पानी-पानी

31 Jul 2016
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इधर देश में जगह-जगह विचित्र घटनाएँ घट रही हैं। ऐसी जो किसी ने न पहले देखी, न सुनी। देश भर की अनगिनत जगहों से विचित्र किन्तु सत्य घटनाओं की रिपोर्टिंग हो रही है। साधारण पत्रकारों की तो क्या बिसात, वरिष्ठ विज्ञान पत्रकार तक आश्चर्यचकित हुए जा रहे हैं।

सबसे पहले इस तरह की खबर पानीगाँव से आई। वहाँ के संवाददाता ने लिखा कि इस बार यहाँ बारिश बिल्कुल अलग पैटर्न से हो रही है। अधिकांश खेत सूखे और कुछ तरबतर। कई छतें वैसी कि वैसी और कुछ पर बहते परनाले।

दूसरी खबर पानीपत के संवाददाता ने भेजी कि यहाँ अधिकांश लोग स्वस्थ हैं लेकिन जो लोग त्रस्त हैं वे महात्रस्त हैं। उनको कुएँ का पानी पीते ही मुँह में छाले हो जा रहे हैं। यहीं नहीं कुछ लोगों को पीने पर पानी का स्वाद कसैला लग रहा है।

चौथी खबर जलगाँव से आई। वहाँ कुछ लोग नहाकर भी चिपचिपाहट की शिकायत करते पाये गए। नहाने पर भी शरीर साफ नहीं हो रहा ऐसा भी कुछ लोगों ने कहा।

दिल्ली में बैठी नेटवर्क मीडिया की विज्ञान टीम हैरान परेशान है। टीम लीडर मुख्य सम्पादक नितेश उपाध्याय ने अत्यावश्यक मीटिंग बुलाई है। एजेंडा है उन हैरतअंगेज खबरों की मीमांसा करना जो लगातार देश के कोने-कोने से आ रही हैं। अजीबो-गरीब और अविश्वसनीय खबरें!

नितेश (वरिष्ठ मीडिया अधिकारी) ने कहा- ‘कोई भी केवल सुने पर खबर न बनाए। खबर तथ्य और ऑडियो के साथ हो तो भी जाँच उपरान्त ही संवाददाता विचित्र खबर फीड करें।’

‘यस सर, शुरू में हमने यही माना कि छोटी-छोटी जगहों के संवाददाता खुद को नोटिस में लाने के लिये बे सिर पैर की खबरें मेल कर रहे हैं। अतः हमने उन पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन अब तो खबरें आ रही हैं और न सिर्फ आ रही हैं उनकी प्रामाणिकता और फ्रीक्वेंशी भी बढ़ गई है।’

‘क्या इन खबरों की किसी ने जाँच की है।’

‘हाँ सर, दीपेन्द्र ने की है।’

‘कहाँ है वह?’

‘सर, वह पुनः जाँच में लगा हुआ है।’

‘बुलाओ उसे कि वह अपनी जाँच प्रस्तुत करे।’

दीपेन्द्र को बुलाया गया।

दीपेन्द्र, हमने सुना है तुमने विचित्र खबरों की जाँच की है। क्या तुम्हें कोई पैटर्न या प्रमाण मिले हैं।’

‘यस सर, दौ पैटर्न मिले हैं। पहला तो यह कि कमोबेश सारी विचित्र खबरें पानी से सीधे-सीधे या प्रकारान्तर से जुड़ी हैं।’

‘अच्छा और दूसरा?’

‘दूसरा यह कि सर हम प्राप्त खबरों को दो खण्डों में रख सकते हैं। एक पानी के अति मेहरबान होने की खबरें और दूजे पानी के नाराज होने की खबरें।’

‘सर, मुझे लगता है पानी और जमीन में कुछ साँठ-गाँठ हुई है।

इन रिपोर्ट को पढ़कर ऐसा भी लग रहा है कि धरती के गुरुत्वाकर्षण के भी कान भरे गए हैं।’

‘सर, एक उपाय है। यदि हम पानी के महाअणु को मीटिंग में बुलाएँ और सीधे उसी से पूछें कि आखिर पानी चाहता क्या है तो बात बन सकती है।’

‘कहाँ रहता है पानी का महाअणु, क्या वह हमारे बुलाने से आएगा और हमसे बात करेगा?’

‘क्यों नहीं सर, जब इन सभी विचित्र घटनाओं की जड़ में पानी है तो सिर्फ वही हमें कारण बता सकता है और कोई नहीं।’

सुदूर असम से मेघ मल्हार राग के विख्यात गायक को बुलाया गया। उन्होंने जो राग मल्हार छेड़ा तो क्या छेड़ा! गाया तो क्या गाया! अलापा तो क्या अलापा कि विज्ञान पत्रकार जो जहाँ जैसे खड़ा या बैठा था वैसा ही मंत्रमुग्ध सा खड़ा या बैठा ही रह गया।

यकायक कांफ्रेंस हॉल की काँच की छत फटी। पानी की मोटी धार गिरी और मानवाकार रूप में रूपान्तरित हो गई। उपस्थित पत्रकारों को लगा मानो साक्षात इन्द्र देवता अवतरित हो गए हैं। आकृति ने स्वयं ही कहा।

‘मैं पानी का महाअणु हूँ। मुझे क्यों बुलाया गया है। पूछो, मुझसे क्या पूछना चाहते हो।’

‘सर, पूरे देश में विचित्र-विचित्र घटनाएँ हो रही हैं। कमोबेश सभी आप से सम्बन्धित हैं।’

‘यही ना कि इस बार बारिश भयंकर पैबन्दी पैटर्न में हो रही है। पानी का बहना, रिसना अजीब हो गया है। उसका रंग, गंध व स्वाद भी भिन्न-भिन्न लोगों को अलग-अलग महसूस हो रहा है।’

यस सर यस सर! महाअणुजी आपने बिल्कुल सही फरमाया। हम यही जानना चाहते हैं कि हम समाज को इन विचित्र घटनाओं का क्या वैज्ञानिक उत्तर दें? यह जरूरी है सर, नहीं तो अन्धविश्वास का बोलबाला और बढ़ जाएगा। कृपया आप हमें बताएँ कि ऐसा क्यों हो रहा है?

‘अभी आपके संगीतमय बुलावे के पहले मैं हिमालयीन जल परिषद की अध्यक्षता कर रहा था। पता है वहाँ विवाद का विषय क्या था? वहाँ विवाद का विषय यह था कि इस गुरूर ग्रस्त मानव को पानी की ताकत समझाने का तरीका क्या हो? यह तो आप लोग कहते-फिरते हो कि तीसरा विश्वयुद्ध यदि हुआ तो वह पानी को लेकर होगा। क्या इस सम्भावना को जानकर भी मनुष्य डरा? उसने कुछ एहतियात बरती, नहीं ना।’

हिमालय जल परिषद में अपने-अपने महाअणुओं को सम्भाले, सारी दुनिया की प्रतिनिधि जल बूँदें बहसरत थीं। हजारों साल से जमी एक शिवलिंगी बूँद ने आँख खोली और कहा।

‘यह क्या कोहराम मचा रखा है आप लोगों ने। मैं क्या-क्या सुन रहा हूँ। क्या जल को यह सब करना शोभा देता है।’

‘क्या करें मनुष्य को कड़ा सबक सिखाने का समय आ गया है। अभी भी अगर अपना रौद्र रूप नहीं दिखाएँगे तो कब दिखाएँगे।’

‘देखो समझाओ मनुष्य को, लेकिन प्यार से।’

‘नहीं मनुष्य ने प्यार की भाषा समझना छोड़ दिया है। लातों के भूत बातों से नहीं मानते।’

‘मेरा यह मानना है कि अपने मूलभूत गुणों को बदल कर समझाने की कोशिश व्यर्थ होती है, ऐसा मत करो।’

‘ऐसे तो हो चुका सुधार! सजा के प्रावधान के बिना कोई नियम लागू कर पाना दिवास्वप्न है। कितनी सदियाँ लग जाएँगी।’

‘देखो नाराज और निराश मत हो। एक बात अच्छे से जान लो मनुष्य को सबक सिखाने के नाम पर यदि तुम अपने मूलभूत प्राकृतिक गुणों को विपरीत दिशा में सप्रयास मोड़ोगे तो तुम्हें बहुत ऊर्जा खर्च करनी होगी। धीरे-धीरे तुम ऊर्जा हीन होते जाओगे और यदि अपने गुणों पर बने रहोगे और मनुष्य को उसकी भूल का अहसास अपने मूलभूत प्राकृतिक गुणों के साथ ही अहसास कराओगे।’

‘सदियों से यही तो करते आ रहे हैं। मन तो नहीं है करने का, पर आप के कहने से एक बार और सही।’

‘धन्यवाद दुनिया भर की जल बूँदों। दिल से मिशन चलाओ और कामयाब हो जाओ। तथास्तु!’

सब विज्ञान पत्रकारों ने जल परिषद की बहस सुनी। दीपेश ने महाअणु से जानना चाहा - ‘पानी यह पता कैसे लगाता है कि कौन पानी का अपव्यय कर रहा है और कौन किफायत से उपयोग?’

‘हमारी अपनी अणु-से-अणु की कोडिंग-डी-कोडिंग तकनीक है। हमें सब पता होता है। लेकिन विस्तार को मैं यहाँ बताऊँगा नहीं। हम पाँच तत्वों के अपने-अपने गुप्त रहस्य हैं जो हमें ही पता हैं। अभी तो सिर्फ पानी ने अपनी पहली पाठशाला खोली है। नभ, थल, अग्नि और वायु भी अपने-अपने पाठ बना रहे हैं।’

‘हे मानव, अति हर चीज की बुरी होती है। संसाधनों का अतिदोहन तूने चरम पर पहुँचा दिया है। पानी अपने मूलभूत गुणों के साथ उसी मानव को नसीब होगा जो पानी का मोल पहचानता है जो मोल नहीं पहचानता उसके साथ पानी मूलभूत गुण नहीं दर्शाएगा। क्या, क्यों, कैसे का बस इतना ही रूपान्तरित सिद्धान्त है। यह अडिग है। अब यही शाश्वत है। आगे जरूरत पड़ी तो इससे भी कठोर सिद्धान्त बनेंगे। न सिर्फ पानी को लेकर बल्कि सभी पंचतत्वों को लेकर।

तभी झूम-झूम की आवाज हुई और पानी के महाअणु की आकृति डोम तोड़ती हुई आकाश में समा गई।

नितेश ने कहा ‘कोई संशय? कोई प्रश्न?’

‘नो सर, पानी ने हमें पानी-पानी कर दिया। अब हम पानी के सन्देश या कहें अन्तिम चेतावनी को देश के कोने-कोने में फैला देंगे (सभी पत्रकार एक साथ बोल उठे)।’

 

 

सम्पर्क सूत्र :


श्री किसलय पंचोली,
एफ-7, रेडियो कालोनी इंदौर 452001 (म. प्र.)

 

 

 

 

 

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