पेयजल एवं स्वच्छता सुधार में छात्रों की सहभागिता अहम

13 Aug 2013
0 mins read
वाटर एड इंडिया और सेव द चिल्ड्रेन के सहयोग से समर्थन ने एक पायलट इंटरवेंशन की पहल की है जिसके तहत छात्रों के अधिकार पर आधारित अप्रोच के द्वारा ग्रामीण इलाकों के विद्यालयों में पानी और सफाई सुविधाओं को सुनिश्चित किया जा सकता है। इंटरवेंशन एरिया और नन इंटरवेंशन एरिया में पीने के पानी की सुविधाओं की उपलब्धता में 33 फीसदी का अंतर पाया गया। “संविधान की धारा 21 (ए) के तहत 14 साल की उम्र तक बच्चों के लिए शिक्षा का अनिवार्य और निःशुल्क मौलिक अधिकार दिया गया है। जब तब राज्य द्वारा मूलभूत ढांचे का निर्माण नहीं होता, तब तक इस मौलिक अधिकार को ज़मीन पर नहीं उतारा जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए हमने 11 अक्टूबर, 2011 को राज्यों को आदेश जारी किए विद्यालयों में छात्रों और खासकर छात्राओं के लिए शौचालय की व्यवस्था की जाए। अनेक सर्वेक्षणों से यह बात सामने आ रही है कि जिन विद्यालयों में छात्रों और खासकर छात्राओं के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है, वहां अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय भेजने में झिझकते हैं।’’

यह 3 अक्टूबर, 2013 को जारी किया गया सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, जिसमें अदालत ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को 31 मार्च, 2013 तक सभी विद्यालयों में शौचालय की व्यवस्था करने के लिए कहा था। इस आदेश में विद्यालयों में पानी की उपलब्धता, सफाई की व्यवस्था और छात्रों की शिक्षा के संबंधों की ओर भी इशारा किया गया है। पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अधिकांश विद्यालयों में इन सुविधाओं के अभाव को देखा जा सकता है।

शिक्षा के अधिकार कानून के बाद समर्थन सेंटर फॉर डेवलपमेंट सपोर्ट ने मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के 20 गाँवों के 23 प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में इन सुविधाओं के स्टेट्स का पता करने के लिए एक तुलनात्मक अध्ययन किया। विद्यालयों में न केवल शौचालयों की कमी है, बल्कि जिनमें शौचालय हैं, उनमें पानी की कमी है और शौचालयों में इतनी गंदगी होती है कि छात्रों द्वारा उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसके कारण छात्र स्कूल जाना पसंद नहीं करते। अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन विद्यालयों के छात्र विद्यालय प्रबंधन समित अथवा सरपंच से पानी और सफाई की व्यवस्था की मांग सीधे तौर पर करते हैं, वहां विशेष ध्यान दिया जाता है और पानी व सफाई की व्यवस्था कर दी जाती है। इससे पता चलता है कि विद्यालय के प्रबंधन में छात्रों की सार्थक भागीदारी विद्यालयों में पानी और सफाई की सुविधा उपलब्ध करने में सहायक होती है।

आम विद्यालयों में जब छात्रों से पूछा गया, तो उनमें से 66 फीसदी ने इस बात को स्वीकार किया कि उनके विद्यालयों में शौचालय काम नहीं कर रहे हैं। लेकिन जब उन विद्यालयों में, जहां के छात्र अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं, इसके बारे में जानकारी ली गई, तो पाया गया कि 89 फीसदी छात्र शौचालयों से संतुष्ट हैं। पानी के टैप और छात्रों के बीच का अनुपात 1:131 पाया गया। यानी औसतन 131 छात्र पर एक पानी के टैप हैं। सर्वेक्षण किए गए 23 स्कूलों में से मात्र 3 में ही एक से ज्यादा टैप पाए गए। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत छात्रों और छात्राओं के लिए अलग अलग शौचालय की बात की गई है, लेकिन 23 में से 3 विद्यालयों में छात्रों और छात्राओं के लिए एक ही शौचालय पाए गए।

वाटर एड इंडिया और सेव द चिल्ड्रेन के सहयोग से समर्थन ने एक पायलट इंटरवेंशन की पहल की है जिसके तहत छात्रों के अधिकार पर आधारित अप्रोच के द्वारा ग्रामीण इलाकों के विद्यालयों में पानी और सफाई सुविधाओं को सुनिश्चित किया जा सकता है। इंटरवेंशन एरिया और नन इंटरवेंशन एरिया में पीने के पानी की सुविधाओं की उपलब्धता में 33 फीसदी का अंतर पाया गया। इंटरवेंशन एरिया में 9 फीसदी पानी की सुविधाएँ काम नहीं कर रही थीं, जबकि नन इंटरवेंशन एरिया में 42 फीसदी जल स्रोत काम नहीं कर रहा था।

अधिकांश शिक्षकों को भी छात्रों के शौचालय से संबंधित सुविधाओं और अधिकारों का पता नहीं था। नन इंटरवेंशन एरिया के 94.7 और इंटरवेंशन एरिया के 28.5 फीसदी शिक्षकों को इसके बारे मे जानकारी नहीं थी।

शिक्षकों और स्कूल मैनेजिंग कमिटी के सदस्यों को छात्रों के लिए शौचालय, सफाई और जल की सुविधाओं और उनसे संबंधित अधिकारो के बारे में प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है, ताकि उनके अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके। छात्रों की सहभागिता से विद्यालयों की ज़िम्मेदारी को सुनिश्चित किया जा सकता है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading