पशुओं से उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैस कैसे कम करें


विश्व-भर में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का प्रत्यक्ष एवं परोक्ष उत्सर्जन पशुओं से ही होता है। प्रत्यक्ष ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन मुख्यतः पशुओं के रूमेन (जुगाली करने वाले पशुओं का पेट) में किण्वन तथा खाद के सड़ने से जबकि अप्रत्यक्ष उत्सर्जन चारे की पैदावार एवं चारागाहों के विकसित होने से होता है। वैश्विक स्तर पर मानव-जनित ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की मात्रा का लगभग 18% पशुओं के कारण होता है। एक डेयरी गाय से लगभग 650 लीटर प्रतिदिन मीथेन उत्पादन होता है जो इनके आहार में ग्रहण की गई ऊर्जा का लगभग 10% है। यदि ऊर्जा की इस हानि को रोका जाए तो न केवल हमें स्वच्छ पर्यावरण प्राप्त होगा बल्कि पशुओं की उत्पादन क्षमता में भी सुधार आएगा। पर्यावरण की रक्षा हेतु हमें आंतरिक किण्वन तथा खाद के गलने-सड़ने से होने वाले मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड गैस उत्सर्जन को यथा सम्भव कम करने की आवश्यकता है। कई देशों ने अपनी पशुधन संख्या को सीमित करके मीथेन उत्सर्जन में कमी की है जबकि इनकी प्रति पशु उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई है।

कैसे होती है ताप वृद्धि?


ग्रीन हाउस गैसें जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड तथा जल वाष्प सौर ऊर्जा को अवशोषित कर वैश्विक तापवृद्धि का कारण बनते हैं। इन गैसों के उत्सर्जन से कार्बन फुटप्रिंट का आकार बढ़ता है जो हमारे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ऊष्मा अवशोषित करने वाली ये गैसें ग्रीन हाउस की उन काँच की खिड़कियों की तरह हैं जो पृथ्वी को अधिक तापमान से बचाती हैं। इन गैसों का अधिकांश उत्सर्जन खनिज तेलों के जलने से भी होता है। पशुओं के रूमेन अथवा आमाशय से निकलने वाली मीथेन तथा मल-मूत्र से उत्पन्न नाइट्रस ऑक्साइड मुख्यतः डेयरी फार्मों में ग्रीन हाउस गैसों के लिये उत्तरदायी हैं। इस समस्या से मुक्ति पाने के लिये डेयरी के सभी क्षेत्रों जैसे चारा एवं दुग्ध उत्पादन में कार्य कुशलता बढ़ाने की आवश्यकता है। मीथेन गैस भी ऊर्जा का ही एक रूप है जिसे गँवाने का सीधा अर्थ है उत्पादन में हानि होना।

 

दूध देने वाली गाय सात गुना अधिक मीथेन पैदा करने में सक्षम है जबकि जंगली रोमंथी पशु बहुत कम मात्रा में मीथेन गैस छोड़ते हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार समस्त पशुधन से होने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का लगभग 9.5% भाग सूअर पालन तथा पोल्ट्री से आता है। अतः ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से मुक्ति पाने के लिये एक समग्र कार्य-योजना अपनाने की आवश्यकता है।

 

पशुओं से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन


पशुओं के रूमेन में कार्बोहाइड्रेट किण्वन द्वारा मुख्यतः मीथेन व कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का निष्कासन होता है। पोषण द्वारा ग्रहण की गई सकल ऊर्जा का 5-7% भाग मीथेन के रूप में व्यर्थ हो जाता है। भेड़-बकरियों से 10-16 किलोग्राम तथा गौ-वंश पशुओं से 60-160 किलोग्राम मीथेन प्रतिवर्ष उत्पन्न होती है जो इनके आकार एवं शुष्क पदार्थ ग्राह्यता पर निर्भर करती है। कहा जाता है कि एक किलोग्राम गौ-माँस उत्पादित करने में लगभग 34.6 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है जो किसी कार द्वारा 250 किलोमीटर की दूरी तय करने में उत्सर्जित होता है। इसमें होने वाली ऊर्जा की हानि इतनी अधिक है कि इससे एक सौ वाट का बल्ब 20 दिन तक जलाया जा सकता है। अतः गौ-माँस एवं दूध की खपत कम करके हम अपने कार्बन फुट-प्रिंट पर नियंत्रण कर सकते हैं। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन के अनुसार पृथ्वी पर जीवन की संभावनाएं बढ़ाने के लिये शाकाहारी भोजन अपनाने से बेहतर कोई अन्य विकल्प नहीं है।

कुछ पालतू गैर-रोमंथी पशु जैसे घोड़े, गधे तथा खच्चर आदि भी बड़ी आँत में किण्वन द्वारा मीथेन उत्पन्न करते हैं परन्तु इसकी मात्रा रोमंथी पशुओं से बहुत कम होती है। संभवतः इन पशुओं में अधिकतर पाचन क्रिया बड़ी आँत में आने से पहले हो जाती होगी तथा हाइड्रोजन के निस्तारण हेतु कोई वैकल्पिक मार्ग होगा जिससे मीथेन का उत्पादन कम होता हो। एक अनुमान के अनुसार घोड़े की तुलना में दूध देने वाली गाय सात गुणा अधिक मीथेन पैदा करने में सक्षम है जबकि जंगली रोमंथी पशु बहुत कम मात्रा में मीथेन गैस छोड़ते हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार समस्त पशुधन से होने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का लगभग 9.5% भाग सूअर पालन तथा पोल्ट्री से आता है। अतः ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से मुक्ति पाने के लिये एक समग्र कार्य-योजना अपनाने की आवश्यकता है। गैस उत्सर्जन के उन्मूलन हेतु अपनाई जा रही विभिन्न विधियों का मानकीकरण किया जाना चाहिए ताकि प्रत्येक विधि की क्षमता का उपयुक्त मूल्यांकन हो सके।

अतः मीथेन शमन हेतु उपयुक्त कार्य-योजना बनाते समय पशु, खाद, मिट्टी एवं फसलों के बीच संबंधों पर ध्यान देना आवश्यक है क्योंकि इन सबकी परस्पर प्रतिक्रियाओं से ही किसान के आर्थिक हित जुड़े हुए हैं। आजकल पशुओं में मीथेन-शमन हेतु निम्नलिखित विधियों पर अनुसंधान किया जा रहा हैः

रासायनिक अवरोधक


ये ऐसे रासायनिक अवरोधक पदार्थ जैसे ब्रोमोक्लोरो-मीथेन, 2-ब्रोमो-ईथेन सल्फोनेट, क्लोरोफार्म व साइक्लोडेक्स्ट्रिन आदि हैं जो रूमेन में मीथेन उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं की संख्या को नियंत्रित करने में सक्षम हैं। ये अवरोधक पशुओं में लगभग 50% तक मीथेन उत्पादन को कम कर सकते हैं। ब्रोमोक्लोरो -मीथेन वायुमंडल की ओजोन परत को हानि पहुँचाता है इसलिए इसे आजकल मीथेन शमन हेतु उपयोग में नहीं लाया जा सकता। क्लोरोफार्म एक कैंसरकारी रसायन होने के कारण उपयोगिता में बाधक हो सकता है। एक अनुसंधान के अनुसार 3- नाइट्रो-ऑक्सीप्रोपेनॉल द्वारा गायों में मीथेन उत्पादन लगभग आधा रह गया परन्तु मीथेन शमन की दर विभिन्न पशुओं में एक समान नहीं थी हालाँकि यह रसायन शरीर में तीव्रता से अवशोषित, उपचयित व निष्कासित हो जाता है। अतः इसे अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये लगातार पशुओं के चारे में मिलाकर देना आवश्यक है।

इलेक्ट्रॉन-ग्राही यौगिक


मीथेन शमन हेतु नाइट्रेट, सल्फेट तथा नाइट्रो-इथेन यौगिकों का उपयोग किया गया है। एक परीक्षण में नाइट्रेट द्वारा गायों में मीथेन उत्पादन लगभग 50% तक कम हो गया। नाइट्रेट से रूमेन में अमोनिया का उत्पादन अधिक होता है तथा नाइट्राइट की विषाक्तता एक बड़ी चुनौती हो सकती है। यदि पशुओं को आहार में प्रोटीन की सीमित मात्रा दी जाए तो नाइट्रेट को सफलतापूर्वक मीथेन शमन हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।

 

क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार दुधारू पशुओं से मीथेन उत्सर्जन मापने के लिये एनडीडीबी ने एक प्रयोगशाला की स्थापना की है। जानवरों की विभिन्न श्रेणियों में संतुलित आहार खिलाने से पहले और उसके बाद मीथेन उत्सर्जन को मापने एवं बुनियादी जानकारी इकट्ठा करने के लिये क्षेत्र परीक्षण किये जाते हैं। अब तक हुए अध्ययनों से पता चला है कि संतुलित आहार खिलाने से, गायों और भैंसों में प्रति किलोग्राम दूध उत्पादन पर मीथेन उत्सर्जन 10-15 प्रतिशत कम करना संभव है।

 

पशुओं को नाइट्रेट संपूरक देने से पूर्व आहार में इसकी उपलब्धता जानना आवश्यक है क्योंकि आवश्यकता से अधिक नाइट्रेट हानिकारक हो सकता है। भेड़ों को आहार में सल्फेट देने से मीथेन उत्पादन में कमी आती है। अगर नाइट्रेट एवं सल्फेट मिलाकर दिए जाएँ तो इसका मीथेन शमनकारी प्रभाव कम हो सकता है।

आयनोफोर का उपयोग


मीथेन शमन हेतु ‘मोनेन्सिन’ नामक आयनोफोर का उपयोग सर्वाधिक किया गया है यद्यपि यूरोप में इनके उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। सम्पूर्ण मिश्रित राशन में 21 मिलीग्राम प्रति किलो शुष्क पदार्थ की दर से मोनेन्सिन देने पर मीथेन गैस के उत्पादन में 6 ग्राम प्रति दिन तक की कमी देखी गई है।

जैव क्रियाशील पदार्थ


पौधों से प्राप्त टैनिन, सैपोनिन, अनिवार्य तेलों एवं इनके क्रियाशील अवयवों द्वारा भी पशुओं में मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। टैनिन संपूरक द्वारा मीथेन गैस उत्सर्जन को लगभग 20% तक कम किया जा सकता है। टैनिन को पोषण के विपरीत पाया गया है तथा इनके कारण आँतों में मिलने वाले ‘टोड’ नामक परजीवियों की संख्या कम हो जाती है। टैनिन आहारीय अमीनो अम्लों का अवशोषण कम करके पोषण उपयोगिता को प्रभावित करते हैं। टैनिन द्वारा मीथेन उत्सर्जन में कमी आती है परन्तु यह दुधारू गायों में दूध का उत्पादन भी 10% तक कम कर देता है। इससे आहार में रुक्ष प्रोटीन की पाचकता कम होती है तथा आहार ग्राह्यता प्रभावित होती है।

कहा जाता है कि टैनिन की तुलना में सैपोनिन एक बेहतर विकल्प सिद्ध हो सकते हैं। पानी में घुलनशील टैनिन सीधे रूमेन के ‘मीथेनोजन’ जीवाणुओं को नियंत्रित करते हैं। प्रति-मीथेनोजेनिक प्रभाव टैनिन की सांद्रता एवं इसमें पाए जाने वाले ‘हाइड्रॉक्सिल’ समूहों पर निर्भर करता है। संघनित टैनिन रेशों की पाचकता कम करके मीथेन उत्पादन नियंत्रित करते हैं। कुछ टैनिन रूमेन में अत्यंत घुलनशील होने के कारण विषैले हो सकते हैं। कुछ सैपोनिन ‘प्रोटोजोआ’ की संख्या घटाकर मीथेन उत्सर्जन को 25% तक कम करने में सक्षम हो सकते हैं।

बाह्य एंजाइम एवं सूक्ष्म जीवाणु


आजकल सूक्ष्म जीवाणुओं को संपूरक के रूप में खमीर एवं फफूंद सीधे ही पशुओं को खिलाए जा रहे हैं। इसके प्रभाव से गायों की पोषण ग्राह्यता अथवा उत्पादकता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा जबकि कुछ परीक्षणों में दूध का उत्पादन औसतन 3.5% तक बढ़ गया था। लैक्टेट उत्पादित करने व इसका उपयोग करने वाले जीवाणुओं को उपयोग करने पर आँत की अम्लता सामान्य जबकि जीवाणु अधिक क्रियाशील हो गए। यह रूमेन के स्वस्थ होने का परिचायक भी है।

टीकाकरण


हालाँकि मीथेन उत्पादित करने वाले जीवाणुओं को नियंत्रित करने के लिये इस विधि का उपयोग किया जा रहा है फिर भी इसके परिणाम उतने उत्साहजनक नहीं कहे जा सकते। पशुओं को लार के द्वारा लगातार ‘एंटीबॉडी’ की आपूर्ति की जाती है जो रूमेन में जाकर ‘मीथेनोजेनिक’ जीवाणुओं को नष्ट कर देती है। सर्वाधिक मात्रा में मीथेन उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं की झिल्ली से एक विशेष प्रकार के प्रोटीन की पहचान की गई है। इसमें ई. कोलाई नामक जीवाणुओं से शोधित प्रोटीनों को टीके द्वारा एंटीजन के रूप में भेड़ों को दिया जाता है ताकि ‘मीथेनोजन’ को निष्क्रिय किया जा सके।

आजकल मीथेनोजन जीवाणुओं के जीनोम की सफलतापूर्वक ‘सीक्वेन्सिंग’ अथवा अनुक्रमण होने से मीथेन शमन हेतु अनुसंधान के नए द्वार खुल रहे हैं। कार्बन डाइऑक्साइड तथा हाइड्रोजन को मिलाकर ‘एसीटेट’ निर्माण करने वाले जीवाणु रूमेन में विद्यमान रहते हैं परन्तु ये मीथेन बनाने वाले जीवाणुओं से मुकाबला नहीं कर सकते। अगर हाइड्रोजन को किसी तरह घुलनशील बना दिया जाए तो मीथेन उत्पादन में अवश्य ही कमी लाई जा सकती है। अनुसंधान द्वारा ज्ञात हुआ है कि पशुओं के प्रारंभिक जीवनकाल के दौरान इनके रूमेन में विकसित होने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी परिवर्तन किये जा सकते हैं। ताकि मीथेन उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं की संख्या को सीमित किया जा सके।

तेल एवं खाद्य वसा


वसा द्वारा मीथेन शमन तो सम्भव है किन्तु इसका प्रभाव दीर्घकालिक नहीं है। नारियल का तेल मीथेन-शमन में प्रभावी है परन्तु इसे उपयोग में लाने से पोषण ग्राह्यता, रेशों की पाचकता, दुग्ध-उत्पादन एवं दूध में वसा की मात्रा कम हो जाती है। अतः इस तरह की वसा मीथेन-शमन हेतु उपयुक्त नहीं हो सकती।

यदि शुष्क पदार्थ ग्राह्यता का लगभग 3% भाग अतिरिक्त वसा संपूरक के रूप में पशुओं को खिलाया जाए तो इससे 24% तक मीथेन शमन सम्भव हो सकता है। परन्तु अधिक तेल-युक्त वसीय उत्पादों का उपयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इससे पशुओं के दुग्ध-वसा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पशुओं को खिलाने के लिये रेपसीड एवं केनोला से प्राप्त ‘बायोडीजल’ उपोत्पाद एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं। इनमें शुष्क पदार्थ के आधार पर लगभग 17% तक अधिशेष तेल की मात्रा हो सकती है जो गायों में शुष्क पदार्थ ग्राह्यता एवं दुग्ध-वसा को कम कर सकती है। अतः इसका उपयोग अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए अन्यथा मीथेन उत्पादन में वृद्धि भी हो सकती है।

बेहतर आहार प्रबंधन


आहार में कार्बनिक पदार्थों की पाचकता, सान्द्र मिश्रण अथवा स्टार्च ग्राह्यता एवं रूमेन किण्वन के बीच आपसी सम्बन्ध है। स्टार्च एवं शर्करा किण्वन के कारण रूमेन में ‘प्रोपियोनेट’ का उत्पादन अधिक होता है तथा रूमेन की अम्लता बढ़ जाती है। अतः स्टार्च की तुलना में रेशों के किण्वन द्वारा अधिक मात्रा में हाइड्रोजन उत्पन्न होती है जो मीथेन उत्पादन हेतु उत्तरदायी होती है। आजकल आहार ग्राह्यता द्वारा मीथेन उत्पादन का अनुमान लगाना सम्भव है। आहार ग्राह्यता बढ़ने से इसकी निष्कासन दर में भी कुछ सुधार होता है व पाचकता में कमी होती है जिससे किण्वित होने वाले कार्बनिक पदार्थों का निष्कासन अधिक होता है तथा मीथेन एवं नाइट्रिक ऑक्साइड उत्सर्जन बढ़ जाता है। यदि पशुओं को चारा काट कर खिलाया जाए तो मीथेन उत्पादन में कमी लाई जा सकती है।

विशेष समीकरणों द्वारा मीथेन उत्पादन का अनुमान लगाने के बावजूद इसके शमन हेतु रणनीति बनाना कठिन है क्योंकि आहार में मिलने वाले विभिन्न घटक एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिये मूत्र द्वारा उत्सर्जित होने वाली नाइट्रोजन कम करने से मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है। पोषण में रुक्ष प्रोटीन की मात्रा घटाने से अन्य संघटकों जैसे स्टार्च एवं रेशों की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मीथेन उत्सर्जन अधिक होता है। अधिक सान्द्र मिश्रण देने से प्रति किलोग्राम आहार पर मीथेन उत्सर्जन कम होता है। उल्लेखनीय है कि सान्द्र मिश्रण खिलाने से चारे की तुलना में अधिक पाचक तत्व प्राप्त होते हैं जो पशुओं की उत्पादकता बढ़ाते हैं। परन्तु आवश्यकता से अधिक सान्द्र मिश्रण का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह रेशों की पाचकता को कम कर देता है। घास की तुलना में फलीदार पौधों का चारा खिलाने पर पशुओं में मीथेन का उत्पादन कम हो जाता है। आजकल मीथेन उत्पादकता में कमी लाने वाले पशु आहारों पर तीव्रता से शोध कार्य चल रहा है।

विभिन्न अनुसंधान परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि पशुओं को संतुलित आहार देने से इसकी उपयोगिता अधिक होती है तथा मीथेन गैस उत्सर्जन में कमी आती है।

सम्पर्क


अश्विनी कुमार रॉय, वरिष्ठ वैज्ञानिक
पशु शरीर क्रिया विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल 132001 (हरियाणा)


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