पहाड़ी नदी की ध्वनि

25 Jun 2011
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रात भर बारिश टिन की छत को किसी ढोल या नगाड़े की तरह बजाती रही। नहीं, वह कोई आंधी नहीं थी। न ही वह कोई बवंडर था। वह तो महज मौसम की एक झड़ी थी, एक सुर में बरसती हुई। अगर हम जाग रहे हों तो इस ध्वनि को लेटे-लेटे सुनना मन को भला लगता है, लेकिन यदि हम सोना चाहें तो भी यह ध्वनि व्यवधान नहीं बनेगी। यह एक लय है, कोई कोलाहल नहीं। हम इस बारिश में बड़ी तल्लीनता से पढ़ाई भी कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि बाहर बारिश है तो भीतर मौन है। अलबत्ता टिन की छत में कुछ दरारें हैं और उनसे पानी टपकता रहता है, इसके बावजूद यह बारिश हमें खलती नहीं बारिश के करीब होकर भी उससे अनछुआ रह जाने का यह अहसास अनूठा है। टिन की छत पर बारिश की ध्वनि मेरी प्रिय ध्वनियों में से है। अल सुबह जब बारिश थम जाती है, तब कुछ अन्य ध्वनियां भी मेरा ध्यान खींचती हैं, जैसे पंखों से पानी की बूंदें झाड़ने का प्रयास करता कौआ, जो लगभग निराशा भरे स्वर में कांव-कांव करता रहता है, कीड़े-मकोड़ों की तलाश करती बुलबुलें, जो झाड़ियों और लंबी घासों में फुदकती रहती हैं, हिमालय की तराई में पाए जाने वाले पक्षियों की मीठी चहचहाहट, नम धरती पर उछलकूद मचाते कुत्ते।

मैं देखता हूं कि चेरी के एक दरख्त की शाखें भारी बारिश के कारण झुक गई हैं। शाखें यकायक हिलती हैं और मैं अपने मुंह पर पानी के छींटों की ताजगी को महसूस करता हूं। दुनिया की कुछ सबसे बेहतरीन ध्वनियां पानी के कारण पैदा होती हैं। जैसे किसी पहाड़ी नदी की ध्वनि, जो हमेशा कहीं जाने की जल्दी में नजर आती है। वह पत्थरों पर से उछलती-मचलती अपनी राह पर आगे बढ़ती रहती है, मानो हमसे कह रही हो कि बहुत देर हो चुकी है, मुझे अपनी राह जाने दो। किसी सफेद खरगोश की तरह चंचल पहाड़ी नदियां हमेशा निचले इलाकों की तरफ जाने की जद्दोजहद में लगी रहती हैं। एक अन्य ध्वनि है समुद्र की लहरों के थपेड़े, खासतौर पर तब, जब समुद्र हमसे थोड़ी दूर हो। या सूखी-प्यासी धरती पर पहली फुहार पड़ने की ध्वनि। या किसी प्यासे बच्चे द्वारा जल्दी-जल्दी पानी पीने की ध्वनि, जबकि पानी की धारा उसकी ठोढ़ी और उसकी गर्दन पर देखी जा सकती हो। किसी गांव के बाहर एक पुराने कुएं से पानी उलीचने पर कैसी ध्वनि आती है, जबकि कोई ऊंट चुपचाप कुएं के इर्द-गिर्द मंडरा रहा हो? गांव-देहात की सूखी पगडंडियों पर चल रही बैलगाड़ी के पहियों की चरमराहट की ध्वनि की तुलना क्या किसी अन्य ध्वनि से की जा सकती है? खासतौर पर तब, जब गाड़ीवान उसके साथ ही कोई गीत भी गुनगुना रहा हो।

जब मैं ध्वनियों के बारे में सोचता हूं तो एक के बाद कई ध्वनियां याद आने लगती हैं: पहाड़ियों में बजने वाली घंटियां, स्कूल की घंटी और खुली खिड़की से आने वाली बच्चों की आवाजें, पहाड़ पर मौजूद किसी मंदिर की घंटी की ध्वनि, जिसकी मद्धम-सी आवाज ही घाटी में सुनी जा सकती है, पहाड़ी औरतों के पैरों में चांदी के भारी कड़ों की ध्वनि, भेड़ों के गले में बंधी घंटियों की टनटनाहट। क्या धरती पर गिरती पत्तियों की भी ध्वनि होती है? शायद वह सबसे महीन और सबसे मद्धम ध्वनि होती होगी। लेकिन जब हम ध्वनियों की बात कर रहे हों, तब हम पक्षियों को नहीं भूल सकते। पहाड़ों पर पाए जाने वाले पक्षियों की आवाज मैदानों में पाए जाने वाले पक्षियों से भिन्न होती है। उत्तरी भारत के मैदानों में सर्दियों की सुबह यदि आप जंगल के रास्ते चले जा रहे हों तो आपको काले तीतर की जानी-पहचानी आवाज सुनाई देगी। ऐसा लगता है जैसे वह कह रहा हो: भगवान तेरी कुदरत और ऐसा कहते हुए वह ईश्वर द्वारा रची गई इस अद्भुत प्रकृति की सराहना कर रहा हो। ऐसा लगता है कि झाड़ियों से आ रही उसकी आवाज सभी दिशाओं में फैल रही हो, लेकिन मात्र एक घंटे बाद ही यहां एक भी पक्षी दिखाई-सुनाई नहीं देता और जंगल इतना शांत हो जाता है कि लगता है, जैसे सन्नाटा हम पर चीख रहा हो।

कुछ ध्वनियां ऐसी हैं, जो बहुत दूर से आती हुई मालूम होती हैं। शायद यही उनकी खूबसूरती है। ये हवा के पंखों पर सफर करने वाली ध्वनियां हैं। जैसे नदी पर मछुआरे की हांक, दूर किसी गांव में नगाड़ों की गड़गड़ या तालाब में मेंढकों की टर्र-टर्र। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें मोटरकार के हॉर्न की आवाज बहुत भाती है। मैं एक टैक्सी ड्राइवर को जानता हूं, जो जोरों से हॉर्न बजाने का कोई मौका नहीं छोड़ता। उसके हॉर्न की ध्वनि सुनकर साइकिल चलाने वाले या पैदल चलने वाले लोग इधर-उधर हो जाते हैं। लेकिन वह अपने हॉर्न की ध्वनि पर मुग्ध रहता है। उसे देखकर लगता है, जैसे कुछ लोगों की पसंदीदा ध्वनियां दूसरों के लिए कोलाहल भी हो सकती हैं। हम अपने घर की ध्वनियों के बारे में ज्यादा नहीं सोचते, लेकिन ये ही वे ध्वनियां हैं, जिन्हें हम बाद में सबसे ज्यादा याद करते हैं। जैसे केतली में उबलती हुई चाय, दरवाजे की चरमराहट, पुराने सोफे की स्प्रिंग की ध्वनि। मुझे अपने घर के आसपास रहने वाली बत्तखों की भी याद आती है, जो बारिश में चहकती हैं।

मैं एक बार फिर बारिश की ओर लौटता हूं, जिसकी ध्वनियां मेरी पसंदीदा हैं। एक भरपूर बारिश के बाद हवा झींगुरों और टिड्डों और छोटे-छोटे मेंढकों की आवाजों से भर जाती है। एक और आवाज है, बड़ी मीठी, मोहक और मधुर। मुझे नहीं पता यह किसकी आवाज है। किसी टिड्डे की या किसी मेंढक की? शायद मैं कभी नहीं जान पाऊंगा। शायद मैं जानना चाहता भी नहीं। एक ऐसे दौर में, जब हमारी हर अनुभूति के लिए वैज्ञानिक और तार्किक कारण दिए जा सकते हैं, कभी-कभी किसी छोटे-मोटे राज के साथ जीना अच्छा लगता है। एक ऐसा राज, जो इतना मधुर हो, इतना संतुष्टिदायक हो और जो पूरी तरह मेरी आत्मा की गहराइयों में बसा हुआ हो।

लेखक पद्मश्री से सम्मानित ब्रिटिश मूल के साहित्यकार हैं।
 

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