पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा कम करने में विद्युत अपघटन सयंत्र का योगदान तथा कार्यक्षमता

भारत का ग्रामीण क्षेत्र पेयजल के लिए मुख्यतः भूजल पर निर्भर है। वैज्ञानिक सिद्धांत एवं मानक को दुर्लक्षित कर अंधाधुंध/अव्यवस्थित भूजल के उपयोग से हमारे सामने दो विवादास्पद विषय खड़े हुए हैं। पहला स्रोत की बहनशीलता (Sustainability) में कमी और दूसरा जल गुणवत्ता में गिरावट। पेयजल गुणवत्ता की सभी समस्याओं में फ्लोराइड जल प्रदूषण से स्वास्थ्य पर परिणाम की समस्या, पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा अनुज्ञेय सीमा 1.5 मि.ग्राम/लीटर से ज्यादा होने के कारण 18 राज्यों में भू-पर्यावरणीय समस्याओं में प्रथम स्थान पर पायी गई है। अधिक फ्लोराइड की ग्राहयता के लिए पेयजल ही मुख्य स्रोत पाया गया है। फ्लोराइड युक्त पानी का अधिक मात्रा में सेवन करने से दंतीय फ्लोरोसिस, अस्थी फ्लोरोसिस आदि परिणाम दिखाई देते हैं। भारत एक उष्णकटीबंध प्रदेश है। यहां ग्रामीण विभाग में जल सेवन की मात्रा कार्यप्रणाली के अनुसार 3-5 लीटर तक बदलती है। इसलिए अधिकतम फ्लोराइड सेवन का स्रोत पानी ही माना जाता है। इसके अलावा कई अन्य पदार्थ जैसे चाय, काला नमक, तंबाकू, सुपारी आदि में फ्लोराइड प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। इनके अधिक सेवन से भी फ्लोराइड के दुष्परिणामों की संभावना होती है।

पेयजल में प्लोराइड की मात्रा के नियंत्रण हेतु बहुत सी तकनीकियां खोजी गई हैं। इनमें नालगोंडा विधि तथा एक्टीवेटेड अल्युमिना क्षेत्रपिरिक्षित और विस्तृत रुप से अभ्यासित तकनीकियां हैं। विद्युतीय फ्लोराइड अपघटन (Electrolytic Defluoridation) एक नवीनतम पद्धति है। इस पद्धति में अल्युमिनियम धनाग्र (anode) का घुलन, सीधे विद्युत (Direct Current) से फ्लोराइड युक्त पानी में किया जाता है। प्रयोगशाला में पेयजल से 3-4 मि.ग्रा./लीटर फ्लोराइड की अधिक मात्रा दूर करने हेतु विद्युतीय (इलेक्टोलिटीक) पद्धति से बॅच क्रिया का अध्ययन किया गया तथा प्रयोगशाला अध्ययन पर आधारित विद्युतीय फ्लोराइड अपघटन सयंत्र डोंगरगाव में लगाया गया। यह सयंत्र पानी से फ्लोराइड की मात्रा 3.4-4.5 मि.ग्राम/लीटर से 1.00 मि.ग्राम/लीटर तक लाता है। इस लेख इस विधि के बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है।

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