प्रदूषण का नया खतरा है ई-वेस्ट

ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कूड़-कबाड़ से आज पूरी दुनिया में एक बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई है। साइबर क्रान्ति की देन ई-वेस्ट पर्यावरण के लिए किसी गन्दे पानी, रसायन से ज्यादा खतरनाक है। विकसित देश अपने ई-जंक को विकासशील एवं गरीब देशों में खपा रहे हैं इससे वहाँ के वातावरण के लिए खतरा पैदा हो गया है। साइबर क्रान्ति की इस दौड़ में हम भी काफी तेजी से दौड़ रहे हैं, लेकिन अब जरूरत है इस खतरे की तरफ ध्यान देने की यानी इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण से बचाव की।

ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कूड़ा-कबाड़ से आज पूरी दुनिया में एक बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई है। साइबर क्रान्ति की देन ई-वेस्ट पर्यावरण के लिए किसी गन्दे पानी, रसायन से ज्यादा खतरनाक है। आईटी के क्षेत्र में हो रही दिन दूनी-रात चैगुनी तरक्की यों तो कल्याणकारी है परन्तु इसने एक तकनीकी और व्यावहारिक समस्या भी खड़ी कर दी है। यह परेशानी है पुराने कम्प्यूटरों के बढ़ते अम्बार की। दरअसल बाजार में हर रोज नई-नई खूबियों और ज्यादा से ज्यादा मेमोरी वाले कम्प्यूटर के आ धमकने से ज्यादा पुराने कम्प्यूटरों को लोग यों त्याग रहे हैं जैसे पुराने कपड़े। मजे की बात यह है कि लाख ढूंढने पर भी इन पुराने कम्प्यूटरों के खरीदार नहीं मिलते, इसलिए पश्चिमी देशों में लोग मजबूर होकर इन्हें कूड़े-कचरे के ढेर के हवाले कर देते हैं या फिर फूंकने के लिए आधुनिक संयन्त्रों को सौंप देते हैं। परन्तु पुराने कम्प्यूटर से पीछा छुड़ाने के ये दोनों ही तरीके पर्यावरण के लिए गम्भीर खतरा है। वजह यह कि पुराने कम्प्यूटरों में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कई धातुएँ मौजूद होती हैं, जैसे-लेड या सीसा, कैडमियम, मर्करी या पारा आदि। अमेरिका की पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी ने कम्प्यूटरों के कबाड़ को एक तेजी से उभरता हुआ पर्यावरणीय खतरा बताया है।

विशेषज्ञों के अनुसार यदि हर साल ‘रिटायर’ होने वाले कम्प्यूटरों को ढेर की शक्ल में खड़ा किया जाए तो शायद इसकी ऊँचाई एवरेस्ट पर्वत को चुनौती देने लगे। अनुमान है कि अकेले अमेरिका में सन् 2007 तक लगभग 50 करोड़ कम्प्यूटर दम तोड़ चुके होंगे।

इस समस्या से निपटने के लिए दुनिया भर में तैयारी चल रही है। जिसके तहत पुराने पीसी के विभिन्न हिस्सों को दुबारा उपयोग में लाने की योजना है। फिलहाल पुर्नउपयोग की दर केवल 10 फीसदी है, जो अपेक्षाओं से बहुत कम है। यूरोपियन यूनियन ने एक नियम पारित कर सभी कम्प्यूटर निर्माताओं के लिए सन् 2008 तक कम्प्यूटर का पुर्नउपयोग करना अनिवार्य कर दिया। है। दूसरी ओर अमेरिका में कई कम्पनियाँ स्वयं ही इस ओर पहल कर रही है। आईबीएम कम्प्यूटर के पुर्नउपयोग कार्यक्रम के तहत उपभोक्ता से 30 डॉलर का शुल्क लेकर उसके कम्प्यूटर का पर्यावरण हितैषी निपटान करती है। इसके लिए कम्पनी ने न्यूयार्क के बाहरी हिस्से में एक विशाल कबाड़खाना बनाया है। यहाँ दिन-रात कम्प्यूटर की तोड़-फोड़ कर उससे मूल्यवान धातुएँ, पदार्थ आदि अलग किए जाते हैं। अनुमान है कि यहाँ हर साल कोई पौने दो करोड़ किलोग्राम कम्प्यूटरों को ठिकाने लगाने का काम किया जाता है।

परन्तु पुराने कम्प्यूटरों को निपटाने का धन्धा कचरे से कंचन बनाने जैसा है। कम्प्यूटर के कबाड़ में सोने-चाँदी जैसी कई मूल्यवान धातुएँ छिपी रहती है। उदाहरण के तौर पर पेंटियम तथा प्रोसैसर्स के सिरे सुनहरे होते हैं। ताम्बे और फाइबर ग्लास से बने कम्प्यूटर के मुख्य सर्किट बोर्ड में चाँदी और सोने के कनैक्टर्स लगे होते हैं। कम्प्यूटर के फ्रेम से कोई ढाई किलोग्राम मजबूत स्टील हासिल हो सकती है और प्लास्टिक के बाहरी खोल से रोजमर्रा के उपयोग की तमाम वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं। यही कारण है कि विकासशील देशों में इलेक्ट्रॉनिक कचरे को चुनने के लिए वहाँ के लोग अपने स्वास्थ्य को ताक पर रख देते हैं।

पर्यावएण विशेषज्ञों ने पाया कि पुरुषों, महिलाओं और बच्चों तक सभी लोग बेखौफ होकर इन कम्प्यूटर अवशेषों के ढेर में से तार खींच-खाचकर रात को जलाते रहते हैं और हवा में प्रदूषण फैलाते रहते हैं और वातावरण में कैंसर फैलाने वाला धुंआ घोलते रहते हैं।

उच्च तकनीक सभ्यता से बनी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं और उपकरणों को कूड़ा-कचरा वातावरण में इतनी बुरी तरह जहर घोलतें हैं, जिससे हममें से अधिकांश लोग अनजान हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक कूड़ा पर्यावरण में इतनी बुरी तहर जहर घोलता है कि पीने के पानी को विषाक्त बनाने के साथ-साथ बच्चों की सेहत पर बुरा असर डालता है।यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि एक तरफ तो उच्च तकनीक सभ्यता से बनी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं और उपकरणों को कूड़ा-कचरा वातावरण में इतनी बुरी तरह जहर घोलतें हैं, जिससे हममें से अधिकांश लोग अनजान हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक कूड़ा पर्यावरण में इतनी बुरी तहर जहर घोलता है कि पीने के पानी को विषाक्त बनाने के साथ-साथ बच्चों की सेहत पर बुरा असर डालता है। बच्चों में जन्मजात विकलांगता आती है। मछलियों से लेकर वन्य जीवों का जीवन भी प्रभावित होता है तथा गर्भपात और कैंसर का कारण पैदा करता है। कम्प्यूटरों में आमतौर पर ताम्बा, इस्पात, एल्युमिनियम, पीतल और भारी धातुओं जैसे- सीसा, कैडमियम तथा चाँदी के अलावा बैटरी, काँच और प्लास्टिक वगैरह का इस्तेमाल किया जाता है। विडम्बना यह है कि विकसित देशों द्वारा यह तमाम इलेक्ट्रॉनिक कचरा विकासशील देशों अथवा अल्प विकसित देशों में लाकर पटक दिया जा रहा हे।

बहरहाल, मुद्दा यह है कि इस इलेक्ट्रॉनिक कूड़े-कचरे को हम ई-वेस्ट/ई-जंक/ई-गारबेज जैसा कोई भी नाम दें, लेकिन जरूरत है इस पर ध्यान दिए जाने की। कम्प्यूटर एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में एक हजार से भी ज्यादा ऐसे पदार्थ रहते हैं जो बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। मिसाल के तौर पर क्लोरीन और ब्रोमीनयुक्त पदार्थ, विषैली गैसें, विषैली धातुएँ फोटोएक्टिव और जैविक सक्रियता वाले पदार्थ, अम्ल और प्लास्टिक वगैरह। हाल ही में पाए गए सबूतों से पता चलता है कि कम्प्यूटर की रिसाइक्लिंग का काम करने वालों के खून में बहुत ज्यादा मात्रा में खतरनाक रसायन मौजूद रहते हैं। 1998 में अकेले अमेरिका में ही 21 मिलियन पर्सनल कम्प्यूटर बेकार पड़े रह गए थे, और सन् 2004 तक इनकी संख्या 300 से 600 मिलियन तक हो जाने की सम्भावना है। और स्थिति यह है कि इनमें से केवल 10 प्रतिशत की ही रिसाइक्लिंग हो सकती है, जबकि सारा माल गोदाम या गैरेजों में जमा पड़ा रहता है जिसे विदशों में ले जाकर पटक दिया जाता है।

सेल फोन का चलन बहुत तेजी से चला हुआ है और इसका कूड़ा-कचरा एक और तरह का इजाफा करेगा। इस समस्या में इससे मुश्किलें और बढ़ जाएगी, जबकि एक खतरा यह भी नजर आ रहा है और वह है- विकसित देशों की यह प्रवृत्ति कि खराब या स्तरहीन इलेक्ट्रॉनिक सामानों को गरीब देशों में सस्ते दामों पर बेच दिया जाए।

बहरहाल, विकसित देशों और विकासशील देशों में भी अब इस खतरे के प्रति जागरुकता आने लगी है और भविष्य में इस पर्यावरण के खतरे को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न उपायों के बारे में विचार किया जा रहा है। यूरोपीय पार्लियामेण्ट इस पर अपने तरीके से नियन्त्रण कायम करने की पहल में लगा है। ऐसी व्यवस्था की जा सकती है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादकों, निर्माताओं द्वारा इन उपकरणों में खराबी आ जाने के बाद निःशुल्क वापस ले लिया जाए। निर्माण तकनीकों और रिसाइक्लिंग का काम यथासम्भव बन्द कमरों या परिसरों में किया जाए। भारत जैसे देश में जहाँ पहले से ही पॉलीथीन के कचरे ने गम्भीर समस्या पैदा कर रखी है वहाँ अभी इसे इस इलेक्ट्रॉनिक कूड़े से उत्पन्न होने वाले खतरे पर नियन्त्रण की कोशिश तुरन्त शुरू कर दी जानी चाहिए।

(स्वतन्त्र लेखक)

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