प्रदूषण की समस्या

21 Mar 2016
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लेखक का कहना है कि उद्योगों व वाहनों की बढ़ती संख्या ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है और प्रदूषण की समस्या दिन-पर-दिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। लेखक ने इस लेख में वायु प्रदूषण तथा औद्योगिक प्रदूषण को रोकने के लिये सरकारी तथा गैर-सरकारी स्तर पर किये जा रहे कुछ प्रयासों पर प्रकाश डाला है।

वायु प्रदूषण के साथ-साथ जल प्रदूषण भी पर्यावरण असन्तुलन व प्रदूषण की मुख्य वजह है। जल प्रदूषण के लिये घरेलू कार्यों में उपयोग के बाद आने वाले जल-मल मुख्य कारण हैं। जल प्रदूषण की वजह से पेट की बीमारियों में काफी वृद्धि देखी जा रही है। दिल्ली में जल प्रदूषण का प्रतिशत इतना ज्यादा है कि हर तीसरा व्यक्ति पेट की बीमारियों से ग्रस्त है।

प्रदूषण की समस्या दिन-ब-दिन विकराल होती जा रही है। इस वजह से हमारा सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ है। वायु प्रदूषण से श्वास सम्बन्धी बीमारियाँ बढ़ी हैं, तो ध्वनि प्रदूषण से बहरापन। उद्योगों व वाहनों की बढ़ती संख्या ने भी जनजीवन को अस्त-व्यस्त किया है।

जनजीवन को प्रदूषण जैसी समस्याओं से निजात दिलाने के लिये सरकारी व गैर-सरकारी स्तर पर कई प्रकार के प्रयास जारी हैं जिसके कुछ उत्साहजनक परिणाम सामने आये हैं।

वाहन प्रदूषण पर रोकथाम के लिये केन्द्र सरकार ने प्रथम चरण में सभी मेट्रो शहरों में एक अप्रैल 95 से सभी पेट्रोल पम्पों पर सीसा-रहित पेट्रोल बेचने का निर्देश दिया है। जिससे वाहन से फैलने वाले प्रदूषण पर एक हद तक रोक लगेगी। इसी के तहत एक अप्रैल 96 से 0.5 प्रतिशत सल्फर रहित डीजल बेचे जाने के निर्देश केन्द्र सरकार द्वारा दिये गए हैं। अभी दिये जाने वाले डीजल में सल्फर की मात्रा एक प्रतिशत है।

हमारे वातावरण में वायु प्रदूषण की समस्या सभी समस्याओं से बड़ी है वैसे जल प्रदूषण ने भी जन-जीवन को काफी प्रभावित किया है। वायु प्रदूषण के कई कारण हैं, जिनमें वाहन, उद्योग, घरेलू धुम्रयुक्त चूल्हे और धूल प्रमुख हैं।

वायु प्रदूषण को दूर करने के लिये सरकारी व गैर-सरकारी स्तर पर कई प्रयास किये गए हैं व किये जा रहे हैं। एक कार्यक्रम के जरिए देश के 290 शहरों में एक सर्वेक्षण करवाया गया, जिसमें 92 शहरों में वायु प्रदूषण की भयावहता देखी गई। उसके लिये कई तरह के कार्यक्रम शुरू किये गए हैं और कई किये जाने हैं।

देश के प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण की दरों को देखने से पता चला है कि दिल्ली सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है। इसके बाद कलकत्ता व कानपुर शहर आते हैं। दिल्ली में वायु प्रदूषण की दर 543 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है, जिसमें 204 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर लोगों द्वारा उनके श्वास के माध्यम से अन्दर जाता है। शेष वायुमण्डल में मौजूद रहता है। कलकत्ता और कानपुर में वायु प्रदूषण 394 एवं 360 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर है। बम्बई में 226 है तो हैदराबाद में 338 है। अन्य महानगरों की तुलना में सबसे कम प्रदूषण बंगलौर में है। इसकी मुख्य वजह वहाँ पेड़-पौधों का प्रचुर मात्रा में होना है।

वायु प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में बम्बई के एक अस्पताल ने बम्बई व उसके आसपास के क्षेत्रों में एक गहन सर्वेक्षण करवाया गया। सर्वेक्षण में शहरी व देहाती क्षेत्र शामिल किये गए। करीब 5,000 लोगों के स्वास्थ्य की जाँच की गई थी जिनमें दो-तिहाई से ज्यादा लोग श्वास सम्बन्धी बीमारियों से ग्रस्त पाये गए थे। जिसका मुख्य कारण स्वच्छ वायु का न होना बताया गया। शहरी क्षेत्र की तुलना में देहाती क्षेत्रों में प्रदूषण की दर काफी कम थी।

कहा गया है कि विकास को प्रक्रिया के परिणामस्वरूप विनाश भी होता है। पर सरकारी व गैर-सरकारी प्रयासों से हम विनाश का प्रतिशत कम करने में सफल हो रहे हैं।

वायु प्रदूषण के लिये मुख्य रूप से जिम्मेदार बढ़ते उद्योग व उन उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रक संयंत्रों का न होना है। सरकार ने पिछले वर्ष 1994 तक कुल 1,551 कारखानों को प्रदूषण फैलाने के लिये जिम्मेदार माना है। इस बाबत केन्द्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ने सभी राज्यों को निर्देश भेजे हैं। एक एक्शन प्लान भी तैयार किया गया है। कुछ योजनाओं में विश्व बैंक से भी सहायता ली गई है। ताजा स्थिति के अनुसार उन 1,551 इकाइयों में कुल 48 इकाइयों ने प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र लगवाया है। यह गहन चिन्ता का विषय है इसी परिप्रेक्ष्य में निर्देश का उल्लंघन व प्रदूषण नियंत्रक संयंत्र नहीं लगवाने के कारण 45 इकाइयों को बन्द करवा दिया गया है।

एक अन्य सर्वेक्षण के तहत केन्द्र सरकार ने विभिन्न राज्यों में अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाली 22 बड़ी इकाइयों की पहचान की है। उन्हें एक निर्धारित तिथि तक प्रदूषण नियंत्रक संयंत्र लगाने के निर्देश भेजे गए हैं। ये इकाइयाँ कर्नाटक, असम, बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में हैं।

केन्द्र सरकार द्वारा औद्योगिक प्रदूषण को रोकने के लिये दो चरणों में योजना तैयार की गई है। इसमें विश्व बैंक से सहायता ली गई है। दो चरणों में पिछले वर्ष 1994 के अन्त तक प्रथम चरण की 15.5 करोड़ डालर की योजना क्रियान्वित हो चुकी है। दूसरे चरण की 1,023 करोड़ की योजना है। इन राशियों द्वारा विभिन्न इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रक संयंत्र लगवाने के लिये आर्थिक सहायता प्रदान किये जाने का प्रावधान है।

वायु प्रदूषण नियंत्रण के तहत सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन, हाइड्रोकार्बन की मात्रा को मापने के लिये कई प्रमुख शहरों में संयंत्र लगाए जा चुके हैं तथा कई शहरों में संयंत्र लगाए जाने हैं। विभिन्न चरणों में चल रही योजनाओं के तहत यह आशा की जा रही है कि सन 2000 तक सभी शहरों में प्रदूषण मापक व नियंत्रक संयंत्र लगवा दिये जाएँगे।

जहाँ तक वाहन से उत्पन्न प्रदूषण की बात है तो यह कुछ प्रमुख शहरों तक ही सीमित है। खासकर महानगरों में वाहन प्रदूषण दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं। जिसकी मुख्य वजह वाहनों की बढ़ती संख्या है। हालांकि दिल्ली सहित मद्रास, बम्बई और कलकत्ता आदि महानगरों में प्रदूषण प्रमाणपत्र के बिना वाहन का उपयोग करना अपराध मान लिया गया है। प्रदूषण माप के लिये क्षेत्रवार स्टेशन बनाए गए हैं।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 1987 से अब तक कई स्तरों पर वाहन प्रदूषण सम्बन्धित सर्वेक्षण करवाया है। हाल के एक सर्वेक्षण के मुताबिक दिल्ली में वाहनों की वजह से सबसे ज्यादा प्रदूषण है। यहाँ प्रतिदिन 871.92 टन विभिन्न प्रदूषित पदार्थ वाहनों से निकलकर वातावरण को प्रदूषित करते हैं। उन पदार्थों में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, कार्बन मोनो डाइऑक्साइड एवं आइड्रोकार्बन की मात्रा पाई गई है। जिसमें सबसे ज्यादा कार्बन मोनो डाइऑक्साइड की मात्रा है। उसके बाद हाइड्रोकार्बन की मात्रा है। यही हाल बम्बई, कलकत्ता, पुणे व मद्रास जैसे शहरों का है। एक सर्वेक्षण के अनुसार बड़े शहरों में 50 से 60 प्रतिशत प्रदूषण वाहनों की वजह से है। इसके बाद उद्योग और कुकिंग से उत्पन्न होने वाली गैसों के धुएँ से है। वाहनों में अधिक प्रदूषण दोपहिया व तिपहिया वाहनों से है।

वायु प्रदूषण के तहत वाहनों के प्रदूषण की औद्योगिक प्रदूषण से तुलना की जाये तो उद्योग द्वारा फैलाए गए प्रदूषण का प्रतिशत भी कम नहीं है। उद्योगों में थर्मलपावर प्लांट, हाटमिक्स प्लांट, टैक्सटाइल, एलेक्ट्रोप्लेटिंग एवं अन्य छोटी इकाइयाँ हैं, जो प्रदूषण फैलाने के लिये मुख्य रूप से जिम्मेदार बताए गए हैं।

वायु प्रदूषण के साथ-साथ जल प्रदूषण भी पर्यावरण असन्तुलन व प्रदूषण की मुख्य वजह है। जल प्रदूषण के लिये घरेलू कार्यों में उपयोग के बाद आने वाले जल-मल मुख्य कारण हैं। जल प्रदूषण की वजह से पेट की बीमारियों में काफी वृद्धि देखी जा रही है। दिल्ली में जल प्रदूषण का प्रतिशत इतना ज्यादा है कि हर तीसरा व्यक्ति पेट की बीमारियों से ग्रस्त है। एक आँकड़े के मुताबिक दिल्ली में कुल 2,380 एमएलडी जल का उपयोग हेतु कुल उत्पादन है, जिसमें 1905 एमएल की प्रदूषित पदार्थ के रूप में परिणत हो जाते हैं। उन प्रदूषित पदार्थ व जल की ट्रीटमेंट की व्यवस्था के तहत 1270 एमएलडी का ही ट्रीटमेंट हो पाता है। शेष प्रदूषण फैलाने में मदद करते हैं। इस तरह प्रदूषित जल के उपयोग हेतु सरकार द्वारा कई प्रकार के ट्रीटमेंट प्लांट की योजना है।

यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिये ‘‘यमुना एक्शन प्लान’’ तथा गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये ‘‘गंगा एक्शन प्लान’’ बनाया गया है। क्योंकि ये दोनों नदियाँ पेयजल की आपूर्ति में मुख्य भूमिका अदा करती हैं। जल प्रदूषण के लिये विभिन्न उद्योगों द्वारा निकाले गए उत्सर्जित पदार्थ भी जिम्मेदार हैं जिसके लिये सरकारी व गैर-सरकारी स्तर पर कई प्रयास किये गए हैं।

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