पुस्तक परिचय - एक थी टिहरी

एक थी टिहरी
एक थी टिहरी


हमारे देखते-ही-देखते टिहरी नाम का जीता-जागता एक शहर विकास की बलि चढ़ गया। यह शहर शुभ घड़ी लग्न में महाराजा सुदर्शन शाह द्वारा 28 दिसम्बर 1815 को बसाया गया था और 29 अक्टूबर, 2005 को माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय पर डूबा दिया गया।

इस प्रकार यह शहर अपने जीवन के दो सौ वर्ष भी पूरे नहीं कर पाया। टिहरी रियासत के प्रथम राजा महाराजा सुदर्शनशाह कला और साहित्य प्रेमी व्यक्ति थे। वे स्वयं एक कवि थे। उन्होंने अपने दरबार में कवियों को खूब प्रश्रय दिया। उनके द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘सभासार’ कभी प्रकाशित नहीं हुआ पर उसकी पांडुलिपि उनके संग्रहालय में विद्यमान है।

टिहरी शहर के विषय में जितना लिखा गया है उतना किसी अन्य शहर के विषय में नहीं लिखा गया। यद्यपि कवियों और लेखकों को विदित नहीं था कि टिहरी शहर एक दिन डूब जाएगा। टिहरी शहर के आकर्षण और प्राकृतिक सुषमा के कारण ही कवि और लेखक टिहरी पर लिखने के लिये विवश हुए होंगे।

 

 

एक थी टिहरी  

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

डूबे हुए शहर में तैरते हुए लोग

2

बाल-सखा कुँवर प्रसून और मैं

3

टिहरी-शूल से व्यथित थे भवानी भाई

4

टिहरी की कविताओं के विविध रंग

5

मेरी प्यारी टिहरी

6

जब टिहरी में पहला रेडियो आया

7

टिहरी बाँध के विस्थापित

8

एक हठी सर्वोदयी की मौन विदाई

9

जीरो प्वाइन्ट पर टिहरी

10

अपनी धरती की सुगन्ध

11

आचार्य चिरंजी लाल असवाल

12

गद्य लेखन में टिहरी

13

पितरों की स्मृति में

14

श्रीदेव सुमन के लिये

15

सपने में टिहरी

16

मेरी टीरी

 

टिहरी को डुबाए जाने की खबर सुनने के बाद टिहरी पर खूब लिखा गया। टिहरी की दुर्दशा पर आँसू बहाए गए और साहित्य जगत में टिहरी की विशेषताओं का उल्लेख किया गया। टिहरी के डूबने पर आम जनता को जो पीड़ा हुई उसका वर्णन कवियों और गीतकारों ने बखूबी किया है। टिहरी बाँध से बनी विशालकाय झील में उपजाऊ सिंचित खेत और पहाड़ी शैली के बने पुश्तैनी मकान, पानी के धारे, जंगल और बाग-बगीचे तो डूबे ही हैं, अन्तिम यात्रा के लिये कूच करने वाले व्यक्तियों के श्मशान घाटों को भी टिहरी बाँध की विशालकाय झील ले डूबी। लोगों के पुश्तैनी और परम्परागत घाट नष्ट होने से शवदाह की समस्या उत्पन्न हो गई।

टिहरी के जीवनकाल में और टिहरी डूबने के बाद जो कुछ भी लिखा गया है उसका कुछ अंश मात्र ही इस पुस्तक में संकलित और सम्पादित करने का हमने प्रयास किया है। जब-जब मकर-संक्रान्ति, बसन्त-पंचमी आदि के त्योहार आएँगे, तब-तब संगम पर स्नान करने के लिये टिहरी की याद आएगी। टिहरी में जन्मी, पली और बढ़ी पीढ़ी को विभिन्न अवसरों पर टिहरी की याद आती रहेगी।

टिहरी के साथ उन लोगों की याद भी आएगी जो टिहरी को गौरव प्रदान करते थे। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे व्यक्तियों के सम्बन्ध में लिखा गया है जो भावी पीढ़ी के लिये प्रेरणा स्रोत बन सकते हैं। वर्तमान पीढ़ी के समाप्त होने के बाद भावी पीढ़ियाँ साहित्य के माध्यम से ही टिहरी को जान पाएँगी। ‘नई टिहरी’ शब्द भी एहसास कराएगा कि कोई पुरानी टिहरी शहर भी था।

हमारे प्रयास इस प्रयास की सफलता पाठकों की प्रतिक्रिया पर निर्भर है। आशा है कि यह छोटा-सा प्रयास पाठकों को पसन्द आएगा।

डॉ. सृजना राणा
हिन्दी विभाग
बिड़ला परिसर
हे.न.ब. केन्द्रीय विश्वविद्यालय,
श्रीनगर गढ़वाल

प्रताप शिखर
जागृति भवन
खाड़ी, डाकघर जाजल
टिहरी गढ़वाल

 

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