पंचेश्वर बांध और पानी का अर्थशास्त्र

महाकाली
महाकाली

महाकाली नदी का उद्गम स्थल हिमालय है। ये नदी नेपाल की तरफ से निकलती है और कई किलोमीटर तक भारत और नेपाल के बीच सीमा तैयार करती है। इसके बाद उत्तर प्रदेश आकर घाघरा से मिल जाती है। रास्ते में इस नदी को कई और नाम मिलते हैं और कई छोटी-छोटी नदियां भी इसमें समाती हैं। 

पिछले कुछ हफ्तों से भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। नेपाल की कैबिनेट ने पिछले दिनों नेपाल के एक विवादित नक्शे को मंजूरी दे दी, जिसमें कथित तौर पर भारत के कुछ हिस्सों को नेपाल का बताया गया है। कैबिनेट के इस फैसले को लेकर तनाव और भी बढ़ गया।

इसी बीच, नेपाल की तरफ से गोलीबारी में एक भारतीय नागरिक की मौत भी हो गई और एक को बंधक बना लिया गया था। बाद में उसे हालांकि छोड़ दिया गया। 

इन सिलसिलेवार चले घटनाक्रमों के चलते भारत और नेपाल की दशकों की दोस्ती कमजोर होती दिख रही है और ये भी कहा जा रहा है कि आने वाले समय में इसका प्रभाव दोनों तरफ पड़ेगा। दोनों देशों के बीच इस नए विवाद के कारण महाकाली संधि के तहत बनने वाले पंचेश्वर बांध को लेकर भी आशंका के बादल मंडराने लगे हैं। माना जा रहा है कि इस संधि में नेपाल की तरफ से रुकावटें पैदा की जा सकती हैं। 

महाकाली नदी पर भारत सरकार महत्वाकांक्षी पंचेश्वर बांध बनाना चाहती है। इसी को लेकर फरवरी 1996 में दोनों देशों के बीच एक संधि हुई थी, जिसे महाकाली संधि कहा जाता है। संधि के अंतर्गत पंचेश्वर बांध बन जाने की सूरत में शारदा बराज से नेपाल को बारिश के सीजन में 1000 क्यूसेक पानी औऱ गर्मी में 150 क्यूसेक पानी मिलना है। अगर शारदा बराज सूख जाता है, तो इतना ही पानी प्रस्तावित टनकपुर बराज से नेपाल को दिया जाएगा।

हालांकि, संधि होने के बावजूद अभी तक इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। इस पर आखिरी बैठक पिछले साल हुई थी और भारत सरकार ने पंचेश्वर डेवलपमेंट अथॉरिटी का गठन भी कर लिया। लेकिन, मौजूदा तनाव को देखते हुए माना जा रहा है कि ये परियोजना और देर हो सकती है। अगर ये संधि नहीं होती है, तो भारत को नुकसान होगा क्योंकि भारत के लिए ये महत्वाकांक्षी योजना है जिसके जरिए भारत सरकार हाइड्रो पावर प्लांट स्थापित कर बिजली की जरूरतें पूरी करेगी। बताया ये भी जाता है कि पंचेश्वर बांध बनने से भारत की 2.59 लाख हेक्टेयर खेतों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा।

इसके अलावा जानकारों का कहना है कि महाकाली नदी के पानी के बँटवारे पर भी ग्रहण लग सकता है और अगर नेपाल सरकार का रुख अड़ियल रहता है, तो इसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ सकता है क्योंकि महाकाली नदी के पानी का दोहन सबसे ज्यादा भारत सरकार ही करती है।

महाकाली नदी में औसत 18 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी रहता है। इनमें से 13 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी का इस्तेमाल होता है। भारत अकेले इनमें से 12 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी खर्च करता है जबकि नेपाल केवल 1 बिलियन क्यूबिक पानी का इस्तेमाल करता है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल सरकार का कहना है कि पंचेश्वर बांध बन जाने के बाद भी भारत को 12 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी  ही इस्तेमाल करना होगा। लेकिन, भारत सरकार को इस पर आपत्ति है।

यहां ये भी बता दें कि पंचेश्वर बांध बनेगा, तो 5 बिलियन क्यूबिक मीटर अतिरिक्त पानी मिलेगा। भारत सरकार का कहना है कि 12 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी के अलावा पंचेश्वर बांध के अस्तित्व में आने पर जो 5 बिलियन क्यूबिक मीटर अतिरक्त पानी आएगा, उसमें से 3 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी का इस्तेमाल नेपाल सरकार करे और 2 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी भारत सरकार को मिले।   

जानकारों ने बताया कि भारत और नेपाल के बीच मौजूदा तनाव से इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर भी गहरा असर पड़ेगा। ऐसे में जरूरी है कि भारत सधा हुआ कदम बढ़ाए और तनाव को और हवा न देते हुए कूटनीतिक तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर हालात सामान्य करने की कोशिश करे।       

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