परम्परागत तालाबों के उपयोग हेतु जन सहभागिता

तालाब, फोटो: needpix.com
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प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत जन सहभागिता का साधारण भाषा में अर्थ समाज को अधिकारित प्रदान करना है। इसके लक्ष्य को हासिल करने का कोई निष्चित फार्मला नहीं है। समुदाय या स्थान विशेश या सामाजिक पृष्ठभूमि के बदलते ही तरीके बदल जाते हैं। अनुभव बताता है कि अकसर सहभागिता के स्थान पर समाज की अधिकारिता अधिक कारगर होती है। जाग्रत समाज कभी भी असहाय नहीं होता। उसकी एकजुटता के सामने सबको उसकी तार्किक बात माननी होती है।  

परम्परागत (प्राचीन) तालाबों के उपयोग का लक्ष्य, जन सहभागिता के माध्यम से उपलब्ध पानी की हर बूँद का अनुकरणीय उपयोग करना है। अर्थात आम सहमति से, समानता के आधार पर अधिक से अधिक स्टेक होल्डर्स के बीच, तालाब के पानी का न्यायोचित बंटवारा करना है। उनकी अपेक्षाओं और आवंटन के अनुरूप, उसे, वितरित करने की नीति को विकसित करना है। तदोपरान्त उस पर अमल करना है। उसे जन हितैषी भी बनाना भी है। पारदर्शी जनसहभागिता की मदद से इसे हासिल करना संभव है। 

विदित है कि निर्माण के बाद से परम्परागत तालाबों के पानी का उपयोग निस्तार और तत्कालीन गतिविधियों के लिए होता रहा है। इस कारण, परम्परागत रूप से, समाज में आज भी उसके ऐसे अनेक स्टेक-होल्डर (उपभोक्ता) मौजूद हैं जो उन तालाबों के पानी पर अपना पहला हक मानते हैं। अतः जैसे ही तालाब में पानी की उपलब्धता बढ़ेगी, संभवतः उनमें से कुछ अपना पुस्तैनी अधिकार वापिस चाहेंगे। आधुनिक ग्रामीण समाज, संभवतः उस परम्परागत अधिकार को सामयिक नहीं मानते हुए, लगभग पूरी तरह, अलग किस्म के उपयोग की पैरवी करेगा। इस मामले में अनेक सामयिक सुझाव भी सामने आ सकते हैं या कुछ नवाचार भी प्रस्तावित हो सकते हैं। इस दौर में विवाद भी पनप सकते हैं। 

पानी के बंटवारे को लेकर उपभोक्ताओं के बीच विवाद की स्थिति बन सकती है। यह स्थिति बनना स्वाभाविक भी है। इस स्थिति से निजात पाने के लिए बाहरी व्यक्ति या व्यक्तियों के हस्तक्षेपों से बचना होगा। हमारी जिम्मेदारी होगी कि हम निष्पक्ष रहकर, धैर्य का परिचय दें और समाज की बैठकें आमंत्रित करें। स्थायी तथा टिकाऊ समाधान के लिए लचीला रूख अख्तियार करें। स्थिति की नजाकत और स्टेक-होल्डर्स की अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर चर्चा की समुचित तैयारी करें। विकल्प भी तैयार रखें। अवसरवादिता का लाभ नहीं लें। किसी के भी प्रभाव में नहीं आवें। दोनों पक्षों को अपना मित्र मानें। लाभ को सभी स्टेक-होल्डर्स के बीच बिना भेदभाव के न्यायोचित तरीके से वितरित कराने का प्रयास करे। समाज को फैसला लेने दें। समाज को ही फैसला लागू करने दें। लगने वाले समय की चिन्ता नहीं करें। अपना अभिमत नहीं लादें। समाज की सहमति से लिया फैसला और उसका क्रियान्वयन ही विवादों का स्थायी समाधान है। यही समाधान पानी के उपयोग की दिशा तथा दशा तय करेंगे। हमारी भूमिका दूध का दूध और पानी का पानी करने की होना चाहिए।  

सुझाव है कि तालाब में पानी की बढ़ोत्तरी को जल संकट के हल और जल के अधिकार को उपलब्ध कराने के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए। इस अनुक्रम में सुझाव है कि समाज की भागीदारी और अधिकारिता से तालाब के पानी के बंटवारे और प्रबन्ध की प्राथमिकताओं को तय किया जाए। यह प्राथमिकताऐं निस्तार तालाब के लिए अलग और परकोलेशन एवं परकोलेशन-सह जल संचय तालाब के लिए अलग होंगी। यह भेद, उनसे हासिल की जाने वाली पानी की संभावित मात्रा के कारण है। स्टोरेज तालाब के मामले में यह प्राथमिकता उसमें संचित जल के लिए होगी वहीं परकोलेषन तालाब की दोनों श्रेणियों में यह प्राथमिकता तालाब तथा एक्वीफर में संचित पानी पर लागू होगी।

पानी के उपयोग व्यवस्था के लिए पंचायत के अधीन तालाब के स्टेक-होल्डरों के प्रतिनिधियों की समिति का गठन किया जा सकता है। यह समिति, प्रजातांत्रिक तरीके से अपनी कार्यकारणी का गठन करेगी। पंचायत की सहमति से, समिति, संचालन और रख-रखाव के लिए,उपभोक्ताओं से कुछ राषि टैक्स के रूप में ले सकती है। पंचायत मद से या अन्य वित्तीय स्रोत से इसे मदद उपलब्ध कराई जा सकती है। इसके संचालन की जिम्मेदारी महिलाओं के समूह को भी सौंपी जा सकती है। तालाब समिति के लिए नियम प्रावधानित किए जा सकते हैं। उन नियमों को समाज की सहमति से बनाना चाहिए।  

तालाब के पानी के उपयोग के लिए सहभागिता 

तालाब के पानी का सहभागिता आधारित सही उपयोग वह उपयोग है जिसे अपनाने से बहुसंख्य समाज सन्तुष्ट हो। न्यूनतम अपव्यय और सामाजिक स्वीकार्यता का उदाहरण हो। सहभागिता समय की कसौटी पर खरी उतरती हो। इस अनुक्रम में तालाब के पानी के उपयोग में सहभागिता बढ़ाने के लिए निम्न सुझावों पर विचार किया जा सकता है -

  • आम सहमति से स्टेक-होल्डरों के बीच पानी की मात्रा का आवंटन हो। आवंटन पर अमल हो। उसके लिए उपभोक्ता समिति नियम बनाए। 
  • आम सहमति से हर तालाब में उस बस्ती की निस्तार और जीव-जन्तुओं की साल भर की आवश्यकता को ध्यान में रखकर डेड स्टोरेज के पानी आरक्षित किया जाए। पानी को वाष्पीकरण से बचाने के लिए तालाब की तली में पानी का पैकेट बनाया जाए। तालाब के उथले भाग में कमल विकसित किया जाए।
  • तालाबों से पानी को सीधे लिफ्ट करने पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए।  आम सहमति से निर्णय लिया जाए। समिति उसका पालन कराए।  
  • पानी के अपव्यय को रोकने के लिए उपभोक्ताओं का निगरानी दल का गठन किया जाए। उसे अधिकर दिए जावें।
  • स्टेक-होल्डरों के बीच जल चेतना और जल साक्षरता अभियान चलाना चाहिए। जल साक्षरता के माध्यम से पानी की मात्रा और खर्च का आकलन तालाब स्तर पर हो। तदानुसार नियम बनें। 
  • तालाबों के पानी के प्रबन्ध का काम स्टेक-होल्डरों (उपभोक्ताओं) की समिति को सौंपा जाए।     
  • पानी के उपयोग पर देश में जन सहभागिता पर अनेक माडल उपलब्ध हैं। जन सहभागिता पर समझ बनाने के लिए उपलब्ध सफल उदाहरणों का अध्ययन किया जाए। उसका प्रचार-प्रसार हो।  
  • जल चेतना और जल साक्षरता तथा पानी की उपलब्धता के आधार पर तालाब के उपभोक्ताओं को अपना माडल विकसित करना चाहिए। यह नवाचार होगा। इस हेतु, उन्हे प्रोत्साहित किया जाए। 

हमको तालाब समिति को मिलकर जल उपयोग व्यवस्था और प्रभाव पर सन्तुष्टि संकेतक (Stake Holder Satisfaction Index - SHSI) का विकास करना चाहिए। इस संकेतक के आधार पर, हर साल, अपनाई व्यवस्था और स्टेक-होल्डरों की आजीविका पर पड़े असर पर समाज का अभिमत प्राप्त करना चाहिए। उपर्युक्त आधार पर सन्तुष्टि संकेतक ज्ञात करना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो, व्यवस्था सुधार के प्रयास करना चाहिए। अन्य जो स्थानीय परिस्थितियों में सामयिक हो। 

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