फ्लोराइड मुक्त हुआ अहमदपुरा गांव

fluoride free water
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पानी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को समाप्त करने के लिए क्लोरिन की गोली डालने की भी जानकारी इन्हें दी गई। रात को गाँव के लोग कुएँ का पानी लेना बंद कर देते है। साथ ही सुबह तक इस बात का ध्यान रखते है कि कोई उस पानी को उपयोग नहीं करे। करीब 12 से 15 घंटे बाद ही इस पानी की उपयोग ग्रामीण करते है जिससे कि क्ल¨रिन से उनके स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़े और पानी स्वच्छ भी हो जाए। मप्र के आदिवासी बहुल धार जिले के 13 विकासखंड में से धरमपुरी एक ऐसा विकासखंड है जो कि भौगोलिक दृष्टि से काफी भिन्न है। यह एरिया पहाड़ियों से घिरा हुआ है। साथ ही पानी की उपलब्धता की दृष्टि से भी यह चिंताजनक क्षेत्र है। ऐसे में यदि क्षेत्र में फ्लोराइड की समस्या हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों को किस तरह से जूझना पड़ सकता है।

धरमपुरी विकासखंड की ग्राम पंचायत तारापुर के ग्राम कालीकराय में इसी तरह का संघर्ष लोगों को लंबे समय तक झेलना पड़ा। इसके बाद जब शासन से लेकर गैर सरकारी संगठनों ने प्रयास किए तो वहाँ पर सफलता प्राप्त हुई। दरअसल ग्राम कालीकराय में पीने के पानी के लिए चार हैंडपंप थे और चारों में ही फ्लोराइड की मात्रा इतनी अधिक थी कि उनका पानी पीकर मनुष्य का स्वास्थ्य खतरे में पड़ सकता था। अज्ञानतावश यहाँ के लोगों ने काफी समय तक 6.86 पीपीएम मात्रा वाला पानी पिया और बच्चों से लेकर बड़ों की सेहत पर उसका बुरा असर पड़ा।

जब शासन को इस बात की जानकारी लगी कि यहाँ फ्लोरोसिस लोगों की सेहत पर बुरा असर डाल रहा है। बच्चों में दंतीय व हड्डी फ्लोरोसिस की समस्या बढ़ते जा रही है तो चिंतन शुरू हुआ। ऐसे में वाटर एड एवं वसुधा विकास संस्था ने यहाँ पर सबसे पहले जागरूकता को लेकर कवायद शुरू की। इसके बाद में अध्ययन करने पर यह पाया गया कि ग्राम में एक कुआं है जिससे कि लोग स्वच्छ पानी पी रहे है। यही कुआ लोगों की जिंदगी को बचा सकता है। इस ग्राम के पर्वत भाई नामक व्यक्ति ने एक ऐसी पहल की जिससे कि गाँव की तस्वीर ही बदल गई।

पर्वत भाई की पहल


दरअसल पर्वत भाई पहले से ही लोगों को पीने के लिए पानी दे रहे थे। ऐसे में यहाँ पर यह सोच पैदा हुई कि इस कुएँ को सेनेटरी कुएँ में तब्दील किया जाए। इसके लिए वाटर एड में 2 लाख 10 हजार रुपए की आर्थिक मदद प्रदान की। वसुधा विकास संस्था ने इस आर्थिक सहायता के माध्यम से क्रियान्वयन किया।

मुख्य बात यह थी कि पर्वत भाई ने अपना निजी कुआ पंचायत को दान दे दिया। इससे वहाँ पर कुएँ पर छत डालकर सेनेटरी वेल यानी कुआ तैयार किया गया। साथ ही चार स्थानों पर ऐसी टंकिया व स्टैंड स्थापित किए गए जिससे कि लोगों को पानी मिल सके। इस कुएँ पर जो हैंडपंप स्थापित किया गया उसमें लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने अपना योगदान दिया। इसके बाद गाँव के करीब 51 परिवार के 296 से अधिक सदस्यों को पीने का सुरक्षित पानी मिलने लगा।

जल सेवा समिति की अहम भूमिका


ग्राम के पर्वत भाई ने कुआं देकर एक विशेष पहल की थी किंतु लोगों को यह बात समझ में आ गई थी इस कुएँ पर पानी की मोटर स्थापित कर ही अन्यत्र पानी पहुँचाया जा सकता है और इस सब में काफी खर्च भी होगा। इसलिए इस व्यवस्था के लिए जल सेवा समिति गठित की गई।

कुएँ से पानी लेकर सारी व्यवस्थाओं को देखने के लिए पर्वत भाई को ही जिम्मा सौंपा गया। समिति के माध्यम से हर माह 50 रुपए एकत्रित किए जाने लगे और इसी से नल-जल योजना का संचालन होने लगा। परिणामस्वरूप घर-घर पानी पहुँचने लगा।

इधर पानी की बचत के लिए एक मॉडल भी तैयार हुआ है। ग्राम के मंदिर परिसर में एक जगह पर इस तरह से टंकी स्थापित की गई है जिससे कि उसका अतिरिक्त पानी बगीचे को पोषित करता है। वाटर एड द्वारा की गई मदद का हौंसला है कि गाँव वाले भी इस योजना को बखूबी संचालित कर रहे है वरना तीन साल की अवधि पूरी होने के बाद योजना दम तोड़ सकती थी। इसमें शासन के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने 1-1 हजार लीटर क्षमता वाली पानी की टंकिया मुहैया कराई।

जागरूक हुए ग्रामीण


अब इस ग्रामीण क्षेत्र में स्कूल के बच्चों से लेकर हर कोई स्वच्छ पानी पी रहा है। यहाँ स्वच्छता का मतलब केवल फ्लोराइड विहीन पानी से ही नहीं है बल्कि पानी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को भी मुक्त करने के लिए ये ग्रामीण अपने ही स्तर पर कवायद करते रहते है। इधर ग्रामीण अब स्वयं कुएँ में क्लोरिन डालकर पानी को स्वच्छ करते हैं।

ग्राम अहमदपुरा की दांस्ता


पीएसआई देहरादून द्वारा पानी की जाँच करवाने के बाद धरमपुरी विकासखंड की पंचायत ढापला के ग्राम अहमदपुरा में भी फ्लोरोसिस की समस्या सामने आई। यह अध्ययन 2007 में किया गया था। यहाँ पर न केवल बच्चों में दंतीय फ्लोरोसिस पाया गया बल्कि हड्डी संबंधी फ्लोरोसिस भी पाया गया।

सबसे अहम बात यह सामने आई कि लगातार अधिक फ्लोराइड की मात्रा का पानी पीने के कारण जानवरों में भी विकलांगता आने लगी। वाटर एड द्वारा भी इस दिशा में ध्यान दिया गया। इसके बाद यहाँ पर कवायद शुरू हुई और एक कुएँ के माध्यम से लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की दिशा में काम शुरू हुआ।

ग्राम अहमदपुरा में 102 परिवार के 641 लोगों को स्वच्छ पानी इसलिए नहीं मिल पा रहा था क्योंकि 5 हैंडपंप होने के बावजूद वहाँ पर पीने का पानी सुरक्षित नहीं था। इसकी वजह यह थी कि हैंडपंप के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 पीपीएम के स्थान पर 4.14 पीपीएम तक मात्रा थी। इसलिए यहाँ भी पानी के स्रोत बेहतर स्थिति में नहीं थे। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में सुरक्षित पानी के लिए कवायद शुरू हुई। 15 अगस्त 2008 को स्वतंत्रता दिवस पर हुई ग्रामसभा में केंद्र सरकार की निर्मल नीर योजना के अंतर्गत कुआं बनाने के लिए जगह का निर्धारण हुआ।

ऐसे हुआ स्थल चयन

दरअसल ग्रामीण इस बात को जानते थे कि पहाड़ी क्षेत्र में पानी की समस्या बेहद रहती है। सूखे जैसे हालात से गुजरने पर कुओं में पानी रह पाना संभव नहीं था। धरती की अधिक गहराई से नलकूप के जरिए पानी निकालने में फ्लोराइड भी साथ में आ रहा था।
इस योजना के तहत बनने वाले कुएँ को एक स्टाप डेम के नजदीक ही बनाना तय हुआ। जिससे कि कुआ रिचार्ज होता रहे। साथ ही नाले में पानी उपलब्ध हो और स्टाप डेम भी भरा रहे इसकी दिशा में भी ध्यान दिया गया। ग्राम पंचायत द्वारा एक बड़ा कुआ बनाकर तैयार कर लिया गया। इसमें करीब साढ़े 4 लाख रुपए खर्च किए गए।

छत बनाने की चुनौती


इस ग्राम में निर्मल नीर योजना के तहत जो कुआं बनाया गया था वह अधिक चौड़ाई वाला बन गया। ऐसे में ग्राम पंचायत द्वारा इसे सेनेटरी वेल यानी कुएँ के रूप में तब्दील करने के लिए प्रयास किए गए किंतु वे सफल नहीं हो पाए। कुएँ की चौड़ाई अधिक हो जाने से छत बनाने का काम चुनौती भरा हो गया। इन सबके बावजूद स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिए वाटर एड आगे आया।

वाटर एड ने यहाँ पर भी बिजली संचालित पानी की मोटर, स्टैंड, टंकी आदि के लिए 2 लाख 10 हजार रुपए की आर्थिक मदद दी। इससे यहाँ पर कवायद शुरू हुई। वहीं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने भी 50 हजार रुपए की मदद कर इस योजना में अपना योगदान दिया। अहमदपुरा में भी स्थानीय लोगों द्वारा योजना के क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जा रहा है। परिणामस्वरूप आज लोगों को वहाँ पर पीने का स्वच्छ पानी मिलने लगा है।

इंसान के साथ जानवरों का भी भला


अहमदपुरा एक ऐसा गाँव है जहाँ पर न केवल बच्चों से लेकर बड़े लोगों को वाटर एड व वसुधा विकास संस्था द्वारा निर्मित स्टैंड व टंकी से पानी मिल रहा है बल्कि गाँव में एक स्थान पर मवेशियों यानी पशुओं के पीने के लिए भी पानी की टंकी बनाई गई है। इस टंकी को स्थानीय भाषा में चाठिया कहा जाता है। यह चाठिया कई जानवरों की प्यास बुझा रहा है और उनमें आने वाली विकलांगता को भी खत्म कर रहा है।

राष्ट्रीय पेयजल गुणवत्ता कार्यक्रम


इन दोनों ही ग्राम में सामाजिक संस्थाओं के कारण आई जागरूकता के कारण पानी की गुणवत्ता के प्रति लोग जागरूक हुए हैं। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय पेयजल गुणवत्ता अनुश्रवण कार्यक्रम के तहत लोगों को पानी जाँचने की तरकीबे बताई गई। इसमें सामान्य रूप से गाँव के कुछ लोगों को प्रशिक्षित किया गया जिससे कि वे पानी की अशुद्धि के बारे में जाँच कर सके।

पानी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को समाप्त करने के लिए क्लोरिन की गोली डालने की भी जानकारी इन्हें दी गई। रात को गाँव के लोग कुएँ का पानी लेना बंद कर देते है। साथ ही सुबह तक इस बात का ध्यान रखते है कि कोई उस पानी को उपयोग नहीं करे। करीब 12 से 15 घंटे बाद ही इस पानी की उपयोग ग्रामीण करते है जिससे कि क्ल¨रिन से उनके स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़े और पानी स्वच्छ भी हो जाए।

क्यों है वरदान योजना


शासन, ग्राम पंचायत, वाटर एड सहित जो भी अन्य संस्थाएँ यहाँ पर योगदान दे रही है उनका योगदान ग्रामीणों के लिए क्यों है यह भी बताना बेहद जरूरी है। दरअसल अहमदपुरा, कालिकराय ग्राम निमाड़ घाटी व नर्मदा घाटी क्षेत्र के ग्राम है। जहाँ पथरीली भूमि है। इस क्षेत्र में नदियों में पानी 12 महीने नहीं रहता है। धरती के पानी में फ्लोराइड की मात्रा कम होने की कोई संभावना भी नहीं है क्योंकि यहाँ पर पानी के रिचार्ज को लेकर कोई विशेष काम नहीं हुआ है।

वर्ष दर वर्ष यहाँ पर पानी में फ्लोराइड की मात्रा में बढ़ोतरी के ही संकेत मिले है। इन संस्थाओं की वजह से 153 परिवार खुशहाल है वरना पानी में पाए जाने वाला फ्लोराइड कई बच्चों को हमेशा के लिए विकलांगता में ले जा सकता था।

मप्र के आदिवासी बहुल धार जिले के 13 विकासखंड में से धरमपुरी एक ऐसा विकासखंड है जो कि भौगोलिक दृष्टि से काफी भिन्ना है। यह क्षेत्र पहाड़ियों से घिरा हुआ है। साथ ही पानी की उपलब्धता की दृष्टि से भी यह चिंताजनक क्षेत्र है। ऐसे में यदि क्षेत्र में फ्लोराइड की समस्या हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों को किस तरह से जूझना पड़ सकता है।

धरमपुरी विकासखंड की ग्राम पंचायत तारापुर के ग्राम कालीकराय में इसी तरह का संघर्ष लोगों को लंबे समय तक झेलना पड़ा। इसके बाद जब शासन से लेकर गैर सरकारी संगठनों ने प्रयास किए तो वहाँ पर सफलता प्राप्त हुई।

दरअसल ग्राम कालीकराय में पीने के पानी के लिए चार हैंडपंप थे और चारों में ही फ्लोराइड की मात्रा इतनी अधिक थी कि उनका पानी पीकर मनुष्य का स्वास्थ्य खतरे में पड़ सकता था। अज्ञानतावश यहाँ के लोगों ने काफी समय तक 6.86 पीपीएम मात्रा वाला पानी पिया और बच्चों से लेकर बड़ों की सेहत पर उसका बुरा असर पड़ा।

जब शासन को इस बात की जानकारी लगी कि यहाँ फ्लोरोसिस लोगों की सेहत पर बुरा असर डाल रहा है। बच्चों में दंतीय व हड्डी फ्लोरोसिस की समस्या बढ़ती जा रही है तो चिंतन शुरू हुआ। ऐसे में वाटर एड एवं वसुधा विकास संस्था ने यहाँ पर सबसे पहले जागरूकता को लेकर कवायद शुरू की।

इसके बाद में अध्ययन करने पर यह पाया गया कि ग्राम में एक कुआ है जिससे कि लोग स्वच्छ पानी पी रहे है। यही कुआ लोगों की जिंदगी को बचा सकता है। इस ग्राम के पर्वत भाई नामक व्यक्ति ने एक ऐसी पहल की जिससे कि गाँव की तस्वीर ही बदल गई।

पर्वत भाई की पहल


दरअसल पर्वत भाई पहले से ही लोगों को पीने के लिए पानी दे रहे थे। ऐसे में यहाँ पर यह सोच पैदा हुई कि इस कुएँ को सेनेटरी कुएँ में तब्दील किया जाए। इसके लिए वाटर एड में 2 लाख 10 हजार रुपए की आर्थिक मदद प्रदान की। वसुधा विकास संस्था ने इस आर्थिक सहायता के माध्यम से क्रियान्वयन किया।

मुख्य बात यह थी कि पर्वत भाई ने अपना निजी कुआ पंचायत को दान दे दिया। इससे वहाँ पर कुएँ पर छत डालकर सेनेटरी वेल यानी कुआ तैयार किया गया। साथ ही चार स्थानों पर ऐसी टंकिया व स्टैंड स्थापित किए गए जिससे कि लोगों को पानी मिल सके।

इस कुएँ पर जो हैंडपंप स्थापित किया गया उसमें लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने अपना योगदान दिया। इसके बाद गाँव के करीब 51 परिवार के 296 से अधिक सदस्यों को पीने का सुरक्षित पानी मिलने लगा।

जल सेवा समिति की अहम भूमिका


ग्राम के पर्वत भाई ने कुआ देकर एक विशेष पहल की थी किंतु लोगों को यह बात समझ में आ गई थी इस कुएँ पर पानी की मोटर स्थापित कर ही अन्यत्र पानी पहुँचाया जा सकता है और इस सब में काफी खर्च भी होगा। इसलिए इस व्यवस्था के लिए जल सेवा समिति गठित की गई।

कुएँ से पानी लेकर सारी व्यवस्थाओं को देखने के लिए पर्वत भाई को ही जिम्मा सौंपा गया। समिति के माध्यम से हर माह 50 रुपए एकत्रित किए जाने लगे और इसी से नल-जल योजना का संचालन होने लगा।

परिणामस्वरूप घर-घर पानी पहुँचने लगा। इधर पानी की बचत के लिए एक मॉडल भी तैयार हुआ है। ग्राम के मंदिर परिसर में एक जगह पर इस तरह से टंकी स्थापित की गई है जिससे कि उसका अतिरिक्त पानी बगीचे को पोषित करता है। वाटर एड द्वारा की गई मदद का हौंसला है कि गाँव वाले भी इस योजना को बखूबी संचालित कर रहे है वरना तीन साल की अवधि पूरी होने के बाद योजना दम तोड़ सकती थी। इसमें शासन के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने 1-1 हजार लीटर क्षमता वाली पानी की टंकिया मुहैया कराई।

जागरूक हुए ग्रामीण


अब इस ग्रामीण क्षेत्र में स्कूल के बच्चों से लेकर हर कोई स्वच्छ पानी पी रहा है। यहाँ स्वच्छता का मतलब केवल फ्लोराइड विहीन पानी से ही नहीं है बल्कि पानी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को भी मुक्त करने के लिए ये ग्रामीण अपने ही स्तर पर कवायद करते रहते हैं। इधर ग्रामीण अब स्वयं कुएँ में क्लोरिन डालकर पानी को स्वच्छ करते हैं।

ग्राम अहमदपुरा की दांस्ता


पीएसआई देहरादून द्वारा पानी की जाँच करवाने के बाद धरमपुरी विकासखंड की पंचायत ढापला के ग्राम अहमदपुरा में भी फ्लोरोसिस की समस्या सामने आई। यह अध्ययन 2007 में किया गया था। यहाँ पर न केवल बच्चों में दंतीय फ्लोरोसिस पाया गया बल्कि हड्डी संबंधी फ्लोरोसिस भी पाया गया।

सबसे अहम बात यह सामने आई कि लगातार अधिक फ्लोराइड की मात्रा का पानी पीने के कारण जानवरों में भी विकलांगता आने लगी। वाटर एड द्वारा भी इस दिशा में ध्यान दिया गया। इसके बाद यहाँ पर कवायद शुरू हुई और एक कुएँ के माध्यम से लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की दिशा में काम शुरू हुआ।

ग्राम अहमदपुरा में 102 परिवार के 641 लोगों को स्वच्छ पानी इसलिए नहीं मिल पा रहा था क्योंकि 5 हैंडपंप होने के बावजूद वहाँ पर पीने का पानी सुरक्षित नहीं था। इसकी वजह यह थी कि हैंडपंप में पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 पीपीएम के स्थान पर 4.14 पीपीएम तक मात्रा थी। इसलिए यहाँ भी पानी के स्रोत बेहतर स्थिति में नहीं थे। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में सुरक्षित पानी के लिए कवायद शुरू हुई।

15 अगस्त 2008 को स्वतंत्रता दिवस पर हुई ग्रामसभा में केंद्र सरकार की निर्मल नीर योजना के अंतर्गत कुआं बनाने के लिए जगह का निर्धारण हुआ।

ऐसे हुआ स्थल चयन


दरअसल ग्रामीण इस बात को जानते थे कि पहाड़ी क्षेत्र में पानी की समस्या बेहद रहती है। सूखे जैसे हालात से गुजरने पर कुओं में पानी रह पाना संभव नहीं था। धरती की अधिक गहराई से नलकूप के जरिए पानी निकालने में फ्लोराइड भी साथ में आ रहा था। इस योजना के तहत बनने वाले कुएँ को एक स्टाप डेम के नजदीक ही बनाना तय हुआ। जिससे कि कुआ रिचार्ज होता रहे। साथ ही नाले में पानी उपलब्ध हो और स्टाप डेम भी भरा रहे इसकी दिशा में भी ध्यान दिया गया। ग्राम पंचायत द्वारा एक बड़ा कुआं बनाकर तैयार कर लिया गया। इसमें करीब साढ़े 4 लाख रुपए खर्च किए गए।

छत बनाने की चुनौती


इस ग्राम में निर्मल नीर योजना के तहत जो कुआं बनाया गया था वह अधिक चौड़ाई वाला बन गया। ऐसे में ग्राम पंचायत द्वारा इसे सेनेटरी वेल यानी कुएँ के रूप में तब्दील करने के लिए प्रयास किए गए किंतु वे सफल नहीं हो पाए।

कुएँ की चौड़ाई अधिक हो जाने से छत बनाने का काम चुनौती भरा हो गया। इन सबके बावजूद स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिए वाटर एड आगे आया। वाटर एड ने यहाँ पर भी बिजली संचालित पानी की मोटर, स्टैंड, टंकी आदि के लिए 2 लाख 10 हजार रुपए की आर्थिक मदद दी।

इससे यहाँ पर कवायद शुरू हुई। वहीं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने भी 50 हजार रुपए की मदद कर इस योजना में अपना योगदान दिया। अहमदपुरा में भी स्थानीय लोगों द्वारा योजना के क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जा रहा है। परिणामस्वरूप आज लोगों को वहाँ पर पीने का स्वच्छ पानी मिलने लगा है।

इंसान के साथ जानवरों का भी भला


अहमदपुरा एक ऐसा गाँव है जहाँ पर न केवल बच्चों से लेकर बड़े लोगों को वाटर एड व वसुधा विकास संस्था द्वारा निर्मित स्टैंड व टंकी से पानी मिल रहा है बल्कि गाँव में एक स्थान पर मवेशियों यानी पशुओं के पीने के लिए भी पानी की टंकी बनाई गई है। इस टंकी को स्थानीय भाषा में चाठिया कहा जाता है। यह चाठिया कई जानवरों की प्यास बुझा रहा है और उनमें आने वाली विकलांगता को भी खत्म कर रहा है।

राष्ट्रीय पेयजल गुणवत्ता कार्यक्रम


इन दोनों ही ग्राम में सामाजिक संस्थाओं के कारण आई जागरूकता के कारण पानी की गुणवत्ता के प्रति लोग जागरूक हुए है। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय पेयजल गुणवत्ता अनुश्रवण कार्यक्रम के तहत लोगों को पानी जाँचने की तरकीबें बताई गई। इसमें सामान्य रूप से गाँव के कुछ लोगों को प्रशिक्षित किया गया जिससे कि वे पानी की अशुद्धि के बारे में जाँच कर सके।

पानी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को समाप्त करने के लिए क्लोरिन की गोली डालने की भी जानकारी इन्हें दी गई। रात को गाँव के लोग कुएँ का पानी लेना बंद कर देते हैं। साथ ही सुबह तक इस बात का ध्यान रखते हैं कि कोई उस पानी को उपयोग नहीं करे। करीब 12 से 15 घंटे बाद ही इस पानी की उपयोग ग्रामीण करते हैं जिससे कि क्लोरिन से उनके स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़े और पानी स्वच्छ भी हो जाए।

क्यों है वरदान योजना


शासन, ग्राम पंचायत, वाटर एड सहित जो भी अन्य संस्थाएँ यहाँ पर योगदान दे रही है उनका योगदान ग्रामीणों के लिए क्यों है यह भी बताना बेहद जरूरी है। दरअसल अहमदपुरा, कालिकराय ग्राम निमाड़ घाटी व नर्मदा घाटी क्षेत्र के ग्राम है। जहाँ पथरीली भूमि है।

इस क्षेत्र में नदियों में पानी 12 महीने नहीं रहता है। धरती के पानी में फ्लोराइड की मात्रा कम होने की कोई संभावना भी नहीं है क्योंकि यहाँ पर पानी के रिचार्ज को लेकर कोई विशेष काम नहीं हुआ है। वर्ष दर वर्ष यहाँ पर पानी में फ्लोराइड की मात्रा में बढ़ोतरी के ही संकेत मिले हैं। इन संस्थाओं की वजह से 153 परिवार खुशहाल है वरना पानी में पाए जाने वाला फ्लोराइड कई बच्चों को हमेशा के लिए विकलांगता में ले जा सकता था।

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