पहुँज

बालाजी सूर्य मंदिर-दतिया से 17 किलोमीटर की दूरी पर उनाव गाँव में ब्रह्मबालाजी का सूर्य मंदिर है, जो पुष्पावती के पश्चिमी घाट पर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि पहुँज में नहाने और बाला जी की सूर्य यंत्र की काले पत्थर की प्रस्तर प्रतिमा को जल चढ़ाने से चर्म रोगादि से मुक्ति मिलती है। बाला जी का यह मंदिर अपनी विशालता एवं भव्यता के लिए जाना जाता है। यह दतिया जिले का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। जहाँ सुदूर अंचलों से दर्शनार्थी एवं श्रद्धालु आते हैं। यहां का नैसर्गिक सौंदर्य मन को मुग्ध करता है।

मंदिर के पास पहुँज और अनुगौरी नदियों के इसी पवित्र संगम से बालाजी की मूर्ति प्रकट हुई थी। दतिया जिले में लगभग 360 मंदिर हैं। जिनमें से बालाजी का मंदिर सबसे प्राचीन और वास्तुकला में अद्वितीय है। मंदिरों की अधिकता के कारण दतिया ‘दूसरा वृन्दावन’ माना जाता है। उनाव बाला जी को आज भी तीर्थ स्थान की मान्यता है। इस मंदिर में बालाजी के बाल रवि का रूप है। मंदिर से 100 फुट निचाई पर पहुँज नदी बहती है। यहाँ आषाढ़ शुक्ल एकादशी को रथयात्रा का आयोजन किया जाता है तथा प्रत्येक रविवार को मेला लगता है।

सिरसा-भिण्ड जिले के लहार क्षेत्र में स्थित सिरसा पहुँज नदी के किनारे बीहड़ में बसा हुआ है। सिरसा का इतिहास बुन्देलखण्ड के जगनिक रचित शौर्य ग्रंथ आल्हाखण्ड में गढ़ सुरसा की लड़ाई के रूप में वर्णित है। यह उस जमाने में मलखान सेनापति का ठिकाना था। मलखान बनाफर राजा परिमर्य देव का सामंत था। प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को यहाँ परास्त होना पड़ा था। लेकिन दूसरी बार में माहिल राजा की गद्दारी के कारण मलखान जैसे वीर को वीरगति प्राप्त हुई थी। पहुँज नदी के जल के थपेड़ों एवं बाढ़ ने सिरसा गाँव का स्वरुप बिगाड़ दिया है। भूमि कटाव का शिकार यह गाँव हो गया है।
 

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