फार्मर्स फील्ड - एक परिचय


आज हमारे यहाँ कृषि उत्पादकता में जो प्रान्तीय खाई है उसे भी भरने की कोशिश की जानी चाहिए। फार्मर्स फील्ड स्कूल इसी दिशा में एक कदम है। यह किसानों को कृषि प्रसार एवं शोध के मुख्य धारा में लाने का एक मंच प्रदान करता है, जहाँ किसान अपनी समस्याओं एवं उसके समाधान की विवेचना तो करते ही हैं, साथ में नई तकनीक के विकास एवं प्रसार में भी उनकी सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित होती है। आज हम कृषि क्षेत्र में दूसरी हरित क्रान्ति की बात कर रहे हैं, पर सच यह है कि कुल कृषि योग्य भूमि के केवल 20 प्रतिशत क्षेत्र में ही पहले हरित क्रन्ति का लाभ हो पाया है। एक आकलन के अनुसार कृषि क्षेत्र में आज जितने भी तकनीक उपलब्ध हैं। उनमें से 70 प्रतिशत तकनीक का उपयोग किसानों द्वारा नहीं हो पाया है। दूसरे तरफ यह भी एक तथ्य है कि जिन तकनीकों को वैज्ञानिकों ने अपने परीक्षण में नकार दिया था आज उनमें से कुछ तकनीक का उपयोग किसान के खेतों में हो रहा है। जरूरत है शोध एवं प्रसार व्यवस्था में किसानों की अपेक्षाओं का समावेश किया जाय।

किसानों को सिर्फ तकनीक के बारे में जानकारी ही नहीं दी जाये बल्कि किसान उन तकनीकों को अपने खेतों में उपयोग में लाने की प्रवीणता भी हासिल करें। आज हमारे यहाँ कृषि उत्पादकता में जो प्रान्तीय खाई है उसे भी भरने की कोशिश की जानी चाहिए। फार्मर्स फील्ड स्कूल इसी दिशा में एक कदम है। यह किसानों को कृषि प्रसार एवं शोध के मुख्य धारा में लाने का एक मंच प्रदान करता है, जहाँ किसान अपनी समस्याओं एवं उसके समाधान की विवेचना तो करते ही हैं, साथ में नई तकनीक के विकास एवं प्रसार में भी उनकी सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित होती है।

फार्मर्स फील्ड स्कूल क्या है?


जैसा कि नाम से ही विदित होता है, यह एक प्रक्षेत्र स्कूल है जहाँ किसान अपने खेतों में खुद परीक्षण करते हैं, उसे समझते हैं और सीखते हैं। इसका उद्भव एक इण्डोनेशियन वाक्य से हुआ है, जिसका अर्थ है- प्रक्षेत्र विद्यालय, इसकी पहली शुरुआत 1989 में बैंकाक में हुई थी। बहुत सारे वैज्ञानिकों ने इसकी व्याख्या अपने-अपने तरीके से की है और प्रायः सबों ने इसे कृषि प्रसार के नए आयाम के रूप में व्याख्या की है जो तकनीक विकास प्रक्रिया एवं किसानों के सामाजिक, आर्थिक, एवं कृषि पारिस्थितिकी के आपसी सम्बध को दर्शाता है। वस्तुतः फार्मर्स फील्ड स्कूल समूह संचालित, फसल ऋतु आधारित एवं कृषि उत्पादन के कारकों से सम्बन्धित शिक्षण, परीक्षण, एवं शोध का माध्यम है। किसान समूह में सदस्यों की संख्या 15 से 30 तक होती है।

सीखने के लिये मुख्यतः प्रशिक्षण विधि का उपयोग किया जाता है। विषय वस्तु का चयन समस्याओं की प्राथमिकता एवं सदस्यों के मनतव्य के आधार पर किया जाता है। पूरे फसल ऋतु को ध्यान में रखते हुए विभिन्न सत्रों का संचालन होता है। इसमें मुख्यतः चयनित फसल के लिये बीज से बीज तक के तकनीकों का समाकलन होता है। फील्ड स्कूल के स्थान एवं अवधि का चयन प्रतिभागियों के सुविधानुसार किया जाता है। फार्मर्स फील्ड के सफल संचालन के लिये कुछ दिशा निर्देश तय करना चाहिए एवं इसे लेखाबद्ध करना चाहिए।

फील्ड स्कूल के विषय वस्तु एवं तरीकों का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि यह प्रतिभागियों में निर्णय क्षमता का विकास हो सके ताकि वे अपने योग्य तकनीक की पहचान कर सकें।

फील्ड स्कूल की सफलता ‘कृषि-आर्थिक तंत्र विश्लेषण (AESA)’ सत्र के सफल संचालन पर निर्भर करता है। कृषि तंत्र का विश्लेषण कृषि के समूचे परिवेश तथा जैविक एवं अजैविक (सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक) के परस्पर सम्बन्धों एवं प्रभाव के रूप में करना चाहिए। क्षेत्र की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सत्र विधि में बदलाव किया जा सकता है लेकिन एक (AESA) सत्र में मुख्यतः निम्नलिखित चरणों को समाहित करना चाहिए।

सत्रावसान

फार्मर्स फील्ड स्कूल-क्रमिक चरण


1. पूर्व एफ. एफ. एस. गतिविधियाँ


1. कृषि उत्पादन तंत्र के मुख्य इकाई की पहचान।
2. समस्याओं का प्राथमिकीकरण
3. खेती की प्रचलित तरीकों एवं देशज तकनीक की पहचान करना।
4. फील्ड स्कूल समूह की पहचान करना एव चयन करना।
5. फील्ड स्कूल के लिये स्थान का चयन इत्यादि।

2. प्रशिक्षण


फील्ड स्कूल में जो भी व्यक्ति फेसिलिटेट करेंगे निम्नलिखित विषयों पर प्रशिक्षण देना चाहिए।
1. पशुधन उत्पादन एवं फसल तकनीक
2. सीखने के गैर पारम्परिक तरीके
3. पार्टीसिपेटरी रिसर्च (शोध) के तरीके एवं आवश्यकता।
4. समूह संचालन गतिविधि

फील्ड स्कूल की स्थापना एवं कार्यान्वयन


1. प्रक्षेत्र परीक्षण का आयोजन।
2. ‘कृषि आर्थिक तंत्र विश्लेषण’ आधारित का संचालन।
3. आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण एवं मानकीकरण।
4. समूह संचालित सत्र का आयोजन।
5. विशेष माँग आधारित विषयों पर आख्यान।

4. प्रक्षेत्र परीक्षण का आकलन


संग्राहित आँकड़ों का आकलन, विश्लेषण एवं व्याख्या।
2. आर्थिक विश्लेषण।
3. प्रस्तुतीकरण एवं निष्कर्ष।

5. प्रक्षेत्र दिवस


एक या दो एक सीजन में।
किसानों को खुद फेसीलिटेट करना चाहिए।

6. ग्रेजुएशन


सीजन के अन्त में फील्ड स्कूल के प्रतिभागियों को प्रमाण दिये जाने चाहिए। विशेष योगदान के लिये प्रतिभागियों को पुरस्कृत करना चाहिए।

7. विस्तार एवं प्रसार


1. कुछ चुने हुए प्रशिक्षित प्रतिभागियों द्वारा गाँव के अन्य फील्ड स्कूलों को संचालन की व्यवस्था करनी चाहिए।
2. परीक्षित एवं परिष्कृत तकनीकों का विस्तार एवं प्रसार करना चाहिए।

8. अनुश्रवण एवं मूल्यांकन


1. चल रहे एवं पूर्ण फील्ड स्कूल का समय-समय पर मूल्यांकन एवं अनुश्रवण होना चाहिए।

 

पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

उर्वरकों का दीर्घकालीन प्रभाव एवं वैज्ञानिक अनुशंसाएँ (Long-term effects of fertilizers and scientific recommendations)

2

उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय (Measures to increase the efficiency of fertilizers)

3

झारखण्ड राज्य में मृदा स्वास्थ्य की स्थिति समस्या एवं निदान (Problems and Diagnosis of Soil Health in Jharkhand)

4

फसल उत्पादन के लिये पोटाश का महत्त्व (Importance of potash for crop production)

5

खूँटी (रैटुन) ईख की वैज्ञानिक खेती (sugarcane farming)

6

सीमित जल का वैज्ञानिक उपयोग

7

गेहूँ का आधार एवं प्रमाणित बीजोत्पादन

8

बाग में ग्लैडिओलस

9

आम की उन्नत बागवानी कैसे करें

10

फलों की तुड़ाई की कसौटियाँ

11

जैविक रोग नियंत्रक द्वारा पौधा रोग निदान-एक उभरता समाधान

12

स्ट्राबेरी की उन्नत खेती

13

लाख की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भागीदारी

14

वनों के उत्थान के लिये वन प्रबन्धन की उपयोगिता

15

फार्मर्स फील्ड - एक परिचय

16

सूचना क्रांति का एक सशक्त माध्यम-सामुदायिक रेडियो स्टेशन

17

किसानों की सेवा में किसान कॉल केन्द्र

18

कृषि में महिलाओं की भूमिका, समस्या एवं निदान

19

दुधारू पशुओं की प्रमुख नस्लें एवं दूध व्यवसाय हेतु उनका चयन

20

घृतकुमारी की लाभदायक खेती

21

केचुआ खाद-टिकाऊ खेती एवं आमदनी का अच्छा स्रोत

 

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