पानी में ईंधन

21 Aug 2016
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कई सूक्ष्मजीव ऐसे हैं, जो हाइड्रोजन सल्फाइड नामक गैस का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं। यह गैस समुद्र की गहराई में बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। हाइड्रोजन साल्फाइड का ऑक्सीकरण करने के लिये इन सूक्ष्मजीवों के लिये जरूरी होता है कि उन्हें समुद्री पानी में विलय ऑक्सीजन मिलती रहे, जो सल्फाइड के विघटन से उत्पन्न हुए इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करे। यही तरीका हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में बनाते वक्त शायद अपनाया जाये, ऐसी सम्भावना है? जी हाँ, पानी में आग मसलन पानी में ईंधन मिलने की वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है। शुरुआत में वैज्ञानिक खोजें, अविश्वसनीय जरूर लगती है, लेकिन अन्ततः ये खोजें हकीकत के रूप में सामने आकर मानव जीवन को सरल और सुविधायुक्त बनाने का ही काम करती हैं। इसी दिशा में अभिनव तलाश जारी है।

समुद्र की तलहटी में भविष्य के ईंधन के रूप में हाइड्रोजन गैस बड़ी मात्रा में समाई हुई है। इस गैस में अग्नि अन्तर्निहित है। इसी आग को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के उपाय वैज्ञानिक तलाश रहे हैं।

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने समुद्र के गर्भ में हाइड्रोजन गैस का विशाल भण्डार होने का अनुमान जताया है। समुद्र तल में मौजूद चट्टानों में इसके होने की सम्भावना है। हाइड्रोजन का भण्डार मिलने की स्थिति में ईंधन के इस्तेमाल के मौजूदा तरीके और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं।

वैसे भी इस समय दुनिया बढ़ती जा रही आबादी के फेर में स्वच्छ जल, उचित आहार, पर्यावरण के अनुकूल ईंधन और धरती के अलावा रहने लायक नए ग्रह तलाशने में लगी है। इस कड़ी में यदि समुद्र के भीतर हाइड्रोजन के बड़े भण्डार उपलब्ध हैं और उन्हें ईंधन के रूप में इस्तेमाल करना सम्भव हो रहा है तो यह ईंधन की समस्या से निदान की दिशा में एक उपयोगी खोज है।

अमेरिका के ड्यूक विवि के शोधकर्ताओं के अनुसार, समुद्र तल के नीचे टेक्टॉनिक प्लेट के फैलाव में आई तेजी के कारण बनी चट्टानों में मुक्त हाइड्रोजन गैस का विपुल भण्डार होने की सम्भावना है। वैज्ञानिक पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत के लिये मुख्य रूप से हाइड्रोजन गैस की उपस्थिति को जिम्मेदार मानते हैं।

समुद्र में हाइड्रोजन गैस मिलने पर जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला और पेट्रोलियम पदार्थों के स्थान पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। हाइड्रोजन गैस की यह खूबी है कि इसके दहन पर कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता है। इसलिये यह उम्मीद भी जताई जा रही है कि इसका उपयोग शुरू होने पर ग्लोबल वार्मिंग की गम्भीर होती जा रही समस्या से निपटने में भी आसानी होगी।

शुरुआती अध्ययनों में टेक्टॉनिक प्लेट में मन्द गति से फैलाव के कारण हाइड्रोजन गैस के निर्माण की बात कही गई थी। ताजा शोध इसके उलट हैं। नए अनुसन्धान में समुद्र तल के नीचे हाइड्रोजन गैस की मात्रा को टेक्टॉनिक प्लेटों में फैलाव की गति और चट्टान की मोटाई के अनुपात में मापा गया है। वैसे भी विज्ञानियों का मानना है कि ब्रह्माण्ड में मौजूद सभी तत्वों के द्रव्यमान की दृष्टि से लगभग 75 प्रतिशत सिर्फ हाइड्रोजन है। सभी तत्वों के कुल परमाणुओं में से करीब 90 फीसदी हाइड्रोजन परमाणु हैं।

सभी मन्दाकनियों, तारों और ग्रहों में हाइड्रोजन बड़ी मात्रा में समाहित है। इनका निर्माण भी आणविक हाइड्रोजन से निर्मित गैसीय बादलों से हुआ है। तारों की चमक के रूप में जो ऊर्जा हमें दिखाई देती है, उसके उत्सर्जन में भी हाइड्रोजन के परमाणुओं की अहम भूमिका अन्तर्निहित रहती है।

ऊर्जा के इस उत्सर्जन से हाइड्रोजन परमाणुओं का संलयन होता है, जिसमें हीलियम नामक तत्व के परमाणु बनते हैं। ब्रह्माण्ड का ज्यादातर हिस्सा निष्क्रिय हाइड्रोजन परमाणुओं से भरा है। लेकिन यह बड़ी मात्रा में जल तथा अन्य हाइड्रोकार्बन जैसे यौगिकों के घटक के रूप में भी रहता है।

जीव-जन्तुओं में भी इसकी मौजदूगी आवश्यक रूप में रहती है। अनेक तरह के ऐसे सूक्ष्म जीव हैं, जो हाइड्रोजन पैदा करने की क्षमता रखते हैं।

वैज्ञानिकों ने समुद्र की गहराई में जीवित सूक्ष्म जीव खोजे हैं। ये जीव समुद्र की तलहटी में आग्नेय चट्टानों से बनी मिट्टी में जीते हैं। ये जीव पानी के भीतर कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बनिक पदार्थ में बदलने के लिये हाइड्रोजन का उपयोग करते हैं। इस प्रक्रिया को कीमोसिथेंसिस कहते हैं।

डेनमार्क स्थित और्हस विवि के इकॉलॉजिस्ट मार्क लीवर का मत है कि यदि इसी के समान सूक्ष्म जीव हर जगह पाये गए, तो यह परत धरती पर पहला बड़ा ऐसा परिस्थितिकी तंत्र होगा, जो सूर्य के प्रकाश की बजाय, रासायनिक ऊर्जा से चलता है। इससे पता चला है कि समुद्र की गहराइयों के जैव-मण्डल में अनॉक्सी सूक्ष्म जीवों की अच्छी-खासी आबादी है।

वैज्ञानिकों की धारणा है कि जब टेक्टॉनिक प्लेटों का उठता लावा ठंडा होता है, तब ज्यादातर बेसाल्ट की नवनिर्मित चट्टानें मोटी तलछट के नीचे दब जाती हैं। इन्हीं बेसाल्ट चट्टानों पर और इन्हें ढँकने वाली तलछट पर सूक्ष्म जीवों का संसार बस जाता है। इस तरह सतह पर सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को प्रमाणित करने के लिये वैज्ञानिकों ने लगभग 35 लाख वर्ष पहले बने बेसाल्ट के नमूने एकत्रित किये।

इन नमूनों में शोधार्थियों ने ऐसे सूक्ष्मजीवों के जींस पाये, जो गंधक के यौगिकों और हाइड्रोजन उपयोग करते हैं और कुछ ऐसे थे, जो मिथेन उत्पन्न करते हैं। कुछ प्रयोगों से यह भी पता चला कि ये जींस जीवित सुक्ष्मजीवों के हैं। इन्हीं प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ कि समुद्र की सतह में हाईड्रोजन के विशाल भण्डार हैं।

शोधार्थियों ने पाया है कि समुद्री सतह के बैक्टीरिया अत्यन्त सूक्ष्म नैनो-तारों से एक-दूसरे से जुड़े व गुथे रहते हैं। इन महीन प्रोटीन-तन्तुओं में इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान हो सकता है। इस तरह बैक्टीरियाओं की पूरी आबादी एक महाजीव की तरह काम करती है। और्हस विवि के पीटर निएल्सन और उनके दल ने यह खोज की कि सूक्ष्मजीव लम्बी दूरियों तक एक तरह विद्युतीय सहजीवों के समान रह सकते हैं।

इसका कारण है कि कई सूक्ष्मजीव ऐसे हैं, जो हाइड्रोजन सल्फाइड नामक गैस का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं। यह गैस समुद्र की गहराई में बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। हाइड्रोजन साल्फाइड का ऑक्सीकरण करने के लिये इन सूक्ष्मजीवों के लिये जरूरी होता है कि उन्हें समुद्री पानी में विलय ऑक्सीजन मिलती रहे, जो सल्फाइड के विघटन से उत्पन्न हुए इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करे। यही तरीका हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में बनाते वक्त शायद अपनाया जाये, ऐसी सम्भावना है?

ऐसा सम्भव हो पाता है तो समुद्र की तलहटी में हाइड्रोजन के जो विशाल भण्डार हैं, वे वाकई न केवल मानव-उपयोगी साबित होंगे, साथ ही धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने का काम भी आश्चर्यजनक ढंग से करेंगे। समुद्र का जो खारा पानी अब तक आसानी से पीने लायक भी नहीं बन पाया है, उसके गर्भ में समाई हाइड्रोजन ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने लायक परिवर्तित कर ली जाती है, तो यह समुद्र की मनुष्य के लिये बड़ी देन होगी।

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