पश्चिमी अफ्रीका में जलवायु परिवर्तनः खाद्य सुरक्षा और जैव- विविधता को खतरा

पश्चिमी अफ्रीका विशेष तौर पर जलवायु परिवर्तन के प्रति अरक्षित है। इसकी एक वजह यह है कि यह इलाका अनिवार्य रूप से वर्षा जल पर आधारित है। पहले ही जलवायु में बदलाव यहां दर्ज किए जा रहे हैं और इससे बुरे की आशंका है। यदि विनाशक बदलावों से बचना है, तो इस क्षेत्र को तत्काल बहुमूल्य पारिस्थितिकी को संरक्षित करने तथा किसान-मजदूरों व अन्य समूहों को सहयोग करने के तरीके खोजने होंगे ताकि वे दीर्घकालिक बदलावों को अनुकूलित करने के लिए अपने पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल कर सके।

पिछले कुछ वर्षों से संकेत मिल रहे हैं कि पश्चिमी अफ्रीका में जलवायु जबरदस्त तरीके से बदल रही है। इस क्षेत्र के तकरीबन हर देश ने साल दर साल बारिश में कमी महसूस की है। साहेल के उत्तरी इलाके में 70 और 80 के दशक में जो बारिश पड़ती थी वह 50 और 60 के दशक के मुकाबले आधी थी। समूचा जल चक्र वहां प्रभावित हो गया था जिससे गंभीर परिणाम कृषि और खाद्य सुरक्षा पर पड़े। बारिश के मौसम के रूझान में कोई बदलाव नहीं आया, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2008 में बारिश के कारण खासकर टोगो और घाना में बड़े पैमाने पर सिंचित क्षेत्र में बाढ़ आ गई और जीवन नष्ट हो गया। पश्चिमी अफ्रीका के तटवर्ती इलाके में चलने वाली सूखी, ठंडी और उत्तर-पूर्वी हवा हरमैटन कमजोर पड़ गई है, खासकर बेनिन और कोर्ट डेलावायर में कृषि चक्र की गड़बड़ियां कृषि नियोजन को नुकसान पहुंचा रही हैं, तो सरकारी मदद अटपटे बयानों से आगे नहीं जाती, जबकि किसानों और मजदूरों को उनकी किस्मत पर छोड़ दिया गया है।

पश्चिमी अफ्रीका का भविष्य अंधकारमय है। वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन समशीतोष्ण इलाकों में पैदावार को बढ़ा सकता है जो आंशिक तौर पर उष्णकटिबंधीय इलाकों में गिरती पैदावार की भरपाई में सक्षम है। लेकिन इससे पश्चिमी अफ्रीका को बहुत मदद नहीं मिलेगी जो कि तमाम कम आय वाले क्षेत्रों की तरह निर्यात को बढ़ाने की सीमित क्षमता रखता है ताकि आयात बढ़ाने के लिए विदेशी मुद्रा कमाई जा सके। यह क्षेत्र घरेलू खाद्यान्न उत्पादन पर भारी रूप से निर्भर रहेगा जिससे इसे स्थानीय आपूर्ति में गिरावट को काटने में गिरावट आएगी। जब तक पश्चिमी अफ्रीका के किसान, मुछआरे, पशुपालक आदि खुद को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल बनाने के तरीके नहीं खोज निकालते, तब तक वहां की खाद्य सुरक्षा और कुशलता से गंभीर समझौता होता रहेगा।

जैव विविधता मानवता के लिए अनिवार्य है क्योंकि यह उन कच्चे माल और जीन की आपूर्ति करती है जो नई पौध और पशु प्रजातियों के उभार को संभव बनाते हैं जिन पर किसान और अन्य निर्भर हैं। आनुवंशिक, विशिष्ट और पारिस्थितिकीय हर स्तर पर जैव विविधता तनाव के प्रति प्रतिरोध को बढा़ती है ताकि जलवायु में बदलावों से निपटा जा सके। यही वजह है कि विविध आबादी और प्रजाति समृद्ध प्राकृतिक व कृषि पारिस्थितिकी का होना बहुत महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन जैव विविधता के लिए चुनौती पेश करता है और पारिस्थितिकी के सामान्य काम-काज में नुकसान पहुंचाता है। आशंका है कि इस सदी के अंत तक जैव विविधता को भारी नुकसान होगा जिससे पैदा होने वाली गड़बड़ियां, जैसे सूखा, आग, कीट, समुद्र का अम्लीकरण आदि पारिस्थितिकियों के प्रतिरोध का इम्तिहान लेगा, खासकर वे जो खाद्य उत्पादन के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। वे आनुवंशिक संसाधन जो खुद को अनुकूलित नहीं कर पाएंगे, खत्म होजाएंगे।

जलवायु परिवर्तन का सामना : कोपेनहेगन की तैयारी और उसके पार


हम, विभिन्न जनांदोलनों, समुदाय आधारित समूहों, अकादमिक क्षेत्रों, एनजीओ और नागरिक समाज संगठनों के नेता नैरोबी में पीपुल्स मूवमेंट ऑन क्लाइमेट चेंज के बैनर तले कोपेनहेगन और उसके आगे जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने की रणनीतियों पर 27-28 अगस्त, 2009 को चर्चा में,

पुष्टि करते हैं कि


औद्योगिक उत्तरी देशों और दक्षिण के कुछ देशों में केन्द्रीकृत गैर-जिम्मेदार और गैर-जवाबदेह उपभोग की एक कीमत है जिसे अफ्रीका चुका रहा है क्योंकि यह पारिस्थितिकीय संकट पैदा कर रहा है;

अफ्रीका और अन्य विकासशील राष्ट्रों के ऊपर भारी पारिस्थितिकीय कर्ज है;


यह पारिस्थितिकीय कर्ज आज अफ्रीका के संसाधनों, उसके लोगों, श्रम और अर्थव्यवस्थाओं के दोहन व लूट से और इकट्ठा होता जा रहा है;

जलवायु संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित समूह मूलवासी और महिलाएं हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की ग्रामीण महिलाएं क्योंकि इस परिघटना का सम्बन्ध जमीन या पानी व सम्बद्ध खेती और कारोबारी गतिविधियों जैसे संसाधनों से है जिसमें वे लगी हुई हैं;

कृषि और खाद्य सम्प्रभुता पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव काफी तीव्रता से महसूस किए जा रहे हैं। यह भूमि क्षरण, वनोन्मूलन, सघन खाद्य सुरक्षा, महाखरपतवारों, रेतीकरण, सांस्कृतिक झटके, अस्मिता के लोप, तथा असुरक्षित भोजन के जबरन उपभोग के माध्यम से प्रतिबिंबित हो रहे हैं;

इन प्रभावों को फर्जी समाधान (जीएमओ, कृषि ईंधन, सिंथेटिक उर्वरक, कृषि रसायन) गहरा कर रहे हैं तथा खाद्य अनुदान पर निर्भरता को बढ़ा रहे हैं;

औद्योगिक उत्तरी देशों और दक्षिणी देशों के बीच वर्तमान असंतुलित वैश्विक व्यापार सम्बन्ध और नीतियां जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों में योगदान दे रही हैं।

हमारा आह्वान


हम कार्बन ट्रेडिंग के सिद्धांत और अनुप्रयोग को खारिज करते हैं, जो हवा पर तथा प्रदूषण पर संपत्ति के पतित अधिकार के निर्माण पर आधारित एक फर्जी समाधान है; हम मांग करते हैं कि सभी वैश्विक, राष्ट्रीय व क्षेत्रीय समाधानों के केन्द्र में मानवाधिकारों व मूल्यों को रखा जाए;

हम दुनिया भर में सामाजिक और आर्थिक न्याय के आंदोलन के अपने साथियों का आह्वान करते हैं कि वे अलोकतांत्रिक कॉरपोरेटनीत एजेंडों के खिलाफ भीषण अभियान चलाएं, जो कोपेनहेगन की प्रक्रियाओं और वार्ताओं पर हावी रहेंगे;

हम इस बात पर जोर देते हैं कि पारिस्थितिकीय, छोटी काश्त वाला जैव विविध खाद्य उत्पादन खाद्य और बीज सम्प्रभुता को सुनिश्चित कर सकता है तथा अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन को संबोधित कर सकता है;

हम अफ्रीकी नेताओं द्वारा जलवायु परिवर्तन को दुरुस्त करने के आह्वान का समर्थन करते हैं और अफ्रीका के केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रियों की आगामी बैठक की पहल का भी समर्थन करते हैं तथा अफ्रीकी सरकारों का आह्वान करते हैं कि वे अफ्रीकी जनता के लिए ज्यादा से ज्यादा जन केन्द्रित विकल्पों को गले लगाएं;

हम अफ्रीकी सरकारों से अनुरोध करते हैं कि वे नागरिक समाज समूहों के साथ सकारात्मक सम्बन्ध बनाकर उनके साथ एक समान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया जलवायु परिवर्तन के खिलाफ विकसित करें।

हमारी रणनीतियां


अपने दायरे में मौजूद नेटवर्कों और संसाधनों को तत्काल सक्रिय करना और जलवायु परिवर्तन के संकट के जनपक्षीय समाधानों पर एक-दूसरे के साथ सार्थक रूप से जुडने में परस्पर क्षमताओं का विकास करना;

जलवायु परिवर्तन पर एक समन्वित वैश्विक प्रतिक्रिया का आह्वान करना जो उत्तर और दक्षिण के प्रभावित लोगों के बीच एकजुटता व व्यावहारिक गठजोड़ पर आधारित हो;

जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित अफ्रीका समुदायों के बीच मंचों, नेटवर्कों और पहलों का एक प्रवाह निर्मित करना तथा उनकी चिंताओं को रखने के लिए उपयुक्त राजनीतिक स्पेस का इस्तेमाल करना;

यह सुनिश्चित करना कि ऐसी राजनीतिक स्पेस में सालाना महाद्वीपीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सामाजिक मंचों के आयोजन शामिल हों, साथ ही उसके समानान्तर दक्षिण अफ्रीका के लोगों के शिखर सम्मेलन को भी शामिल किया जाए;

जलवायु परिवर्तन से प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित महिलाओं का सवांद स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तरों पर नीति-निर्माताओं के साथ करवाने में मध्यस्थता करना;

खाद्य सम्प्रभुता आधारित खाद्य आत्मनिर्भरता, मुद्दों के सूत्रीकरण तथा सूचित संलग्नता व विकल्पों के लिए क्षमता निर्माण की दिशा में शोध के माध्यम से समुदायों को संगठित करना;

किसानों, चरवाहों, मछुआरों व अन्य प्रभावित समुदायों को संगठित करना ताकि कोपेनहेगन में उनका एक प्रतिनिधित्व हो सके;

आर्थिक साझेदारी समझौतों (ईपीए) तथा अफ्रीका पर उनके पारिस्थितिकीय प्रभावों के विशिष्ट संदर्भ में तत्काल असंतुलित वैश्विक व्यापार सम्बन्धों व नीतियों में सुधार लाना;

पारिस्थितिकीय कर्ज के साथ अपनी संलग्नता को बनाए रखना, जलवायु परिवर्तन में सुधार का आह्वान तथा अफ्रीका के लोगों को ऐसे संसाधनों के प्रवाह के लिए वैकल्पिक माध्यमों की तलाश;

अफ्रीका सरकारों द्वारा सुधारों तथा एक ऐसे प्रगतिशील समझौते के लिए वार्ताओं में अधिक स्पेस दिए जाने के आह्वान का समर्थन करना जो अफ्रीका को और ज्यादा बदहाल न बनाए;

कोपेनहेगन से निकलने वाले किसी भी नतीजे के समन्वित फॉलोअप के प्रति खुद को वचनबद्ध करना। जलवायु परिवर्तन पर अफ्रीकी जनांदोलन, नैरोबी, केन्या, 30 अगस्त 2009।

द्वारा आईबीओएन अफ्रीका, किरिचवा रोड, ऑफ आर्विंग्स कोडेक, पीओ बॉक्स- 5252- 00100, नैरोबी, केन्या,

फोन- 254 20 3861590। वेबसाइटः www.iboninternational.org

क्या किया जा सकता है? संवेदनशील अनुकूलन या विनाश


पश्चिमी अफ्रीका के लिए जलवायु परिवर्तन कोई नई चीज नहीं है और यहां मनुष्यों व पारिस्थितिकी ने अपने अतीत से खुद को अनुकूलित करना सीखा है। इस बार हालांकि, जलवायु परिवर्तन ज्यादा तीव्रता से हो रहा है तथा बाहर से थोपे गए सामाजिक-आर्थिक तंत्र ने किसानों, पशुपालकों और जलवायु व प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर अन्य को ज्यादा आरक्षित बना दिया है। यदि इन समूहों को अनुकूलन के लिए बाहरी मदद न मिली, तो पश्चिमी अफ्रीका के ग्रामीण और यहां तक कि शहरी समुदायों में भी मौजूद सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रणालियां पूरी तरह नष्ट हो सकती हैं। कृषि उत्पादन को बचाने और बढ़ाने के लिए छोटे किसानों और अन्य कमजोर तबकों को मदद करने की पहलें जरूरी हैं। इसके लिए बहुत सहज और किफायती कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे मौसम विभाग की चेतावनी का एक तंत्र लगाया जाना, कृषि विस्तार सेवाओं में सुधार जिससे पैदावार बढ़े और क्षेत्र के समुदायों के बीच सूचना के आदान-प्रदान का एक स्वतंत्र और स्थानीय नेटवर्क निर्मित करना।

पश्चिमी अफ्रीका में तकरीबन हर जगह किसानों के पास बिना किसी मौसम केन्द्र के मौसम का अनुमान लगाने की क्षमता है। बेनिन, माली, टोगो और बुर्किनाफासो में किसान पौधों और पशुओं के आचरण में बदलाव को पकड़ लेते हैं (रंग, आकार, फूलने, परिपक्वता की अवधि, पलायन, प्रजनन, घोंसला बनाने के स्थान इत्यादि में बदलाव) जिससे उन्हें पता चल जाता है कि बारिश जल्दी होगी, या कम होगी या फिर सूखा मामूली रहेगा या गंभीर होने वाला है। एक ऐसी प्रणाली विकसित की जा सकती है जिसके माध्यम से परिवार, समुदाय और समूह ऐसी सूचना को साझा कर सकें। इसके बाद वे कम अवधि वाले किस्मों को उगाने की तैयारी कर सकते हैं या फिर अगर सूखे का अनुमान है, तो निचली जमीनों पर रोपण किया जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन से जुड़े कुछ धोखे भी हैं। किसानी परिवारों को बाहर से भेजे जाने वाले तथाकथित ‘समाधानों’ को लेकर सतर्क रहना चाहिए, विशेष तौर पर उन्हें अनियंत्रित स्रोत वाले ‘बेहतर’ बीजों के प्रति आशंकित रहना चाहिए जो कथित तौर पर सूखे, कीट और अन्य जलवायु जनित तनावों के ‘प्रतिरोधी’ हैं। शुरुआत में कम पैसे में किसानों को कंपनियां और संगठन अपने प्रच्छन्न हितों के लिए ऐसे बीज देते हैं जो जैव संशोधित होते हैं। पर्यावरण हितैषी होने के मुहावरे की आड़ में ये फसलें जबरदस्त विनाशक होती हैं; जिस तरह से इन्हें पैदा किया जाता है और जो इनका असर होता है, वह जैव विविधता पर एक अपरिवर्तनीय प्रभाव डालता है, जो कि पहले से ही पर्याप्त खतरे में है।

निष्कर्ष


जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तकनीकी और नीतिगत कदमों की तत्काल जरूरत है। तकनीकी स्तर पर ऐसे उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिसमें नई जलवायु के प्रति संस्कृतियों के अनुकलन का प्रसार हो, पारंपरिक ज्ञान को तरजीह दी जाए, जलापूर्ति विश्वसनीय हो और जहां संभव हो, वहां सीधे बीज बोए जाएं। यह भी जरूरी है कि हम जानें कि पारपंरिक ज्ञान की भूमिका नई तकनीकों को विकसित करने में काफी आकर्षक हो सकती है, जैसे कि कम वर्षा वाले इलाकों में वर्षा जल संग्रहण। नीतिगत कदमों के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन के प्रति मुख्यधारा में अनुकलन अनिवार्य है जिससे तय होगा कि यह सुनियोजित तरीके से नई परियोजनाओं के साथ एकीकृत रहे जिसका केन्द्र जैव विविधता तथा स्थानीय, राष्ट्रीय व क्षेत्रीय कृषि नीतियां हों। इसके अलावा किसानों, वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं को मिलकर परस्पर विश्वास के माहौल में काम करना चाहिए ताकि इस क्षेत्र के जैव संसाधनों का सतत उपयोग विकसित किया जा सके।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading