पर्यावरण : व्यक्तिगत और पारिवारिक उत्तरदायित्व

9 Apr 2014
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पर्यावरण को प्रदूषण रहित बनाने के लिए भारत सरकार भरसक प्रयास कर रही है। अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस समस्या को दूर करने में प्रयासरत हैं। लेकिन इन सबसे अधिक पर्यावरण के प्रति हम सबकी ज़िम्मेदारी है। पर्यावरण की इस दुर्दशा के हम और हमारी बढ़ती जनसंख्या उत्तरदायी है, फलतः इसे बेहतर बनाना भी हमारा कर्तव्य है। यहां कुछ ऐसे उपाय सुझाए गए हैं, जिन पर आचरण करना हम सब नागरिकों का परम कर्तव्य है। इन उपायों का पालन करने में थोड़ी असुविधा अवश्य होगी, लेकिन निश्चय ही इनके द्वारा हम पर्यावरण को आने वाले कल के लिए बेहतर बना सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को विरासत में स्वच्छ पर्यावरण दे सकेंगे

1. यदि आपके घर के किसी नल से पानी रिसता है तो उसे तुरंत ठीक करा लेना चाहिए, क्योंकि बूंद-बूंद करके इस नल से 60 गैलन पानी प्रतिदिन व्यर्थ में बह जाएगा।
2. पीने के लिए पानी से भरी बोतलें अपने फ्रीज में रखनी चाहिए। ठंडे पानी के लिए बार-बार जीवनदायी जल व्यर्थ ही बहता रहता है।
3. प्रातः काल दंत मंजन करते समय नल को लगातार खुला नहीं रखना चाहिए।
4. जहां तक हो सके नहाते समय फव्वारे का प्रयोग करना चाहिए।
5. कपड़े धोने की मशीन में उन डिटर्जेंटों का प्रयोग करना अधिक उपयोगी है जिनमें फास्फेट की मात्रा कम होती है।
6. शौचालय और मूत्रालय में रंगीन टॉयलट पेपर प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इनके रंगों से पानी प्रदूषित हो जाता है।
7. शौचालय की नालियों में कागज तथा दूसरे चिथड़े नहीं डालने चाहिए, इन वस्तुओं को कूड़े कचड़े में ही डालना चाहिए।
8. यदि आप कुएं का पानी पी रहे हैं तो उसका दो बार परीक्षण करवाना अतिआवश्यक है।
9. दवाइयाँ, रासायनिक पदार्थ, घरेलू विष, किटाणुनाषक औषधियां आदि सिंक और संडासों में नहीं डालने चाहिए इससे सीवेज प्लांटों पर अधिक जोर पड़ता है। ऐसी वस्तुओं को कूड़े के ढेर में ही डालना चाहिए।
10. शैंपू, लोशन, तेल और दूसरी वस्तुओं को कांच की बोतलों की पैकींग में ही खरीदना चाहिए, क्योंकि कांच से बनी बोतलों को दोबारा प्रयोग किया जा सकता है।
11. घरेलू वस्तुओं पर स्प्रे पेंट नहीं करना चाहिए। क्योंकि स्प्रे की वास्प सांस संबंधी रोगों को जन्म दे सकती है।
12. घरों में छोटे-छोटे पौधे लगाना और छोटा सा चिड़ीयाघर बनाना अत्यंत उपयोगी है। पौधे ऑक्सीजन पैदा करते हैं और पक्षी कीड़ों के शत्रु हैं।
13. कागजों और पेड़-पौधों की पत्तियों को जलाना नहीं, बल्कि उनको ढेर के रूप में जमा कर लेना चाहिए। वे बाद में अच्छी प्रकार की खाद का काम दे सकते हैं।
14. कार का पेट्रोल सीसा धातु से मुक्त होना चाहिए, ताकि वायु में कम से कम सीसा प्रदूषण हो।
15. जिन स्थानों पर बर्फ पड़ती है, वहां बर्फ को हटाने के लिए नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। नमक के अधिक प्रयोग से जल प्रदूषित हो जाता है।
16. चीनी मीट्टी से बने प्लेट-प्यालियों का प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए। कागज से बनी प्लेट प्यालियां कम से कम प्रयोग करना चाहिए क्योंकि ये भूमि प्रदूषण पैदा करती हैं। कागज की नैपकीनों की जगह तौलिया का प्रयोग करना चाहिए।
17. छोटी दूरियों के लिए कारों के स्थान पर साइकील का प्रयोग करना चाहिए। अंतर्दहन इंजनों वाले वाहन का जितना कम-से-कम प्रयोग हो, उतना ही उत्तम है।
18. एक ही क्षेत्र में रहने वाले तथा एक ही कार्यालय में काम करने वाले लोगों का कर्तव्य है कि वे कारों और स्कूटरों का प्रयोग संयुक्त रूप से करें। ऐसा करने से धन की बचत तो है ही साथ-साथ वायु प्रदूषण भी कम होता है।
19. भीड़ वाले व्यस्त मार्गों में वाहनों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए और चौराहों पर यातायत नियमों का पालन करना चाहिए।
20. लालबत्ती पर गाड़ी बंद कर देना चाहिए। ऐसा करने से आप उस क्षेत्र में वायु प्रदूषण की मात्रा कम करते हैं।
21. यदि आप कई मंजिला के मकान में रह रहे हैं तो छत पर और उसकी छोटी-छोटी खिड़कियों पर पौधे लगाना अत्यंत उपयोगी है। ये केवल मकान की सुंदरता हीं नहीं बढ़ाते बल्कि वायु में ऑक्सीजन का मात्रा भी बढ़ाते हैं।
22. विद्यालय की कॉपियों पर या दूसरे कामों के कागज के दोनों ओर लिखना चाहिए।
23. प्लास्टिक की थैलियों का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए। यदि प्रयोग करना ही है तो उन्हें बार-बार प्रयोग करें।
24. प्लास्टिक थैलियों को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए, क्योंकि ये भूमि प्रदूषण फैलाती हैं। जब भी बाजार जाएं अपना घरेलू थैला ले जाएं और इसी में सामान खरीदकर लाएं।
25. फ्रिज के अंदर प्लास्टिक थैली या मोमी कागज का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए।
26. अपने घर के कूड़े-कचरे को सड़क पर इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि कूड़ेदान में डालना चाहिए। इस प्रकार आप पर्यावरण को स्वच्छ रखने में योगदान देते हैं।
27. अपने पालतू पशुओं को खुली जगह पर नहीं छोड़ना चाहिए। ये गंदी वस्तुएं खाते रहते हैं। सड़कों पर ये गोबर करते हैं, जिससे बदबू आती है। फलस्वरूप अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। सड़कों पर घूमती गाएं वाहन दुर्घटनाओं के लिए भी उत्तरदायी हैं। नगरों एवं महानगरों में गाय खुली सड़कों पर अधिक घूमती रहती हैं।
28. छिपकली आदि तथा अन्य गैर विषैले जंतुओं को नहीं मारना चाहिए, क्योंकि ये दूसरे कीड़े-मकोड़ों को खाकर प्रकृति में संतुलन बनाए रखते हैं।
29. डी.डी.टी.का प्रयोग करना अत्यंत घातक है। कीड़े-मकोड़े मारने के लिए इसका प्रयोग कुछ देशों ने बंद कर दिया है। इसके स्थान पर दूसरे कीटनाशी प्रयोग करने चाहिए।
30. अपने पालतू कुतों को सड़क पर नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि उनके काटने से किसी की जान जा सकती है। पालतू बिल्लियों के गले में घंटी बांध दी जाए, ताकि उसके आने का पक्षियों को पता लग जाए और वे उड़कर अपनी जान बचा सकें।
31. जंगली जानवरों के फर और चमड़े से बनी वस्तुओं को कम ही प्रयोग में लाना चाहिए, क्योंकि मांग की अधिकता के कारण कुछ लोग जंगली जानवरों का शिकार करते हैं। फलस्वरूप उनके विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है।
32. अपने टी.वी., स्टीरियो और रेडियो को कम आवाज में बजाना चाहिए। ऐसा करने से हम शोर-प्रदूषण रोकने में सहायक हो सकते हैं।
33. विद्युत का प्रयोग कम-से-कम करना चाहिए। विशेष रूप से उस समय जब विद्युत का अधिकतम प्रयोग कारखानों (फ़ैक्टरियों) में अधिकतम किया जा रहा हो। घर छोड़ते समय बिजली के स्विच बंद होने चाहिएं। राजकीय/ अराजकीय (निजी) कार्यालयों में आपका कर्तव्य है कि कमरे से बाहर जाते समय ट्यूबलाइट और पंखे बंद कर देने चाहिए।
34. मोटर-गाड़ियों, बसों कारों और स्कूटरों के हॉर्न केवल आवश्यकता पड़ने पर ही बजाने चाहिए। इनके अनावश्यक रूप से बजाने से आप पर्यावरण में शोर-प्रदूषण पैदा करते हैं। सभी मोटर वाहनों के साइलेंसर ठीक स्थिति में होने चाहिए, ताकि उनसे शोर-गुल पैदा न हो।
35. बल्ब के स्थान पर सी.एफ.एल. का प्रयोग करना चाहिए।
36. एयरकंडीशनर के फिल्टर को समय-समय पर साफ करना एवं बदलना चाहिए।
37. भोजन बनाने हेतु कम एनर्जी लगने वाली वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए।
38. भोजन हमेशा ढंक कर बनाना चाहिए।
39. स्टैंड बाय मोड में किसी भी इलेक्ट्रॉनिक यंत्र को नहीं रखना चाहिए।
40. फ्रिज को समय-समय पर डिफ्रास करते रहना चाहिए।
41. वॉशिंग मशीन का प्रयोग कपड़े सुखाने में नहीं करना चाहिए।
42. गर्म पानी का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए।
43. घर हमेशा हवादार एवं रोशनी युक्त बनाना चाहिए।
44. समय-समय पर घर की रि-साइक्लिंग करनी चाहिए।
45. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए खरीदारी करनी चाहिए।
46. ताजे फल एवं ताजे भोजन का प्रयोग करना चाहिए।
47. पेड़-पौधे अधिक-से-अधिक लगाने चाहिए।
48. वाहन चलाते समय चक्के की हवा के स्तर की जांच करना चाहिए।
49. दूरसंचार व्यवस्था का प्रयोग करना चाहिए।
50. शहर को हरा-भरा एवं शीतल रखने का हर किसी व्यक्ति को प्रयास करना चाहिए।

स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा करणीय (कर्तव्य)


युवा स्वयंसेवी संस्थाएं, बालचर (स्काउट) तथा दूसरे कुछ समूह अपने कार्यों द्वारा पर्यावरण को बेहतर बना सकते हैं। विद्यार्थी वर्ग पर्यावरण प्रदूषण रोकने में काफी सहायक हो सकता है। ऐसी संस्थाओं के लिए निम्न कार्य निर्धारित किए जा सकते हैं-

1. यदि आप विद्यार्थी हैं तो अपने विद्यालय के प्रधान से निवेदन करें कि पर्यावरण संबंधी शिक्षा का उचित कार्यक्रम संस्था में प्रारंभ करें।
2. पर्यावरण समस्याओं से संबंधित पुस्तक-पुस्तिकाएं और पुस्तकें खरीदकर अपने क्षेत्र के पुस्तकालय को दान करें।
3. आप अपने मोहल्ले में एक ऐसी संस्था बनाइए, जो पार्कों, सड़कों, नालियों की सफाई पर ध्यान दे साथ-ही-साथ लोगों को पर्यावरण स्वच्छता के विषय में शिक्षा दें।
4. स्वयंसेवी संस्था के रूप में आप अपने गली-मोहल्लों की नालियों आदि का निरीक्षण करें और अनुचित व्यवस्था के लिए संबंधित अधिकारी को लिखें। गली-मोहल्ले के लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने चारों ओर सफाई का ध्यान रखें और सड़क पर डिब्बे, बोतल, कागज आदि न फेंकें। केले तथा मूंगफली के छिलके यथास्थान फेंकें अन्यथा केले के छिलके से फिसलकर कभी-कभी हड्डियां क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
5. हमें कारखानों में जाकर वहां के अधिकारियों से प्रदूषण कम करने के लिए अनुरोध करना चाहिए।
6. संस्थाओं तथा फ़ैक्टरियों के व्यवस्थापकों का यह कर्तव्य है कि वे सड़कों के किनारे छोटे-छोटे पौधे और फूल वाले पौधे लगाएं, ताकि वायु प्रदूषण न हो।
7. स्वयंसेवी संस्थाओं को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र में वाहनों की आने-जाने की रूप-रेखा पर ध्यान दें और किसी गलत कार्य की सूचना संबंधित जानकारी अधिकारी को दें।
8. स्वयंसेवी संस्थाओं को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र की जल टंकियों का निरीक्षण करें और कोई शिकायत होने पर जल आपूर्ति विभाग को सूचित करें।
9. स्वयंसेवी संस्थाएं पौधारोपण का कार्य भी अभियान के रूप में चला सकती हैं।
10. यदि आप अधिक कोलाहल (शोर) वाले क्षेत्र में रह रहे हैं तो संस्था के रूप में घर-घर जाकर शोर से होने वाले प्रतिकूल प्रभावों के विषय में लोगों को जानकरी दें और उनसे रेडियो, दूरदर्शन आदि कम आवाज में बजाने के लिए आग्रह करें।

बी. एड. छात्रा
स्वामी स्वरूपानंद इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन
आमदीनगर, हुडको, भिलाई (छ.ग.)

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