प्रकृति ज्ञान हो विकास

हिमालय
हिमालय


भोगवादी व्यवस्था ने हिमालयी क्षेत्र पर अत्यधिक दबाव बनाया है। जिससे हिमालय में कई गम्भीर समस्याएँ पैदा हो रही हैं। मिट्टी की ऊपरी परत का ह्रास, भू-क्षरण और भूस्खलन, हिमानियों का पीछे सरकना, सामाजिक आर्थिक विकास जैसे कुछ प्रमुख लक्षण हैं।

हिमालय जन्मजात नाजुक पर्वत शृंखला है। टूटना और बनना इसका स्वभाव है। अति मानवीय हस्तक्षेप को हिमालय बर्दाश्त नहीं करता। भूकम्प, हिमस्खलन, भूस्खलन बाढ़, ग्लेशियर व तालों का टूटना और नदियों का अवरुद्ध होना इसी स्वभावगत विशेषता है। इसलिये सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र आपदा प्रभावित है, जिसमें जन-धन की हानि का सिलसिला साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। 19वीं सदी व बीसवीं सदी की आपदाओं को छोड़ दें तो 21वीं सदी की शुरुआत यानी 2000 से 2015 तक भी हर साल कोई-न-कोई आपदा अपना विकराल रूप दिखाती आ रही है। यह क्रम निरन्तर बढ़ता जा रहा है। 2013 जून मध्य से आरम्भ हुई गंगा की सहायक धाराओं की प्रलयकारी बाढ़ ने केदारनाथ सहित पूरे क्षेत्र में अभूतपूर्व विध्वंस किया। 2014-15 की जम्मू कश्मीर की बाढ़ से हुई भयंकर तबाही ने हिमालयी क्षेत्रों के टिकाऊ विकास के बारे में सोचने के लिये मजबूर कर दिया। हिमालय की यह दशा सिर्फ प्राकृतिक कारणों से हुई, ऐसा नहीं है, मानवजनित कारण इसके लिये अधिक दोषी है।

वैज्ञानिक एवं विचारक मानते हैं कि हिमालय क्षेत्र देश की जलवायु के नियमन, नियंत्रण एवं संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहाँ होेने वाली किसी भी हलचल का प्रभाव स्थानीय धरती एवं उसके निवासियों के साथ सुदूर मैदानी क्षेत्रों तक पड़ता है। इसलिये यहाँ के प्रमुख संसाधन, जैसे- भूमि, जल और वन का व्यापक आकलन करते हुए उनकी विवरणिका तैयार की जानी चाहिए। साथ ही विकास प्रक्रिया में इन आधारभूत संसाधनों के समुचित संरक्षण, संवर्धन एवं उपयोग को प्रमुख आधार बनाया जाना चाहिए। हिमालयी क्षेत्रों के लिये भूमि उपयोग, वन एवं जल की नीति इन प्राकृतिक संसाधनों व इनके विभिन्न घटकों के सतत संरक्षण एवं संवर्धन पर केन्द्रित होनी चाहिए।

वनों के संवर्धन को हिमालयी क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों का प्रमुख आधार बनाते हुए वनों की उत्पादकता और सघनता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। इसी तरह जल हिमालयी क्षेत्रों का एक प्रमुख संसाधन है। इसके उपयोग का एक बड़ा माध्यम विद्युत उत्पादन है। लेकिन, इनमें स्थानीय परिस्थितियों और हितों की अनदेखी की जा रही है। प्रभाव क्षेत्र का जनजीवन उससे पूर्व की अपेक्षा अधिक सुखी एवं समृद्ध हो, इसके लिये सम्बन्धित प्रक्रियाओं को लोकोन्मुखी बनाया जाना चाहिए। हिमालयी क्षेत्रों में कृषि आजीविका का परम्परागत एवं प्रमुख आधार है, लेकिन छोटी एवं बिखरी जोतों और अधिकतर भूमि के असिंचित होने से यहाँ पलायन बढ़ा है। लिहाजा, यहाँ ऐसी फसलों व उत्पादों को प्रोत्साहित किया जाये, जो मूल्य में अधिक और भार में कम हों। साथ ही जल्द खराब होने वाले भी न हों। हिमालयी क्षेत्र में आर्थिक विकास के केन्द्र में पारिस्थितिकी विकास को रखा जाये, ताकि प्राकृतिक सन्तुलन बना रहे। इसके लिये सरकारों को जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के साथ उत्पादकता को प्रोत्साहित करने वाली प्रणाली विकसित करनी होगी। सामाजिक, आर्थिक एवं पारिस्थितिकीय विकास के समन्वय के लिये अभी तक राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा उच्चस्तरीय ढाँचा नहीं है, जो इस क्षेत्र की समस्याओं को समन्वित तरीके से समझे। इसके लिये नीति व कार्ययोजनाएँ बनाकर उनके क्रियान्वयन को दिशा-निर्देश तय किये जाएँ और उनका कठोरता से अनुश्रवण भी हो।

वर्ष 1982 में भारत सरकार ने हिमालयी क्षेत्रों के इको डेवलपमेंट के अध्ययन को प्रो. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कार्यबल बनाया था। कार्यबल ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक कार्यबल बनाया था। कार्यबल ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हिमालयी क्षेत्र के लिये इको डेवलपमेंट कमीशन की स्थापना का सुझाव दिया, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं हो पाया। इस सन्दर्भ में जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान जैसी परिस्थितियों को देखते हुए हिमालयी क्षेत्र के लिये सामाजिक, आर्थिक व पारिस्थितिकी विकास का आयोग की स्थापना अत्यन्त जरूरी है। आयोग साल में कम-से-कम एक बार बैठे और नीति आयोग के समक्ष हिमालय की स्थिति पर रिपोर्ट पेश करे। इसके साथ ही एक कार्यकारी समिति भी गठित हो, जो पारिस्थितिकीय विकास इकाई की तरह कार्य करे। यह समिति हिमालयी क्षेत्र के विकास के लिये सुझाव व निर्देश दे सकेगी और कार्यक्रमों के निचले स्तर से लेकर राज्य स्तर तक प्रभावी कार्यान्वयन की निगरानी करेगी। इस इस प्रकार का संस्थागत ढाँचा गाँव से राज्य स्तर पर स्थापित किया जाना चाहिए। इससे हिमालयी क्षेत्रों के मूल जीवन तंत्र को बिना क्षति पहुँचाए वांछित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करने की आशा की जा सकती है।

 

 

 

TAGS

ecological imbalance in himalayas, environmental degradation in Hindi, landslide in Hindi, erosion in Hindi, melting glaciers in Hindi

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading