फ्लोरीन वरदान या अभिशाप (Fluorine : An Introduction)

फ्लोरीन
खोज – वर्ष 1886
खोजकर्ता – हेनरी मोइसन
नाम – लेटिन भाषा के “FLUERE” शब्द से लिया गया जिसका अर्थ फ्लो है।
गलनांक – 219.67 डिग्री सेल्सियस
क्वथनांक – 188.11 डिग्री सेल्सियस
घनत्व – 0.001553 ग्राम/सेमी
रंग – पीला

.सामान्यतः यह सबसे हल्का, अत्यधिक क्रियाशील हैलाइड परिवार की सदस्य है, मिट्टी तथा चट्टानों में पाये जाने वाले खनिजों से क्रिया कर अलग-अलग तरह के पदार्थ बना लेती है इसके दो अणु मिलकर फ्लोराइड का निर्माण करते हैं। नदियों, झीलों के सतही जल, ज्वालामुखीय चट्टानें पहाड़ी इलाके एल्केलाइन, हाइड्रो-थर्मल स्प्रिंग, मैग्मा आदि भूमिगत जल के स्रोत हैं।

फ्लोराइड, फ्लोरोपेटाइट, क्रायोलाइट, टोपाज तथा मेइसचर इसके प्रमुख खनिज हैं। कुछ पेड़ पौधों भी कार्बनिक फ्लोराइड नामक विष का उत्पादन करते हैं जो शाकाहारी जीवों को गम्भीर रूप से प्रभावित करते हैं।

रसायनिक गुणः फ्लोरीन का परमाणु क्रमांक 9 है इसमें कुल 9 इलेक्ट्रॉन है जिसका इलेक्ट्रानिक विन्यास 2,7 है संयोजकता (-1) जिसके कारण यह अति क्रियाशील रहती है मिश्रित रूप में ही पाई जाती है। नान मेटल सल्फर, फासफोरस से विस्फोटक क्रिया करती है। हाइड्रोजन, कार्बन, लैम्प ब्लैक से क्रिया कर फ्लोरो मीथेन तथा ग्रेफाइट से 400 डिग्री सेलसियस पर क्रिया कर गैसीय पदार्थ फ्लोरो-कार्बन, कार्बन डाईऑक्साइड, हाइड्रोजन एवं फ्लोरीन क्रिया कर हाइड्रोजन फ्लोराइड बनता है जो जल में घुलनशील होने के कारण घुल कर हाइड्रो फ्लोरिक एसिड बनाता है जो पेयजल के रूप में मानव जीवन को अति प्रभावित करता है।

फ्लोरीडेशन : दन्त चिकित्सा विज्ञान तथा हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के कारण, दाँतों की कैविटी कन्ट्रोल के लिए पेयजल में अधिकतम 4.0 मिग्राम (4 पीपीएम) (1974 सेफ ड्रिकिंग वाटर एक्ट) प्रति लीटर रखा जा सकता है इसकी उपयोगिता को देखते टूथ पेस्ट बनाने वाली कम्पनियाँ इसका उपयोग कर रही हैं।

फ्लोराइड का प्रभाव प्रति दिन ली गयी मात्रा तथा आयु पर निर्भर करती है। बच्चों में 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तथा प्रौढ़ में 60 प्रतिशत रूप जाता है शेष पेशाब के माध्यम से बाहर निकल जाता है। रूका हुआ फ्लोराइड का 70 प्रतिशत से 90 प्रतिशत भाग, खून द्वारा अवशोषित कर शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुँचता है जो हड्डियों, दाँतों व अधिक कैल्शियमयुक्त भागों में जमा होता रहता है जो फ्लोरोसिस नामक रोग का कारण बनता है। यह शरीर में मुख्य रूप से पेयजल, टूथ पेस्ट, माऊथवास आदि डेन्टल उत्पाद पेस्टीसाइड, इन्सेक्टीसाइड, फॉसफेट युक्त रसायनिक खाद, टेन्डराइज माँस तथा चाय की पत्तियाँ आदि।

फ्लोरीन का प्रयोग : 1. फ्लोरीन गैस का सर्वाधिक उपयोग लगभग 7000 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष UF6 न्यूक्लिर फ्यूल को बनाने में।
2. 6000 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष SF6 के रूप में हाईवोल्टेज ट्रांसफार्मर, कूलेन्ट, सर्किट ब्रेकर तथा इलेक्ट्रॉनिक्स इन्डट्री में।
3 किलो ग्राम प्रति टन स्टील निर्माण, वेल्डिंग रॉड के निर्माण में।
4. 23 किलोग्राम प्रतिटन फ्लोरोसिलिकेट के रूप में एल्यूमिनियम के शोधन में।
5. कुल उत्पाद का 20 प्रतिशत फ्लोराइड तथा 40 प्रतिशत हाइड्रोफ्लोरिक एसिड, रेफ्रिजिरेटर इन्डस्ट्री, एअर कन्डीशन में।
6. 30 प्रतिशत हरबी साइड, पेस्टी साइड, अन्य जीवाणु नाशक, फास्फोरसयुक्त रसायनिक खादें, तथा फसल चक्र को अनुकूलित करने में।

1980-2000 के मध्य इसका उपयोग चरम पर था जो ओजोन परत के छय ग्लोबल वार्मिंग, फ्लोरोसिस के कारण अमेरिकी एवं यूरोपियन देशों में रोक लगा दी गयी है।

फ्लोरीन तथा स्वास्थ्य : 0.4 से 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर हड्डियों की मजबूती, दाँतों की चमक तथा कैविटी के लिए उपयोगी है तो साथ ही साथ अधिक मात्रा विष की तरह है जो हाइड्रो के टूटने, टेढ़ी होने, दाँतों का छयीकरण तथा मस्तिष्क पर पड़ता है। 4.0 मिग्राम से अधिक हानिकारक है 25 मिलीग्राम से 100 मिलीग्राम प्रति लीटर जल से आँखे, श्वसन तंत्र, लीवर, किडनी तथा हड्डियों को गम्भीर नुकसान पहुँचाता है। यहाँ 1000 मिलीग्राम प्रति लीटर की मात्रा से मनुष्य की कुछ ही मिनटों में मौत हो जाती है। इसकी खोज के शुरुआती दिनों में कई लोगों की जाने गयी थी। पानी में घुलनशील होने के कारण हाइड्रोजन फ्लोराइड तथा हाइड्रोफ्लोरिक एसिड शरीर में पहुँचकर दाँतों तथा हड्डियों में मौजूद कैल्शियम से क्रिया कर फ्लोरोसिस का कारण बनता है।

एशिया तथा अफ्रीकी देशों में जाने-अनजाने उपयोग से लाखों लोगों का जीवन बर्बाद कर रहा है।

फ्लोरीन तथा पर्यावरण : क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन, ब्रोमो-फ्लोरो-कार्बन एवं हाइड्रो-क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन अधिक स्टेबिलिटी के कारण इनका विघटन आसानी से नहीं हो पाता और धीरे-धीरे अधिक ऊँचाई पर पहुँचकर क्लोरीन, फ्लोरीन तथा ब्रोमीन में टूट कर ओजोन के अणुओं से क्रिया कर ओजोन परत को भारी नुकसान पहुँचाते हैं जिससे सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों विभिन्न प्रकार के जीवों, वनस्पतियों तथा ग्लोबल वार्मिंग के लिए हानिकारक सिद्ध हो रही है।

1987 मोनटेल प्रोटोकॉल तथा समय-समय पर होने वाली अर्न्तराष्ट्रीय मंचों पर इसकी कमी करने की वकालत की गयी। अधिक ओजोन डायमेन्सनल प्रोटेन्सनल (ODP) वाली क्लोरोफ्लोरो कार्बन तथा बोमो-फ्लोरो-कार्बन तथा हाइड्रोफ्लोरो-कार्बन के उपयोग पर कड़े नियम बनाये गये तथा कहा गया कि 2030-2040 तक क्लोरीन, फ्लोरीन रहित तथा शून्य (ODP) की गैसों का उपयोग किया जाये साथ ही साथ विकसित देशों को हिदायत दी गयी कि 2020 तक इसका पूर्णतया समाधान खोजें।

फ्लोरीन तथा इकोनॉमी : 1989 में 5.6 मिलियन टन का रिकार्ड खनन किया गया। 1994 में रोक के बावजूद 3.6 मिलियन टन का उत्पादन हुआ वर्ष 2003 में 4.5 मिलियन टन के खनन से 550 मिलियन अमेरीकी डालर की पूँजी आई उसके बाद 2011 विश्व स्तर पर 15 बिलियन डालर का व्यवस्था हुआ और अब 2016-2018, 3.5-5.9 मिलियन टन के खनन से 20 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।

पेयजल से फ्लोराइड निकालने के उपाय : यदि मानक स्तर से अधिक फ्लोराइड जल में हो तो उसके निष्काशन के लिए रीवर्स आसमोसिस एवं घरेलू उपचार डिस्टलेशन या वाष्पीकरण विधि अपनायी जा सकती है।

सम्पर्क करें :- नन्दकिशोर वर्मा, नीला जहान, E-2/319, विनीत खण्ड, गोमती नगर लखनऊ

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