगा। इतनी ही नहीं बोर्ड को घाटे से उबारने के चल रहे प्रयासों को बेहतर तरीके से कमजोर आय वर्ग के लोगों को राहत देते हुए जारी रखना भी जरूरी है।

दिल्ली के उन इलाकों में पानी की लाइन डलवाने की भी नई सरकार के सामने चुनौती है, जहां अभी लाइन नहीं डली है। पिछली सरकार ने जिन 1639 कालोनियों को नियमित करने के प्रयास शुरू किए थे और 895 को नियमित करने की घोषणा कर दी थी उनमें से करीब आठ सौ कालोनियों में बगैर मकान तोड़े पानी की लाइन डल ही नहीं सकती है। फिर भी सरकार अपने लक्ष्य को पूरा करने की अगर कोशिश करेगी तो काफी पानी की जरूरत पड़ेगी। पिछले 15 सालों में पानी की उपलब्धता 545 एमजीडी (मिलियन गैलन रोज) के मुकाबले 835 एमजीडी हो गई है। उसी के साथ अब कनेक्शन भी बढ़कर 19.6 लाख हो गए हैं। जिन 70-75 फीसद दिल्ली में जल बोर्ड के कनेक्शन हैं उनकी मांग एक हजार एमजीडी से ज्यादा है।

बोर्ड के अधिकारी स्वीकारते हैं कि पानी लीकेज करीब 35 फीसद है। यह अंतरराष्ट्रीय मानक 15 फीसद से करीब दो गुणा है। पानी चोरी रोकने और अवैध पंप लगाकर पानी खींचने वालों के खिलाफ अदालत ही सख्त हुई और पहली बार दो साल पहले दिल्ली में चार पानी अदालतों का गठन हुआ। इसने लाखों रुपए जुर्माने लगाए। टैंकर माफिया पर कठोर कार्रवाई होने से दो फायदे होंगे। एक तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। दूसरे भूजल का अवैध दोहन रुकेगा। यह उन इलाकों में ज्यादा होता है जहां जल स्तर ज्यादा नीचे जा रहा है। इससे जल स्तर नीचे जाने से रुकेगा और बोर्ड पर उन इलाकों में पानी उपलब्ध कराने के लिए दबाव पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने जिस तरह से जल बोर्ड में भारी पैमाने पर तबादले किए हैं उससे भी बोर्ड के कामकाज पर असर पड़ेगा।

जल बोर्ड के अधिकारी मानते हैं कि पुराने पाइप बदलने, पंप से की जाने वाली चोरी रोकने, मीटर लगाने आदि से लीकेज कम हो सकते हैं। चूंकि पानी की लाइनें जमीन के भीतर से जाती हैं इसलिए लीकेज का पता लगने में काफी समय लग जाता है। पानी की लाइनें काफी पुरानी हो गई हैं। कुल 12000 किलोमीटर मुख्य लाइनों को बदलने का काम तभी शुरू हुआ। हर साल तीन हजार किलोमीटर लाइन बदली जा रही है। यह काम दो साल में पूरा हो जाएगा। पुरानी दिल्ली यानी शाहजहांनाबाद की पूरी मुख्य लाइनें बदल दी गई हैं। यह दिल्ली का पांचवां हिस्सा है। इस इलाके में 1935-36 में लाइनें डाली गई थीं। मुख्य लाइन बदलने से लीकेज कम होंगे और पानी साफ होने के साथ तेज बहाव से आएगा जिससे पानी नहीं रुकेगा और दोबारा लीकेज कम होगा।

पानी बाहर से लाना लगातार कठिन होता जा रहा है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी पानी के लिए हाहाकार मच रहा है। तय समझौते के बावजूद हरियाणा डेढ़ दशक में मुनक नहर का काम पूरा नहीं किया। दिल्ली को ताजेवाला बांध मुनक नहर से 85 एमजीडी पानी आना है। पक्का नहर न बनने के चलते काफी पानी रास्ते में बर्बाद हो जाता है। हरियाणा को दिल्ली से पैसे लेकर इसे बनाना था। शुरुआत 160 करोड़ से हुई और अब तक 404 करोड़ देने के बावजूद महज 400 मीटर बाकी रख कर 150 करोड़ की मांग की जा रही है। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए दो-दो जीओएम (मंत्रियों का समूह) बना लेकिन अभी तक मुद्दा नहीं सुलझा मुनक नहर से पानी आने की उम्मीद में दिल्ली में तीन जल शोधन संयंत्र बना दिए गए। वे कई साल से पानी के इंतजार में हैं। इसी बीच पानी का वितरण ठीक करने के नाम पर नांगलोई, वसंत विहार और मालवीय नगर में वितरण का काम सरकार ने निजी हाथों में सौंप दिया। नई सरकार इस मुद्दे को किस तरह से हल करेगी वह अभी देखना है।

अभी चुनौती पानी के लिए दिल्ली की दूसरे राज्यों पर पानी की निर्भरता कम करने की है। मुश्किल से सवा सौ एमजीडी पानी ही दिल्ली में अपने माध्यम से जुट पाता है। बड़ी चुनौती तो पुराने पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित करने की है। बरसाती पानी का संरक्षण बड़े संस्थानों, होटल, स्कूल व कॉलेज आदि में सही मायने में करवाया जा रहा है, इसमें ज्यादा कड़ाई की जाए। दिल्ली के नीचे जा रहे जल स्तर को रोकने के लिए केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने पुराने नौ जिलों में से सात जिलों में भूजल के दोहन रोकने के आदेश जारी कर दिए। प्राधिकरण ने साल 2000 में दिल्ली के दक्षिणी और पश्चिमी जिलों को गंभीर क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया। मार्च 2006 में अधिसूचना के माध्यम से पूर्वी जिला, नई दिल्ली जिला, उत्तर पूर्वी जिला और पश्चिम जिला को अत्यधिक दोहन वाला क्षेत्र घोषित करके जल दोहन पर रोक लगा दी। इस पर कानून बनाने के लिए दिल्ली विधानसभा में दिल्ली जल बोर्ड (संशोधन) विधेयक, 2005 लाया गया। इसे भारी विरोध के चलते प्रवर समिति को भेजा गया फिर समिति ने दो फरवरी 2006 को उसे रद्द कर दिया।

दिल्ली को अन्य राज्यों की तरह यमुना के पानी में हिस्सा दिल्ली विधानसभा बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के प्रयास से 1994 में मिला। दिल्ली को 808 क्यूसेक पानी दिया जाना तय किया गया जो आज तक नहीं मिला। दिल्ली जल बोर्ड ने जो 2021 का पानी का मास्टर प्लान बनाया है उसके हिसाब से दिल्ली को तब 1840 एमजीडी पानी की जरूरत होगी। तब के लिए अभी के स्रोतों के अलावा हिमाचल प्रदेश के रेणुका बांध से 275 एमजीडी पानी मिलने की उम्मीद है। यानी दिल्ली की नई सरकार के लिए जो बड़ी चुनौतियाँ हैं उनमें सभी दिल्लीवासियों को पानी उपलब्ध करा पाना प्रमुख है।

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