तो पानी में डूब जाएंगे मैंग्रोव के जंगल ?

12 Jun 2020
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मैंग्रोव
मैंग्रोव

पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जंगल मौजूद हैं। धरती पर जीवन को बनाए रखने के लिए ‘वन’ वायुमंडल में गैसों का संतुलन बनाए रखते हैं। मौसमी चक्र को बनाए रखने में वनों का अहम योगदान है। मृदाअपरदन रोकने और भूजल रिचार्ज करने का कार्य भी वन करते हैं, लेकिन ये वन या पेड़ खारे पानी में नही पनप पाते। खारे (नमकीन) पानी में पनपने की क्षमता मैंग्रोव में हैं। मैंग्रोव को कच्छ वनस्पति भी कहा जाता है, जो समुद्र के तटबंधों पर मिलते हैं। समुद्र के किनारे जैव विविधता को पनपने में मैंग्रोव सहायता करते हैं। साथ ही प्रलयकारी समुद्री लहरों को तटीय इलाकों के अंदर नहीं पहुंचने देते हैं। एक तरह से यें समुद्री लहरों से धरती की रक्षा करते हैं। 

मैंग्रोव करीब 40 मीटर ऊंचे होते हैं। दुनिया भर (अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और पश्चिम प्रशांत महासागर) में मैंग्रोव की लगभग 40 प्रजातियां पाई जाती हैं। तो वहीं मैंग्रोव की आठ प्रजातियां पश्चिम अफ्रीका, कैरेबियन और अमेरिकन समूह में पाई जाती हैं। इन प्रजातियों के आधार पर ही मैंग्रोव दो ग्रुपों में विभाजित हैं। दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव क्षेत्र सुंदरवन है, जो भारत और बांग्लादेश की सीमा पर 51800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। तो वहीं दुनिया में सबसे घने मैंग्रोव वन मलेशिया के तटवर्ती इलाकों में पाए जाते हैं। भारत का सबसे बड़ा मैंग्रोव क्षेत्र भी पश्चिम बंगाल के सुंदरवन का इलाका है। भारत में मैंग्रोव की दो देशज प्रजातियां हैं - ‘राइजोफोरा एन्नामलायाना’ पिचवरम तमिलनाडु में पाई जाती है और दूसरी उड़ीसा में पाई जाती है। तो वहीं देश में मैंग्रोव की 69 प्रजातियां पाई जाती हैं, जो 42 वर्गों और 28 समूहों में विभाजित हैं। 

मैंग्रोव वन पारिस्थितिक तंत्र के मामले में काफी समृद्ध होते हैं और स्थलीय और जलीय दोनों प्रकार की जीवों को पनपने में सहयोग करते हैं। यहां अधिक संख्या में पक्षी, स्तरधारी, सरीसृप और मछलियां पाई जाती हैं। मैंग्रोव क्षेत्र सीप, केकड़ा, झींगा, घोंघा और मछली पालन की अपार संभावनाएं खोलता है, जो आजीविका का अच्छा माध्यम बन सकता है। भारत के मैंग्रोव के जंगलों में 1600 वनस्पतियां और 3700 जीवों की पहचान की जा चुकी है। मैंग्रोव का उपयोग ईंधन के अलावा खाद्य पदार्थों के रूप में भी किया जा सकता है। ये एक औषधीय वनस्पति भी है। मैंग्रोव से चारकोल, मोम, टेनिन, शहद और जलावन लकड़ी भी प्राप्त की जाती है, लेकिन मैंग्रोव वनस्पतियां खतरे में हैं। 1975 से 1981 के बीच ही मैंग्रोव वनों के क्षेत्रफल में लगभग 7000 हेक्टेयर की कमी आई थी। पिछले एक दशक में मैंग्रोव वनों के क्षेत्रफल में 40 प्रतिशत की कमी आई है। अब तो मैंग्रोव के वनों पर समुद्र में डूबने का खतरा भी मंडराने लगा है। जिसका कारण जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघलने से बढ़ता समुद्र जलस्तर है।

दुनिया भर में तेजी से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। इससे जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं में तेजी आई है। धरती का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है और पृथ्वी गरम होती जा रही है। इससे गर्म दिनों की संख्या में इजाफा हो रहा है और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। ग्लेशियरों का पिघलना समुद्र जलस्तर को बढ़ा रहा है। रटगर्स यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि ‘यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नही आई तो समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और 2050 तक मैंग्रोव विलुप्त हो जाएंगे।’ ये अध्ययन जर्नल साइंस में प्रकाशित हुआ है।

शोध करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के मैक्वेरी  विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक इंटरनेशनल टीम ने दस हजार सालों के सेडीमेंट के आंकड़ों का उपयोग किया और समुद्र स्तर में हो रही बढ़ोतरी के आधार पर मैंग्रोव के जीवित रहने की संभावना का अनुमान लगाया। अध्ययन में बताया गय कि समुद्र के स्तर में वृद्धि 5 मिलीमीटर प्रतिवर्ष से कम होने पर मैंग्रोव के जंगलों की अस्तित्व में रहने की संभावना ज्यादा रहती है। हालांकि समुद्र जलस्तर बढ़ने से ज्यादा खतरा दुनिया में विशेषकर फ्लोरिडा और अन्य गर्म जलवायु में पाए जाने वाले मैंग्रोव को होगा। इसके लिए हमें जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयास गंभीरता से करने होंगे। मैंग्रोव सहित अन्य वनों का भी संरक्षण करना होगा। मैंग्राव यदि नहीं रहे तो, समुद्री लहरे धीरे धीरे तटीय इलाकों को लील जाएंगी।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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