पेरिस समझौते से इंकार ट्रम्प की जिद या और कुछ


इसमें कोई संदेह नहीं कि यह पेरिस जलवायु समझौता ट्रम्प के गले की हड्डी बन चुका है, जो न तो वे उसे स्वीकार कर पा रहे हैं और न उससे पीछा छुड़ा पा रहे हैं। इसका कारण यह है कि समझौते में यह शर्त है कि इस समझौते का समर्थक कोई भी देश तीन साल तक इस समझौते से अलग नहीं हो पाएगा। इसीलिये अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र संघ को दिये नोटिस में कहा है कि अमेरिका तीन साल तक समझौते से सम्बन्धित होने वाली राष्ट्र संघ की बैठकों में तो भाग लेगा, किन्तु चर्चा से दूर रहेगा।

अब ऐसा लगने लगा है कि पेरिस में कई देशों की उपस्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर सम्पन्न जलवायु परिवर्तन समझौते को अमेरिका के जिद्दी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है और वे जल्द से जल्द इस समझौते को तिलांजलि देना चाहते हैं, जबकि समझौते के समय अमेरिका सहित विश्व के अधिकांश देशों ने इस समझौते को विश्व के हित में सर्वोपरि माना था। ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के बाद इस समझौते को आर्थिक व अन्य कारणों से अमेरिका के हित में नहीं माना और समझौते से बाहर होने की पेशकश शुरू कर दी। अब अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र संघ को एक नोटिस थमाया है, जिसमें कहा गया है कि यदि अमेरिका द्वारा प्रस्तुत संशोधनों को इस समझौते में शामिल नहीं किया तो वह इस समझौते से अपने आपको बाहर कर लेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जब इस समझौते से बाहर होने की घोषणा की थी, तब अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी काफी आलोचना भी हुई थी, किन्तु साथ ही विश्व के प्रमुख देशों ने यह भी चाहा था कि अमेरिका जैसे प्रमुख देश यदि इस समझौते से बाहर होंगे तो इस समझौते का अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर संदेश ठीक नहीं जाएगा और चूँकि इस समझौते के प्रमुख पहलकर्ताओं में भारत भी शामिल था, इसलिये सभी प्रमुख देशों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी से अनुरोध किया था कि वे ट्रम्प को मनाने का प्रयास करें और इसी पहल के तहत नरेन्द्र भाई मोदी का अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान यह प्रकरण एजेण्डे की प्राथमिकता में था, चूँकि ट्रम्प को इसकी भनक लग चुकी थी इसलिये व्हाइट हाउस में मोदी जिस होटल में ठहरे थे वहाँ ट्रम्प की भेंट के पहले ही चिट्ठी भेजकर मोदी को सूचित कर दिया था कि ट्रम्प इस बारे में मोदी से कोई बात नहीं करेंगे और इस तरह मोदी भी ट्रम्प को मना नहीं पाये, किन्तु यह चिट्ठी मिलने पर मोदी ने कुछ नाराज़गी अवश्य व्यक्त की थी, जिसका जिक्र भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पिछले दिनों राज्यसभा में यह कहते हुए किया था कि “मोदी में तो ट्रम्प को उन्हीं की धरती पर चुनौती देने का माद्दा है।”

इसमें कोई संदेह नहीं कि यह पेरिस जलवायु समझौता ट्रम्प के गले की हड्डी बन चुका है, जो न तो वे उसे स्वीकार कर पा रहे हैं और न उससे पीछा छुड़ा पा रहे हैं। इसका कारण यह है कि समझौते में यह शर्त है कि इस समझौते का समर्थक कोई भी देश तीन साल तक इस समझौते से अलग नहीं हो पाएगा। इसीलिये अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र संघ को दिये नोटिस में कहा है कि अमेरिका तीन साल तक समझौते से सम्बन्धित होने वाली राष्ट्र संघ की बैठकों में तो भाग लेगा, किन्तु चर्चा से दूर रहेगा। इस तरह यदि अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर होना ही चाहता है तो उसे कम-से-कम तीन साल तो लगेंगे ही। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने नोटिस में कहा कि अमेरिका जलवायु नीति के लिये एक ऐसे सन्तुलित दृष्टिकोण का समर्थन करेगा, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के अलावा उत्सर्जन को कम कर सके।

इधर संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने एक बार फिर अमेरिका प्रशासन से अपील की है कि वह इस समझौते की अहमियत समझे और इससे जुड़ा रहे। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एतोनियों गुंतारेस को अमेरिकी विदेश मंत्रालय का यह नोटिस मिल चुका है, उसके बाद ही उन्होंने अमेरिका से उक्त अपील की। संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों को भी यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प को इस समझौते में अपना कौन सा अहित नजर आ रहा है, जबकि 2016 में हुए इस समझौते पर अमेरिका ने उस समय अपनी पूर्ण सहमति व्यक्त की थी।

डोनाल्ड ट्रम्प की जिद की गहराई इसी से स्पष्ट होती है कि उसने अपने अभिन्न कथित मित्र और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस मुद्दे पर चर्चा करने से इन्कार कर दिया, जबकि ट्रम्प मोदी के व्यक्तित्व और उनकी प्रशासनिक क्षमता के कायल हैं। पिछले दिनों अमेरिकी थिंक टैंक ने भारत को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि “मोदी ने भारतीय प्रशासन व भारतीय जनता पार्टी को स्वर्णकाल की देहरी तक पहुँचा दिया है।” जिस देश का सर्वोच्च शासक और विदेशी मामलों के चिन्तक मोदी के बारे में ऐसी धारणा रखते हों, उसी देश का सर्वोच्च शासक मोदी से किसी विशेष मुद्दे पर बात करने से इन्कार कर दे, क्या यह अपने आप में आश्चर्यजनक नहीं है?

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