फ्लोराइड के चपेट में ताज नगरी के गाँव

25 Nov 2016
0 mins read
पचगाँय गाँव में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगने के बाद भी दूषित जल पी रहे हैं ग्रामीण
पचगाँय गाँव में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगने के बाद भी दूषित जल पी रहे हैं ग्रामीण


मुगलों ने अजूबे ताजमहल का निर्माण कर प्रेम की बेमिसाल इबारत लिख विश्व में एक अमिट स्थान भले ही बनाया हो लेकिन वर्तमान के हुक्मरानों की संवेदनाएँ मर गई हैं। यही वजह है कि आगरा शहर से सटे कई गाँवों के लोग पीने के पानी में फ्लोराइड के कारण फ्लोरोसिस जैसी बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं।

आगरा सदर तहसील के बरौली अहीर ब्लाक के ग्राम पंचायत पचगाँय खेड़ा के दो मजरों पचगाँय और पट्टी पचगाँय में सभी हैण्डपम्पों एवं पानी की टंकियों पर प्रशासन ने निर्देश लिखा है कि इसका पानी पीने योग्य नहीं है। ऐसे में गाँव के लोगों को पानी कहाँ से मुहैया होता है। इसकी जानकारी लेने पर पता चला कि प्रशासन ने पीने के पानी के संसाधनों में प्रदूषित पानी आने के कारण यह निर्देश जारी किये हैं।

प्रशासन ने यह निर्देश तो जारी कर दिया कि हैण्डपम्प तथा टंकी का पानी पीने योग्य नहीं है लेकिन पीने का पानी उपलब्ध नहीं करवाया है। जिसके कारण ग्रामीण इसी पानी का प्रयोग करने को मजबूर हैं। सिर्फ पचगाँय में ही दो फिल्टर प्लांट लगे हैं जिसमें एक फिल्टर प्लांट खराब है और जो काम करने योग्य है वो भी सिर्फ देखने भर का सफेद हाथी है। क्योंकि फ्लोराइड युक्त पानी को फिल्टर करने के लिये जरूरी हो जाता है कि इस प्लांट के फिल्टर करने वाले सोल्यूशन को डेढ़ से दो माह के अन्दर बदला जाये जो लापरवाही के चलते बदला ही नहीं जाता है।

प्रदूषित पानी पीने के कारण पचगाँय के 60 प्रतिशत से अधिक लोग अपाहिज हो चुके हैं। स्कूल जाने वाला कोई भी बच्चा ऐसा नहीं है जो दन्त फ्लोरोसिस से ग्रस्त न हो।

मालूम हो कि ग्राम पंचायत के तीनों गाँव के पीने के पानी में मानक से कई गुना अधिक फ्लोराइड है, मानक से अधिक फ्लोराइड युक्त पानी पीने से डेंटल फ्लोरोसिस एवं स्केलेटल फ्लोरोसिस जैसी घातक बीमारी होती है। स्केलेटल फ्लोरोसिस से शरीर की हड्डियाँ कमजोर और खोखला हो जाती हैं। हाथ-पैरों की हड्डियाँ टेड़ी पड़ जाती हैं। फ्लोरोसिस एक ऐसी बीमारी है जो फ्लोराइड युक्त पानी पीने से बच्चा से लेकर बूढ़े तक को अपने कब्जे में ले लेती है।

जिलाधिकारी पंकज कुमार से गाँव की स्थिति के बारे में जानकारी माँगने पर उन्होंने बताया कि मुझे जानकारी है और इसकी जानकारी शासन को भी दे दी है। जब उनसे पूछा कि हैण्डपम्पों तथा पानी की टंकी पर निर्देश लिखे हैं पानी पीने योग्य नहीं है फिर जानता कौन सा पानी पिये तो वह प्रश्न को टाल गए।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय आगरा के प्रो. बीएस शर्मा, ज्योती अग्रवाल तथा अनिल कुमार गुप्ता ने आगरा जनपद के भूजल में फ्लोराइड की स्थिति पर शोध किया। शोध पर आने वाले नतीजे बेहद गम्भीर थे।

उन्होंने अपने शोध में लिखा कि भारत के कई भागों में एक गम्भीर समस्या भारी मात्रा में पाई जा रही है जो कि पीने के पानी में फ्लोराइड के होने से हो रही है। फ्लोराइड युक्त पानी के इस्तेमाल से इंसानों को हानि पहुँच रहा है। इसके लगातार इस्तेमाल से शोधानुसार यह तय हो चुका है कि यह पानी इंसानों, जानवरों और पेड़-पौधों के लिये जानलेवा हो चुका है।

रिपोर्ट से यह तय हो चुका है कि 28 विकासशील देश इससे ग्रसित हैं जिसमें भारत के 19 राज्यों के 250 जनपद भी फ्लोराइड की समस्या का सामना कर रहे हैं। भारी मात्रा में फ्लोराइड उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद में भी पाया गया है।

वर्तमान के अध्ययन से मालूम पड़ा है कि आगरा के भूजल की स्थिति के कारण दाँतों की मोटलिंग, लिगामेंट्स की विकृति, स्पाइनल कॉलम के झुकने और उम्र बढ़ने जैसी बीमारियाँ देखने को मिली हैं। शोध में पाया गया कि फ्लोराइड युक्त पानी का इस्तेमाल बिना किसी ट्रीटमेंट के हो रहा है। आगरा जिले के क्षेत्रों में 0.1 से 14.8 मिलीग्राम प्रतिलीटर मापा गया।

बन्द पड़ा ट्रीटमेंट प्लांटकेन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने वर्ष 2008-09 में एक सर्वे रिपोर्ट सौंपी कि फ्लोराइड युक्त पानी के इस्तेमाल से देश के एक करोड़ सत्रह लाख लोग फ्लोरोसिस बीमारी से ग्रसित हैं। रिपोर्ट पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने नेशनल प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ फ्लोरोसिस को लागू किया। लेकिन इन आठ वर्षों में प्रभावित जनपदों को फ्लोरोसिस ग्रस्त क्षेत्रों में रह रहे लोगों की तलाश के लिये धन मुहैया करवाया गया जिसका ज्यादातर भाग या तो जनपदों में इस्तेमाल ही नहीं किया गया या फिर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।

19 राज्यों के 105 जनपदों के लिये नेशनल प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ फ्लोरोसिस कार्यक्रम के अन्तर्गत लिया गया। वर्ष 2008-09 में 6 जनपद, 2009-10 में 14 जनपद, 2010-11 में 40 जनपद, 2011-12 में 31 जनपद, 2012-13 में 9 जनपद, 2013-14 में 5 तथा 2014-15 में 6 जनपदों को सन्तृप्त करने को लिया गया।

जिसमें उत्तर प्रदेश के उन्नाव तथा रायबरेली को वर्ष 2009-10, 2010-11 में प्रतापगढ़ तथा फिरोजाबाद, 2011-12 में मथुरा, तथा 2015-16 में सोनभद्र को धनराशि दी गई। लेकिन जनपदों के स्वास्थ्य विभाग को दी गई धनराशि से कार्य सम्पादित हो रहा है या नहीं मुख्यालय से मॉनिटरिंग ही नहीं की गई जिसके फलस्वरूप बीमारी पर लगाम तो नहीं लगी और बढ़ती गई।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित स्वास्थ्य विभाग कार्यालय में जब जानकारी माँगी गई तो जानकारी बेहद हास्यास्पद मिली। फ्लोरोसिस की मॉनिटरिंग की औपचारिकता बच्चों के टीकाकरण विभाग के डॉ. एके पाण्डेय ने बताया कि मैंने स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखा है कि मैं मॉनिटरिंग करने में असमर्थ हूँ। यही वजह है कि मुझे जो फाइल चार्ज में मिली थी वह जस-के-तस रखी हैं।

जनसूचना अधिकार अधिनियम– 2005 के तहत स्वास्थ्य मंत्रालय से आरटीआई में मिली सूचना के तहत फ्लोरोसिस वर्ष 2015-16 से नेशनल हेल्थ मिशन देख रहा है। दुखद ये है कि यह सूचना भी सही नहीं निकली। इस वर्ष भी एनएचएम फ्लोरोसिस नहीं देख रहा है और न ही जनपदों को कोई धनराशि ही केन्द्र द्वारा भेजी गई है।
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading