पानी पंजाब का, रोगी राजस्थान के

23 Aug 2011
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अब नदियां जीवन नहीं मौंत देती हैं
अब नदियां जीवन नहीं मौंत देती हैं

नदियां दिलों को जोड़ती हैं, नदियां दो संस्कृतियों का मेल कराती हैं, नदियां परस्पर भाईचारा बढ़ाती हैं, नदियां देश की जीवन रेखा होती हैं, इन तमाम जुमलों से हटकर यदि यह कहा जाए कि नदियां दूसरे राज्यों के लोगों को बीमारी बनाती हैं, उन्हें कैंसर की बीमारी देती हैं, लोगों को मौत के मुहाने तक पहुंचाती हैं, तो अतिशयोक्ति न होगी। आपका सोचना सही है कि नदियों के बारे में ऐसा कहना उचित नहीं है। पर सच यही है कि पंजाब की दो नदियां सतलुज और व्यास के पानी से पंजाब के लोगों को जो नुकसान हो रहा है, वह तो हो ही रहा है, पर उससे सुदूर राजस्थान के कई गांवों के लोग कैंसर ग्रस्त हो रहे हैं, बीमार पड़ रहे हैं, कई लोग मौत के मुहाने तक पहुंच गए हैं। ये नदियां भले ही पंजाब में पूजनीय हों, पर गंगा की तरह ये भी देश की प्रदूषित नदियों में शामिल हो गई हैं। भविष्य में ये नदियां पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित होंगी। यह तय है, पर देश के नेताओं में इतनी दूरदर्शिता कहां, जो इस खतरे को भांप सके।

राजस्थान के हनुमानगढ़, गंगानगर, सूरतगढ़ आदि जिलों में पिछले कुछ वर्षों से चर्मरोग, हेपेटाइटिस बी और कैंसर के मामलों में तेजी आई। अचानक इन रोगों के बढ़ने का कारण वहां के डॉक्टर भी समझ नहीं पाए। मामला लगातार पेचीदा होता जा रहा था। अचानक हनुमानगढ़ के एक जागृत वकील ने स्थानीय वैज्ञानिकों की मदद से जांच की तो पता चला कि यह रोग केवल उन्हें ही है, जो पेयजल के लिए नदी का पानी इस्तेमाल करते हैं। वकील ने पहले तो स्थानीय लोक अदालत में अर्जी की उसके बाद यह पता लगाया कि आखिर इन नदियों का पानी कहां से और किस नदी से आ रहा है। तब पता चला कि ये पंजाब की सतलुज और व्यास नदियों का पानी है। ये दोनों नदियां पंजाब की सबसे अधिक प्रदूषित नदियां हैं। जब पंजाब में इन नदियों के प्रदूषण के बारे में पता लगाया गया, तो यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वहां तो पहले से ही बाबा सीचवाल यानी बलवीर सिंह सीचवाल ने आंदोलन चलाया हुआ है। उनकी दलील है कि सतलुज और व्यास ये दो ऐसी नदियां हैं, जिसका पानी इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि इसके सेवन से कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

ये नदियां दक्षिण पंजाब के सैकड़ों ग्रामीणों को रोगग्रस्त कर इंदिरा केनाल से मिलकर दो हजार किलोमीटर दूर राजस्थान पहुंच जाती हैं और वहां के लोगों को कई बीमारियों से ग्रस्त कर रही हैं। बाबा सीचवाल ने इस खतरे को पहले ही भांप लिया और उन्होंने इन नदियों के प्रदूषित पानी के खिलाफ एक मुहिम ही छेड़ दी। पहले तो पंजाब सरकार ने इसे हल्के से लिया, पर जब बाबा के समर्थकों की संख्या लगातार बढ़ने लगी, लोग उनकी एक आवाज पर सड़कों पर उतरने लगे, तब सरकार ने बाबा की मांगों पर विचार करना शुरू किया। इन दो नदियों का पानी प्रदूषित कैसे हुआ, यह जानने के लिए इन नदियों के तटीय इलाकों पर नजर डाली जाए, तो पता चलता है कि पंजाब के कई इलाकों में चमड़ा पकाने के कारखाने इन नदियों के किनारे ही स्थित हैं। चिकित्सकीय क्षेत्र में काम आने वाले कई सर्जिकल चीजें भी यहीं बनती हैं, कारखानों का गंदा पानी इन नदियों में ही मिलता है। यही नहीं काला सिंघानिया नामक ड्रेनेज लाइन द्वारा भी जहरीला पानी इन नदियों में मिलता है।

स्थानीय लोगों ने कई बार विभिन्न माध्यमों से शिकायत की, पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। तब बाबा सीचवाल सामने आए, उन्होंने इस मुद्दे को लेकर लोक आंदोलन शुरू किया। उनकी एक आवाज पर जब 20 से 25 हजार लोग उमड़ पड़े, तब सरकार का ध्यान उनकी ओर गया। स्थानीय प्रशासन चौंक उठा। प्रदूषण से लोग इतने अधिक हलकान हो सकते हैं, यह तो किसी ने नहीं सोचा था। प्रशासन कुछ करता, इसके पहले ही बाबा के समर्थक सैंकड़ों बोरी रेत काला सिंघानिया नाले पर डालकर उसे चोक कर चुके थे। प्रशासन ने जब देखा कि न केवल जालंधर बल्कि सुदूर राजस्थान के लोग इस आंदोलन से जुड़ने लगे हैं, तब सरकार की आंखें खुल गई। बाबा ने अपने समर्थकों समेत सतलुज-व्यास के पानी का नमूना संग्रहित किया। गटर के पानी से प्रदूषित इस नमूने से इतनी अधिक दुर्गंध आ रही थी कि माथा ही फट जाए। पानी का रंग लाल और नीला था। इस पानी के सेवन से कई गंभीर बीमारियां हो सकती है, यह निष्कर्ष एनजीओ के माध्यम से जल विशेषज्ञों ने डॉक्टरों की मदद से निकाला।

पंजाब और राजस्थान के करीब 100 गाँवों से कैंसर के अनेक मामले सामने आए। जब यह जानकारी लोक अदालत के सामने आई, तो अदालत नाराज हो गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब बाबा सीचवाल ने देखा कि सच को सामने लाने वाले अण्णा हजारे और बाबा रामदेव का क्या हश्र हुआ। तो उन्होंने अपने आंदोलन को राजनीतिज्ञों से दूर रखा। दोनों प्रमुख दल तैयार बैठे हैं कि बाबा उन्हें अपने आंदोलन में शामिल कर लें। अगले साल पंजाब विधानसभा के चुनाव हैं, इसलिए ये पार्टियां अभी से अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने में लगी हैं। अभी तो पाला बाबा के हाथ में है, पर उनका आंदोलन यदि राजनीति की भेंट चढ़ गया, तो संभव है, उनका भी हश्र बाबा रामदेव और अण्णा हजारे की तरह ही हो। जाते-जाते यह भी बता दें कि बाबा सीचवाल 2008 में अमेरिकी पत्रिका टाइम के हीरोज ऑफ द एनवायरमेंट की सूची में स्थान प्राप्त किया है। वे पिछले दस वर्षों से पंजाब की नदियों में तमाम उद्योगों द्वारा मिलाए जाने वाले रासायनिक और जहरीले रसायनों के खिलाफ अकेले ही संघर्ष जारी रखे हुए हैं। जब उन्होंने ड्रेनेज पाइप लाइन को चोक करने का काम किया, तो उद्योगपतियों ने उनके खिलाफ ही आंदोलन चला दिया है। विधानसभा चुनावों में अभी एक साल की देर है, पर राजनैतिक गर्माहट अभी से शुरू हो गई है। राजनीति चाहे कुछ भी हो, पर सच तो यह है कि यदि दो नदियों का पानी प्रदूषित होकर सुदूर राजस्थान के सैंकड़ों लोगों को बीमार कर रहा है, तो मामला दो रायों का हो जाता है। दोनों ही राज्य यदि इस दिशा में मिलकर काम करें, तो निश्चित रूप से कोई न कोई ऐसा समाधान तो सामने आएगा, जिससे दोनों राज्यों को लाभ मिले। इसके लिए आवश्यकता है ईमानदारी से मेहनत की जाये, बस........।
 

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